भीमराव रामजी आंबेडकर - पुनरावृति नोट्स

 सीबीएसई कक्षा - 12 हिंदी कोर आरोह पाठ – 18

मेरी कल्पना का आदर्श-समाज


पाठ के सार - प्रतिपाद्य- इस पाठ में, लेखक ने बताया है कि आदर्श समाज में तीन तत्त्व अनिवार्यतः होने चाहिए-समानता, स्वतंत्रता व बंधुता| इनसे लोकतंत्र सामूहिक जीवनचर्या की एक रीती तथा समाज के सम्मिलित अनुभवों के आदान-प्रदान की प्रक्रिया के अर्थ तक पहुँच सकता है | 

सारांश-लेखक का आदर्श समाज स्वतन्त्रता, समता व भ्रातृता पर आधारित होगा | समाज में इतनी गतिशीलता होनी चाहिए कि कोई भी परिवर्तन समाज में तुरंत प्रसारित हो जाए | ऐसे समाज में सबका सब कार्यों में भाग होना चाहिए तथा सबको सबकी रक्षा के प्रति सजग रहना चाहिए | सबको संपर्क के साधन व अवसर मिलने चाहिए | यही लोकतंत्र है | लोकतंत्र मूलतः सामाजिक जीवनचर्या की एक रीती व समाज के सम्मिलित अनुभवों के आदान-प्रदान का नाम है |

फ्रांसीसी क्रांति के नारे में ‘समता’ शब्द सदैव विवादित रहा है | समता के आलोचक कहते हैं कि सभी मनुष्य बराबर नही होते | यह सत्य होते हुए भी महत्त्व नहीं रखता क्योंकि समता असंभव होते हुए भी नियामक सिद्धांत है | मनुष्य की क्षमता तीन बातों पर निर्भर है-1. शारीरिक वंश परंपरा, 2. सामाजिक उत्तराधिकार, 3. मनुष्य के अपने प्रयत्न | इन तीनों दृष्टियों से मनुष्य समान नहीं होते, परंतु क्या इन तिन कारणों से व्यक्ति से असमान व्यवहार करना चाहिए | असमान प्रयत्न के कारण व्यवहार अनुचित नहीं है, परंतु हर व्यक्ति को विकास करने के अवसर मिलने चाहिए |

लेखक का मानना है कि उच्च वर्ग के लोग उत्तम व्यवहार के मुकावले में निश्चय ही जीतेंगे क्योंकि उत्तम व्यवहार का निर्णय भी संपन्नों को ही करना होगा | प्रयास मनुष्य के वश में हैं, परंतु वंश व सामाजिक प्रतिष्ठा उसके वश में नहीं है | अतः वंश और सामाजिकता के नाम पर असमानता अनुचित है | अनेक


पाठ – 18
श्रम विभाजन और जाति-प्रथा

पाठ के सार - सारांश- इस पाठ में लेखक ने जातिवाद के आधार पर किए जाने वाले भेदभाव को सभ्य समाज के लिए हानिकारक बताया है। जाति आधारित श्रम विभाजन को अस्वाभाविक और मानवता विरोधी बताया गया है। यह सामाजिक भेदभाव को बढ़ाता है। जातिप्रथा आधारित श्रम विभाजन में व्यक्ति की रुचि को महत्व नहीं दिया जाता फलस्वरूप विवशता के साथ अपनाए गए पेशे में कार्य-कुशलता नहीं आ पाती। लापरवाही से किए गए कार्य में गुणवत्ता नहीं आ पाती और आर्थिक विकास बुरी तरह प्रभावित होता है। आदर्श समाज की नींव समता, स्वतंत्रता और बंधुत्व पर टिकी होती है समाज के सभी सदस्यों से अधिकतम उपयोगिता प्राप्त करने के लिए सबको अपनी क्षमता को विकसित करने तथा रुचि के अनुरूप व्यवसाय चुनने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। राजनीतिज्ञ को अपने व्यवहार में एक व्यवहार्य सिद्धांत की आवश्यकता रहती है और यह व्यवहार्य सिद्धांत यही होता है कि सब मनुष्यों के साथ समान व्यवहार किया जाए।