पत्रकारीय लेखन - पुनरावृति नोट्स 6

 CBSE कक्षा 12 हिंदी (ऐच्छिक)

विभिन्न माध्यमों के लिए लेखन


मुख्य बिन्दु-

  • जनसमाज द्वारा प्रयोग में लाए जाने वाले जन संचार के अनेक माध्यम हैं जैसे- मुद्रित (प्रिंट), रेडियो, टेलीविजन एवं इंटरनेट। मुद्रित अर्थात् समाचार पत्र-पत्रिकाएँ पढ़ने के लिए, रेडियो सुनने के लिए, टी.वी. देखने व सुनने के लिए तथा इंटरनेट पढ़ने, सुनने व देखने के लिए प्रयुक्त होते हैं। अखबार पढ़ने के लिए है, रेडियो सुनने के लिए है और टी० वी० देखने के लिए ज्यादा महत्वपूर्ण है। किन्तु इंटरनेट पर पढ़ने देखने और सुनने, तीनों की आवश्यकता पूरी हो जाती है।
  • जनसंचार के आधुनिक माध्यमों में मुद्रित (प्रिंट) माध्यम सबसे पुराना, माध्यम है जिसके अंतर्गत समाचार, पत्र, पत्रिकाएँ आती हैं। मुद्रण का प्रारंभ चीन में हुआ। तत्पश्चात् जर्मनी के गुटेनबर्ग ने छापाखाना की खोज की। भारत में सन् 1556 में, गोवा में पहला छापाखाना खुला जिसका प्रयोग मिशनरियों ने धर्म प्रचार की पुस्तकें छापने के लिए किया था। आज मुद्रण कप्यूटर की सहायता से होता है।
  • मुद्रित माध्यम की खूबियाँ (विशेषताएँ) देखें तो हम पाएंगे कि सभी की अपनी कमियाँ हैं और खूबियाँ हैं। लिखे हुए शब्द स्थायी होते हैं। इन लिखे हुए शब्दों को हम एक बार ही नहीं, समझ न आने पर कई बार पढ़ सकते हैं और उन पर चिंतन-मनन करके संतुष्ट भी हो सकते हैं। जटिल शब्द आने पर शब्दकोश का प्रयोग भी कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त किसी भी खबर को अपनी रूचि के अनुसार पहले अथवा बाद में पढ़ सकते हैं। चाहे तो किसी भी सामग्री को लंबे समय तक सुरक्षित रख सकते हैं।
  • मुद्रित माध्यम की खामियाँ (कमियाँ)- निरक्षरों (अशिक्षित लोगों) के लिए अनुपयोगी, टी.वी. तथा रेडियो की भांति मुद्रित माध्यम तुरंत घटी घटनाओं की जानकारी नहीं दे पाता। समाचार पत्र निश्चित अवधि अर्थात् 24 घंटे में एक बार, साप्ताहिक सप्ताह में एक बार तथा मासिक मास में एक बार प्रकाशित होता है। किसी भी खबर अथवा रिपोर्ट के प्रकाशन के लिए एक डेडलाइन (निश्चित समय सीमा) होती है। स्पेस (स्थान) सीमा भी होती है। महत्व एवं जगह की उपलब्धता के अनुसार ही किसी भी खबर को स्थान दिया जाता है। मुद्रित माध्यम में अशुद्धि होने पर, सुधार हेतु अगले अंक की प्रतीक्षा करनी पड़ती है।
  • मुद्रित माध्यम में लेखन के लिए भाषा, व्याकरण, शैली, वर्तनी, समय-सीमा, आबंटित स्थान, अशुद्धि शोधन एवं तारतम्यता पर विशेष ध्यान देना जरूरी है।
  • रेडियो : रेडियो जनसंचार का श्रव्य माध्यम है जिसमें ध्वनि, शब्द और स्वर ही प्रमुख है। रेडियो मूलतः एक रेखीय (लीनियर) माध्यम है। रेडियो समाचार की संरचना समाचार पत्रों तथा टी.वी. की तरह उल्टा पिरामिट शैली पर आधारित होती है, जिसमें अखबार की तरह पीछे लौट कर सुनने की सुविधा नहीं होती। लगभग 90 फीसदी समाचार या स्टोरिज इसी शैली में लिखी जाती है।
  • उल्टा पिरामिड शैली: उल्टा पिरामिट शैली में समाचार पत्र को सबसे महत्वपूर्ण तथ्य को सर्वप्रथम लिखा जाता है। उसके बाद घटते हुए महत्व क्रम में दूसरे तथ्यों या सूचनाओं को बताया जाता है अर्थात् कहानी की तरह क्लाइमैक्स अंत में नहीं वरन् खबर के आरंभ में आ जाता है। इस शैली के अंतर्गत समाचारों को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है-इंट्रो, बॉडी, समापन।
    1. इंट्रो : समाचार का मुख्य भाग
    2. बॉडी : घटते क्रम में खबर का विस्तृत ब्यौरा।
    3. समापन : अधिक महत्वपूर्ण न होने पर अथवा स्पेस न होने पर इसे काटकर छोटा भी किया जा सकता है।
  • समाचार लेखन की बुनियादी बातें: साफ सुथरी टाइप्ड कॉपी, ट्रिपल स्पेस में टाइप करते हुए दोनों ओर हाशिया छोड़ें, एक पंक्ति में 12-13 शब्दों से अधिक न हों, पंक्ति के अंत में विभाजित शब्द का प्रयोग न करें। समाचार कॉपी में जटिल शब्द एवं संक्षिप्ताक्षर का प्रयोग न करें। लंबे अंकों को तथा दिनांक को शब्दों में लिखें। निम्नलिखित, क्रमांक, अधोहस्ताक्षरित, किंतु, लेकिन, उपर्युक्त, पूर्वोक्त जैसे शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। वर्तनी पर विशेष ध्यान दें। समाचार लेखन की भाषा को प्रभावी बनाने के लिए आम बोलचाल की भाषा का ही प्रयोग करें।
  • टेलीविजन: टेलीविजन जनसंचार का दृश्य श्रव्य माध्यम है। टेलीविजन भी रेडियो की भांति एक रेखीय माध्यम है। टी.वी. में शब्दों व ध्वनियों की अपेक्षा दृश्यों (तस्वीरों) का महत्व अधिक है। टी.वी. में शब्द दृश्यों के अनुरूप तथा उनके सहयोगी के रूप में चलते हैं। टेलीविजन में कम से कम शब्दों में अधिक से अधिक खबर बताने की शैली का प्रयोग किया जाता है। अतः टी.वी. में समाचार लेखन की प्रमुख शर्त दृश्य के साथ लेखन है।
  • टी.वी. खबरों के प्रमुख चरण: प्रिंट अथवा रेडियो की भांति टी.वी. चैनल समाचार देने का मूल आधार सूचना देना है। टी.वी. में ये सूचनाएँ इन चरणों से होकर गुजरती हैं-
    1. फ्लैश (ब्रेकिंग न्यूज),
    2. ड्राई एंकर,
    3. फोन इन,
    4. एंकर विजुअज,
    5. एंकर-बाइट,
    6. लाइव,
    7. एंकर पैकेज।
  • विशेषताएँ: देखने व सुनने की सुविधा, जीवंतता तुरन्त घटी घटनाओं की जानकारी, प्रभावशाली, समाचारों का लगातार प्रसारण।
  • कमियाँ: भाषा शैली के स्तर पर अत्यंत सावधानी, बाइट का ध्यान रखना आवश्यक है, कार्यक्रम का सीधा प्रसारण कभी-कभी सामाजिक उत्तेजना को जन्म दे सकता है, अपरिपक्व बुद्धि पर सीधा प्रभाव।
  • रेडियो और टेलीविजन समाचार की भाषा: भाषा के स्तर व गरिमा को बनाए रखते हुए सरल भाषा का प्रयोग करें ताकि सभी वर्ग तथा स्तर के लोग समझ सके। वाक्य छोटे-छोटे तथा सरल हों, वाक्यों में तारतम्यता हो। जटिल शब्दों, सामासिक शब्दों एवं मुहावरों के अनावश्यक प्रयोग से बचें। जटिल और उच्चारण में कठिन शब्द, संक्षिप्तताएँ, अंक आदि नहीं लिखने चाहिए जिन्हें पढ़ने में जबान लड़खड़ा जाए।
  • इंटरनेट: इंटरनेट की दीवानी नई पीढ़ी को अब समाचार पत्र पर छपे समाचार पढ़ने में आनंद नहीं आता उन्हें स्वयं को घंटे दो घंटे में अपडेट रखने की आदत सी बन गई है। इंटरनेट पत्रकारिता, ऑन लाइन पत्रकारिता, साइबर पत्रकारिता या वेब पत्रकारिता इसे कुछ भी कह सकते हैं। इंटरनेट द्वारा जहाँ हम सूचना, मनोरंजन, ज्ञान तथा निजी व सार्वजनिक संवादों का आदान-प्रदान कर सकते हैं वहीं इसे अश्लीलता, दुष्प्रचार एवं गंदगी फैलाने का माध्यम भी बनाया जा रहा है। इंटरनेट का प्रयोग समाचारों के संप्रेषण, संकलन तथा सत्यापन एवं पुष्टिकरण में भी किया जा रहा है। टेलीप्रिंटर के जमाने में जहाँ एक मिनट में केवल 80 शब्द एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजे जा सकते थे वहीं आज एक सैकण्ड में लगभग 70 हजार शब्द भेजे जा सकते हैं।
  • इंटरनेट पर समाचार पत्र का प्रकाशन अथवा खबरों का आदान-प्रदान ही वास्तव में इंटरनेट पत्रकारिता है। इंटरनेट पर यदि हम किसी भी रूप में समाचारों, लेखों, चर्चा-परिचर्चाओं, बहसों, फीचर, झलकियों के माध्यम से अपने समय की धड़कनों को अनुभव कर दर्ज करने का कार्य करते हैं तो वही इंटरनेट पत्रकारिता है। इसी पत्रकारिता को वैब पत्रकारिता भी कहा जाता है।
  • इस समय विश्व स्तर पर इंटरनेट पत्रकारिता का तीसरा दौर चल रहा है जबकि भारत में दूसरा दौर। भारत के लिए प्रथम दौर 1993 से प्रारंभ माना जाता है और दूसरा दौर 2003 से प्रारंभ हुआ है।
  • भारत में सच्चे अर्थों में यदि कोई वेब पत्रकारिता कर रहा है तो वह ‘रीडिफ डॉटकॉम’, इंडिया इंफोलाइन तथा सीफी जैसी कुछ साइटें हैं। रीडिफ को भारत की पहली साइट कहा जा सकता है। वेबसाइट पर विशुद्ध पत्रकारिता करने का श्रेय तहलका डॉटकॉम को जाता है।
  • हिंदी में नेट पत्रकारिता, ‘वेब दुनिया’ के साथ प्रारम्भ हुई। इंदौर के नयी दुनिया समूह से प्रारंभ हुआ, ये पोर्टल हिन्दी का सम्पूर्ण पोर्टल है। ‘जागरण’, ‘अमर उजाला’, ‘नयी दुनिया’. ‘हिन्दुस्तान’, ‘भास्कर’, 'राजस्थान–पत्रिका’, ‘नवभारत टाइम्स’, ‘प्रभात खबर’ व ‘राष्ट्रीय सहारा’ के वेब संस्करण प्रारंभ हुए। ‘प्रभासाक्षी’ नाम से प्रारंभ हुआ अखबार प्रिंट रूप में न होकर केवल इंटरनेट पर उपलब्ध है। आज पत्रकारिता के अनुसार सर्वश्रेष्ठ साइट बी.बी.सी. है।
  • हिन्दी वेब जगत में आज अनेक साहित्यिक पत्रिकाएँ चल रही हैं। कुल मिलाकर हिन्दी की वेब पत्रकारिता अभी अपने शैशवकाल में ही है। सबसे बड़ी समस्या हिन्दी के फॉण्ट की है। अभी भी हमारे पास हिन्दी का कोई की-बोर्ड नहीं है। जब तक हिन्दी के की-बोर्ड का मानवीकरण नहीं हो जाता तब तक इस समस्या को दूर नहीं किया जा सकता।