आँकड़ों का संग्रह - प्रश्नोत्तर 2

CBSE कक्षा 11 अर्थशास्त्र
पाठ - 2 आँकड़ों का संकलन
महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

बार-बार दोहराये जाने वाले प्रश्न(5 अंक वाले प्रश्न)
  1. प्राथमिक और द्वितीयक आँकड़ों में अन्तर स्पष्ट कीजिये?
    उत्तर- प्राथमिक और द्वितीयक आँकड़ों में अन्तर निम्नलिखित है-
  • प्राथमिक आँकड़े
    1. प्राथमिक आँकड़े वे होते हैं जो अनुसंधानकर्त्ता द्वारा अपने उद्देश्य के लियें सर्वप्रथम स्वयं एकत्रित किये जाते हैं।
    2. प्राथमिक आँकड़ें मौलिक होते हैं क्योंकि अनुसंधानकर्त्ता स्वयं उनके मौलिक स्रोत से एकत्रित करता है।
    3. प्राथमिक आँकड़ों को एकत्रित करने में अधिक धन समय और परिश्रम की आवश्यकता होती है।
    4. यदि अनुसंधानकर्त्ता ग्यारहवी कक्षा के विद्यार्थियों से पूछकर अर्थशास्त्र विषय की अंक सूची बनाता है तो इस तरह से प्राप्त आँकड़े प्राथमिक आँकड़े माने जायेंगे।
  • द्वितीयक आँकड़े
    1. द्वितीयक आँकड़े वे होते हैं जो पहले एकत्रित किये जा चुके होते हैं। ये किसी दूसरे उद्देश्य के लिए किसी अन्य संस्था द्वारा संग्रहित किये हुये होते हैं।
    2. द्वितीयक आँकड़े मौलिक नहीं होते क्योंकि अनुसंधानकर्त्ता उन्हें अन्य व्यक्तियों अथवा संस्थाओं के अभिलेखों से प्राप्त करता है।
    3. द्वितीयक आँकड़ों को एकत्रित करने में अधिक धन, समय और परिश्रम की आवश्यकता नहीं होती है।
    4. यदि अनुसंधानकर्त्ता कक्षा अध्यापक के माध्यम से स्कूल रिकार्ड जैसे अंक सूची या रिजल्ट रजिस्टर से जानकारी प्राप्त करके ग्यारहवीं कक्षा की अर्थशास्त्र की अंक सूची बनाता है तो यह द्वितीयक आँकड़े माने जायेंगे।
  1. प्राथमिक आँकड़े एकत्र करने की वैयक्तिक साक्षात्कार विधि क्या है? इसके गुण-दोषों का वर्णन कीजियें?
    उत्तर- वैयक्तिक साक्षात्कार विधि:- यह विधि तभी उपभोग में लाई जाती है जब शोधकर्त्ता सभी सदस्यों के पास जा सकता हो। इसमें शोधकर्त्ता आमने सामने होकर उत्तरदाता से साक्षात्कार करता है। शोधकर्त्ता को यह अवसर मिलता है कि वह उत्तरदाता को अध्ययन के उद्देश्य के बारे में बता सके तथा उत्तरदाता की किसी भी पूछताछ का जवाब दे सके।
  • गुण-
    1. इस विधि से उच्चतम उत्तर दर प्राप्त होती है।
    2. इससे गलत व्याख्या तथा गलतफहमी से बचा जा सकता है।
    3. उत्तरदाता की प्रतिक्रियाओं को देखकर कुछ संपूरक सूचनाये भी प्राप्त हो सकती है।
    4. अस्पष्ट प्रश्नों के लिये स्पष्टीकरण का अवसर मिलता है।
  • दोष-
    1. यह काफी खर्चीली होती है।
    2. इसमें प्रशिक्षित साक्षात्कार कर्त्ताओं की जरुरत होती है।
    3. इसमें सर्वेक्षण पूरा करने में काफी समय लगता है।
    4. कभी-कभी शोधकर्ता की उपस्थिति के कारण उत्तरदाता सही बात नहीं भी बताते।
  1. जनगणना (संगणना) एवं प्रतिदर्श (निदर्शन) विधि में अन्तर कीजियें?
    उत्तर- जनगणना एवं प्रतिदर्श विधि में अन्तर:-
  • जनगणना
    1. जनगणना विधि के अंतर्गत सभी इकाईयों / व्यष्टियों को सम्मिलित किया जाता है।
    2. चूंकि जनगणना विधि के अन्तर्गत सभी इकाईयों का अध्ययन किया जाता है इसीलिये उच्च स्तर की परिशुद्धता पायी जाती है।
    3. इस विधि में सभी इकाईयों का अध्ययन किया जाता है इसीलिये यह बहुत ही खर्चीली है। इसमें समय और श्रम भी अधिक लगता है।
    4. कुछ परिस्थितियों में संगणना विधि का प्रयोग कठिन होता है या प्रयोग किया ही नहीं जा सकता है। जैसे डॉक्टर द्वारा रोगी के खून की जांच।
    5. जहाँ समग्र की इकाईयाँ विजातीय होती है वहाँ जनगणना विधि ही उपयुक्त होती है।
    6. जहाँ अनुसंधान का क्षेत्र तुलनात्मक रुप से छोटा हो वहाँ जनगणना विधि उपुयक्त होती है।
  • प्रतिदर्श विधि
    1. प्रतिदर्श, समष्टि से चयनित किया गया एक छोटा समूह होता है जिसके द्वारा संबंधित सूचनाएँ प्राप्त की जा सकती है।
    2. चूंकि प्रतिदर्श विधि के अन्तर्गत केवल प्रतिनिधित्व इकाईयों का ही अध्ययन किया जाता है इसीलिए कम परिशुद्धता होती है। यद्यपि त्रुटियों की पहचान आसानी से करने के पश्चात उन्हें दूर किया जा सकता है।
    3. इस विधि में केवल प्रतिनिधित्व इकाइयों का ही अध्ययन किया जाता है इसीलिये यह विधि कम खर्चीली है। इसमें समय और श्रम भी कम लगता है।
    4. अतः जिन परिस्थितियों में संगणना विधि का प्रयोग नहीं किया जा सकता वहाँ निर्देशन विधि की सहायता से ही सूचनायें प्राप्त की जाती है।
    5. जहाँ समग्र की इकाइयां सजातीय होती हैं वहाँ प्रतिदर्श विधि ही उपायुक्त होती है।
    6. जहाँ अनुसंधान का क्षेत्र बड़ा हो प्रतिदर्श विधि उपयुक्त होती है।