पर्यावरण और धारणीय विकास (2019-20 के लिए) - नोट्स
CBSE कक्षा 11 अर्थशास्त्र
पाठ - 10 पोषणीय आर्थिक विकास
पुनरावृत्ति नोट्स
पाठ - 10 पोषणीय आर्थिक विकास
पुनरावृत्ति नोट्स
स्मरणीय बिन्दु-
- भविष्य की पीढ़ी की आवश्यकताओं से समझौता किए बिना वर्तमान पीढ़ी की आवश्यकता की पूर्ति धारणीय विकास कहलाती है। इस प्रकार उसका मुख्य सिद्धान्त है कि निश्चित संसाधनों का इस प्रकार उपयोग करना चाहिए जिससे पृथ्वी पर भावी पीढ़ी की आवश्यकता में सभी संसाधन उपलब्ध रहें।
- अर्थ
धारणीय विकास की अवधारणा मुख्यतः तीन आधारों पर निर्भर करती है जो कि आर्थिक पर्यावरणीय तथा सामाजिक या पारिस्थितिकी, अर्थव्यवस्था और समानता है। कुछ लेखकों ने चौथे आधार के रूप में संस्कृति को भी स्वीकार किया है। - संसाधनों पर आर्थिक विकास का प्रभाव
- आर्थिक विकास प्राकृतिक संसाधनों के निस्तर पतन का कारण है।
- प्राकृतिक संसाधनों का अतिशय दोहन।
- निस्तर तीव्र आर्थिक विकास संसाधनों की कमी उत्पन्न कर रहा है तथा उनकी गैर धारणीय बना रहा है।
- उन्नत तकनीक द्वारा संसाधनों की उपलब्धता में वृद्धि।
- संसाधनों का प्रतिस्थापन उत्पन्न करते हैं।
- पर्यावरण का आर्थिक विकास प्रभाव
- आर्थिक विकास और तीव्र वृद्धि ध्वनि प्रदूषण तथा वायु की गुणवत्ता में कमी आती है।
- यह पर्यावरण संकट उत्पन्न कर सकती है तथा धारणीय विकास में कमी आयेगी।
- वनों का निम्नीकरण के वर्षा में कमी।
- मत्यस्य संसाधनों का अधिक दोहन।
- सभी सड़कें, होटल, माल इत्यादि निर्माण से जैव विविधता की हानि।
- वैश्विक उष्णता
- ग्रीन हाउस गैस, जानवरों के अपशिष्ट से निकलने वाली गैस, वनों का विनाश कारण पृथ्वी के औसत तापमान में हाने वाली वृद्धि ही वैश्विक उष्णता है।
- वैश्विक उष्णता के प्राथमिक स्रोत कार्बनडाइ ऑक्साइड जैसी ग्रीन हाउस गैसें, तीव्र उत्सर्जन, जीवाश्म ईंधन का उपयोग और मीथेन का उत्पादन, कृषि तथा अन्य मानवीय गतिविधियाँ हैं।
- वैश्विक तापमान में वृद्धि के परिणाम स्वरूप पृथ्वी के ध्रुवों पर बर्फ पिघल रही है। समुद्रस्तर में वृद्धि के कारण तटीय क्षेत्रों में बाढ़ का प्रभाव, भीषण आंधी और कटिबन्धीय तूफान के प्रभाव में वृद्धि के साथ अन्य मौसमी घटनाएं बढ़ीं है।