भारत में राष्ट्रवाद - महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर 2

 CBSE Class 10 सामाजिक विज्ञान

पाठ - 3
भारत में राष्ट्रवाद


लघु/ दीर्घ प्रश्न (3/5 अंक)

  1. ‘‘सत्याग्रह का विचार आज भी प्रासंगिक है।’’ इस पर अपनी राय दीजिए।
    उत्तर- गाँधी जी द्वारा अन्याय व उत्पीड़न के खिलाफ पूर्णतः नवीन मार्ग सत्याग्रह का ईज़ाद किया गया। इसका अर्थ है सत्य की शक्ति पर आग्रह। असमें अन्याय व उत्पीड़न के खिलाफ शारीरिक बल की जगह अहिंसा की शक्ति और उसके प्रयोग पर बल दिया गया है। यदि सभी लोग निर्भय होकर अहिंसात्मक प्रतिरोध करे तो मेरी नजर में यह कारगर तरीका है। भारत, दक्षिण अफ्रीका, अमेरिका का नागरिक अधिकार आन्दोलन इसका उदाहरण है। यदि इसमें असफता मिलती भी है तो यह रणनीति की कमी और इच्छा शक्ति के अभाव के कारण होता है।
  2. जलियावाला बाग हत्याकाण्ड ने ब्रिटिश शासन की नैतिकता को ध्वस्त कर दिया।’ स्पष्ट कीजिए।
    उत्तर- 13 अप्रैल 1919 को जलियावाला बाग में निहत्थे लोगों के नरसंहार की घटना ने ब्रिटिश शासन के नैतिक दावों को ध्वस्त कर दिया। जनरल डायर के हथियार बंद सैनिकों के कृत्य ने ब्रिटिश शासन के लोकतांत्रिक मुखौटे को उतार दिया जिसमें निहत्थे लोगों पर गोलीबारी की गई। सभ्यता लोकतंत्र और आधुनिकता के प्रसार का दावा करने वाली ब्रिटिश हुकूमत इस कार्य को लोगों की नज़र में वैध साबित नहीं कर पाई और आम लोगों को अपने खिलाफ कर लिया।
  3. खिलाफ़त आन्दोलन को समर्थन देकर गाँधी ने किस प्रकार की दूरदर्शिता का परिचय दिया।
    उत्तर-
    1. ब्रिटिश शासन के खिलाफ़ लागों के गुस्से को समझकर उसे दिशा देने का कार्य किया।
    2. दो बड़े समुदायों हिन्दू और मुस्लिमों के बीच एकता कायम करने के सूनहरे मौके के रूप में देखा।
    3. असहयोग आन्दोलन के रूप में एक बड़े आन्दोलन को जन्म दिया।
  4. सविनय अवज्ञा आन्दोलन की सीमाएँ वास्तव में राष्ट्रीय आन्दोलन की असफलता को प्रकट करती थी? समझाइए।
    उत्तर- सभी सामाजिक समूह गाँधी की स्वराज की अमूर्त धारणा से प्रभावित नहीं थे तथा उन्होंने सविनय अवज्ञा आन्दोलन में बढ़चढ़ कर हिस्सा नहीं लिया। जो निम्न थे-
    1. अछूत वर्ग के अनुसार कांग्रेस रूढ़िवादी हिन्दुओं के दबाव में सामाजिक परिवर्तन के मुद्दे पर ज़्यादा सक्रिय नहीं थी। यद्यपि गाँधी द्वारा अछूतों को हरिजन नाम दिया गया। किन्तु दलित समुदाय अंबेडकर के नेतृत्व में अलग राजनीतिक हल तलाशने में लगा था उसने गाँधी के आन्दोलन को संशय की दृष्टि से देखा और आन्दोलन में कम हिस्सा लिया।
    2. बहुत से मुस्लिम संगठनों ने भी आन्दोलनों में रूचि नहीं दिखाई। असहयोग खिलाफ़त आन्दोलन के शांत पड़ जाने से बहुत से मुस्लिम कांग्रेस से कटा हुआ महसूस करने लगे। हिन्दू मुस्लिम संबंधों में गिरावट आने लगी। प्रथक प्रतिनिधित्व की बात उठाई गई। भावी राष्ट्र में हिन्दू बहुसंख्या के वर्चस्व का भय कांग्रेस मुस्लिमों के मन से दूर नहीं कर पाई। तथा मुस्लिम आन्दोलन से बड़ी संख्या में दूर रहे। यह न केवल आन्दोलनों की विफलता थी अपितु राष्ट्रीय आन्दोलन की बड़ी सीमा थी।
  5. जनता द्वारा किया गया असहयोग किस प्रकार साम्राज्यवादी शक्तियों की परेशानी का कारण बन जाती है। गाँधी जी द्वारा चलाए गए असहयोग आन्दोलन के संदर्भ में अपने विचार प्रकट कीजिए।
    उत्तर- गाँधी जी का मानना था कि भारत में ब्रिटिश शासन भारतीयों के सहयोग से ही स्थापित हुआ था और यह इसी सहयोग के कारण ही चल पा रहा है। अगर भारत के लोग अपना सहयोग वापस ले लें तो सालभर में ब्रिटिश शासन ढह जाएगा।
    1920 में गाँधी जी द्वारा शुरू किया गया असहयोग आन्दोलन इसे व्यक्त करता था। शहरों में पिकेटिंग, बहिष्कार, धरने , विदेशी कपड़ों की होली जलाई गई। 1921 से 1922 के बीच कपड़ों के आयात में आधी कमी आ गई। ग्रामीण इलाकों में लगान बंदी और किसान संघर्ष शुरू हुए। इन सबसे ब्रिटिश शासन को भारी नुकसान हुआ और वह दमन पर उतारू हो गई।
  6. आज के समय में गाँधी जी की विचारधारा का मूल्यांकन कीजिए।
    उत्तर-
    1. आज के लोकतांत्रिक युग में हिंसात्मक तरीकों को ठीक नहीं माना जाता। गाँधी जी अहिंसात्मक तरीकों के समर्थक थे।
    2. गाँधी जी की विचारधारा शारीरिक हिंसा की अपेक्षा नैतिक बल पर जोर देती है जो कमज़ोर तबकों, दलितों, महिलाओं के अनुकूल है।
    3. गाँधीवादी विचारधारा शोषण के विरूद्ध समानता बंधुत्व, प्रेम पर आधारित है जिसकी आज के समय में ज़रूरत है।
    4. गाँधीवादी तरीकों की सफलता पूरी दुनिया में देखी जा सकती है। जैसे - दक्षिण अफ्रीका की आज़ादी।
  7. सामूहिक अपनेपन की भावना को पैदा करने के लिए जिन प्रतिकों, छवियों का सहारा लिया गया उनकी क्या सीमाएं थी?
    उत्तर- बहुत सी सांस्कृतिक प्रक्रियाओं के जरिए लोगों में राष्ट्रवाद से जोड़ने के लिए विभिन्न देशों की तरह भारत में भी राष्ट्र की कई छवियों प्रतिकों को गढ़़ा गया। बंकिमचन्द्र द्वारा मातृभूमि की वन्दना में लिखा गया वन्देमातरम्, रविन्द्र नाथ द्वारा भारत माता की छवि का चित्रण, राष्ट्रीय ध्वज की रचना, इतिहास की पुनर्व्याख्या आदि इसे प्रकट करती है।
    लेकिन इन सब कोशिशों की अपनी सीमाएं थी। जिस अतीत का गौरवगान किया जा रहा था वह हिन्दुओं का अतीत था जिन छवियों का सहारा लिया जा रहा था वे हिन्दू प्रतीक थे इसीलिए अन्य समुदायों के लोग अलग-थलग महसूस करने लगे थे।