अर्थशास्त्र परिचय - नोट्स

CBSE कक्षा 11 अर्थशास्त्र
पुनरावृत्ति नोट्स
पाठ - 1 परिचय

स्मरणीय बिन्दु-
  • मनुष्य की आवश्यकताएं उपलब्ध साधनों की तुलना में कहीं अधिक होती हैं।
  • यह संसाधनों की दुर्लभता को जन्म देता हैं। संसाधनों की दुर्लभता जीवन का एक ऐसा सत्य है जिसने अर्थशास्त्र को जन्म दिया है।
  • संसाधन केवल दुर्लभ नहीं होते, उनके वैकल्पिक प्रयोग भी होते हैं।
  • इससे चयन की समस्या उत्पन्न होती हैं। चयन की समस्या (Problem of choice) दुर्लभ संसाधनों के वैकल्पिक प्रयोगों के आबंटन से संबंधित हैं।
अर्थशास्त्र की परिभाषा
  • अर्थशास्त्र दुर्लभता की स्थिति में चयन से संबंधित व्यवहार का अध्ययन हैं।
  • दूसरे शब्दों में, अर्थशास्त्र एक विषय है, वस्तु है जो दुर्लभ संसाधन जिनके वैकल्पिक उपयोग हैं के विवेकशील प्रयोग पर केन्द्रित हैं जिससे आर्थिक कल्याण अधिकतम हों।
व्यष्टि अर्थशास्त्र तथा समष्टि अर्थशास्त्र
  • व्यष्टि अर्थशास्त्र- यह आर्थिक सिद्धान्त की वह शाखा हैं जिसके अन्तर्गत अर्थव्यवस्था की व्यक्तिगत इकाइयों का अध्ययन किया जाता हैं। उदाहरण-व्यक्तिगत उपभोक्ता का संतुलन, उद्योग का संतुलन, व्यक्तिगत वस्तु या साधन का कीमत निर्धारण व्यक्तिगत माँग, एक फर्म का उत्पादन आदि।
  • प्रो. बोल्डिंग (Prof. Boulding) के अनुसार, "व्यष्टि अर्थशास्त्र व्यक्तिगत फर्म, व्यक्तिगत गृहस्थ, व्यक्तिगत कीमत, व्यक्तिगत आय, व्यक्तिगत उद्योगों व व्यक्तिगत वस्तुओं का अध्ययन करता है।" केन्द्रीय समस्याएँ-क्या उत्पादन किया जाए, कैसे उत्पादन किया जाये, किसके लिए उत्पादन किया जाए, की आर्थिक समस्या का समाधान व्यष्टि अर्थशास्त्र के अन्तर्गत किया जाता है।
    • व्यष्टि अर्थशास्त्र का क्षेत्र
      1. राष्ट्रीय आय
      2. उत्पादक व्यवहार
      3. कीमत निर्धारण
      4. कल्याण अर्थशास्त्र
      5. वितरण के सिद्धांत
  • समष्टि अर्थशास्त्र- यह आर्थिक सिद्धान्त की वह शाखा है जो संपूर्ण अर्थव्यवस्था का एक इकाई के रूप में अध्ययन करता है। उदाहरण-सामान्य कीमत का स्तर, रोजगार का स्तर, विभिन्न आर्थिक चरों का अंर्तसंबंध समग्र माँग, राष्ट्रीय आय आदि।
  • यदि व्यष्टि अर्थशास्त्र को वृक्ष कहा जाए तो समष्टि अर्थशास्त्र को वन कहा जा सकता है।
    • समष्टि अर्थशास्त्र का क्षेत्र
      • राष्ट्रीय आय
      • रोजगार मुद्रा
      • सामान्य कीमत स्तर
      • निर्धनता, मुद्रास्फीति, सरकारी बजट, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार आदि
अर्थव्यवस्था के अर्थ-
  • अर्थव्यवस्था से आशय एक क्षेत्र की उन सब उत्पादन इकाइयों के समूह से है जिनमें लोग रोजी कमाते हैं।
  • प्रो. ब्राउन (Prof. Brown) के अनुसार, "अर्थव्यवस्था एक ऐसी प्रणाली है जो लोगों को जीविका प्रदान करती है।"
  • जब हम भारतीय अर्थव्यवस्था को संदर्भित करते हैं तो इससे अभिप्राय भारत की घरेलू सीमा में स्थित सभी उत्पादन इकाइयों के समूह से होता है जिनके द्वारा उत्पादन, उपभोग, निवेश, विनिमय, आदि की आर्थिक क्रियाएँ दिखती रहती हैं।
अर्थव्यवस्था की मूल क्रियाएँ-
  • उत्पादन
  • उपभोग
  • निवेश
आर्थिक समस्या-
  1. आर्थिक समस्या मूल रूप से चयन की समस्या है जो संसाधनों की दुर्लभता के कारण उत्पन्न होती है।
  2. चूंकि मानव आवश्यकताएँ असीमित होती हैं और उन्हें पूरा करने के साधन सीमित होते हैं इससे चुनाव की समस्या उत्पन्न होती है।
  3. प्रो. एरिक रोल (Prof. Erick Roll) के अनुसार, "आर्थिक समस्या निश्चित रूप से चयन की आवश्यकता से के दोहन की समस्या है।"
आर्थिक समस्या उत्पन्न होने के कारण-
  • मानव आवश्यकताएँ असंख्य हैं।
  • इन आवश्यकताओं की पूर्ति के साधन सीमित हैं।
  • संसाधनों के वैकल्पिक उपयोग हैं।
अर्थव्यवस्था की केन्द्रीय समस्याएँ-
  • क्या उत्पादन किया जाए? (वस्तुओं का चयन)
  • कैसे उत्पादन किया जाए? (तकनीक का चयन)
  • किसके लिए उत्पादन किया जाए? (वस्तुओं अथवा आय के वितरण की समस्या)
  • विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं में केन्द्रीय समस्याओं का समाधान
बाज़ार अर्थव्यवस्था
  • बाज़ार अर्थव्यवस्था एक ऐसी अर्थव्यवस्था होती है, जिसमें उत्पादन कारकों (Factors of production) पर निजी स्वामित्व होता है तथा उत्पादन लाभार्जन के उद्देश्य से किया जाता है।
  • ऐसी अर्थव्यवस्था में क्या उत्पादन किया जाए, कैसे उत्पादन किया जाए तथा किसके लिए उत्पादन किया जाए इन आर्थिक समस्याओं का समाधान मांग और पूर्ति की शक्तियों पर निर्भर करता है।
केन्द्रीय योजनाबद्ध अर्थव्यवस्था
  • केन्द्रीय योजनाबद्ध अर्थव्यवस्था एक ऐसी अर्थव्यवस्था होती हैं, जिसमें उत्पादन कारकों पर सरकार का स्वामित्व होता है तथा उत्पादन सामाजिक कल्याण के उद्देश्य से किया जाता है।
  • ऐसी अर्थव्यवस्था में क्या उत्पादन किया जाए, कैसे उत्पादन किया जाए तथा किसके लिए उत्पादन किया जाए का निर्णय केन्द्रीय सत्ता द्वारा लिया जाता है।
मिश्रित अर्थव्यवस्था
  • मिश्रित अर्थव्यवस्था में, बाज़ार तथा केन्द्रीय योजनाबद्ध अर्थव्यवस्था दोनों के गुण शामिल होते हैं। इसमें सरकारी व निजी क्षेत्र दोनों सहअस्तित्व रखते हैं। माँग एवं पूर्ति के बलों द्वारा लिये जाते हैं।
  • इसमें सरकारी क्षेत्र के निर्णय सरकारी/केन्द्रीय सत्ता द्वारा लिये जाते हैं, जबकि निजी क्षेत्र के निर्णय कीमत तंत्र अर्थात् माँग एवं पूर्ति के बलों द्वारा लिए जाते हैं।
उत्पादन संभावना वक्र/उत्पादन संभावना सीमा-
  • उत्पादन संभावना वक्र वह वक्र है जो दिए हुए संसाधनों तथा उत्पादन की तकनीक के आधार पर दो वस्तुओं के उत्पादन की वैकल्पिक संभावनाओं को प्रकट करता है।
  • इस उत्पादन सभावना सीमा भी कहा जाता हैं।
  • इसे रूपांतरण रेखा या रूपांतरण वक्र भी कहते हैं।
    उदाहरणः
    उत्पादन संभावनागेहूं (टन में)मशीनें (हज़ारों में)सीमान्त अवसर लागत
    A
    B
    C
    D
    E
    F
    150
    140
    120
    90
    50
    0
    0
    10
    20
    30
    40
    50
    -
    10:10
    20:10
    3:10
    4:10
    50:10
  • तालिका दर्शाती है कि यदि सभी संसाधनों को गेहूँ के उत्पादन में लगाया जाये तो 150 टन गेहूँ का उत्पादन हो सकता है।
  • यदि सभी संसाधनों की मशीनों के उत्पादन में लगाया जाये तो 50 हज़ार मशीनों का उत्पादन हो सकता हैं।
  • इनके मध्य में कई संभावनाएँ और भी हैं। इसे नीचे दिये गये वक्र द्वारा दर्शाया गया हैं।
उत्पादन संभावना की विशेषताएँ/आकार-
  • यह वक्र नीचे की ओर ढालू होता है।
    नीचे की ओर ढालू बायें से दायें होता है। इसका कारण यह है कि साधन सीमित होने के कारण यदि एक वस्तु का अधिक मात्रा में उत्पादन किया जाता है तो दूसरी वस्तु के उत्पादन की मात्रा में कमी करनी होती है।
  • यह वक्र नतोदर (Concave) होता हैं।
    मूल बिन्दु की ओर नतोदर होता है। इसका कारण बढ़ती हुई सीमांत अवसर लागत (MOC) है। अर्थात एक वस्तु का उत्पादन बढ़ाने के लिए दूसरी वस्तु की इकाइयों का त्याग बढ़ती दर पर करना पड़ता है।
  • उत्पादन सम्भावना वक्र का दायीं ओर खिसकाव संसाधनों में वृद्धि तथा तकनीकी प्रगति को दर्शाता है।
  • उत्पादन संभावना वक्र का बायीं ओर खिसकाव संसाधनों में कमी तथा तकनीकी अवनति को दर्शाता है।
  • उत्पादन सम्भावना वक्र उन सभी कारणों से दाई ओर खिसकेगा जिनसे अर्थव्यवस्था की उत्पादन क्षमता व संसाधनों की मात्रा तथा कुशलता में सुधार होता है।
  • सीमांत विस्थापन दर एक वस्तु की त्यागी जाने वाली इकाइयों तथा अन्य वस्तु की बढ़ाई गई एक अतिरिक्त इकाई का अनुपात है।
    MRT=ΔYΔX
    सीमांत विस्थापन दर को सीमांत अवसर लागत भी कहते हैं क्योंकि वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई बढ़ाने के लिए दूसरी वस्तु की त्यागी गई इकाईयाँ ही अतिरिक्त लागत होती है।
  • जब MOC बढ़ती है तो PPF मूल बिन्दु के नतोदर होता है। जब MOC घटती है तो PPF मूल बिन्दु के उन्नतोदर होता है। जब MOC स्थिर होती है तो PPF ऋणात्मक ढ़ाल वाली एक सरल रेखा होती है।
  • एक अवसर का चयन करने पर दूसरे सर्वश्रेष्ठ अवसर का किया गया त्याग अवसर लागत कहलाता है। इसे सर्वश्रेष्ठ विकल्प की लागत भी कहा जाता है।
  • उत्पादन संभावना सीमा (PPF) दो वस्तुओं के उन सभी संयोगों को दर्शाता है जिनका उत्पादन एक अर्थव्यवस्था अपने दिए हुए संसाधनों तथा तकनीकी स्तर का प्रयोग करके कर सकती है, यह मानते हुए कि सभी संसाधनों का पूर्ण एवं कुशलतम उपयोग हो रहा है।
  • संसाधनों के मितव्ययी प्रयोग से अभिप्राय संसाधनों के सर्वश्रेष्ठ व कुशलतम प्रयोग से है।
उत्पादन संभावना वक्र में खिसकाव (Shift in PPC) तथा इसके बिन्दु-

  • दाई ओर खिसकाव के कारण-
    1. संसाधन में वृद्धि
    2. तकनीकी प्रगति
    3. कौशल भारत अभियान (प्रशिक्षण)
    4. सर्व शिक्षा अभियान (शिक्षा)
    5. स्वच्छ भारत अभियान (स्वास्थ्य)
    6. योगा प्रसार योजनाएँ (स्वास्थ्य)
    7. बेटी बचाओं, बेटी पढ़ाओं (शिक्षा)
    8. भारत में बनाइए (निवेश)
    9. विदेशी पूँजी में वृद्धि (विदेशी निवेश)
  • बाई ओर खिसकाव के कारण-
    1. संसाधनों में कमी
    2. तकनीकी अवनीति
    3. प्राकृतिक आपदा (बाढ़, भूकंप, सुनामी, सुखा आदि)
    4. सामाजिक कुरीतियाँ
    5. प्रवास
    6. युद्ध
    7. आतंकवाद
  • PPC में कोई परिवर्तन नहीं-
    1. संसाधनों का स्थनांतरण
    2. बेरोजगारी उन्मूलन कार्यक्रम
सकारात्मक तथा आदर्शात्मक आर्थिक विश्लेष्ण
  • सकारात्मक (वास्तविक) आर्थिक विश्लेषण: इसको अन्तर्गत यथार्थ (वास्तविकता) का अध्ययन किया जाता है। इसमें क्या था? क्या है? जैसे वास्तविक कथनों का विश्लेषण सत्यता के आधार पर किया जाता है। उदाहरण के लिए भारत की जनसंख्या 1951 में कितनी थी? वर्तमान में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की संख्या कितनी है। इन कथनों की जाँच संभव होती है।
  • आदर्शात्मक आर्थिक विश्लेषण: इसमें 'क्या होना चाहिए' से सम्बन्धित विश्लेषण किया जाता है। इसमें आदर्शात्मक परिस्थितियों का अध्ययन किया जाता है। इसकी प्रकृति सुझाव देने की है। उदाहरण के लिए भारत में आय व धन की असमानताओं को कम करने के लिए सरकार को अमीर लोगों पर अधिक कर लगाने चाहिए, गरीबों को आर्थिक सहायता देनी चाहिए। इन कथनों की जाँच संभव नहीं होती।