भीमराव रामजी आंबेडकर - महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

 सीबीएसई कक्षा -12 हिंदी कोर

महत्वपूर्ण प्रश्न
पाठ – 18

बाबा साहब भीमराव आंबेडकर (मेरी कल्पना का आदर्श-समाज)


महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

1. आंबेडकर की कल्पना का समाज कैसा है?

उत्तर- आंबेडकर का आदर्श समाज स्वतंत्रता, समता व भाईचारे पर आधारित होगा | सभी को विकास के समान अवसर मिलेंगे तथा जातिगत भेदभाव का नामोनिशान नहीं होगा | समाज में कार्य करने वाले को सम्मान मिलेगा |

2. लेखक की दृष्टि में लोकतंत्र क्या है?

उत्तर- लेखक की दृष्टि में लोकतंत्र केवल शासन की एक पद्धति नहीं है | वस्तुतः यह सामूहिक जीवनचर्या की एक रीति और समाज के सम्मिलित अनुभवों के आदान-प्रदान का नाम है | इसमें यह आवश्यक है कि अपने साथियों के प्रति श्रद्धा व सम्मान का भाव हो |

3. डॉ. आंबेडकर ‘समता’ को कैसी वस्तु मानते हाँ तथा क्यों?

उत्तर- डॉ. आंबेडकर ‘समता’ को कल्पना की वस्तु मानते हैं | उनका मानना है कि हर व्यक्ति समान नहीं होता | वह जन्म से ही सामाजिक स्तर जे हिसाब से तथा अपने प्रयत्नों के कारण भिन्न और समान होता है | पूर्ण समता एक काल्पनिक स्थिति है, परंतु हर व्यक्ति को अपनी क्षमता को विकसित करने के लिए समान अवसर मिलने चाहिए |

बाबा साहब भीमराव आंबेडकर (श्रम विभाजन और जाति-प्रथा)

महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

1. मनुष्य की क्षमता किन बातों पर निर्भर करती है?

उत्तर- (i) जाति-प्रथा का श्रम विभाजन अस्वाभाविक है।

(ii) शारीरिक वंश परंपरा के आधार पर।

(iii) सामाजिक उत्तराधिकार अर्थात् समाजिक परंपरा के रूप में माता-पिता की प्रतिष्ठा, शिक्षा, ज्ञानार्जन आदि उपलब्धियों का लाभ।

(iv) मनुष्य के अपने प्रयत्न।

2. लेखक ने जाति-प्रथा की किन-किन बुराइयों का वर्णन किया है?

उत्तर- लेखक ने जाति-प्रथा की निम्नलिखित बुराइयों का वर्णन किया है-

(i) यह श्रमिक-विभाजन भी करती है।

(ii) यह श्रमिक में ऊँच-नीच का स्तर तय करती है।

(iii) यह जन्म के आधार पर पेशा तय करती है।

(iv) यह मनुष्य को सदैव एक व्यवसाय में बाँध देती है भले ही वह पेशा अनुपयुक्त व अपर्याप्त हो।

(v) यह संकट के समय पेशा बदलने की अनुमति नहीं देती, चाहे व्यक्ति भूखा मर जाए।

(vi) जाति-प्रथा के कारण थोपे गए व्यवसाय में व्यक्ति रूचि नहीं लेता।

3. आर्थिक विकास के लिए जाति-प्रथा कैसे बाधक है?

उत्तर- भारत में जाति-प्रथा के कारण व्यक्ति को जन्म के आधार पर मिला पेशा ही अपनाना पड़ता है। उसे विकास के समान अवसर नहीं मिलते। जबरदस्ती थोपे गए पेशे में उनकी अरुचि हो जाती ओअर वे काम को टालने या कर्मचारी करते हैं। वे एकाग्रता से कार्य नहीं करते। इस प्रवृत्ति से आर्थिक हानि होती है और उद्योगों का विकास नहीं होता।

4. जाति और श्रम विभाजन में बुनियादी अंतर क्या है? ‘श्रम विभाजन और जाति प्रथा’ के आधार पर उत्तर दीजिए।

उत्तर- जाति और श्रम विभाजन में बुनियादी अंतर यह है कि-

(i) जाति विभाजन, श्रम विभाजन के साथ-साथ श्रमिकों का भी विभाजन करती है।

(ii) सभ्य समाज में श्रम विभाजन आवश्यक है परंतु श्रमिकों के वर्गों में विभाजन आवश्यक नहीं है।

(iii) जाति विभाजन में श्रम-विभाजन या पेशा चुनने की छूट नहीं होती जबकि श्रम विभाजन में ऐसी छूट हो सकती है।

(iv) जाति प्रथा विपरीत परिस्थितियों में भी रोजगार बदलने का अवसर नहीं देती है जबकि श्रम विभाजन में व्यक्ति ऐसा कर सकता है।

पाठ पर आधारित अन्य प्रश्नोत्तर

1. डॉ० भीमराव अंबेडकर जाति-प्रथा को श्रम-विभाजन का ही रूप क्यों नहीं मानते हैं ?

उत्तर- 1- क्योंकि यह विभाजन अस्वाभाविक है।

2- यह मनुष्य की रुचि पर आधारित नहीं है।

3- व्यक्ति की क्षमताओं की उपेक्षा की जाती है।

4- व्यक्ति के जन्म से पहले ही उसका पेशा निर्धारित कर दिया जाता है।

5- व्यक्ति को अपना व्यवसाय बदलने की अनुमति नहीं देती।

2. दासता की व्यापक परिभाषा दीजिए।

उत्तर- दासता केवल कानूनी पराधीनता नहीं है। सामाजिक दासता की स्थिति में कुछ व्यक्तियों को दूसरे लोगों के द्वारा तय किए गए व्यवहार और कर्तव्यों का पालन करने को विवश होना पड़ता है। अपनी इच्छा के विरुद्ध पैतृक पेशे अपनाने पड़ते हैं।

3. मनुष्य की क्षमता किन बातों पर निर्भर रहती है ?

उत्तर- मनुष्य की क्षमता मुख्यतः तीन बातों पर निर्भर रहती है-

1- शारीरिक वंश परंपरा

2- सामाजिक उत्तराधिकार

3- मनुष्य के अपने प्रयत्न

लेखक का मत है कि शारीरिक वंश परंपरा तथा सामाजिक उतराधिकार किसी के वश में नहीं है परन्तु मनुष्य के अपने प्रयत्न उसके अपने वश में है। अतः मनुष्य की मुख्य क्षमता-उसके अपने प्रयात्रों को बढ़ावा मिलना चाहिए।

4. समता का आशय स्पष्ट करते हुए बताइए कि राजनीतिज्ञ पुरूष के संदर्भ में समता को कैसे स्पष्ट किया गया है ?

उत्तर - जाति, धर्म, संप्रदाय से ऊपर उठकर मानवता अर्थात मानव मात्र के प्रति समान व्यवहार ही समता है। राजनेता के पास असंख्य लोग आते हैं, उसके पास पर्याप्त जानकारी नहीं होती सबकी सामाजिक पृष्ठभूमि क्षमताएँ आवश्यकताएँ जान पाना उसके लिए संभव नहीं होता अतः उसे समता और मानवता के आधार पर व्यवहार के प्रयास करने चाहिए।

गद्यांश आधारित अर्थग्रहण संबंधित प्रश्नोत्तर

गद्यांश संकेत-पाठ श्रम विभाजन और जाति प्रथा (पृष्ठ १५३)

यह विडम्बना ............................. बना देती है।

1. श्रम विभाजन किसे कहते हैं ?

उत्तर- श्रम विभाजन का अर्थ है- मानवोपयोगी कार्यों का वर्गीकरण करना। प्रत्येक कार्य को कुशलता से करने के लिए योग्यता के अनुसार विभिन्न कामों को आपस में बाँट लेना। कर्म और मानव-क्षमता पर आधारित यह विभाजन सभ्य समाज के लिए आवश्यक है।

2. श्रम विभाजन और श्रमिक-विभाजन का अंतर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- श्रम विभाजन में क्षमता और कार्य-कुशलता के आधार पर काम का बँटवारा होता है, जबकि श्रमिक विभाजन में लोगों को जन्म के आधार पर बाँटकर पैतृक पेशे को अपनाने के लिए बाध्य किया जाता है। श्रम-विभाजन में व्यक्ति अपनी रुचि के अनुरूप व्यवसाय का चयन करता है। श्रमिक-विभाजन में व्यवसाय का चयन और व्यवसाय-परिवर्तन की भी अनुमति नहीं होती, जिससे समाज में ऊँच नीच का भेदभाव पैदा करता है, यह अस्वाभाविक विभाजन है।

3. लेखक ने किस बात को विडम्बना कहा है ?

उत्तर- लेखक कहते हैं कि आज के वैज्ञानिक युग में भी कुछ लोग ऐसे हैं जो जातिवाद का समर्थन करते हैं और उसको सभ्य समाज के लिए उचित मानकर उसका पोषण करते हैं। यह बात आधुनिक सभ्य और लोकतान्त्रिक समाज के लिए विडम्बना है।

4. भारत में ऐसी कौन-सी व्यवस्था है जो पूरे विश्व में और कहीं नहीं है ?

उत्तर- लेखक के अनुसार जन्म के आधार पर किसी का पेशा तय कर देना, जीवनभर एक ही पेशे से बँधे रहना, जाति के आधार पर ऊँच-नीच का भेदभाव करना तथा बेरोजगारी तथा भुखमरी की स्थिति में भी पेशा बदलने की अनुमति न होना ऐसी व्यवस्था है जो विश्व में कहीं नहीं है।