संरचनात्मक परिवर्तन - पुनरावृति नोट्स

CBSE कक्षा 12 समाजशास्त्र
[खण्ड-2] पाठ 1 संरचनात्मक परिवर्तन
पुनरावृत्ति नोट्स

    • भारत मे आधुनिक विचार एवं संस्थाए औपनिवेशिक काल की देन है, हमारे देश की संसदीय, विधि एवं शिक्षा व्यवस्था ब्रिटिश प्रारूप व प्रतिमानों पर आधारित है।
    • सड़कों पर बाएँ चलना, ब्रेड-आमलेट और कटलेट जैसी खाने की चीज इस्तेमाल करना, नेक-टाई पोशाक का अनिवार्य हिस्सा होता है। अंग्रेज़ी भाषा का ज्ञान होना आदि।
  1. उपनिवेशवाद ने राजनीतिक, आर्थिक एवं सामाजिक संरचना में नवीन परिवर्तन किए परन्तु मुख्य संरचनात्मक परिवर्तन - औद्योगिकरण व नगरीकरण है।
  2. उपनिवेशवाद - एक स्तर पर एक देश द्वारा दूसरे देश पर शासन को उपनिवेशवाद माना जाता है। भारत मे यह शासन किसी अन्य शासन से अधिक प्रभावशाली रहा। उपनिवेशवाद ने सामाजिक संरचना एवं संस्कृति में परिवर्तनों के दिशा दी एवं उन पर अनेक प्रभाव डाले।
    1. उपनिवेशवाद का भारतीय समाज पर प्रभाव ब्रितानी उपनिवेशवाद पूंजीवादी व्यवस्था वर आधारित था। इसने आर्थिक व्यवस्था मे बड़े पैमाने पर हस्तक्षेप किया, जिसके कारण इसे मजबूती मिली। वस्तुओं की उत्पादन प्रणाली व वितरण के तरीके भी बदल दिए।
    2. जंगल काट कर चाय की खेती की शुरूआत की तथा जंगलों को नियन्त्रित एवं प्रशासित करने के लिए अनेक कानून बनाए।
    3. उपनिवेशवाद के दौरान लोगों का आवगमन बड़ा: डाक्टर व वकील मुख्यतः बंगाल व मद्रास से चुन कर देश विदेश के विभिन्न भागों में सेवा के लिए भेजे गए। व्यवसायियों का आवागमन भी बढ़ा। यह भारत तक सीमित न रह कर सुदूर एशिया, अफ्रीका तथा अमेरिका उपनिवेश तक बढ़ गया।
    4. पश्चिमी शिक्षा पद्धति, राष्ट्रवादी चेतना व उपनिवेश विरोधी चेतना का माध्यम बनी। उपनिवेश-वाद ने वैधानिक, सांस्कृतिक व वास्तुकला में भी परिवर्तन लाए।
    • पूंजीवाद - एक ऐसी अर्थव्यवस्था जिसके उत्पादन के साधनों का स्वामित्व कुछ विशेष लोंगों के हाथ मे होता है। इसमे ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाने पर जोर दिया जाता है। इसे गतिशीलता, वृद्धि, प्रसार, नवीनीकरण, तकनीक तथा श्रम के बेहतर उपयोग के लिए जाना गया। इससे बाजार को एक विस्तृत भूमंडलीकृत रूप में देखा जाने लगा। भारत में भी पूंजीवाद के विकास के कारण उपनिवेशवाद प्रबल हुआ और इस प्रक्रिया का प्रभाव भारत की सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक संरचना पर पड़ा।
    • अगर पूजीवादी व्यवस्था शक्तिशाली आर्थिक व्यवस्था बन सकती है तो राष्ट्र राज्य भी सशक्त एवं प्रबल राजनीतिक रूप ले सकता है। औद्योगीकरण के कारण नए सामाजिक समूह एवं नए सामाजिक रिश्तों का विकास हुआ।
  3. नगरीकरण और औद्योगीकरण:-
    • औद्योगीकरण का सम्बन्ध यान्त्रिक उत्पादन के उदय से है जो उर्जा के गैरमानवीय संसाधनों पर निर्भर होता हैं इसमे ज्यादातर लोग कारखानों, दफ्तरों तथा दुकानों में काम करते है तथा इसके कारण कृषि व्यवसाय में लोगों की संख्या कम होती जा रही है। औपनिवेशिक काल के नगरीकरण में पुराने शहरों का अस्तित्व कमजोर होता गया और उनकी जगह पर नए औपनिवेशक शहरों का उद्भव और विकास हुआ।
    • नगरीकरण को औद्यौगीकरण से जोड़ कर देखा जा सकता है। दोनों एक साथ होने वाली क्रियाएं है। कई बार औद्यौगीक क्षरण भी देखा गया है। भारत में कुछ पुराण, परंपरात्मक नगरिया केन्द्रों का पतन हुआ। जिस तरह ब्रिटेन में उत्पादन व निर्माण में बढ़ावा आया उसके विपरीत भारत में गिरवाट आई। प्राचीन नगर जैसे- सूरत और मसुलीपट्टनम का अस्तित्व कमजोर हुआ। सरकार द्वारा बागान के मालिकों का सुविधा और फायदा पहुँचाया जाने लगा और मजदूरों व ठेकेदारों को कार्य पूरा न होने पर कानूनी सजा डी जाने लगी।
    • प्रारम्भ मे भारत के लोग औद्योगीकरण के कारण ब्रिटिशों के विपरीत कृषि क्षेत्र की ओर आए। इस प्रकार नए सामाजिक समूह तथा नए सामाजिक सम्बन्धों का उदय हुआ।
    • स्वतन्त्रता के बाद भारत की आर्थिक स्थिति को औद्योगीकरण के द्वारा ही सुधारा जा सका। समाजशास्त्री एम.एस.ए.राव ने लिखा है कि भारत के अनेक गांव भी तेजी से बढ़ रहे नगरीय प्रभाव में आ रहे हैं।
    • ब्रिटिश साम्राज्य की अर्थव्यवस्था में नगरों की भूमिका महत्वपूर्ण थी। उपभोग की आवश्यक वस्तुओं का निर्यात आसानी से किया जा सकने के कारण समुद्र तटीय नगर जैस बंबई, कलकत्ता और मद्रास उपयुक्त माने गए थे। 
  4. चाय की बागवानी
    • अधिकारिक रिपोर्ट से पता चलता है कि औपनिवेश्कि सरकार गलत तरीकों से मजदूरों की भर्ती करती थी।
    • मजदूरों को बलपूर्वक बागानों में सस्ते में काम कराया जाता था।
    • बगानों के मालिक अंग्रेज और उनकी मेम विशाल बंगलों में रहते थे। सारा जरूरत का सामान उनके पास मौजुद था। उनकी जिंदगी चका-चौंध में भरी थी।
  5. स्वतंत्र भारत में औद्योगीकरण
    • औद्योगीकरण को स्वतंत्र भारत ने सक्रियतौर पर बढ़ावा दिया।
    • स्वदेशी आंदोलन ने भारत की राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के प्रति निष्ठा को मजबूत किया।
    • तीव्र और वृहद् औद्योगीकरण के द्वारा आर्थिक स्थिति में सुधार और सामाजिक न्याय हो पाया।
    • भारी मशीनीकृत उद्योगों का विकास हुआ। इन्हें बनाने वाले उद्योग, पब्लिक सेक्टर के विस्तार और बड़े को-ऑपरेटिव सेक्टर को महत्वपूर्ण माना गया।
  6. स्वतंत्र भारत में नगरीकरण
    • भूमण्डलीकरण द्वारा शहरों का अत्यधिक प्रसार हुआ।
    • एम.एस.ए. राव के अनुसार भारतीय गाँव पर नगरों के प्रभाव-
      1. कुछ गाँव ऐसे है जहाँ से अच्छी खासी संख्या में लोग दूरदराज के शहरों में रोजगार ढूँढ़ने के लिए जाते है। बहुत सारे प्रवासी कवल भारतीय नगरों में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी रहते हैं।
      2. शहरी प्रभाव उन गाँवों में देखा जाता है जो औद्योगिक शहरों के निकट स्थित है जैसे भिलाई।
      3. महानगरों का उद्भव और विकास तीसरे प्रकार का शहरी प्रभाव है जिससे निकटवर्ती गाँव प्रभावित होते है। कुछ सीमावर्ती गाँव पूरी तरह से नगर के प्रसार में विलीन हो जाते है। जबकि वे क्षेत्र जहाँ लोग नहीं रहते नगरीय विकास के लिए प्रयोग कर लिए जाते हैं।