बाज़ार के रूप तथा कीमत निर्धारण - प्रश्न-उत्तर 1
CBSE Class 12 व्यष्टि अर्थशास्त्र
NCERT Solutions
पाठ - 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार
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पाठ - 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार
- माँग वक्र का आकार क्या होगा ताकि कुल संप्राप्ति वक्र
- मूल बिन्दु से होकर गुजरती हुई धनात्मक प्रवणता वाली सरल रेखा हो।
- समस्तरीय रेखा हो।
उत्तर-- जब TR वक्र से गुजरती हुई एक धनात्मक प्रवणता वाली सरल रेखा हो, तो माँग वक्र अर्थात् AR वक्र एक क्षेतिज रेखा होगा।
- यह संभव नहीं है जब तक AR = 0 न हों और AR = कीमत = शून्य नहीं हो सकती।
- नीचे दी गई सारणी से कुल संप्राप्ति माँग वक्र और माँग की कीमत लोच की गणना कीजिए।
मात्रा सीमान्त संप्राप्ति 1 10 2 6 3 2 4 2 5 2 6 0 7 0 8 0 9 -5 उत्तर-मात्रा सीमान्त संप्राप्ति कुल संप्राप्ति औसत संप्राप्ति 1 10 10 10 2 6 16 8 3 2 18 6 4 2 20 5 5 2 22 4.4 6 0 22 3.66 7 0 22 3.14 8 0 22 2.75 9 -5 17 1.88 प्रतिशत विधि से
कीमत 10 पर ,
कीमत 8 पर
कीमत 6 पर ,
कीमत 5 पर
कीमत 4.4 पर ,
कीमत 3.66 पर
कीमत 3.14 पर ,
कीमत 2.75 पर ,
कुल व्यय विधि द्वारा कुल संप्राप्ति = कुल व्यय
अतः इकाई 1 से 5 तक कीमत कम होने पर कुल व्यय बढ़ रहा है।
अतः 6 - 0 तक
कीमत कम होने पर कुल व्यय समान है
अतः EDP = 1
इकाई a पर कीमत घटने से कुल व्यय घट रहा है, अतः EDP < 1
- जब माँग वक्र लोचदार हो तो सीमान्त संप्राप्ति का मूल्य क्या होगा?
उत्तर- यदि माँग वक्र लोचदार हो तो सीमान्त संप्राप्ति धनात्मक होगी।
जब तक EDP > 1 तो सीमान्त संप्राप्ति धनात्मक होती है।
जब EDP = 0 तो सीमान्त संप्राप्ति शून्य होती है।
जब EDP < 1 तो सीमान्त संप्राप्ति ऋणात्मक होती है।
- एक एकाधिकारी फर्म की कुल स्थिर लागत 100 ₹ और निम्नलिखित माँग सारणी है-
मात्रा 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 कीमत 100 90 80 70 60 50 40 30 20 10 अल्पकाल में संतुलन मात्रा, कीमत और कुल लाभ प्राप्त कीजिए। दीर्घकाल में संतुलन क्या होगा? जब कुल लागत 1000 ₹ हो तो अल्पकाल और दीर्घकाल में संतुलन का वर्णन करो।उत्तर- (a)मात्रा कीमत TR MR MC TC TR - TC = लाभ 1 100 100 100 0 100 0 2 90 180 80 0 100 80 3 80 240 60 0 100 140 4 70 250 40 0 100 10 5 60 300 20 0 100 200 6 50 300 0 0 100 200 7 40 280 -20 0 100 180 8 30 240 -40 0 100 140 9 20 180 -60 0 100 80 10 10 100 -80 0 100 0 अतः उत्पादक संतुलन में है जब MR = MC
6 इकाई पर। इस इकाई पर संतुलन मात्रा = 6 इकाई
संतुलन कौमत = ₹ 50 तथा कुल लाभ
= कुल संप्राप्ति = कुल लागत है
= 300 - 100 = ₹ 200 हैं।
(b) दीर्घकाल में भी संतुलन यही होगा, क्योंकि एकाधिकारी बाज़ार में नई फर्मों के प्रवेश पर प्रतिबंध होता है।
(c) यदि कुल लागत 1000 हो तो प्रत्येक स्तर पर लाभ इस प्रकार होगामात्रा 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 TR 100 180 240 280 300 300 280 240 180 100 TC 1000 1000 1000 1000 1000 1000 1000 1000 1000 1000 लाभ -900 -820 -760 -720 -700 -700 -720 -760 -820 -900 अतः अल्पकाल में यह 6 इकाई पर संतुलन में होगा, जहाँ MR = MC हैं और TR - TC अधिकतम है (जहाँ लाभ अधिकतम नहीं हो सकता तो कम से कम हानि का न्यूनीकरण किया जाना चाहिए।) दीर्घकाल में फर्म उत्पादन बद कर देगी, क्योंकि इससे हानि हो रही हैं।
- यदि अभ्यास 3 का एकाधिकारी फर्म सार्वजनिक क्षेत्र का फर्म हो, तो सरकार इसके प्रबंधक के लिए दी हुई सरकारी स्थिर कीमत (अर्थात् वह कीमत स्वीकारकर्ता है और इसीलिए पूर्ण प्रतिस्पर्धात्मक बाज़ार के फर्म जैसा व्यवहार करता है) स्वीकार करने के लिए नियम बनाएगी और सरकार यह निर्धारित करेगी कि ऐसी कीमत निर्धारित हो, जिससे बाज़ार में माँग और पूर्ति समान हो। उस स्थिति में संतुलन कीमत, मात्रा और लाभ क्या होंगे?
उत्तर- यदि सरकार सरकारी स्थिर कीमत स्वीकार करने के नियम बनाती है और ऐसी कीमत बनाती है, जिससे बाज़ार माँग और बाज़ार पूर्ति बराबर हो तो संतुलन कीमत = ₹ 10
संतुलन मात्रा = 10 इकाई, लाभ = शून्य क्योंकि 10 इकाई पर लाभ = शून्य हैं।
- उस स्थिति में सीमान्त संप्राप्ति वक्र के आकार पर टिप्पणी कीजिए, जिसमें कुल संप्राप्ति वक्र
- धनात्मक प्रवणता वाली सरल रेखा हों
- समस्तरीय सरल रेखा हों।
उत्तर-- जब कुल संप्राप्ति वक्र अक्ष केंद्र से गुजरती हुई एक धनात्मक ढलान वाली सरल रेखा हैं, तो सीमान्त संप्राप्ति वक्र X-अक्ष के समान्तर क्षेतिज सरल रेखा होगा।
- जब कुल संप्राप्ति वक्र एक समस्तरीय सरल रेखा हो, तो सीमान्त संप्राप्ति वक्र X-अक्ष को स्पर्श करेगा अर्थात् MR = 0 होगा। क्योकि
TR = MR, TR = 0
MR = 0
- नीचे सारणी में वस्तु की बाज़ार माँग वक्र और वस्तु उत्पादक एकाधिकारी फर्म के लिए कुल लागत दी हुई है। इनका उपयोग करके निम्नलिखित की गणना करें-
मात्रा 0 1 2 3 4 5 6 7 8 कीमत 52 44 37 31 26 22 19 16 13 मात्रा 0 1 2 3 4 5 6 7 8 कुल लागत 10 60 90 100 102 105 109 115 125 - सीमान्त संप्राप्ति और सीमांत लागत सारणी
- वह मात्रा जिस पर सीमांत संप्राप्ति और सीमांत लागत बराबर है।
- निर्गत की संतुलन मात्रा और वस्तु की संतुलन कीमत
- संतुलन में कुल संप्राप्ति, कुल लागत और कुल लाभ
उत्तर- (a)मात्रा कीमत कुल लागत कुल संप्राप्ति सीमान्त लागत सीमांत संप्राप्ति 0 52 10 0 - - 1 44 60 44 50 44 2 37 90 74 30 30 3 31 100 93 10 19 4 26 102 104 2 11 5 12 105 110 3 6 6 19 109 114 4 4 7 16 115 112 6 -2 8 13 125 104 10 -8 (b) MR = MC (दूसरी इकाई पर) = 30
MR = MC (छठी इकाई पर) = 4
(c) उत्पादक संतुलन में हैं जहाँ MR = MC अगली इकाई पर MC बढ़ रहा हो, अतः उत्पादक छठी इकाई पर संतुलन में हैं जहाँ MR = MC = 4
संतुलन मात्रा = 6 इकाई
(d) संतुलन में कुल संप्राप्ति = 114, कुल लागत 109 लाभ = 114 - 109 = ₹ 5
- निर्गत के उत्तम अल्पकाल में यदि घाटा हो, तो क्या अल्पकाल में एकाधिकारी फर्म उत्पादन को जारी रखेंगी?
उत्तर- जब तक कुल हानि/घाटा कुल स्थिर लागत से कम हैं फर्म उत्पादन जारी रखेगी, परन्तु यदि कुल स्थिर लागत से अधिक हैं तो वह उत्पादन बंद कर देगी।
- एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में किसी फर्म की माँग वक्र की प्रवणता ऋणात्मक क्यों होती है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर- एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में किसी फर्म की माँग वक्र की प्रवणता ऋणात्मक होती हैं क्योंकि-- माँग के नियम के अनुसार उत्पादक अपने उत्पाद की कीमत कम करके ही उसकी अधिक मात्रा बेच सकता है।
- बाज़ार में वस्तु के निकट प्रतिस्थापन वस्तुएँ उपलब्ध होती हैं।
- एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में दीर्घकाल के लिए किसी फर्म का संतुलन शून्य लाभ पर होने का क्या कारण है?
उत्तर- एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा बाज़ार में नये फर्मों का निर्बाध रूप से प्रवेश होता हैं। यदि उद्योग में फर्म अल्पकाल में धनात्मक लाभ प्राप्त कर रहा हो तो इससे नई फर्में उद्योग में प्रवेश के लिए आकर्षित होंगी और यह तब तक होगा जब तक लाभ शून्य न हो जायें। इसके विपरीत, यदि अल्पकाल में फर्मों को घाटा हो रहा हो, तो कुछ फर्में उत्पादन कर देंगी और फर्मों का बाज़ार से बहिर्गमन होगा। पूर्ति में कमी के कारण संतुलन कीमत बढ़ेंगी और यह तब तक होगा जब तक लाभ शून्य न हो जाये।
- तीन विभिन्न विधियों की सूची बनाइए, जिसमें अल्पाधिकारी फर्म व्यवहार कर सकता है।
उत्तर- एक अल्पाधिकारी फर्म तीन विधियों से व्यवहार कर सकती हैं-- अल्पाधिकारी फर्में आपस में साँठ-गाँठ करके यह निर्णय ले सकती हैं कि वे एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा नहीं करेंगी। इस प्रकार वे फर्में बाज़ार का उचित बँटवारा कर लेंगी और प्रत्येक फर्म अपने-अपने बाज़ार में एकाधिकारी फर्म की तरह व्यवहार करेगी।
- अल्पाधिकारी फर्में यह निर्णय ले सकती हैं कि लाभ को अधिक करने के लिए वे उस वस्तु की कितनी मात्रा का उत्पादन करें। इससे उनकी वस्तु की मात्रा की पूर्ति अन्य फर्मों को प्रभावित नहीं करेंगी।
- अल्पाधिकारी फर्में वस्तु अनम्य कीमत (Price rigidity) की नीति भी अपना सकती हैं। इसके अन्तर्गत माँग में परिवर्तन के फलस्वरूप कीमत में परिवर्तन नहीं होगा।
- यदि द्वि-अधिकारी का व्यवहार कुर्नोट के द्वारा वर्णित व्यवहार जैसा हो, तो बाज़ार माँग वक्र को समीकरण q=200 - 4 p द्वारा दर्शाया जाता है तथा दोनों फर्मों की लागत शून्य होती है। प्रत्येक फर्म के द्वारा संतुलन और संतुलन बाज़ार कीमत में उत्पादन की मात्रा ज्ञात कीजिए।
उत्तर- शून्य कीमत पर उपभोक्ता की माँग की अधिकतम मात्रा 200 है {(200 - 410) - 200 - 0 = 200} कल्पना कीजिये कि फर्म B वस्तु की शून्य इकाई की पूर्ति करती है और फर्म A मानती है कि अधिकतम माँग = 200 इकाई है, तो वह इसकी आधी अर्थात् 100 इकाइयों की पूर्ति का निर्णय लेंगी। दिया हुआ है फर्म A 100 इकाइयों की पूर्ति कर रही है तो फर्म 8 के लिए 100 इकाई (200 - 100) की माँग अब भी विद्यमान हैं तो वह इसकी आधी 50 इकाई की पूर्ति करेगी। फर्म A के लिए अब 150(200 - 50) की माँग विद्यमान हैं वह इसकी आधी 75 इकाई की पूर्ति करेगी। इस तरह दोनों फर्मों में एक दूसरे के प्रति संचलन जारी रहेगी।
अतः दोनों फर्में अन्ततः निम्नलिखित के बराबर निर्गत की पूर्ति करेंगे,
बाज़ार में कुल पूर्ति
कीमत
400 = 600 - 120, 12 P = 200
अतः संतुलन मात्रा = इकाई प्रत्येक फर्म के लिए
फर्मों की संख्या = 2
संतुलन कीमत = ₹ 16.66
- आय अनम्य कीमत का क्या अभिप्राय है? अल्पाधिकार के व्यवहार से इस प्रकार का निष्कर्ष कैसे निकल सकता है?
उत्तर- अनम्य कीमत का अभिप्राय है कि अल्पाधिकार बाज़ार में फर्में वस्तु की कीमत में परिवर्तन नहीं करेंगी। अनम्य कीमत नीति के अन्तर्गत अल्पाधिकारी फर्मों का माँग में परिवर्तन के फलस्वरूप बाज़ार कीमत में निर्बाध संचालन नहीं होता। इसका कारण यह हैं कि किसी भी फर्म द्वारा प्रारंभ की गई कीमत में परिवर्तन के प्रति अल्पाधिकारी फर्म प्रतिक्रिया व्यक्त करती है। यदि यह क्रिया प्रारंभ हो गई तो इससे कीमत युद्ध प्रारंभ हो सकता हैं जिससे सभी को हानि होगी।