अर्थशास्त्र परिचय - नोट्स 1

CBSE कक्षा 12 अर्थशास्त्र
पाठ - 1 परिचय

पुनरावृत्ति नोट्स

स्मरणीय बिन्दु-
  • अर्थशास्त्रियों ने आर्थिक सिद्धांत को मोटे रूप में दो शाखाओं में बाँटा है-व्यष्टिगत-अर्थशास्त्र और समष्टिगत-अर्थशास्त्र।
  • यदि हम किसी देश की अर्थव्यवस्था को संपूर्ण रूप से देखें तो हम पाएँगे कि अर्थव्यवस्था में सभी वस्तुओं और सेवाओं के निर्गत के स्तरों में एक साथ संचलन की प्रवृत्ति होती है।
  • यदि किसी अर्थव्यवस्था के विभिन्न उत्पादन इकाइयों से समस्त निर्गत का स्तर, कीमत स्तर या रोजगार का स्तर एक-दूसरे से निकट संबंधित हो, तो संपूर्ण अर्थव्यवस्था का विश्लेषण कार्य अपेक्षाकृत आसान हो जाता है।
समष्टि अर्थशास्त्र का उद्भव
  • विश्व में 1930 से पहले परंपरावादी अर्थशास्त्रियों की विचारधारा प्रचलित व मान्य थी कि 'अर्थव्यवस्था में सदा पूर्ण रोजगार की स्थिति पाई जाती है।' परंतु 1929-33 की विश्वव्यापी महामंदी की घटना ने परंपरावादी मान्यता को चूर-चूर कर दिया।
  • मंदी के कारण अमेरिका व अन्य विकसित देशों के उत्पादन आय व रोजगार में आई भारी गिरावट का परंपरावादी जवाब नहीं दे सके। मंदी की ऐसी गंभीर स्थिति ने अर्थशास्त्रियों को व्यष्टि की बजाय समष्टि स्तर पर सोचने को मजबूर कर दिया।
  • तभी 1936 में इंग्लैंड के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री जे. एम. केन्स ने अपनी पुस्तक 'रोजगार ब्याज और मुद्रा का सामान्य सिद्धांत' प्रकाशित की जिसमें उन्होंने परंपरावादी सिद्धांत की आलोचना करते हुए एक नया वैकल्पिक सिद्धांत प्रतिपादित किया। जिसे केन्स का सिद्धांत या (समष्टि सिद्धांत) कहते हैं। अतः जे. एम. केन्स को समष्टि अर्थशास्त्र का पिता कहा जाता है।
समष्टि अर्थशास्त्र की वर्तमान पुस्तक का संदर्भ


  • इस पुस्तक में हम प्रायः पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की कार्यप्रणाली का ही अध्ययन करेंगे। अतः इससे विकासशील देशों की कार्यप्रणाली को पूर्ण रूप से शामिल करना संभव नहीं होगा।
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  • समष्टि अर्थशास्त्र में अर्थव्यवस्था को परिवार, फर्म, सरकार और बाह्य क्षेत्रक इन चार क्षेत्रकों के संयोग के रूप में देखा जाता है।