महासागरीय जल संचलन-पुनरावृति नोट्स

                                                                   सीबीएसई कक्षा - 11

विषय - भूगोल
पुनरावृत्ति नोट्स
पाठ - 14 महासागरीय जल संचलन


महत्त्वपूर्ण तथ्य-

  • महासागर का जल कभी शान्त नही रहता यह हमेशा गतिमान है जिससे जल में हलचल होती रहती है। हलचल से जल का परिसंचरण होता है जिनसे धाराओ, ज्वार भाटाओं, तंरगो, का निर्माण होता है जिनके माध्यम से मानवीय जीवन अनेक रूपों से प्रभावित होता है इस अध्याय में हम इन्ही तथ्यों का अध्ययन करेंगे।
  1. महासागरीय जल स्थिर न होकर गतिमान है। महासागरीय जल में क्षैतिज व ऊर्ध्वाधर दोनों तरहं की गतियाँ होती हैं।
  2. महासागरीय धाराएँ व लहरें क्षैतिज गति से संबंधित हैं। ज्वार-भाटा ऊर्ध्वाधर गति से संबंधित है। महासागरीय धाराएँ एक निश्चित दिशा में बहुत बड़ी मात्रा में जल का लगातार बहाव है। जबकि तरंगें जल की क्षैतिज गति हैं।
  • महासागरीय धाराएँ
    • प्रशांत महासागर की धाराएँ
      1. उत्तरी विषुवतीय धारा-गर्म
      2. कैलिफोर्निया की धारा-ठण्डी
      3. ओयेशिवो या कुरील की धारा-ठण्डी
      4. पूर्वी ऑस्ट्रेलिया की धारा-गर्म
      5. पेरू की धारा-ठण्डी
      6. दक्षिण विषुतीय धारा-गर्म
      7. विषुवतीय विपरीत धारा-गर्म
      8. कुरोशियो धारा-गर्म
      9. दक्षिण प्रशांत महासागर की धारा-ठण्डी
    • अटलांटिक महासागर की धाराएँ
      1. उत्तरी विषुवतीय धारा-गर्म
      2. दक्षिणी विषुवतीय धारा-गर्म
      3. दक्षिण अटलांटिक महासागर की धारा-ठडी
      4. पूर्वी ग्रीनलैंड की धारा-ठंडी
      5. गिनी की धारा-गर्म
      6. गल्फ़ स्ट्रीम गर्म
      7. कनारी की धारा-ठण्डी
      8. लेब्राडोर की धारा-ठण्डी
      9. ब्राजील की धारा-गर्म
      10. बेन्जुएला की धारा-ठण्डी
    • हिंदमहासागर की धाराएँ
      1. दक्षिण विषुवतीय धारा-गर्म
      2. दक्षिण हिंद महासागर की धारा-ठण्डी
      3. विषुवतीय विपरीत धारा-गर्म
      4. मानसून धारा-गर्म
      5. अगुल्हास धारा-गर्म
      6. पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया धारा-ठण्डी
  1. धाराओं में जल एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचता है लेकिन तरंगों में जल गति नहीं करता है। लेकिन तरंग के आगे बढ़ने का क्रम जारी रहता है।
  2. तरंगों में जल-कण छोटे वृताकार रूप में गति करते हैं। वायु जल को ऊर्जा प्रदान करती है, जिससे तरंगें पैदा होती हैं। वायु की वजह से तरंगें महासागर में गति करती हैं तथा ऊर्जा तटरेखा पर निर्मुक्त होती है।
  3. बड़ी तरंगें खुले महासागरों में मिलती हैं। तरंगें जैसे ही आगे की तरफ बढ़ती हैं, बड़ी होती जाती हैं तथा वायु से ऊर्जा को अवशोषित करती हैं।
  4.  ज़्याददातर तरंगें वायु के जल की विपरीत दिशा में गतिमान होने से पैदा होती हैं। वायु की गति बढ़ने के साथ ही इनका आकार बढ़ता जाता है, जब तक कि इनके टूटने से सफ़ेद बुलबुले नहीं बन जाते। तट के पास पहुँचने, टूटने तथा सफ़ेद बुलबुलों में सर्फ़ की भाँति घुलने से पहले तरंगें हजारों कि.मी. की यात्रा करती हैं।
  5. चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण की वजह से तथा कुछ हद तक सूर्य के गुरुत्वाकर्षण के अंतर्गत ज्वार-भाटाओं की उत्पत्ति होती है। दूसरा कारक अपकेंद्रीय बल है जो कि गुरुत्वाकर्षण को संतुलित करता है।
  6. गुरुत्वाकर्षण बल एवं अपकेंद्रीय बल दोनों मिलकर पृथ्वी पर दो आवश्यक ज्वार-भाटाओं को पैदा करने हेतु उत्तरदायी हैं।
  7. चंद्रमा की तरफ वाले पृथ्वी के भाग पर, एक ज्वार-भाटा उत्पन्न होता है, जब विपरीत भाग पर चंद्रमा का गुरुत्वीय आकर्षण बल उसकी दूरी के कारण कम होता है, तब अपकेंद्रीय बल दूसरी तरफ ज्वार उत्पन्न करता है।
  8. विश्व का सबसे ऊँचा ज्वार-भाटा कनाडा के नवास्कोशिया में स्थित फंडी की खाड़ी में आता है। ज्वारीय उभार की ऊँचाई 15 से 16 मीटर के बीच होती है क्योंकि वहाँ पर दो उच्च ज्वार एवं दो निम्न ज्वार प्रतिदिन आते हैं।
  9.  हर दिन दो उच्च एवं दो निम्न ज्वार आते हैं। दो लगातार उच्च एवं निम्न ज्वार लगभग समान ऊँचाई की होती हैं।
  10. पृथ्वी के संदर्भ में सूर्य एवं चंद्रमा की स्थिति ज्वार की ऊँचाई को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती है। जब तीनों एक सीधी रेखा में होते हैं तब बृहत ज्वार उत्पन्न होते हैं।
  11. सामान्यतः बृहत ज्वार तथा निम्न ज्वार के मध्य सात दिन का अंतर होता है। इस समय चंद्रमा एवं सूर्य एक-दूसरे के समकोण पर होते हैं तथा सूर्य एवं चंद्रमा के गुरुत्व बल एक दूसरे के विपरीत कार्य करते हैं।
  12. चंद्रमा महीने में एक बार जब पृथ्वी के सबसे नजदीक होता है, असामान्य रूप से उच्च एवं निम्न ज्वार उत्पन्न होता है।
  13. जब पृथ्वी सूर्य के बहुत पास होती है, हर साल 3 जनवरी के आस-पास उच्च एवं निम्न ज्वारों के क्रम भी असामान्य रूप से ज़्यादा न्यून होते हैं। जब पृथ्वी सूर्य से सबसे दूर होती है, प्रत्येक वर्ष 4 जुलाई के आस-पास ज्वार के क्रम औसत की अपेक्षा बहुत कम होते हैं।
  14. प्रवाह से धाराओं की पहचान होती है। सामान्यतः धाराएँ सतह के निकट सबसे शक्तिशाली होती हैं व यहाँ इनकी गति 5 नॉट से ज़्यादा होती है। गहराई में धाराओं की गति धीमी हो जाती है, जो 0.5 नॉट से भी कम होती है।
  15. महासागरीय जल का 10 प्रतिशत भाग सतही या ऊपरी जलधाराएँ हैं। ये धाराएँ महासागरों में 400 मीटर की गहराई तक उपस्थित हैं। महासागरीय जल का 90 प्रतिशत भाग गहरी जलधारा के रूप में हैं। ये जलधाराएँ महासागरों में घनत्व व गुरुत्व की विविधता की वजह से बहती हैं।
  16. उच्च अक्षांशीय क्षेत्रों में जहाँ तापमान कम होने के कारण घनत्व अधिक होता है, वहाँ गहरी जलधाराएँ बहती हैं, क्योंकि यहाँ अधिक घनत्व के कारण पानी नीचे की तरफ बैठता है।
  17. महासागरीय धाराओं को तापमान के अंतर्गत गर्म व ठंडी जलधाराओं में विभाजित किया जाता है। प्रमुख महासागरीय धाराएँ प्रचलित पवनों तथा कोरियालिस प्रभाव से ज़्यादा प्रभावित होती हैं।
  18. जहाँ गर्म व ठंडी जलधाराएँ मिलती हैं, वहाँ ऑक्सीजन की आपूर्ति प्लैंकटन बढ़ोतरी सहयोग करती है जो मछलियों का प्रमुख भोजन है। संसार के प्रमुख मत्स्य क्षेत्र इन्हीं क्षेत्रों में पाए जाते हैं।