शरीर क्रिया विज्ञान जीव यांत्रिकी और खेल - पुनरावृति नोट्स

CBSE कक्षा 11 शारीरिक शिक्षा
पाठ - 9 शरीर क्रिया विज्ञान, जीव यांत्रिकी और खेल
पुनरावृत्ति नोट्स

स्मरणीय बिन्दु-
  • पेशीय गति विज्ञान का अर्थ (Kinesiology)
    पेशीय गति विज्ञान अथवा प्राणी गतिकी विज्ञान की वह शाखा है, जिसमें जीव के शरीर की गति के विषय में सुव्यवस्थित एवं क्रमबद्ध तरीके से अध्ययन करते हैं। इस विज्ञान में शरीर की उन क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है जिसमें की शरीर की बनावट, मांसपेशी, हड्डियों, जोड़ तथा उसके कार्यरत तन्त्र जो जीव को गति प्रदान करते है, एवं जीव की गति को प्रभावित करते है, दूसरे शब्दों में प्राणी का शरीर किस प्रकार बल पैदा कर शरीर को गति प्रदान करता है, इन क्रियाओं का अध्ययन हम इस विज्ञान के अन्तर्गत करते हैं।
  • बायो मैकेनिक्स शब्द दो शब्दों के मेल से बना है बायो का अर्थ ‘जीव’ और मैकेनिक्स का संबंध भौतिक विज्ञान के क्षेत्र से हैं। अतः बायोमैकेनिक्स विज्ञान का ऐसा क्षेत्र से है। जहाँ शक्ति का प्रयोग कर शारीरिक क्रियाएँ की जाती है।
    अर्थात-
    "शारीरिक क्रियाओं के अध्ययन को बायोमैकेनिक्स कहा जाता है।"
  • खेलों में जीव-यान्त्रिकी का महत्त्व (Importance of Bio-Mechanics in Sports)
    • खेल प्रदर्शन में सुधार
    • खेल तकनीक में सुधार
    • खेल उपकरणों का विकास
    • प्रशिक्षण तकनीको में सुधार
    • खेल चोंटों से बचाव
    • मानव शरीर को समझने में सहायक
    • सुरक्षा सिद्धांत का ज्ञान
    • नयी खोज करने में सहायक
    • खिलाड़ियों में आत्म-विश्वास पैदा करने में सहायक
    • शरीर को स्वस्थ बनाए रखने में सहायक
    • खेलों की लोकप्रियाता बढ़ाने में सहायक
  • उत्तोलक-इसके प्रकार एवं खेलो में इनका प्रयोग (Lever its Types and its Application in Sports)
    उत्तोलक- ये एक दृढ़ छड़ होती है, जिसमें कम बल लगाकर अधिक भार उठाया जा सकता है। यह छड़ एक धुरी पर घुमती है जिसे फलक्रम कहते हैं।
    1. प्रथम श्रेणी का उत्तोलकः- प्रथम श्रेणी के उत्तोलक में धुरी, बीच में तथा भार व बल सिरों पर होते हैं।
      प्रतिरोध, आधार (धुरी) बल
      उदाहरणः- सीसा झूला, कैंची और साइकिल के ब्रेक आदि
    2. द्वितीय श्रेणी का उत्तोलकः- द्वितीय श्रेणी के उत्तोलक में भार मध्य में तथा बल व धुरी सिरों पर होते हैं।
      आधार (धुरी), प्रतिरोध, बल
      उदाहरणः- पंचिंग मशीन, पुश-अप, व कैलिस्थैनिक्स आदि।
    3. तृतीय श्रेणी का उत्तोलकः- तृतीय प्रकार के उत्तोलक में बल बीच में तथा धुरी व भार सिरों पर होते हैं।
      प्रतिरोध, बल, आधार (धुरी)
      उदाहारणः- बैसबाॅल वैट्स, टेनिस रैकेट व वोट पैडल्स आदि।
  • संतुलन-गतिशील एवं स्थिर तथा गुरूत्व केन्द्र व खेलों में इसका प्रयोग (Equilibrium-Dynamic and static and centre of gravity and its application)
    संतुलनः- किसी बिंदु पर कार्य करने वाले बल का परिणाम जब शून्य होता है, तो ऐसी स्थिति को सन्तुलन कहते हैं।
    गतिशील सन्तुलनः- किसी व्यक्ति या वस्तु द्वारा गतिशील रहते हुए स्थिरता बनाए रखने को गतिशील सन्तुलन कहते हैं।
    स्थिर सन्तुलनः- जब व्यक्ति स्थिर अवस्था में होता है तब उसे स्थिर संतुलन कहते हैं।
    अथवा
    जब गुरूत्व केन्द्र स्थिर अवस्था में होता है, तो वह अवस्था स्थिर संतुलन की होती है।
    स्थिरता के सिद्धांत (Principles of Stability)
    1. सहारे के लिए चैड़ा आधार चाहिए।
    2. स्थिरता शरीर के भार के अनुपातिक होती है।
    3. जब गुरूत्व केन्द्र आधार के मध्य में होता है तब अधिक स्थिरता होती है।
    4. गुरूत्व केन्द्र नीचे रखने से स्थिरता बढ़ती है।
  • गुरूत्व केन्द्र व खेलों में इसका प्रयोग (Centre of Gravity and its Application in Sports)
    गुरूत्व केन्द्रः- "गुरूत्व केन्द्र यह एक काल्पनिक बिंदु है जिसके चारों ओर शरीर संतुलित रहता है।" केन्द्र अपना स्थान बदलता है। अन्यथा यह निश्चित (Fix) होता है।
    बलः- एक शरीर द्वारा दूसरे शरीर को धकेलने या खींचने की प्रक्रिया को बल कहते है। बल किसी वस्तु के भार एवं त्वरण के गुणनफल के बराबर होता है। जैसे- F=mxa
    • बल के प्रकार
      1. केन्द्रभिमुखी बल
      2. केन्द्रविमुखी बल
      3. गुरूत्व बल
      4. घर्षण बल
      5. स्थाई बल
    • खेलों में बल का महत्त्व (Importance of Force in Sports)
      1. गति उत्पन्न करने में सहायक
      2. गतिशील वस्तु को रोकने में सहायक
      3. वस्तु को फेंकने में सहायक
      4. वस्तु को ऊपर उठाने में सहायक
      5. वस्तु को खींचने एवं धक्का देने में सहायक
  • उत्पलावन- (Buoyancy)
    किसी तरल (द्रव्य या गैस) में आंशिक या पूर्ण रूप से डूबी किसी वस्तु पर ऊपर की ओर लगने वाला बल उत्पलावन बल कहलाता है।
    उत्पलावन बल, नावों, जलयानों, गुब्बारों आदि के कार्यो के लिए जिम्मेदार है।
    उत्पलावन बल का प्रतिपादन सर्वप्रथम आर्केमिडीज ने किया था।
  • उत्प्लावन के प्रकार
    1. घनात्मक उत्पलावन (Positive buoyancy) जब द्रव्य में कोई वस्तु ऊपर की ओर तैरती है या ऊपरी सतह पर बनी रहती है, तब इसे धनात्मक उत्पलावन कहते है।
    2. त्रणात्मक उत्पलावन (Negative Buoyancy) जब कोई वस्तु द्रव्य में डूब जाती है या फिर निचली सतह पर ही बनी रहती है, ऐसी अवस्था-को ऋणात्मक उत्पलावन कहते है।
    3. ऋणात्मक (Neutral buoyancy) जब कोई वस्तु द्रव्य में पूरी तरह डूबती नहीं है, न ही निचली सतह पर जाती है, ऐसी अवस्था को ऋणात्मक Neutral buoyancy कहा जाता है।
  • उत्त्पलावन बल की गणना आर्केमिडीज के सिद्धान्त द्वारा की जाती है जिसके अनुसार- यदि कोई वस्तु किसी तरल में आशिंक या पूर्ण रूप में डूबी होती है तो उसके भार में कमी होती है। भार में यह कमी, उस वस्तु द्वारा हटाये गये तरल के भार के बराबर होती है।