बाज़ार के रूप तथा कीमत निर्धारण - नोट्स 2

CBSE कक्षा 12 अर्थशास्त्र
पाठ - 5 बाज़ार संतुलन

पुनरावृत्ति नोट्स

स्मरणीय बिन्दु-
  • बाजार से अभिप्राय एक ऐसी व्यवस्था से है जिसमें एक वस्तु के क्रेता व विक्रेता के क्रय-विक्रय हेतु एक-दूसरे के सम्पर्क में रहते हैं।
  • उपभोक्ता के व्यवहार के अनुसार एक वस्तु का माँग वक्र निर्धारित होता है।
  • उत्पादक के व्यवहार के अनुसार एक वस्तु का पूर्ति वक्र निर्धारित होता है।
  • बाज़ार संतुलन का निर्धारण माँग तथा पूर्ति वक्रों द्वारा होता है।
  • माँग-पूर्ति विश्लेषण अर्थव्यवस्था के मुख्यतः सभी समस्याओं की व्याख्या भी करता है तथा उन समस्याओं का समाधान भी करता है।
बाज़ार के प्रमुख रूप:
  1. पूर्ण प्रतियोगिता
  2. एकाधिकार
  3. एकाधिकारी प्रतियोगिता
  4. अल्पाधिकार पूर्ण प्रतियोगिता
बाज़ार संतुलन की अवधारणा
  • बाज़ार संतुलन को एक ऐसी स्थिति के रूप में परिभाषित किया जाता है, जहाँ बाज़ार में सभी उपभोक्ताओं तथा फर्मों की योजनाएँ समेलित हो जाती हैं और बाज़ार रिक्त हो जाता है।
  • अन्य शब्दों में संतुलन की स्थिति ऐसी स्थिति है जिसमें जिस कुल मात्रा का विक्रय करने की सभी फर्में इच्छुक हैं वह उस मात्रा के बराबर होती है जिसे बाज़ार में सभी उपभोक्ता खरीदने के इच्छुक हैं।
  • इस स्थिति में बाज़ार माँग और बाज़ार पूर्ति एक दूसरे के बराबर होते हैं।
  • जिस कीमत पर संतुलन स्थापित होता है उसे संतुलन कीमत कहते हैं।
  • इस कीमत पर जितनी मात्रा खरीदी और बेची जाती है उसे संतुलन मात्रा कहते हैं।
अधिमाँग तथा अधिपूर्ति
  • जिस स्थिति में बाज़ार माँग बाज़ार पूर्ति से अधिक है, उसे अधिमाँग कहा जाता है। यह संतुलन कीमत से कम कीमत पर होता है।
  • जिस स्थिति में बाज़ार पूर्ति बाज़ार माँग से अधिक है, उसे अधिपूर्ति कहा जाता है। यह संतुलन कीमत से अधिक पर होता है।
  • बाज़ार संतुलन की स्थिति में अधिमाँग या अधिपूर्ति नहीं होती।
पूर्ण प्रतियोगिता में बाज़ार संतुलन का निर्धारण
  • पूर्ण प्रतियोगिता में बाज़ार संतुलन में होता है जब बाज़ार माँग और बाज़ार पूर्ति बराबर होते हैं।
    वस्तु X की कीमतवस्तु X की पूर्ति की गईवस्तु X की माँगी गई मात्रा
    1
    2
    2
    4
    10
    8
    अधिमाँग
    366बाज़ार संतुलन
    4
    5
    8
    10
    4
    10
    अधिपूर्ति
  • इस तालिका में बाज़ार कीमत 1 तथा 2 पर बाज़ार माँग बाज़ार पूर्ति से अधिक है, अतः यह अधिमाँग की स्थिति है। तथा बाज़ार कीमत 4 तथा 5 पर बाज़ार पूर्ति बाज़ार माँग से अधिक है, अतः यह अधिपूर्ति की स्थिति है। बाज़ार कीमत 3 पर बाज़ार माँग = बाज़ार पूर्ति = 6 इकाई है।
    अतः यह संतुलन स्तर है।
  • इस चित्र में माँग के नियम के अनुसार माँग वक्र बाईं से दाईं ओर नीचे गिरता हुआ वक्र है, क्योंकि माँगी गई मात्रा तथा वस्तु की कीमत में ऋणात्मक संबंध है। पूर्ति के नियम के अनुसार पूर्ति वक्र दाईं से बाईं ओर ऊपर उठता हुआ वक्र है, क्योंकि पूर्ति की गई मात्रा तथा वस्तु की कीमत में धनात्मक संबंध है।
  • माँग वक्र और पूर्ति वक्र एक दूसरे को बिन्दु E पर काटते हैं। इस बिन्दु पर बाज़ार माँग = बाज़ार पूर्ति है।
  • इस कीमत से कम कीमत पर माँग > पूर्ति है, अतः अधिमाँग है (OQ1 > OQ0)
  • इस कीमत से अधिक कीमत पर पूर्ति > माँग है, अतः अधिपूर्ति है।
  • पूर्ण प्रतियोगिता में प्रति इकाई कीमत स्थिर रहने के कारण औसत व सीमांत संप्राप्ति समान रहते हैं। अतः इनके वक्र Ox-अक्ष के समांतर होते हैं।

  • पूर्ण प्रतियोगिता में कीमत निर्धारण उद्योग द्वारा किया जाता है जो कि माँग एवं पूर्ति की शक्तियों से प्रभावित होता है। समरूप वस्तु होने के कारण कोई भी व्यक्तिगत फर्म या उपभोक्ता किसी वस्तु की कीमत को प्रभावित नहीं कर पाता। अतः उद्योग कीमत निर्धारक तथा फर्म कीमत स्वीकार्क होती है।
पूर्ण प्रतियोगिता की विशेषताएँ
  1. क्रेताओं एवं विक्रेताओं की अत्यधिक संख्या
  2. फर्मों के बाज़ार में स्वतंत्र प्रवेश एवं बहिर्गमन
  3. समरूप उत्पाद
  4. बाज़ार का पूर्ण ज्ञान।
माँग में परिवर्तन का संतुलन कीमत तथा संतुलन मात्रा पर प्रभाव
  • माँग में वृद्धि होने से (पूर्ति समान रहते हुए) संतुलन कीमत तथा संतुलन मात्रा दोनों कम हो जाते हैं।
  • जबकि माँग में कमी होने से संतुलन कीमत तथा संतुलन मात्रा दोनों कम हो जाते हैं।
पूर्ति में परिवर्तन का संतुलन कीमत तथा संतुलन मात्रा
  • पूर्ति में वृद्धि होने से संतुलन कीमत कम हो जाती है तथा संतुलन मात्रा बढ़ जाती है।
  • पूर्ति में कमी होने से संतुलन कीमत बढ़ जाती है तथा संतुलन मात्रा कम हो जाती है।
माँग और पूर्ति दोनों में एक साथ वृद्धि
माँग और पूर्ति में जब एक साथ वृद्धि होती है तो तीन स्थितियाँ संभव हैं-
  • जब माँग में वृद्धि पूर्ति में वृद्धि के बराबर हो-इस स्थिति में संतुलन मात्रा में वृद्धि होती है, परन्तु संतुलन कीमत समान रहती है।
  • जब माँग में वृद्धि पूर्ति में वृद्धि से कम हो-इस स्थिति में संतुलन मात्रा में वृद्धि होती है, परन्तु संतुलन कीमत कम हो जाती है।
  • जब माँग में वृद्धि पूर्ति में वृद्धि से अधिक हो-इस स्थिति में संतुलन मात्रा में वृद्धि होती है और संतुलन कीमत भी बढ़ जाती है।
माँग और पूर्ति दोनों में एक साथ कमी
माँग और पूर्ति में जब एक साथ कमी होती है तो तीन स्थितियाँ संभव हैं-
  • जब माँग में कमी पूर्ति में कमी के बराबर हो-इस स्थिति में संतुलन मात्रा में कमी होती है, परन्तु संतुलन कीमत समान रहती है।
  • जब माँग में वृद्धि पूर्ति में कमी से कम हो-इस स्थिति में संतुलन मात्रा में कमी होती है, परन्तु संतुलन कीमत बढ़ जाती है।
  • जब माँग में कमी पूर्ति में कमी से अधिक हो-इस स्थिति में संतुलन मात्रा में कमी होती है।
माँग और पूर्ति में विपरीत दिशा में परिवर्तन
  • जब माँग में वृद्धि तथा पूर्ति में कमी हो तो संतुलन कीमत में बहुत ज्यादा वृद्धि होगी, जबकि संतुलन मात्रा बढ़ भी सकती है (जब माँग में वृद्धि > पूर्ति में कमी) कम भी हो सकती है (जब माँग में वृद्धि < पूर्ति में कमी) तथा समान भी रह सकती है। जब माँग में वृद्धि = पूर्ति में कमी हो।
  • जब माँग में कमी तथा पूर्ति में वृद्धि हो तो संतुलन कीमत में बहुत ज्यादा कमी होगी, जबकि संतुलन मात्रा बढ़ भी सकती है (जब पूर्ति में वृद्धि > माँग में कमी हो) कम भी हो सकती है (जब पूर्ति में वृद्धि < माँग में कमी हो) और समान भी रह सकती है। (जब पूर्ति में वृद्धि = माँग में कमी हो।)
    माँग में परिवर्तनपूर्ति में परिवर्तनसंतुलन मात्रासंतुलन कीमत
    1. माँग में वृद्धिपूर्ति समानवृद्धिवृद्धि
    2. माँग में कमीपूर्ति समानकमीकमी
    3. माँग समानपूर्ति में वृद्धिकमीवृद्धि
    4. माँग समानपूर्ति में कमीवृद्धिकमी
    5. माँग में वृद्धिपूर्ति में वृद्धि--
    5.1. माँग में वृद्धि= पूर्ति में वृद्धिवृद्धिसमान
    5.2. माँग में वृद्धि> पूर्ति में वृद्धिवृद्धिवृद्धि
    5.3. माँग में वृद्धि< पूर्ति में वृद्धिवृद्धिकमी
    6. माँग में कमीपूर्ति में कमी--
    6.1. माँग में कमी= पूर्ति में कमीकमीसमान
    6.2. माँग में कमी> पूर्ति में कमीकमीकमी
    6.3. माँग में कमी< पूर्ति में कमीकमीवृद्धि
    7. माँग में कमीपूर्ति में वृद्धि--
    7.1 माँग में कमी= पूर्ति में वृद्धिसमानकमी
    7.2. माँग में कमी> पूर्ति में वृद्धिकमीकमी
    7.3. माँग में कमी< पूर्ति में वृद्धिवृद्धिकमी
    8. माँग में वृद्धिपूर्ति में कमी--
    8.1. माँग में वृद्धि= पूर्ति में कमीसमानवृद्धि
    8.2. माँग में वृद्धि> पूर्ति में कमीवृद्धिवृद्धि
    8.3. माँग में वृद्धि< पूर्ति में कमीकमीवृद्धि
    9. माँग पूर्णतया बेलोचदारपूर्ति में कमीसमानवृद्धि
    10. मॉँग पूर्णतया बेलोचदारपूर्ति में वृद्धिसमानकमी
    11. माँग पूर्णतया बेलोचदारपूर्ति में कमीकमीसमान
    12. मॉँग पूर्णतया बेलोचदारपूर्ति में वृद्धिवृद्धिसमान
    13. माँग में कमीपूर्ति पूर्णतया बेलोचदारसमानकमी
    14. माँग में वृद्धिपूर्ति पूर्णतया बेलोचदारसमानवृद्धि
    15. माँग में कमीपूर्ति पूर्णतया बेलोचदारकमीसमान
    16. माँग में वृद्धिपूर्ति पूर्णतया बेलोचदारवृद्धिसमान
बाजार के विभिन्न रूपों में मांग वक्र
  • संतुलन कीमत: वह कीमत है जिस पर बाजार मांग तथा बाजार पूर्ति बराबर होती हैं।
  • बाजार संतुलन: वह अवस्था है जिसमें बाजार मांग तथा बाजार पूर्ति बराबर होते हैं। बाजार में अतिरिक्त मांग या अतिरिक्त पूर्ति की स्थिति का अभाव होता है।
बाज़ार संतुलन-निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन
  • निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन से अभिप्राय है कि उत्पादन में बने सभी उत्पादकों की संतुलन कीमत फर्मों की न्यूनतम औसत लागत के बराबर होगी।
  • यदि प्रचलित बाज़ार कीमत पर प्रत्येक फर्म अधिसामान्य लाभ अर्जित कर रही है। अधिसामान्य लाभ अर्जित करने की संभावना नई फर्मों को आकर्षित करेगी, जिससे अधिसामान्य लाभ में कमी होगी। जब फर्मों की पर्याप्त संख्या होगी तो अधिसामान्य लाभ विलुप्त हो जायेगा।
  • यदि प्रचलित कीमत पर फर्में सामान्य से कम लाभ अर्जित कर रही हैं, तो कुछ फर्में बहिर्गमन में आ जायेंगी। इससे लाभ में वृद्धि होगी और प्रत्येक फर्म के लाभ बढ़कर सामान्य लाभ के स्तर पर आ जायेंगे।
माँग-पूर्ति का अनुप्रयोग
  • पूर्ति-माँग विश्लेषण का अनुप्रयोग किया जा सकता है और जो सरकार द्वारा किया जाता है।
  • जब कुछ वस्तुओं तथा सेवाओं की कीमतें वांछित स्तर से या तो अत्यधिक ऊँची अथवा अत्यधिक कम हो जाएं, तो प्रायः सरकार द्वारा उनका नियमन आवश्यक हो जाता है।
  • यह नियमन प्रायः दो रूप लेता है
     उच्चतम कीमत निधारिण
     न्यूनतम कीमत निर्धारण
उच्चतम कीमत निर्धारण
  • बहुत बार सरकार कुछ वस्तुओं की अधिकतम स्वीकार्य कीमत निर्धारित करती है।
  • किसी वस्तु अथवा सेवा की सरकार द्वारा निर्धारित कीमत की ऊपरी सीमा को उच्चतम निर्धारित सीमा कहते हैं।
  • इस स्थिति में सरकार द्वारा निर्धारित कीमत संतुलन कीमत से कम होती है। इस कीमत पर बाज़ार माँग बाज़ार पूर्ति से अधिक होती है अतः अधिमाँग होती है।
  • इस अधिमाँग को सरकार को अपने स्टॉक से पूरा करना चाहिए अन्यथा यह कालाबाज़ारी को जन्म देगा।
निम्नतम कीमत निर्धारण
  • कुछ वस्तुओं तथा सेवाओं की कीमतों में एक स्तर विशेष से नीचे गिरावट वांछनीय नहीं होती ऐसी स्थिति में सरकार वस्तुओं की निचली सीमा निर्धारित करती है।
  • किसी वस्तु तथा सेवा की निर्धारित न्यूनतम सीमा को निम्नतम निर्धारित सीमा कहते हैं।
  • इस स्थिति में सरकार द्वारा निर्धारित कीमत संतुलन कीमत से अधिक होती है। इस कीमत पर बाज़ार पूर्ति बाज़ार माँग से अधिक होती है। अतः इस पर अधिपूर्ति होती है।