खेल चिकित्सा - महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर 1

CBSE Class -12 शारीरिक शिक्षा
पाठ - 9 खेल चिकित्सा
Important Questions

दीर्घ उत्तरात्मक प्रश्न ( 5 अंक)
प्रश्न-1. खेल चिकित्सा को उद्देश्य एवं लक्ष्य बताइए।
उत्तर- खेल चिकित्सा के मुख्य लक्ष्य इस प्रकार है।
  1. खेल चिकित्सा के प्रथम लक्ष्य के अनुसार-खेलों के दौरान खिलाड़ी को लगने वाली चोटों के बारे में पूर्ण रूप से ज्ञान नहीं होता है ओर सभी खेलों में चोट के लगने की प्रकृति एवं प्रकार में भिन्नता पाई जाती है। अतः खिलाड़ी जिस खेल में ट्रेनिंग ले रहा है या अभ्यास कर रहा है। उस खेल में लगने वाली संभावित चोटों के बारे में खिलाड़ी को पूर्व में खेल चिकित्सक और प्रशिक्षण द्वारा बता देना चाहिए जिससे खिलाड़ी अपने को खेल के दौरान चोट ग्रस्त होने से बचा सके। इसके लिए प्रशिक्षण को भी खिलाड़ी की योग्यताओं, क्षमताओं और मानसिक चिंतन एवं उपकरण की जाँच तथा अन्य मनोवैज्ञानिक कारको का परीक्षण पूर्व में ही कर लेना चाहिए तथा चिकित्सकीय जाँच आदि की सूचना खेल चिकित्सक के माध्यम से प्राप्त कर खिलाड़ी को देना चाहिए।
  2. खेल चिकित्सा को द्वितीय लक्ष्य को अनुसार- यह सर्वविदित है कि खिलाड़ी को शरीर, मनोवैज्ञानिक, चिकित्सीय कारक और अन्य विशेष कारकों को ध्यान में रखकर खिलाड़ी को लगने वाली चोटों से संभावित कारण से अवगत कराना उचित होता है जिससे कि वह खेल या प्रतियोगिता के दौरान अपने की चोटग्रस्त होने से बचा सके। खेलों में लगने वाली चोटों के कारण खिलाड़ी की खेल कौशल तकनीक में कमी, अपर्याप्त गरमाना अपर्याप्त शारीरिक दक्षता, वातावरणीय कारक और अन्य मनोवैज्ञानिक पहलू हो सकते है।
  3. खेल चिकित्सा की तृतीय लक्ष्य क अनुसार- जब खिलाड़ी खेल की दौरान या ट्रैकिग के दौरान या प्रतियोगिता के दौरान चोटग्रस्त हो जाता है, तो खिलाड़ी या प्रशिक्षक की चाहिए कि वे तुरंत प्राथमिक उपचार के पश्चात् संबंधित खेल वैज्ञानिक विशेषज को सूचित करें जिससे कि चोट के इलाज, पुनर्वास और क्षतिपूर्ति का शीघ्र उपाय किया जा सके। चोटों के क्षतिपूर्ति और पुनर्वास के लिए सामान्यतः विभिन्न चिकित्सकीय तरीकों में जैसे जल उपचार (Hydro therapy), किरणीय उपचार (Dia & Radiation therapy) और पराध्वनि तरंगों (Vibrating wave therapy) आदि को उपयोग में लाया जाता है।
  4. खेल चिकित्सा क चतुर्थ लक्ष्य क अनुसार- खिलाड़ी क खेल की दौरान लगने वाली चोटों के बचाव पक्ष से खिलाड़ी को पूर्व में ही अवगत करा देना चाहिए जिससे कि वह अभ्यास या प्रतियोगिता के दौरान चोटग्रस्त न हो सके। इसके लिए खिलाड़ी लगने वाली संभावित चोटों से अपना बचाव कर सके।
खेल चिकित्सा के उद्देश्य-
  1. खेल एवं क्रीडाओं की वैज्ञानिक उन्नति- खेल एवं क्रीड़ाओं की वैज्ञानिक उन्नति के लिए कुछ ऐसे पहलु है जिनका खिलाड़ी के प्रदर्शन पर विशिष्ट प्रभाव पड़ता है वास्तविक परिणामों में शिथिलता एवं कमी आती है। अतः इन सभी पहलुओं को ध्यान में रखना अति आवश्यक है जिनका वर्णन निम्नवत् है-
    1. कोंचिग के कार्यक्रमों की योजना तैयार करना
    2. कोंचिग का मूल्यांकन करना
    3. चयनित निर्णय लेना
    4. मनोवैज्ञानिक परामर्श
    5. चोटों की रोकथाम
  2. स्वास्थ्य रक्षा
  3. खेल चिकित्सा विस्तार सेवा
    अतः कहा जा सकता है कि खेल औषधि विज्ञान के माध्यम से खिलाड़ी की काफी समस्याओं का समाधाम आसानी से हो जाता है। इसके लिए प्रत्येक खेल संस्थान में खेल चिकित्सक, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र, चिकित्सालय आदि का होना आवश्यक है जिससे खिलाड़ी की समस्याओं, चोटो, रोगों आदि संबंधित कमियों को दूर किया जा सके।
प्रश्न-2. शारीरिक शिक्षा एवं खेल में खेल चिकित्सक की आवश्यकता एवं महत्त्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर- खेल औषधि विज्ञान के लक्ष्य एवं उद्देश्यों की पूर्ति के लिए खिलाड़ी, खेल प्रशिक्षक, ट्रेनर, एवं शारीरिक शिक्षक अदि का बहुत महत्त्वपूर्ण योगदान रहता है। खेलों के विभिन्न क्षेत्रों में खिलाड़ी की चयन प्रक्रिया, पोषण, ट्रेनिंग विधिया, शारीरिक दक्षता, चोटों से रक्षा, बचाव एवं इलाज, खिलाड़ी का दैनिक कार्यक्रम, नई तकनीकों का उपयोग, खिलाड़ी का पूर्ण परीक्षण खेल के दौरान खिलाड़ी की कार्यकीय एवं मनोवैज्ञानिक दश तथा खेलों एवं क्रीड़ाओं की वैज्ञानिक उन्नति आदि में इस औषधि विज्ञान की बहुत आवश्यकता पड़ती है। इन कारकों के कारण भविष्य में भी खिलाड़ी का खेल प्रदर्शन एवं राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर परिणाम प्रभावित होते है, खेल औषधि विज्ञान के उद्देश्यों की पूर्ति की आवश्यकताएं, खिलाड़ी के प्रदर्शन मे इन सभी उपरोक्त कारकों को सही एवं सफलतापूर्वक उपयोग में लाने के लिए खेलों से संबंधित सभी व्यक्तियों की आवश्यकता पड़ती है और इन सभी व्यक्तियों संयुक्त प्रभाव ही खिलाड़ी का प्रदर्शन होता है। खेल औषधि विज्ञान इस आधुनिक युग मे बहुत बृहद् स्तर पर अपने कार्य कर रही है जिसकी खेल एवं शारीरिक शिक्षा के क्षेत्र में निम्नलिखित आवश्यकता पड़ती है:
  1. प्रतिभावान खिलाड़ियों के पहचान एवं चयन (To Identification and Selection of talented sportsmen)
  2. ट्रेनिंग कार्यक्रम तैयार करना (To prepare of training schedule)
  3. खिलाड़ी का संतुलित आहार तैयार करना (To prepare balanced of diet of sportsmen)
  4. प्रशिक्षकों के लिए ट्रेनिंग विधियों को खोजने का साधन (Devices for coaches to identify training methods)
  5. पूर्ण दक्षता प्राप्त करना (To minimise of total fitness)
  6. खेल चोटों को कम करना (Minimising the sports injuries)
  7. खेल चोटों के इलाज एवं पुनर्वास (Treatment and rehabilitation of sports injuries)
  8. खिलाड़ी को प्रदर्शन स्तर को नियमित परीक्षण (Regular examination of performance level of sportsman)
  9. महिला खिलाड़ी की विशिष्ट चिकित्सकीय समस्याओं में सहायता प्रदान करना (to help the female athlete to specific medical problem)
  10. खिलाड़ी को मादक द्रव्य सेवन धूम्रपान अदि के कुप्रभाव से अवगत कराना (To provide Information to athlete about the side effect of doping and smoking)
  11. खेलों एवं क्रीड़ाओं की वैज्ञानिक उन्नति (In scientific promotion of sports and games)
  12. खेल चिकित्सा विस्तार सेवा (In sports medical extension service)
  13. प्राथमिक स्वास्थ्य रक्षा (In prophylactic health care)
  14. राष्ट्र की सेवा के लिए (In service for nation)
  15. शारीरिक शिक्षा कार्यक्रम और नये तथ्य खोजने में व्यवस्था करना (Management of physical education programme and discovery of new recent trends)
प्रश्न-3. खेलों में खेल चिकित्सक की क्या भूमिका होती है?
उत्तर- खेल चिकित्सक की चिकित्सक के रूप में निम्नलिखित ड्यूटी रहती है-
  1. खेलों में भाग लेने वाले विश्वविद्यालयीन जवान बच्चों और विकसित युवा, पुरूषों की नियमित चिकित्सकीय जाँच करना।
  2. सभी क्रियाओं के अभिलेखों को तैयार करना एवं रख-रखाव करना।
  3. चोटग्रस्त खिलाड़ियों की चोटों का इलाज एवं चोट पुनर्वास की प्रक्रिया को संपूर्ण करना।
  4. आधुनिक खेल चिकित्सक को खेल कार्य की, डोपिंग, पैथालॉजी, मनोविज्ञान, कार्डियोलॉजी, इन्डोक्रायनोलॉजी, ट्रायमेटोलॉजी आदि जैसे विषयों से संबंधित खिलाड़ी की समस्या का हल चिकित्सकीय जाँच के माध्यम से करता है।
  5. प्रशिक्षण के दौरान (During Training)
    1. उचित अनुकूलन व्यायाम
    2. स्वास्थ्य स्तर की जाँच
    3. क्रमबद्ध ट्रेनिंग की जाँच
  6. स्पर्धा के दौरान (During Competition)
    1. चोटों की उचित देखभाल करना।
    2. औषधि एवं दवाइयों के उचित सेवन पर ध्यान देना।
    3. उचित आराम व नींद पर ध्यान देना।
    4. खिलाड़ी के संतुलित आहार का परीक्षण करना।
  7. स्पर्धा के बाद (After Competition)
    1. खिलाड़ी की परफारमेंस को स्वीकार करना।
    2. निपुणता या अनुभवता को प्रोत्साहित करना।
    3. खिलाड़ी को उत्साहित करना।
    4. खिलाड़ी द्वारा किए गए प्रदर्शन को देखकर उसका उसी समय अंत करना।
    5. पूर्ण क्षतिपूर्ति के महत्त्व पर विश्वास करना।
    6. खिलाड़ी से लगातार प्रदर्शन बढ़ाने की सलाह देना।
    7. एक सलाहकार, पर्यवेक्षक ओर मेडिकल विशेषज्ञ के रूप में खिलाड़ी के साथ व्यवहार करना।
प्रश्न-4. खेल चोटों से किस प्रकार बचा जा सकता है?
उत्तर- खिलाड़ियों का जीवन बहुमूल्य होता है। खिलाड़ी को कई बार इस प्रकार की चोट लग जाती है कि वह दोबारा कभी नहीं खेल सकता। उसका खेल-जीवन समाप्त हो जाता है। हालांकि बहुत-सी खेल-चोटों का उपचार हो सकता है, लेकिन फिर भी यह एक कटु सत्य है कि “इलाज से परहेज बेहतर है” (Prevention is better then cure) इसीलिए एथलीट्स या खिलाड़ी, खेल-चोटों के खतरों को कम या समाप्त करना चाहते हैं, विशेषकर जब वे प्रशिक्षण या खेल प्रतियोगिता में भाग ले रहे हों। खेल चोटें एक खिलाड़ी के कारण जीवन भर खेल में भाग नहीं ले सकता।
बचाव के उपयुक्त बिन्दुओं पर ध्यान दें विशेष रूप से जिनका वर्णन नीचे दिया गया है-
  1. उचित वार्मिग (Proper Warming-up): किसी भी खेल प्रतियोगिता या खेल प्रशिक्षण आरंभ करने से पहले उचित ढंग से वार्मिग अप करना अत्यंत आवश्यक है। खेल-चोटों के खतरों को काफी सीमा तक कम किया जा सकता है, क्योंकि उचित वार्मिग अप करने के बाद हमारे शरीर की मांसपेशियां अर्धतनाव की स्थिति में आ जाती है। जो शरीर को शारीरिक क्रिया करने के लिए तैयार कर लेती है।
  2. उचित अनुकूलन (Proper condition): बहुत-सी चोटें शरीर की कमजोर मांसपेशियों के कारण लग जाती है, जो आपके खेल में माँग की पूर्ति के लिए तैयार नहीं होती, इसलिए उचित मांसपेशियाँ शक्ति के लिए शरीर का उचित अनुकूलन आवश्यक है। भार व परिधि प्रशिक्षण विधियां उचित अनुकूलन की महत्त्वपूर्ण विधियां है।
  3. संतुलित आहर (Balanced Diet): कमजोर अस्थियाँ खेल में चोटों का कारण बन जाती है। अतः संतुलित आहार कुछ सीमा तक खेल-चोटों से बचाव करने में सहायक होता है।
  4. खेल कौशल का उचित ज्ञान (knowledge of Sports skills): खेल चोटों से बचाव के लिए खेल कौशलों का उचित ज्ञान या जानकारी लाभदायक होती है। एक खिलाड़ी को सम्बंधित खेल कौशलों को करने में कुशल होना चाहिए। उदाहरण के लिए, ऊँची कूद लगाने वाले एथलीट को अवतरण को अवतरण के कौशल की पूरी जानकारी होनी चाहिए। यदि वह इस कौशल में प्रवीण या कुशल नहीं है तो अवतरण करते हुए उसे चोट लग सकती है, इसलिए यदि आपको खेल कौशल की गहरी जानकारी है उन कौशलों को करने के लिए पूर्ण रूप से कुशल हो तो कुछ सीमा तक आप चोटों से बचाव कर सकते हो।
  5. सुरक्षात्मक उपकरणों का प्रयोग (Use of Protective Equipment’s): खेल चोटों से बचाव करने का यह एक आसान तथा सबसे अच्छा तरीका है। केवल इसी कारण खेल-कूद के क्षेत्र में सुरक्षात्मक उपकरणों का प्रयोग आवश्यक है। ये सुरक्षात्मक उपकरण चोटों के लगने से खिलाड़ियों को सुरक्षा प्रदान करते है। इनकी भूमिका को और अच्छा बनाने हेतु सुरक्षात्मक उपकरणों की गुणवत्ता पर विशेष बल दिया जाना चाहिए।
  6. उचित खेल सुविधाएँ (Proper Sports Facilities): खेल सुविधाओं तथा खेल चोटों के मध्य एक प्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है। वास्तव में खेल चोटों से बचाव किया जा सकता है यदि अच्छी गुणवत्ता वाले खेल उपकरण हो तथा अभ्यास व प्रतियोगिता के लिए उचित खेल मैदान उपलब्ध हों। यदि खेल मैदान उचित ढंग से रखे जाएँ तो खेल मैदानों पर लगने वाली चोटों के खतरे को कम अवश्य किया जा सकता है।
  7. पक्षपात-रहित खेल संचालन (Unbiased officiation): यदि खेल संचालन विशेष रूप से टीम खेलों में पक्षपातरहित हो तो चोट लगने के खतरे बहुत विरल हो जाते है। यदि मैच के संचालन अधिकारी या रेफरी आदि पक्षपति करने वाले हों तो खिलाड़ियों में अनुशासन नहीं रहेगा, जिसके परिणाम स्वरूप चोट लगने के खतरे अधिक हो सकते है,
  8. अतिभार या अति-प्रशिक्षण न करना (No Over-Training): प्रशिक्षण में भार की मात्र खिलाड़ी की क्षमता तथा योग्यता के अनुसार होनी चाहिए भार की मात्रा धीरे-धीरे बढ़ानी चाहिए जिससे चोटों को खतरा कम होता है। प्रारंभ में ही अतिभार या अधिक प्रशिक्षण करने से खेल चोटों लग सकती है। यदि लम्बी अवधि तक आपने प्रशिक्षण न किया हुआ हो तो जटिल शारीरिक क्रियाएँ लाभ की अपेक्षा अधिक हानिकारक सिद्ध हो सकती है। इसलिए हमेशा प्रशिक्षण भार (Training Load) को बुद्धिमता पूर्वक धीरे-धीरे बढ़ाना चहिए।
  9. उचित तकनीक का प्रयोग (Use of Proper technique): अपने खेल की उचित तकनीक के प्रयोग करने से खेल चोटों जैसे टेंडनाइटिस (Tendonitis) व दबाव अस्थिभंग (Stress Fracture) आदि के खतरों को कम किया जा सकता है। उचित तकनीक से खिलाड़ियों में लगने वाली चोटों का अनुपात कम कर सकते है।
  10. खेल नियमों का पालन करना (Obeying the Sports Rules): खेल अभ्यास या प्रतियोगिता के दौरान यदि खिलाड़ी खेल के नियमों का उचित ढंग से पालन करता है तो कुछ हद तक खेल चोटों से बचाव किया जा सकता है। यदि वे खेल के नियमों का उचित ढंग से पालन नहीं करते है तो उन्हें खेलों में चोट लगने का खतरा अधिक होता है।
  11. उचित कृलिग डाउन (Proper cooling Down): नियमित खेल अभ्यास या प्रतियोगिता के बाद कूलिग डाउन भी उतनी ही जरूरी क्रिया है, जितनी कि प्रतियोगिता से पूर्व वार्मिग-अप करना। कूलिग डाउन भी उचित ढंग से करना चाहिए। उचित कूलिग डाउन शरीर मांसपेशियों में व्यर्थ के पदार्थों जैसे लैक्टिक एसिड, फॉस्फेट आदि के निष्कासन में सहायता करता है। जिससे मांसपेशियों का कड़ापन व दर्द भी कम हो जाता है।
  12. थकावट होने पर प्रशिक्षण से दूर रहना।
  13. भारी प्रशिक्षण के काल के दौरान कार्बोहाइड्रेट्स के उपयोग को बढ़ाना।
  14. प्रशिक्षण भार (load) को बढ़ाने से पूर्व शक्ति को बढ़ाना।
  15. हल्की चोटे का अनुभव होने प्रशिक्षण बन्द करना तथा चोटों का उपचार करना।
  16. प्रशिक्षण, प्रतियोगिता के लिए उपयुक्त जलवायु, सतह का प्रयोग करना।
  17. कठिन प्रशिक्षण या प्रतियोगिता के समय संक्रमित क्षेत्रों से दूर रहें।
  18. गर्म मौसम में स्वच्छता के बारे में अत्यक सतक रहना।
  19. भिन्न-भिन्न सतहों पर प्रशिक्षण करे तथा सतहों व जलवायु के अनुसार उचित कपडे, जूते, उपकरणों आदि का उपयोग करे।
प्रश्न-5. कोमल ऊतकों की चोटों का वर्गीकृत कीजिए? उनके कारणों तथा निवारको का वर्णन करों?
उत्तर- खेलों में कोमल उत्तक मांसपेशी तन्तु, त्वचा, रक्त वाहिनी आदि पर लगने वाली चोटों का कोमल ऊतक चोटे कहते है।
  1. रगड़ (Abrasion): ऐसी चोटें जब खेलते समय या शारीरिक क्रिया करते समय नंगी त्वचा किसी खुरदरी सतह के गतिज संपर्क में आती है। जिसके कारण त्वचा की ऊपरी सतह पर घर्षण हो जाता है।
  2. गुमचोट (contusion): खेलों में जब सीधे प्रहार पर कुछ वस्तु (Blunt object) से बार-बार शरीर के किसी भाग को आहत करते है। तो त्वचा की ऊपरी भाग पर नुकसान पहुँचाए बिना अंतर्निहित मांसपेशीय तन्तु और सयोजी ऊतक कुचल दिया जाता है। या किसी कठोर वस्तु व सतह से भी गुमचोट लग सकती है।
  3. विदारण (Laceration): त्वचा के ऊपर खुले घाव अथवा मांस के फट जाने या किसी कुछ वस्तु के टकराने या किसी सतह से टकराने के कारण होती है।
  4. चीरा (Incision): चीरे वाले घाव तीखे कटाव वाली चोटे होती है। जो चाकू या टूटे हुए शीशे आदि से लगते है। घाव के किनारे उस वस्तु की धार की प्रकृति के अनुसार अलग-अलग होते है। जिससे चोट लगी है।
  5. मोच (Sprain): अस्थि रज्जू (bone Cartilage) में खिंचाव व फट जाने के कारण मोच लग जाती है। अस्थि रज्जु वे उत्तक होते है जो हड्डियों को जोड़ों पर आपस में जोड़ों रखते है।
  6. खिचांव (Stress): मांसेपेशी व स्नायु के खिंच या फट जाने से है। स्नायु वह उत्तक होते है। जो हड्डियों को मांसपेशीयों से जोड़ते है। इन ऊतकों में घुमाव तथा इनके रिवंच जाने से इनमें तनाव पैदा हो जाता है।
कोमल ऊतको की चोटों के कारण:
  1. अतिप्रयोग (over-use)
  2. गिरना (Falls)
  3. ठहराव व मोड़ (Stops & twists)
  4. अनुचित उपकरण (Improper Equipment’s)
  5. नया या अपेक्षाकृत क्रियाकलाप (New or increased activities)
  6. थकान (Fatigue)
  7. अपर्याप्त वर्म-अप (Poor warm up)
  8. टकराव (Impact)
  9. एकपक्षीय गतियाँ (Unilateral movement)
  10. तकनीक व मुद्रा/आसान (Technique or posture)
कोमल ऊतकों की चोटों से बचाव:-
  1. समुचित वर्म-अप (Proper warm-up)
  2. समुचित अनुकूलन (Appropriate condition)
  3. समुचित तकनीकी जानकारी (Sound Technical knowledge)
  4. स्वास्थ्यप्रद आहार (Healthy diet)
  5. तकनीकों का दक्षतापूर्वक प्रयोग (Efficient use of techniques)
  6. सुरक्षा उपकरणों का प्रयोग (Use of Protective gears)
  7. अति प्रशिक्षण तथा अति प्रयोग (No over training or over use)
  8. सुरक्षा नियमों का पालन करें (obey safety rules)
  9. निष्पक्ष अधिकारी गण (fair officiating)
  10. समुचित कुलिंग डाउन (Proffer cooling down)