रोजगार-संवृद्धि अनौपचारीकरण एवं अन्य मुद्दे (2019-20 के लिए) - नोट्स 2

CBSE कक्षा 11 अर्थशास्त्र
पाठ - 7 रोजगार-संवृद्धि
, अनौपचारिकरण एवं अन्य मुद्दे
पुनरावृत्ति नोट्स

स्मरणीय बिन्दु-
  • कार्य- हमारे व्यक्तिगत तथा सामाजिक जीवन में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • श्रमिक- वह व्यक्ति जो अपनी आजीविका अर्जित करने के लिये किसी उत्पादक क्रियाओं में लगा है।
  • उत्पादक क्रियाएँ- वे क्रियाएँ हैं जिन्हें वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन के लिए किया जाता है और जिससे आय का सृजन होता है।
  • श्रम बल- श्रम बल से अभिप्राय श्रमिकों की उस संख्या से है। जो वास्तव में कार्य कर रहे हैं और कार्य करने के इच्छुक हैं।
  • कार्यबल- कार्यबल से अभिप्राय वास्तव में कार्य करने वाले व्यक्तियों की संख्या से है। इसमें इन व्यक्तियों को शामिल नही किया जाता जो कार्य करने के इच्छुक तो हैं परन्तु बेरोजगार हैं।
  • सहभागिता की दर- इसका अर्थ है उत्पादन क्रिया में वास्तव में भाग लेने वाली जनसंख्या का प्रतिशत।
  • श्रमिको के प्रकार
    • स्वनियोजित
    • भाड़े के मजदूर
      1. अनियमित मजदूरी
      2. नियमित मजदूरी
  • श्रम आपूर्ति- इससे अभिप्राय विभिन्न मजदूरी दरों के अनुरूप श्रम की आपूर्ति से है। इसे मनुष्य दिनों के रूप में मापा जाता है। एक मनुष्य दिन से अभिप्राय 8 घंटे का काम है।
  • देश की जनसंख्या के पाँच में से दो व्यक्ति विभिन्न आर्थिक क्रियाओं में लगे हैं। मुख्यतः ग्रामीण पुरूष देश के श्रमबल का सबसे बड़ा वर्ग है।
  • भारत में अधिकांश श्रमिक स्वनियोजक हैं। अनियमित दिहाड़ी मजदूर तथा नियमित वेतनभोगी कर्मचारी मिलकर भी भारत की समस्त श्रमशक्ति के अनुपात के आधे से भी कम रह जाते हैं।
  • भारत में कुल श्रम बल का लगभग पाँच में से तीन श्रमिक कृषि और संबंद्ध कायों से ही अपनी आजीविका का प्राप्त करता है।
  • नौकरी रहित संवृद्धि- इससे अभिप्राय उस स्थिति से है जिसमें सकल घरेलू उत्पाद की संवृद्धि दर में तो वृद्धि होती है परन्तु रोजगार में उसी अनुपात में वृद्धि नही होती।
  • श्रम बल का अनियमतीकरण- इससे अभिप्राय उस स्थिति से है जिसमें समय के साथ कुल श्रमबल में भाड़े पर लिए गए आकस्मिक श्रमिकों के प्रतिशत में बढ़ने की प्रवृत्ति पाई जाती है।
  • श्रमबल का अनौपचारिकरण- इसका अभिप्राय उस स्थिति से है जब लोगों में अर्थव्यवस्था के औपचारिक क्षेत्र के स्थान पर अनौपचारिक क्षेत्र में रोजगार के अवसर अधिक पाने की प्रवृति पाई जाती है।
  • बेरोजगारी- बेरोजगारी से अभिप्राय उस स्थिति से है जिसमें योग्य एंव इच्छित व्यक्ति को प्रचलित मजदूरी पर कार्य नहीं मिलता है।
  • बेरोजगारी के प्रकार
    1. ग्रामीण बेरोजगारी
      1. मौसमी बरोजगारी
      2. प्रदत्त बेरोजगारी
    2. शहरी बेरोजगारी
      1. औद्योगिक बेरोजगारी
      2. शैक्षिक बेरोजगारी
    3. अन्य प्रकार की बरोजगारी
      1. संघर्षात्मक बेरोजगारी
      2. चक्रीय बेरोजगारी
      3. संरचनात्मक बेरोजगारी
      4. खुली बेरोजगारी
  • बेरोजगारी के कारण
    1. धीमी आर्थिक विकास
    2. जनसंख्या में तीव्र वृद्धि
    3. दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली
    4. अल्प विकसित कषि क्षेत्र
    5. धीमा औद्योगिक क्षेत्र
    6. लघु एंव कुटीर उद्योगों का अभाव
    7. दोषपूर्ण रोजगार नियोजन
    8. धीमी पूंजी निर्माण दर
  • बेरोजगारी की समस्या को हल करने के उपाय
    1. सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि
    2. जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण
    3. कृषि क्षेत्र का विकास
    4. लघु व कुटीर उद्योगों का विकास
    5. आधारिक संरचना में सुधार
    6. विशेष रोजगार कार्यक्रम
    7. तीव्र औद्योगीकरण
  • गरीबी व बेरोजगारी उन्मूलन विशेष कार्यक्रम
    1. महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा)।
    2. स्वर्ण जयंती शहरी रोजगार योजना।
    3. प्रधानमंत्री रोजगार योजना
    4. स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना।