गलता लोहा - एनसीईआरटी प्रश्न-उत्तर

 CBSE Class 11 Hindi Core A

NCERT Solutions
Chapter 15
Sekhar Joshi


1. कहानी के उस प्रसंग का उल्लेख करें, जिसमें किताबों की विद्या और घन चलाने की विद्या का ज़िक्र आया है।
उत्तर:-
 एक दिन जब धनराम तेरह का पहाड़ा नहीं सुना पाया तब मास्टर त्रिलोक सिंह ने अपनी ज़बान का चाबुक का उपयोग करते हुए कहा कि उसके दिमाग में लोहा भरा हुआ है, वहाँ विद्या का ताप नहीं पहुँचेगा। यह बात सच भी थी क्योंकि धनराम के पिता में किताबों पर विद्या का ताप लगाने का सामर्थ्य नहीं था इसलिए जैसे ही धनराम हाथ-पैर चलाने लायक हुआ तो पिता ने उसे धौंकनी फूँकने या सान लगाने के कामों में उलझाना शुरू कर दिया और फिर वह हथौड़े से लेकर घन चलाने की विद्या सिखाने लगा।धीरे- धीरे वह इस विद्या में कुशल भी हो गया ।
उपर्युक्त इन्हीं प्रसंगों में ही किताबों की विद्या और घन चलाने की विद्या का ज़िक्र आया है।


2. धनराम मोहन को अपना प्रतिद्वंद्वी क्यों नहीं समझता था?
उत्तर:-
 बचपन में ही नीची जाति के धनराम के मन में यह बात बैठा दी गई थी कि ऊँची जाति वाले उनके प्रतिद्वंद्वी नहीं होते हैं। दूसरे कक्षा में मोहन सबसे बुद्धिमान बालक, पूरे विद्यालय का मॉनीटर और मास्टर त्रिलोक सिंह का यह बार-बार कहना कि मोहन एक दिन पूरे विद्यालय का नाम रोशन करेगा आदि बातों से भी धनराम मोहन को अपना प्रतिद्वंद्वी नहीं समझता था। मोहन मास्टरजी के कहने पर धनराम को सज़ा देता था लेकिन फिर भी वह मोहन के प्रति स्नेह और आदर का भाव रखता था । उसे लगता था कि यह तो मोहन का अधिकार है ।

3 . धनराम को मोहन के किस व्यवहार पर आश्चर्य होता है और क्यों?

उत्तर:- धनराम को मोहन के हथौड़ा चलाने और लोहे की छड़ को सटीक गोलाई देने की बात पर आश्चर्य हुआ। धनराम उसकी कार्य-कुशलता को देखकर इतना आश्चर्यचकित नहीं होता जितना यह सोचकर कि मोहन पुरोहित खानदान का होने के बाद भी निम्न जाति के काम कैसे कर रहा था धनराम को इस बात का भी आश्चर्य हुआ कि कैसे मोहन ने अपनी जाति को भुलाकर यह काम स्वीकार कर लिया।


4. मोहन के लखनऊ आने के बाद के समय को लेखक ने उसके जीवन का एक नया अध्याय क्यों कहा है?
उत्तर:-
 मोहन के लखनऊ आने के बाद के समय को नया अध्याय इसलिए कहा गया है क्योंकि गाँव के परिवेश से निकलकर उसे शहरी परिवेश का ज्ञान हुआ। शहर में आकर उसकी आगे की पढ़ाई करने का अधूरा मौका मिला। यदि वह गाँव में रहता तो उसे शिक्षा से वंचित रहना पड़ता। यहाँ आने पर उसे पारिवारिक मज़बूरी का ज्ञान हुआ इसलिए चाहते हुए भी वह कभी अपनी पढ़ाई और नौकर वाली बात घरवालों के सामने व्यक्त नहीं कर पाया। कुल-मिलाकर यदि देखा जाए तो मोहन के जीवन का अध्याय सुखद तो नहीं था परंतु था तो उसके लिए नया ही।


5. मास्टर त्रिलोक सिंह के किस कथन को लेखक ने ज़बान की चाबुक कहा है और क्यों?
उत्तर:-
 धनराम द्वारा तेरह का पहाड़ा न याद कर पाने पर मास्टर त्रिलोक सिंह द्वारा कहे गए व्यंग्य वचन कि 'उसके दिमाग में तो लोहा ही भरा है।' को लेखक ने ज़बान की चाबुक कहा है। वह पहले बेंत का प्रयोग करते थे और इस बार उसे फटकारते हुए ज़बान की बेंत लगा दी ।

लेखक के कहने का तात्पर्य यह है कि शारीरिक चोट इतनी तकलीफदेह नहीं होती जितनी कि ज़बान से की गई चोट। ये चोट कभी न भूलनेवाली और व्यक्ति का मनोबल गिरा देने वाली होती है। मास्टरजी इस कथन के माध्यम से यह जताना चाहते थे कि पढ़ना -लिखना धनराम के बस की बात नहीं है ,वह तो केवल लोहे का काम कर सकता है । कुछ ऐसा ही धनराम के साथ हुआ क्योंकि इसी कारण वह हीन भावना से ग्रसित हो ,आगे नहीं पढ़ पाया और अपने पिता के देहांत के बाद पुश्तैनी काम में लग गया।


6.1 बिरादरी का यही सहारा होता है।
1. 
किसने, किससे कहा?
2. 
किस प्रसंग में कहा?
3. 
किस आशय से कहा?
4. 
क्या कहानी का आशय में यह स्पष्ट हुआ है?
उत्तर:-
 1. उपर्युक्त वाक्य पंडित वंशीधर ने अपने बिरादरी के युवक रमेश से कहा ।
2. जब वंशीधर अपने बेटे की आगे की पढ़ाई के लिए चिंतित थे। उस समय रमेश ने उनसे सहानुभूति प्रकट की और उनके बेटे को अपने साथ आगे की पढ़ाई के लिए लखनऊ ले जाने की बात की ।इस प्रसंग में अपनी कृतज्ञता प्रकट करते हुए वंशीधर ने उपर्युक्त बात कही।
3. वंशीधर ने उपर्युक्त वाक्य रमेश के प्रति कृतज्ञता के भाव में कहा। वंशीधर के कहने का यह आशय था कि जाति-बिरादरी का यही लाभ होता है कि मौके पर वे एक-दूसरे की सहायता करें ।

4. इस कहानी में वंशीधर का आशय बिल्कुल भी सिद्ध नहीं होता है। वंशीधर ने अपने बेटे को जिस आशा से रमेश के साथ भेजा था; वह पूरा न हो सका। रमेश ने उनके बेटे को पढ़ाने के बजाय अपना घरेलू नौकर बनाकर उसका शोषण किया।

6.2 उसकी आँखों में एक सर्जक की चमक थी - कहानी के इस वाक्य -
1. 
किसके लिए कहा गया है?
2. 
किस प्रसंग में कहा गया है?
3. 
यह पात्र विशेष के किन चारित्रिक पहलुओं को उजागर करता है
?
उत्तर:-
 1. उपर्युक्त वाक्य मोहन के लिए कहा गया है।
2. जब मोहन ने भट्टी में बैठकर लोहे की मोटी छड़ को त्रुटिहीन गोलाई में ढालकर सुडौल बना देता है; तब उसकी आँखों में सृजक की चमक थी।
3. यह मोहन की इस चारित्रिक विशेषता को उजागर करता है कि वह जाति को व्यवसाय से नहीं जोड़ता। अपने मित्र की मदद कर वह उदारता का भी परिचय देता है।


7. गाँव और शहर, दोनों जगहों पर चलने वाले मोहन के जीवन संघर्ष में क्या फ़र्क है? चर्चा करें और लिखें।
उत्तर:-
 गाँव और शहर, दोनों जगहों पर चलने वाले मोहन के जीवन संघर्ष में ज्यादा कुछ फ़र्क नहीं है। हालाँकि गाँव में वह प्रतिभाशाली छात्र माना जाता था ; स्कूल और गाँव में उसका सम्मान भी होता था पर गाँव में उसे गरीबी, साधनहीनता और प्राकृतिक बाधाओं के साथ संघर्ष करना पड़ा। शहर में उसे दिन-भर नौकरों की तरह काम करना, मामूली-से स्कूल में भी ठीक से पढ़ाई का मौका न मिलना आदि संघर्षों से गुजरना पड़ा।


8. एक अध्यापक के रूप में त्रिलोक सिंह का व्यक्तित्व आपको कैसा लगता है? अपनी समझ में उनकी खूबियों और खामियों पर विचार करें।
उत्तर:-
 मास्टर त्रिलोक सिंह एक परंपरागत शिक्षक हैं। वे एक अच्छे अध्यापक की तरह बच्चों को पढ़ाते हैं। किसी सहयोग के बिना अकेले ही पूरी पाठशाला को चलाते हैं। वे अनुशासनप्रिय शिक्षक और दंड देने में विश्वास रखते हैं।
इन विशेषताओं के साथ उनमें कुछ खामियाँ भी हैं। मास्टरजी के मन में जातिगत भेद-भाव का भाव गहरे बैठा हुआ था इसलिए वे मोहन जैसे उच्च कुल के बालक को 'अधिक प्यार' और धनराम जैसे नीचे कुल के बालक को 'दिमाग में लोहा भरा है' जैसे कटु वचन कहने से भी नहीं चूकते जोकि मेरे अनुसार एक शिक्षक को कतई शोभा नहीं देता है। 'संती मारने' जैसे शारीरिक दंड देना छात्रों के प्रति अन्याय है ।

9. 'गलत लोहा' कहानी का अंत एक खास तरीके से होता है। क्या इस कहानी का कोई अन्य अंत हो सकता है? चर्चा करें।
उत्तर:-
 'गलत लोहा' कहानी का अंत हमें केवल सोचने के लिए मजबूर कर छोड़ देता है। कहानी के अंत से यह स्पष्ट नहीं होता कि मोहन ने केवल सृजन का सुख लूटा या पुन: अपने खेती के व्यवसाय की ओर मुड़ गया या उसने धनीराम का पेशा अपना लिया।
यदि लेखक उस समय मोहन के पिता को भी वहाँ लाकर खड़ा कर देता जो मोहन की सही कला को पहचानकर अपनी जातिगत परंपरा को भुलाकर अपने बेटे मोहन को उसकी इच्छानुसार का काम करने की छूट दे देते।


• भाषा की बात

1. पाठ में निम्नलिखित शब्द लौहकर्म से संबंधित है। किसका क्या प्रयोजन है। शब्द के सामने लिखिए -
धौंकनी, दराँती, सँड़सी, आफर, हथौड़ा।

उत्तर:-
 धौंकनी - धौंकनी से भट्टी में आग तेज की जाती है।
दराँती - दराँती फ़सल और घास काटने के काम आती है।
सँड़सी - सँड़सी से ठोस वस्तुओं को पकड़ा जाता है।
आफर - आफर लोहे की दुकान को कहा जाता है।
हथौड़ा - हथौड़े से ठोस वस्तुओं पर प्रहार किया जाता है।


2. पाठ में काट-छाँटकर जैसे कई संयुक्त क्रिया शब्दों का प्रयोग हुआ है कोई पाँच शब्द पाठ में से चुनकर लिखिए और अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए।
उत्तर:-
 1. पहुँचते-पहुँचते - कार्यालय से घर पहुँचते-पहुँचते रात हो गई।
2. उलट-पलट - बच्चों ने तो इस घर को उलट-पलट कर दिया है।
3. थका-माँदा - विद्यालय से रोहन बड़ा थका-माँदा लौटा।
4. पढ़-लिखकर - हर माता पिता की इच्छा होती कि उनके बच्चे पढ़-लिखकर उनका नाम रोशन करें।
5. घूम-फिरकर - घूम-फिरकर हम फिर वहीँ लौट आए।


3. बूते का प्रयोग पाठ में तीन स्थानों पर हुआ है उन्हें छाँटकर लिखिए और जिन संदर्भों में उनका प्रयोग है, उन संदर्भों को स्पष्ट कीजिए।
1. 
बूढ़े वंशीधर के बूते का अब यह काम नहीं रहा।
संदर्भ - यहाँ पर 'बूते' शब्द का प्रयोग वंशीधर के 'सामर्थ्य' के संदर्भ में किया गया है कि वृद्ध हो जाने के कारण वंशीधर खेती का काम नहीं कर सकते थे।
2. यही क्या, जन्म-भर जिस पुरोहिताई के बूते पर उन्होंने घर संसार चलाया, वह भी अब वैसे कहाँ कर पाते हैं!
संदर्भ - यहाँ पर 'बूते' शब्द का प्रयोग 'आश्रय' के संदर्भ में किया गया है कि इसी पुरोहिती के सहारे ही उन्होंने अपने परिवार का भरण-पोषण किया था।
3. यह दो मील की सीधी चढ़ाई अब अपने बूते की नहीं।
संदर्भ - यहाँ पर 'बूते' शब्द का प्रयोग वंशीधर के 'वश' की बात के संदर्भ में आया है कि बूढ़े हो जाने के कारण इतनी लंबी चढ़ाई चढ़ना उनके वश की बात नहीं रह गई थी।


4. मोहन! थोड़ा दही तो ला दे बाज़ार से।
मोहन! ये कपड़े धोबी को दे तो आ।
मोहन! एक किलो आलू तो ला दे।
ऊपर के वाक्यों में मोहन को आदेश दिए गए हैं। इन वाक्यों में आप सर्वनाम का इस्तेमाल करते हुए उन्हें दुबारा लिखिए।

उत्तर:-
 1. आप बाज़ार से थोड़ा दही तो ला दीजिए।
2. आप ये कपड़े धोबी को दे तोआइए।
3. आप एक किलो आलू तो ला दीजिए।