भारत में मानव पूँजी का निर्माण - नोट्स
CBSE कक्षा 11 अर्थशास्त्र
पाठ - 5 भारत में मानव पूँजी निर्माण
पुनरावृत्ति नोट्स
पाठ - 5 भारत में मानव पूँजी निर्माण
पुनरावृत्ति नोट्स
स्मरणीय बिन्दु-
- मानव पूँजी से अभिप्राय किसी देश में किसी समय विशेष पर पाए जाने वाले, ज्ञान,कौशल, योग्यता, शिक्षा, प्रेरणा तथा स्वास्थ्य के भण्डार से है।
- मानव पूँजी निर्माण- वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा दीर्घकाल में एक देश के लोगों की योग्यता, कौशल, शिक्षा तथा अनुभव में वृद्धि की जाती है।
- मानव पूँजी निर्माण के स्रोत
- शिक्षा पर व्यय।
- कौशल विकास पर व्यय।
- नौकरी करे साथ प्रशिक्षण।
- लोगों के स्थानांतरण पर व्यय।
- सूचना पर व्यय।
- स्वास्थ्य पर व्यय।
- भारत में मानव पूँजी निर्माण को समस्याएँ
- भारी व तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या का दबाव।
- अपर्याप्त संसाधन।
- प्रतिभा - पलायन की समस्या।
- मानव संसाधन के उचित प्रबन्धन का अभाव।
- स्तरीय तकनीकी व प्रबन्धन शिक्षा का अभाव।
- स्वास्थ्य सेवाओं का अपर्याप्त विकास।
- देश की आर्थिक संवृद्धि में मानव पूँजी की भूमिका
- कुशलता तथा उत्पादकता के स्तर को बढ़ाता है।
- दृष्टिकोण तथा व्यवहार में सकारात्मक परिवर्तन लाता है।
- अनुसंधान और तकनीकी सुधारों को बढ़ाता है।
- जीवन प्रत्याशा को बढ़ाता है।
- जीवन-स्तर को ऊँचा उठाता है।
- मानव विकास में शिक्षा की भूमिका
- शिक्षा लोगों की उत्पादकता व सृजनात्मकता को बढ़ाती है।
- शिक्षा से अच्छे नागरिकों का निर्माण होता है।
- शिक्षा देश के संसाधनों के उचित प्रयोग में सहायक होती है।
- विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के विकास में सहायक।
- लोगों के व्यक्तित्व के विकास में सहायक।
- कौशल के विकास मे सहायक।
- भारत में मानव पूँजी निर्माण
- मानव पूँजी निर्माण आर्थिक विकास का लक्ष्य और साधन दोनों है। भारत में मानव संसाधन विकास संविधान के नीति-निर्देशक तत्वों में शामिल किया गया है।
- भारत के केन्द्र एवं राज्य स्तरों पर शिक्षा मन्त्रालय, NCERT (राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद), UGC (विश्व विद्यालय अनुदान आयोग), AICTE (अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद)।
- भारत में केन्द्रीय एवं राज्य स्तरों पर स्वास्थ्य मंत्रालय तथा ICMR (भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद) स्वास्थ्य क्षेत्र का नियमन करते हैं।
- पेयजल की उपलब्धता एवं सफाई सुविधाओं का प्रावधान स्वस्थ जीवन की बुनियादी आवश्यकता है। राज्य सरकारें और शहरी स्थानीय निकाय शहरी आबादी को ऐसी सुविधाएँ प्रदान करने के लिए उत्तरदायी है। ग्रामीण क्षेत्रों में शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी ग्रामीण विकास मंत्रालय के अधीन पेय जलापूर्ति विभाग को सौंपी गई है।
- भारत में शिक्षा क्षेत्र का विकास
शिक्षा देश के सामाजिक व आर्थिक विकास का एक प्रमुख कारक है। एक अच्छी शिक्षा प्रणाली न केवल कुशल व प्रशिक्षित व्यक्तियों का निर्माण करती है, बल्कि वह विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी को भी बढ़ावा देती है। भारत में शिक्षा क्षेत्र के विकास की निम्न प्रकार दर्शाया जा सकता है-- प्रारम्भिक शिक्षा
- प्राथमिक और मध्य स्कूल शिक्षा को मिलाकर प्रारम्भिक शिक्षा कहते हैं।
- वर्ष 1950-51 में प्राथमिक एवं मध्य स्कूलों की संख्या 2.23 लाख थी, जो 2010-11 में बढ़कर 12.96 लाख हो गई।
- अब प्रारम्भिक शिक्षा (कक्षा 1 से 8 तक) 6-14 वर्ष के बच्चों के लिए निःशुल्क व अनिवार्य कर दी गई है।
- प्रारम्भिक शिक्षा से सम्बन्धित विभिन्न इस प्रकार है-
- मिड डे मील्स योजना (1995),
- जिला प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम (1991),
- सर्व शिक्षा अभियान (2000),
- मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार (2009) आदि।
- माध्यमिक शिक्षा
- वर्ष 1950-51 में देश में 7400 माध्यमिक स्कूल थे जिनमें विद्यार्थियों की संख्या 14.8 लाख थी। वर्ष 2009-10 में माध्यमिक स्कूलों की संख्या बढ़कर 1.90 लाख हो गई तथा विद्यार्थियों की संख्या 441 लाख पहुँच गई।
- माध्यमिक शिक्षा क्षेत्र के विस्तार के लिए निम्नलिखित संस्थाएँ कार्यरत है-
- नवोदय तथा केन्द्रीय विद्यालय
- राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और परिषद
- माध्यमिक शिक्षा का व्यवसायीकरण
- तकनीकी, मेडिकल तथा कृषि शिक्षा
- उच्च शिक्षा
- उच्च शिक्षा में विश्वविद्यालय, कॉलेज, व्यावसायिक तथा तकनीकी शिक्षण संस्थानों को शामिल किया जाता है।
- स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भी काफी सुधार हुआ है। लगभग 749 (31 मार्च, 2016 तक) विश्वविद्यालय देश में उच्च शिक्षा प्रदान कर रहे हैं। इनमें 46 केन्द्रीय विश्वविद्यालय है, 345 राज्य विश्वविद्यालय, 123 मानित विश्वविद्यालय तथा 235 निजी विश्वविद्यालय है। देश में कॉलेजों की संख्या लगभग 37704 (2012-13) है।
- उच्च शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाली मुख्य संरचनाएँ इस प्रकार है-
- विश्व विद्यालय अनुदान आयोग (UGC)
- इन्दिरा गांधी मुक्त विश्वविद्यालय (IGNOU)
- अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (AICTE)
- भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR)
- प्रारम्भिक शिक्षा
- भारत में शिक्षा के विकास से सम्बन्धित समस्याएँ
- अनपढ़ व्यक्तियों की बड़ी संख्या।
- अप्रर्याप्त व्यावसायिक एवं तकनीकी शिक्षा।
- लिंग-भेद का प्रभाव।
- ग्रामीण क्षेत्रों में पहुँच का निम्न स्तर।
- शिक्षा के विकास पर सरकार द्वारा कम व्यय।