मृदा-पुनरावृति नोट्स

                                                                       सीबीएसई कक्षा - 11

विषय - भूगोल
पुनरावृत्ति नोट्स
पाठ - 6 मृदा


महत्त्वपूर्ण तथ्य-

  • मृदा = प्रकृति का अमूल्य उपहार है। मृदा भू-पृष्ठ पर पाये जाने वाले असंगठित पदार्थो की वह अपनी परत है जो मलू चट्टानों के बारीक कणों तथा हृयूमस के मिश्रण से बनती है।
  • मृदा का निर्माण 6 प्रमुख कारकों पर निर्भर करता है-
    उच्चावच, भूमि का ढाल, जलवायु, चट्टानों की संरचना, प्राकृतिक वनस्पति तथा अन्य प्राणियों के सहयोग तथा समय
  • मृदा में भिन्नता पैदा करने वाले कारक जनक सामग्री, उच्चावच, जलवायु और प्राकृतिक वनस्पति, मिट्टी के उपजाऊपन व मोटाई पर जनसंख्या का आकार एवं उसकी समृद्धि निर्भर करती है।
  • मिट्टी के निर्माणकारी घटकों की विविधता की वजह से भारत में अलग-अलग प्रकार की मिट्टी पाई जाती है। भारत में मुख्यतः लाल, लेटराइट पर्वतीय, जलोढ़ काली तथा मरूस्थली मिट्टिया पायी जाती हैं।
  • भारत में जलोढ़ मृदा उत्तरी मैदानों तटीय मैदानों नदी डेल्टाओं और बाढ़ के मैदानों में पायी जाती है।
  • काली मिट्टी का निर्माण लावा से होता है और कपास के लिए सबसे अच्छी है। रेंगर मृदा को काली मिट्टी के नाम से भी जाना जाता है।
  • मृदा का हास्य बहते हुए जल, पवन हिमानी लहरे आदि जैसी प्राकृतिक शक्तियों के माध्यम से होता है। इसे मृदा अपरदन कहते हैं।
  • मृदा अपरदन कई तरह का होता है - परत अपरदन तथा अवनालिका अपरदन।
  • मेड़ लगाना, पशुचारण पर नियंत्रण, कृषि प्रणाली में सुधार, वृक्षारोपण, बांध बनाना, मृदा अपरदन रोकने के कुछ उपाय है।
  • जलोढ़ मृदा बहुत विस्तृत तथा उपजाऊ होती है।
  • चंबल के बीहड़ अवनालिका अपरदन की वजह है।
  • राजस्थान में मृदा अपरदन का मुख्य वजह वायु है।
  • मृदा संरक्षण, मृदा अपरदन पर नियंत्रण के द्वारा किया जा सकता है।
    मृदा संरक्षण के उपाय :-
  • वृक्षारोपण:- पेडे पौधे, झाड़ियाँ और व्यास मृदा अपरदन को रोकने में मदद करते है।
  • पशुचारण पर नियन्त्रण:- भारत के पशुओं की संख्या ज़्यादा होने की वजह से खाली खेतों में आज़ाद घूमते हैं। इनकी बेरोकटोक चराई को रोककर मृदा के अपरदन को रोका जा सकता है।
  • समोच्च रेखा के अनुसार मेड़बंदी:- तीव्र ढाल वाली भूमि पर समोच्च रेखाओं के अंतर्गत मेड बनाने से पानी में बहाव में रूकावट आती है तथा मृदा पानी के साथ नही बहती।
  • कृषि के सही तरीके:- कृषि के सही तरीके अपनाकर मृदा अपरदन को रोका जा सकता है।
  • भारत की प्रमुख मिट्टियाँ
    • लेटराइट मृदा
    • लाल मृदा
    • लवणीय और क्षारीय मृदा
    • लवणीय तथा क्षारीय मृदा
    • पीरमय तथा जैव मृदा
    • जलोढ़ मिट्टियाँ
    • काली मिट्टियाँ
    • मरूस्थलीय मृदा
    • पर्वतीय मृदा
  • गंगा के ऊपरी और मध्यवर्ती मैदान में खादर तथा बांगर नाम की दो पृथक मृदाएं विकसित हुई है। खादर प्रतिवर्ष बाढ़ो के द्वारा निक्षेपित होने वाला नया जलोढ़क है जो महीन गाद होने की वजह से मृदा की उर्वरता बढ़ा देता है। बागंर पुराना जलोढ़क होता है जिसका जमाव बाढ़कृत मैदानों से दूर होता है।
  1. मलवा, मृदा शैल और जैव सामग्री का सम्मिश्रण होती है जो पृथ्वी की सतह पर विकसित होती है।
  2. मुदा निर्माण को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक हैं-जलवायु, वनस्पति, उच्चावच, जनक सामग्री तथा अन्य जीव रूप और समय। इनके अलावा मानवीय क्रियाएँ भी पर्याप्त सीमा तक इसे प्रभावित करती हैं।
  3. मृदा के घटक खनिज कण, ह्यूमस, जल तथा वायु होते हैं। इनसे प्रत्येक की वास्तविक मात्रा मृदा के प्रकार पर निर्भर करती है।
  4. मृदा के तीन संस्तर होते हैं-'क' संस्तर सबसे ऊपरी खंड होता है, जहाँ पौधों की वृद्धि हेतु अनिवार्य जैव पदार्थों का खनिज पदार्थ, पोषक तत्त्वों तथा जल से संयोग होता है। 'ख' संस्तर 'क' संस्तर तथा 'ग' संस्तर के मध्य संक्रमण खंड होता है, जिसे नीचे व ऊपर दोनों से पदार्थ प्राप्त होते हैं। इसमें कुछ जैव पदार्थ होते हैं और खनिज पदार्थ का अपक्षय स्पष्ट नजर आता है। 'ग' संस्तर की रचना ढीली जनक सामग्री से होता है। यह परत मृदा निर्माण की प्रक्रिया में प्रथम अवस्था होती हैं और अंततः ऊपर की दो परतें इसी से बनी होती हैं।
  5. प्राचीन काल में मृदा को दो मुख्य वर्गों में विभाजित किया जाता था- 1) उर्वर जो उपजाऊ थी और 2) ऊसर जो अनुपजाऊ थी।
  6. जलोढ़ मृदाएँ उत्तरी मैदान एवं नदी घाटियों के बड़े भागों में मिलती हैं। ये मृदाएँ देश के कुल क्षेत्रफल के लगभग 40 प्रतिशत भाग को ढके हुए हैं। ये निक्षेपण मृदाएँ हैं, जिन्हें नदियों ने मलवा और अवसादों से निर्मित किया है।
  7. जलोढ़ मृदाएँ गठन में बलुई दुमट से चिकनी मिट्टी की प्रकृति की पाई जाती हैं। सामान्यतः इनमें पोटाश की मात्रा ज़्यादा एवं फॉस्फोरस की मात्रा कम होती है। गंगा के ऊपरी और मध्यवर्ती मैदान में 'खादर' तथा 'बांगर' नाम की दो अलग मृदाएँ विकसित हुई हैं।
  8. खादर प्रतिवर्ष बाढ़ों के माध्यम से जमा होने वाली नई जलोढ़ मृदा है जो महीन गादयुक्त होने की वजह से मृदा की उर्वरता बढ़ा देती है।
  9. बांगर पुरानी जलोढ़क होती है, जिसका जमाव बाढ़कृत मैदानों से दूर होता है।
  10. काली मृदाएँ दक्कन के पठार के ज़्यादातर भाग पर पाई जाती है। इसमें महाराष्ट्र तथा तमिलनाडु के कुछ भाग तथा गुजरात, आध्र प्रदेश सम्मिलित हैं।
  11. गोदावरी और कृष्णा नदियों के ऊपरी भागों और दक्कन के पठार के उत्तरी-पश्चिमी भाग में गहरी काली मृदा मिलती है।
  12. काली मृदाएँ गीली होने पर फूल कर चिपचिपी हो जाती हैं तथा सूखने पर सिकुड़ जाती है।
  13. मृदा अवकर्षण से मृदा की उर्वरा शक्ति का ह्रास होता है। भारत में मृदा संसाधनों के क्षय का मुख्य कारक मृदा अवकर्षण है। मृदा अवकर्षण की दर भूआकृति, पवनों की गति तथा वर्षा की मात्रा के अंतर्गत एक स्थान से दूसरे स्थान पर अलग होती है।
  14. मृदा अपरदन भारतीय कृषि हेतु एक गंभीर समस्या बन गई है। इसके दुष्प्रभाव अन्य क्षेत्रों में भी दिखाई पड़ते हैं। नदी घाटियों में अपरदित पदार्थों के जमा होने से उनकी जल प्रवाह क्षमता घट जाती है। इससे प्रायः बाढ़े आती है तथा कृषि भूमि को क्षति पहुँचती हैं।