सांख्यिकी का परिचय - प्रश्नोत्तर 2

CBSE कक्षा 11 अर्थशास्त्र
पाठ - 1 परिचय
महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

बार बार दोहराये जाने वाले प्रश्न (5 अंक वाले प्रश्न)
  1. अर्थशास्त्र में सांख्यिकी का क्या महत्त्व है?
    उत्तर- अनेक आर्थिक समस्याओं को सांख्यिकी की सहायता से समझा जा सकता है। यह आर्थिक नीतियों के निर्माण में सहायक है उदाहरण के लिए उत्पादन एवं उपभोग आदि आर्थिक क्रियाओं में सांख्यिकी का प्रयोग किया जाता है। अर्थशास्त्र के विभिन्न क्षेत्रों में सांख्यिकी का महत्त्व इस प्रकार है।
    1. उपभोग को अन्तर्गत सांख्यिकी- भिन्न–भिन्न आय वाले व्यक्ति अपनी आय का प्रयोग किस प्रकार करते हैं, यह हम उपभोग सम्बन्धी आँकड़ों के द्वारा जान सकते हैं। उपभोग सम्बन्धी आँकड़े व्यक्तियों को अपना बजट बनाने एवं जीवन स्तर को सुधारने में उपयोगी एवं सहायक सिद्ध होते हैं।
    2. उत्पादन क अन्तर्गत सांख्यिकी- सांख्यिकी की सहायता से उत्पादन प्रक्रियाओं का तुलनात्मक अध्ययन किया जाता है। उत्पादन सम्बन्धी आँकड़े माँग तथा पूर्ति में सामंजस्य स्थापित करने में उपयोगी एवं सहायक हैं क्योंकि इनके आधार पर वस्तु के उत्पादन की मात्रा को निर्धारित किया जाता है।
    3. वितरण के अन्तर्गत सांख्यिकी- उत्पादन के विभिन्न कारकों (भूमि, श्रम, पूँजी और उद्यम) के मध्य राष्ट्रीय आय के वितरण की समस्या का समाधान करने से सांख्यिकी विधियों का प्रयोग किया जाता है।
       
  2. सांख्यिकी के महत्त्वपूर्ण कार्यों का वर्णन कीजिये?
    उत्तर- सांख्यिकी महत्त्वपूर्ण कार्य करती है जो कि इस प्रकार है-
    1. आर्थिक समस्या को समझने में सहायक:- किसी अर्थशास्त्री के लिये सांख्यिकी एक ऐसा अपरिहार्य साधन है जो किसी आर्थिक समस्या को समझने में उसकी सहायता करता है। इसकी विभिन्न आर्थिक विधियों का प्रयोग करते हुये किसी आर्थिक समस्या के कारणों को मात्रात्मक तथ्यों की सहायता से खोजने का प्रयास किया जाता है।
    2. तथ्यों को यथा तथा निश्चित रुप में प्रस्तुत करने योग्य बनाता है:- जो दिये गये कथनों को सही ढंग से समझने में सहायता करता है। जब आर्थिक तथ्यों को सांख्यिकीय रुप में व्यक्त किया जाता है तब वे यथार्थ तथ्य बन जाते हैं। यथार्थ तथ्य अस्पष्ट कथनों की अपेक्षा अधिक विश्वसनीय होते हैं।
    3. सांख्यिकी आँकड़ों को संक्षिप्त रुप में प्रस्तुत करती है:- सांख्यिकी आँकड़ों के समूह को कुछ संख्यात्मक मापों (जैसे माध्य, प्रसरण आदि) के रुप में संक्षिप्त करने में सहायता करती है। ये संख्यात्मक माप आँकड़ों के संक्षिप्तीकरण में सहायता करते हैं। उदाहरण के लिए यदि किसी आँकड़ों में लोगों की संख्या बहुत अधिक है, तो उन सबकी आय को याद रख पाना असंभव है। फिर सांख्यिकीय रुप से प्राप्त संक्षिप्त अंकों जैसे औसत आय को याद रखना आसान है। इस प्रकार सांख्यिकी के द्वारा आँकड़ों के समूह के विषय में सार्थक एवं समग्र सूचनाएं प्रस्तुत की जाती है।
    4. सांख्यिकी आर्थिक कारकों के मध्य संबंधी की स्थापना करती है:- सांख्यिकी का प्रयोग विभिन्न आर्थिक कारकों के बीच संबंधों को ज्ञान करने के लिए किया जाता है। किसी अर्थशास्त्री की रुचि यह जानने में हो सकती है कि जब किसी वस्तु की कीमत में कमी अथवा वृद्धि होती है तो उसकी माँग पर क्या प्रभाव पड़ता है। ऐसे प्रश्नों का उत्तर भी दिया जा सकता है जब विभिन्न आर्थिक घटकों के बीच किसी प्रकार का परस्पर संबंध विद्यमान हो। इस प्रकार का कोई परस्पर संबंध विद्यमान है या नहीं, इसे उन आँकड़ों में सांख्यिकीय विधियों का प्रयोग करके सरलता से सत्यापित किया जा सकता है।
    5. सांख्यिकी आर्थिक योजनाओं एवं नीतियों के निर्माण में सहायता करती है - सांख्यिकी विधियां ऐसी उपयुक्त आर्थिक नीतियों के गठन में सहायता देती है जिनमें आर्थिक समस्याओं का समाधान हो सकता है।
       
  3. सांख्यिकी विषय की सीमाओं का उल्लेख कीजिये?
    उत्तर- सांख्यिकी विषय की कुछ सीमायें जो कि इस प्रकार से है-
    1. सांख्यिकी व्यक्तिगत इकाईयों का अध्ययन नहीं करती:- एक व्यक्तिगत इकाई का अध्ययन सांख्यिकी केवल तथ्यो का सामूहिक रुप से अध्ययन करती है।
    2. सांख्यिकी कवल संख्यात्मक तथ्यों का अध्ययन करती है:- सांख्यिकी संख्या में अभिव्यक्ति की जाती है। सांख्यिकी गुणात्मक तथ्यों का अध्ययन नहीं करती। यह केवल संख्यात्मक तथ्यों का अध्ययन करती है।
    3. सांख्यिकी नियम केवल औसत पर ही सत्य उतरते हैं:- जिस प्रकार भौतिक विज्ञान एवं रसायन विज्ञान के नियम हमेशा सत्य होते हैं, किन्तु सांख्यिकी के नियम पूर्ण रुप से शुद्ध एवं विश्वसनीय नहीं होते हैं।
    4. सांख्यिकी का प्रयोग केवल विशेषज्ञों द्वारा ही सम्भव है:- सांख्यिकी का प्रयोग केवल विशेषज्ञों द्वारा ही किया जा सकता है। क्योंकि सांख्यिकी विधि के प्रयोग के लिए सांख्यिकी ज्ञान की आवश्यकता होती है अन्यथा निष्कर्ष अशुद्ध हो सकते हैं।
    5. आँकड़ों की एकरुपता एवं सजातीयता:- जिन आँकड़ों की तुलना करनी हो, उनके लिये यह अति आवश्यक है कि उनमें एकरुपता एवं सजातीयता के गुण हो। विजातीयता होने पर आँकड़ों की तुलना नहीं की जा सकती है।