अंतरा - भीष्म साहनी - पुनरावृति नोट्स

 CBSE Class 12 हिंदी ऐच्छिक

पुनरावृति नोट्स
पाठ-16 गांधी, नेहरू और यास्सेर अराफात


पाठ  परिचय
भीष्म  साहनी  द्वारा  रचित  संस्मर ण  ‘गांधी,  ने हरू  और   यास्सेर   अराफात’  उनकी  आत्मकथा  ‘आज  के   अतीत’ का  एक  अंश  है।  सेवाग्राम  में  गांधी  जी,  कश्मीर  में   जवाहरलाल  नेहरू  तथा  पिफलिस्तीन  में  यास्सेर  अराप़फात के साथ बिताए समय का सरस एवं प्रभावी वर्णन किया है तथा देशभक्ति तथा अंतर्राष्ट्रीय मैत्राी जैसे मुद्दे  भी  पाठक  के  समक्ष  रखे  है।
(क)  गांधी  जी
स्मरणीय बिंदु

  • लेखक सन् 1938 में सेवाग्राम गया था। लेखाक के भाई बलराज साहनी सेवाग्राम में रहते थे। लेखक  उनके  पास  रहने कुछ  दिन  के  लिए  गया  था।  भाई  बलराज  ने  उसे  बताया  कि  गांधी जी  प्रातः  भ्रमण  के  लिए  प्रतिदिन  उसके  क्वार्टर  के  सामने  से  जाते  है।  लेखक  गांधी  जी  के साक्षात् दर्शन हेतु  बेहद उत्साहित था।
  • अगले  दिन सुबह की सैर के दौरान वह गांधी जी से मिला। गांधी जी को पहली बार देखकर वह रोमांचित हो  उठा। गांधी जी के साथ  चलने का उसका पहला अनुभव बहुत अच्छा रहा। इस महान व्यक्ति को देखकर लेखक प्रसन्न हो उठा। उसने गांधी जी को चित्रों में जिस रूप में देखा था, वास्तविक रूप में भी वे बिल्कुल  वैसे ही थे। उन्होंने बड़े प्रेम से लेखक  से बात की।  वे  बहुत  धीमी  आवाज में  बोलते  थे  तथा  हमेशा  हँसकर  बात  करते  थे।
  • लेखक लगभग तीन सप्ताह तक सेवाग्राम रहा। यहाँ उसे अनेक जाने माने व्यक्तित्व देखाने को मिले।  इनमें  से  प्रमुख  थे  -  पृथ्वी  सिंह  आजाद,  मीरा  बेन,  खान  अब्दुल  गफ्रपफार  खान  तथा  राजेन्द्र बाबू।
  • आश्रम  के  बाहर  सड़क  के  किनारे एक  खोखे  में  एक पंद्रह  वर्षीय  बालक  जोर-जोर  से  हाथ-पैर पटक  रहा  था  तथा  चिल्ला-चिल्लाकर  बापू  को  पुकार  रहा  था।  बापू  आए  और  बालक  का  फूला हुआ पेट  देखकर उसकी  परेशानी समझ गए।  उन्होनें  उसे  उल्टी कराई  और  जब तक वह  उल्टी करता रहा, वह उसकी पीठ पर प्यार से हाथ रखे झुके रहे। इसके बाद उन्होनें उसे खोखे में लेटने को  कहा।

(ख)  नेहरू  जी
स्मरणीय बिंदु

  • नेहरू जी कश्मीर यात्रा पर आए थे। यहाँ उनका भव्य स्वागत हुआ शेख अब्दुल्ला के नेतृत्व में  झेलम  नदी में,  शहर  के  एक  सिरे में  दूसरे  सिरे  तक,  नावों  में उनकी  शोभायात्रा  निकाली र्गइ  ।
  • लेखक  पंडित  जी  की  देखभाल  में  अपने  फुफेरे  भाई  का  सहायक  था।  नेहरू जी  का  कमरा ऊपर वाली मंजिल पर था। लेखाक नीचे आकर समाचार पत्रा देखाने लगा। उसने निर्णय किया कि  जब तक नेहरू जी स्वयं समाचार  पत्रा  नहीं माँगेगे  वह समाचार  पत्रा पढ़ता  ही रहेगा। नेहरू जी  कुछ  देर  चुपचाप  खड़े  रहे  पिफर  धीरे  से  बोले  -  ‘‘आपने  देख  लिया  हो  तो  क्या  मै  भी एक नजर देख सकता  हूँ।’’  यह सुनकर लेखक  शर्मिन्दा  हो गया और उसने  तुरन्त वह  अखबार नेहरू जी  के  हाथ  में  दे  दिया।

(ग)  यास्सेर  अराप़फात

  • उन  दिनों  लेखक  अप्रफो-एशियाई  लेखक  संघ  में  कार्यकारी  महामंत्राी  के  पद  पर  कार्यरत  था। टयूनीसिया  की  राजधनी  ट्यूनिस  में  लेखक  संघ  के  सम्मेलन  में  भाग  लेने  गया  हुआ  था।  टयूनिस में  उन  दिनों  यास्सेर  अराप़फात   के  ने तृत्व  में  पिफलिस्तीन  अस्थायी  सरकार  काम  कर  रही  थी।  लेखक संघ की गतिविध्यिों में भी पिफलिस्तीनी लेखाकों, बुद्धिजीवियों तथा अस्थायी सरकार का बड़ा योगदान  था।
  • ट्यूनिस में  लोट्स पत्रिका  का  संपादकीय कार्यालय  था।  एक  दिन  लोटस के  तत्कालीन  संपादक लेखक  के  पास  आए और उसे  सपत्नी  सदरमुकाम  में  आमंत्रित  किया।
  • जब लेखक अपनी पत्नी के  साथ  वहाँ पहुँचा  तो  यास्सेर अरा़पफात अपने एक-दो  साथियों के साथ बाहर आए और उन्हें आदर सहित अंदर ले गए। बातचीत के दौरान यास्सेर अराप़फात से पिफलिस्तीन के प्रति  साम्राज्यवादी शक्तियों के  अन्यायपूर्ण  रवैये, भारतीय नेताओं द्वारा  की गई उसकी  निंदा, पिफलिस्तीनी  आंदोलन के  प्रति  भारत की सहानुभूति  एवं समर्थन  आदि विषयों पर चर्चा  हुई।
  • बातचीत के  दौरान गांधी  जी  का  जिक्र  आने पर अरापफ़ात  बोले  - ‘वे  आपके ही  नहीं हमारे भी नेता  है।  उतने ही आदरणीय जितने आपके  लिए है।’  अरापफ़ात भारतीय नेताओं के  निकट सम्पर्क  में   र हे  थे।   गांधी  जी  की  प्रसिद्धि अंतर्राष्ट्रीय  स्तर  पर  थी।  उनके   सत्य,  अंहिसा  तथा  सत्याग्रह आन्दोलनों तथा उनकी सपफलता के कारण उन्हें पूरे विश्व में सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था।  यास्सेर  अराफात  भी  अहिंसक  आन्दोलन  के  द्वारा  पिफलिस्तीनियों  को  उनकी  मातृभूमि  दिलाना चाहते थे। भारतीयों नेताओं का समर्थन एवं सहानुभूति  उन्हें प्राप्त थी। इसलिए भारतीय नेताओं विशेषकर  गांधी  जी के  प्रति  उनके  मन  में  आदर होना  स्वाभाविक  था।
  • यास् सेर  अराफात  ने  लेखक  का  बड़ा  अतिथि  सत्कार  किया।  वे   लेखक  को  स्वयं  पफल  छील-छीलकर खिला  रहे  थे।  वे  उनके  लिए  शहद  की  चाय  भी बना  रहे  थे  तथा  साथ  ही  शहद की  उपयोगिता के  विषय  में  भी  बता  रहे  थे।
  • भोजन  के  समय  लेखक  जब  हाथ  धेने  गया  तो  उसे  उस  समय  बड़ी  झेंप  महसूस  हुई  जब  उन्होंने देखा कि अराप़फात गुसलखाने के बाहर तौलिया लिए हुए खड़े थे।  अरापफात का आतिथ्य प्रेम सचमुच  हृदय  को छू  लेने  वाला  था।