प्रबन्ध और व्यावसायिक पर्यावरण-पुनरावृति नोट्स

                                                     CBSE कक्षा 12 व्यवसाय अध्ययन

(भाग-1) पाठ-3 व्यावसायिक वातावरण
पुनरावृति नोट्स


व्यावसायिक वातावरण का अभिप्राय उन घटकों के योग से है जो व्यवसाय को प्रभवित करते है। तथा जिन पर व्यवसाय का अवसर दोनों उपलब्ध रहते है। व्यवसायिक वातावरण का अध्ययन इन खतरों व अवसरों को पहचानने में प्रबन्धको की मदद करता है।

  • व्यवसायिक वातावरण के घटक-तत्व
    • आन्तरिक/विशिष्ट वातावरण
      • ग्राहक
      • निवेशक
      • आपूर्तिकर्ता
      • लेनदान
      • श्रमिक
      • प्रतियोगी
    • बाहरी/साधारण वातावरण
      • आर्थिक घटक
      • सामाजिक घटक
      • राजनीतिक घटक
      • तकनीकी घटक
      • कानूनी घटक
  • व्यावसायिक वातावरण की विशेषताएँ:-
    1. बाह्य शक्तियों की समग्रता:- व्यवसायिक संस्था के बाहर की शक्तियों/घटकों का योग होता है जिनकी प्रकृति सामूहिक होती है।
    2. विशिष्ट एवं साधारण शक्तियाँ:- व्यवसायिक पर्यावरण में विशिष्ट तथा साधारण दोनों शक्तियाँ सम्मिलित होती है। विशिष्ट शक्तियों में ग्राहक, प्रतियोगी, निवेशक तथा आते है, जो उद्यमों को प्रत्यक्ष रूप में प्रभावित करते हैं तथा साधारण शक्तियों में सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, कानूनी तकनीकी दशाएं आती है जो उद्यमों को अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती हैं।
    3. आंतरिक संबंध:- व्यवसायिक वातावरण के विभिन्न तत्व/भाग एक-दूसरे से घनिष्ट रूप से जुड़े होते है। अतः आतंरिक संबंध होता है।
      उदाहरणार्थ:- स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ने से स्वास्थ्यवर्णक भोजन एवं उत्पादों जैसे वसा रहित खाद्य पदार्थ, शूगर फ्री आदि की माँग बढ़ रही है।
    4. गतिशील:- व्यवसाय गतिशील होता है जो तकनीकी विकास, उपभोक्ताओं की रूचि तथा फैशन के अनुसार बदलता है।
    5. अनिश्चतता:- व्यावसायिक पर्यावरण अनिश्चित होता है क्योंकि भविष्य में होने वाले पर्यावरणीय परिवर्तनों तथा प्रभावों का पूर्वानुमान लगाना संभव नही है।
    6. जटिलता:- व्यावसायिक पर्यावरण एक जटिल तथ्य है जिसको अलग-अलग हिस्सों में समझना सरल है, परन्तु समग्र रूप से समझना कठिन है।
    7. तुलनात्मकता:- व्यवसायिक पर्यावरण एक तुलनात्मक अवधारणा है जिसका प्रभाव भिन्न-भिन्न देशों एवं क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न होता है। उदाहरणार्थ:- तैयार स्वास्थवर्धक भोज्य पदार्थों की माँग ग्रामीण शहरी क्षेत्रों में अधिक होगी।
  1. अवसरों की पहचान तथा पहल के लाभ:- व्यवसायिक पर्यावरण से सही अध्ययन से एक उद्यम उपलब्ध अवसरों की पहचान है सकता है तथा अपने प्रतियोगियों से पहले अवसरों से लाभ उठा सकता है।
  2. खतरों की पहचान एवं समय से पहले चेतावनी में सहायक:- व्यवसायिक पर्यावरण की सही जानकारी, एक उद्यम को खतरों की पहचान में सहायता करता है जो इसके परिचालन में बाधक हो सकते है।
    उदाहरणार्थ:- 'बजाज ऑटो' ने 'होन्डा' और बहुराष्ट्रीय कम्पनियों से खतरा भाँपतें हुए अपने दो पहिया वाहनों में उचित परिवर्तन और सुधार किये।
  3. परिवर्तनों का सामना करना:- लगातार व्यवसायिक पर्यावरण के अध्ययन से होने वाले परिवर्तनों का पता चलता है जिससे उनका सामना करने के लिए उपयुक्त प्रयासों को निश्चित किया जा सके।
  4. नियोजन एवं नीति निर्धारण में सहायता:- व्यवसायिक पर्यावरण की समझ एवं विश्लेषण नियोजन एवं नीति निर्धारण में सहायता करते है।
    उदाहरणार्थ:- 'ITC होटल'  ने भारत में विभिन्न होटल खोलने का तब सोचा जब उसे भारत टूरिज्म उद्योग में अवसर की संभावनाए दिखी।
  5. निष्पादन में सुधार:- व्यवसायिक पर्यावरण का सही अध्ययन एक उद्यम के निष्पादन में सुधार कर सकता है तथा उसे दीर्घकाल तक सफल बना सकता है।
  • व्यवसायिक पर्यावरण के आयाम
    इस पर्यावरण से तात्पर्य किसी अर्थव्यवस्था की उन नीतियों, सिस्ट्म्स व शक्तियों से है जो व्यवसाय को प्रभावित करते है।
    1. आर्थिक पर्यावरण:- आर्थिक वातावरण का व्यवसाय पर प्रत्यक्ष आर्थिक प्रभाव होता है। ब्याज की दर, मोद्रिक नीति, मूल्य वृद्धि दर, लोगों की आय में परिवर्तन आदि कुछ आर्थिक तत्व है जो व्यवसायिक उद्यमों को प्रभावित कर सकते है।
    2. सामाजिक पर्यावरण:- सामाजिक पर्यावरण में सामाजिक शक्तियां जैसे रीति-रिवाज, मूल्य, सामाजिक बदलाव, जीवन-शैली आदि सम्मिलित होते है। सामाजिक पर्यावरण में होने वाले बदलाव व्यवसाय को शीघ्र प्रभावित करते हैं। इसके कारण जहाँ व्यवसाय को विभिन्न अवसर मिलते है, वही खतरे भी होते है। उदहारण के लिए आज लोगों द्वारा अपने स्वास्थ्य पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है जिसके कारण कुछ वस्तुओं जैसे डायट पेय पदार्थ, मिनरल वाटर आदि की माँग बढ़ गई है, परन्तु कुछ अन्य वस्तुओं जैसे तम्बाकू, वसा युक्त भोजन की माग़ कम हो गई है।
    3. प्रौद्योगिकीय / तकनीकी पर्यावरण:- तकनीकी पर्यावरण द्वारा उत्पादन की नई तकनीकी एवं पद्धतियाँ उपलब्ध कराई जाती है। व्यवसायी को उद्योग में होने वाले तकनीकी परिवर्तनों पर गहरी दृष्टि रखनी चाहिए क्योंकि ये परिवर्तन प्रतियोगियों का सामना करने तथा उत्पादन की गुणवत्ता सुधारने के लिए अनिवार्य होते है।
    4. राजनीति / राजनैतिक पर्यावरण:- राजनैतिक स्थितियों व घटकों में बदलाव के कारण भी व्यवसायिक संस्थाएँ प्रभावित होती हैं। राजनैतिक स्थिरता व्यवसायिकों में आत्मविश्वास पैदा करती है जबकि राजनैतिक अशांति एवं खराब कानून व्यवस्था, व्यवसायिक क्रियाओं में अनिश्चिता ला सकती है।
      उदाहरणार्थ:- बैंगलोर तथा हैदराबाद राजनीतिक समर्थन के कारण सूचना प्रौद्योगिकी हेतु लोकप्रिय स्थान बन गया है।
    5. विधिक/कानूनी पर्यावरण:- विधिक पर्यावरण में सरकार द्वारा पारित विभिन्न विधेयक, प्रशासनिक आदेश, न्यायालयों के फैसले तथा विभिन्न सरकारी कमीशन एवं एजेंसियों के निर्णय सम्मिलित होते है। व्यवसायों को इनका पालन करना होता है। अतः कानून की जानकारी आवश्यक होती है।
      उदाहरणार्थ:- एल्कोहल के विज्ञापन पर प्रतिबंध है तथा सिगरेट के विज्ञापन पर वैधानिक चेतावनी लिखने की अनिवार्यता।
  • भारत का आर्थिक वातावरण
    आर्थिक सुधारों को मुख्य रखते हुए, भारत सरकार में नई आर्थिक नीति 1991 की घोषणा की। इसका उद्देश्य था की भारत आर्थिक सकंट में उभर के शीघ्र आर्थिक वृद्धि की ओर बढ़ना।
    नई औद्योगिक नीति का मुख्य उद्देश्य लाइसेंस प्रणाली के बंधन से उद्योगों को मुक्त कराना (उदारीकरण) सावर्जनिक क्षेत्र की भूमिका को कम करना (निजीकरण) तथा भारत के औद्योगिक विकास ने विदेशी निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहन देना (वैश्वीकरण) था।
    • उदारीकरण:- इसका आशय भारतीय व्यवसाय एवं उद्योग को अनावश्यक नियंत्रण एवं प्रतिबंधो से मुक्त करने से है इसका मुख्य उद्देश्य कुछ उद्योगों को छोड़कर अधिकांश में लाइसेंस की आवश्यकता को समाप्त करना था, वस्तु एवं सेवाओं के स्थानांतरण में प्रतिबन्धों को हटा लेना, मूल्य निर्धारण की स्वतंत्रता देना, आयत-निर्यात प्रकिया को सरल बेहतर उपयोग सुनिश्चित करना था।
    • निजीकरण:- इसका आशय राष्ट्र निर्माण में निजी क्षेत्र की भूमिका में बढ़ोत्तरी करना तथा सार्वजनिक क्षेत्र की भूमिका को कम करने से है। जिसके परिणामस्वरूप सावर्जनिक उद्योगों को निजी उद्योगों में बदला गया ताकि सरकारी क्षेत्र के भूमिका को 51% से भी कम किया जाए। इन सबका उद्देश्य कार्यक्षमता बढ़ना, बजट घाटा कम करना और संसाधनो का बेहतर उपयोग सुनिश्चित करना था।
    • वैश्वीकरण:- इसका अर्थ है विश्व की विभिन्न अर्थव्यवस्थाओ का एकजुटे हो जाना जिससे एक सम्मिलित वैश्विक अर्थव्यवस्था का उदय हो सके। विश्व की अर्थव्यवस्था में अधिक एकीकरण तथा आर्थिक अन्तनिर्भरता की एक प्रकिया है जिसके माध्यम से विभिन्न देशों में पारस्परिक लेन-देन वृद्धि होगी। इसके परिणामस्वरूप निर्यात शुल्क हट गया, आयत शुल्क कम हो गया, पूंजीगत आयातों का उदारीकरण हो गया।
  • व्यवसाय एंव उद्योग पर सरकारी नीतियों में परिवर्तन का प्रभाव:-
    1. प्रतियोगिता में वृद्धि:- लाइसेंस में छूट के कारण तथा भारतीय बाजार में विदेशी फर्मो के प्रवेश के कारण भारतीय फर्मो के लिए प्रतियोगिता में वृद्धि हुई है।
    2. अधिक माँग करने वाले ग्राहक:- आज का ग्राहक जागरूक है तथा वह बाजार की अधिक जानकारी रखता है। जिसके कारण बाजार क्रेता-अभिमुखी बन गये है। ग्राहकों को आज गुणवत्ता वाली वस्तु एंव सेवाएं उपलब्ध कराई जाती है तथा उन्हें चयन के अवसर भी अधिक प्राप्त होते है।
    3. प्रौद्योगिकी / तकनीकी पर्यावरण में तेजी से परिवर्तन:- तकनीकी विकास के कारण उत्पादन प्रक्रिया में तेजी से सुधार हो रहा है। जिसके कारण कम से कम लागत पर अधिक से अधिक उत्पादन हो पा रहा है। परन्तु तकनीकी बदलाव के कारण छोटी फर्मो के सामने अनेक कठिनाइयाँ तथा चुनौतियाँ आ रही है।
    4. परिवर्तन की आवश्यकता:- नई आर्थिक नीति के बाद से बाजार शक्तियाँ माँग तथा पूर्ति के आधार पर अधिक तेजी से बदल रही है। व्यवसायिक वातावरण के विभिन्न घटकों में तेजी से हो रहे परिवर्तन के कारण फर्मो को भी अपने प्रचलन में निरंतर बदलाव/ संशोधन करना पड़ता है।
    5. मानव संसाधनो के विकास की आवश्यकता:- आज के बदलते परिवेश में उच्च क्षमतावान तथा अधिक प्रतिबद्ध लोगों की माँग बढ़ रही है। अतः मानव संसाधनो के विकास की आवश्यकता हो गयी है उनकी कार्यक्षमता तथा उत्पादिकता में वृद्धि हो सके।
    6. बाजार अभीविन्यास:- पहले बाजार में बिक्री अवधारणा प्रचलित थी, परन्तु आज विपणन अवधारणा को बोलबाला है। आज उत्पादक द्वारा बाजार शोध के माध्यम से ग्राहकों की आवश्यकताओ का पहले पता लगाया जाता है तथा फिर उन आवश्यकताओ के आधार पर उत्पादन किया जाता है। विपणन शोध शैक्षित विज्ञापन, विक्रय के बाद सेवाएँ आदि अधिक महत्त्वपूर्ण हो गए।
    7. सार्वजनिक क्षेत्र को बजटीय समर्थन का आभाव:- आज सरकार द्वारा सावर्जनिक क्षेत्र को दिया जाने वाले बजटीय समर्थन कम होता जा रहा है जिससे एक क्षेत्र में कार्यरत फर्मे स्वयं आवश्यक संसाधन एकत्रित करे तथा अपनी कुशलता भी बढ़ाये ताकि उनका विकास को सके।
  • व्यवसायिक पर्यावर्तन कपर प्रबन्धको की प्रतिक्रिया
    आथिर्क नीति में परिवर्तन के फलस्वरूप प्रबन्धको को अपने व्यवसाय को न केवल बनाए रखने बल्कि विकसित करने के लिए कई क्षेत्रों पर ध्यान देना आवश्यक को गया। बदलते व्यवसायिक पर्यावरण में कई चुनौतीपूर्ण निणर्य लेने आवश्यक हो गए थे। इसलिए व्यावसायिक पर्यावरण की समझ ने उन्हें कई निर्णय लेने में मदद की जैसे बढ़ती प्रतियोगिता में संभलना, अत्यधिक अपेक्षा वाले ग्राहको से व्यवहार, तेजी से बदलता तकनीकी पर्यावरण मानवीय संसाधनो को विकसित करने की आवश्यकता आदि।