अक्षम व्यक्तियों के लिए शारीरिक शिक्षा एवं खेल - महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर 1

 CBSE कक्षा 11 शारीरिक शिक्षा

पाठ - 4 अक्षम व्यक्तियों के लिए शारीरिक शिक्षा एवं खेल
महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर


दीर्घ उत्तरात्मक प्रश्न (5 अंक, 150 शब्द)

प्रश्न 1. रूपान्तरित शारीरिक शिक्षा के प्रभावी बनाने के लिए किन सिद्धान्तों नियमों का पालन करना आवश्यक है। विवरण कीजिए।

उत्तर- रूपान्तरित शारीरिक शिक्षा को प्रभावी बनाने के लिए निम्नलिखित सिद्धान्तों नियमों का पालन करना आवश्यक है-

  1. चिकित्सा परीक्षण- रूपान्तरित शारीरिक शिक्षा के कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए चिकित्सा परीक्षण अत्यंत आवश्यक हैं इसके बिना यह नहीं पता चलेगा कि विद्यार्थी किस प्रकार की असमर्थता का सामना कर रहा है। अतः विद्यार्थियों का पूर्ण चिकित्सा प्रशिक्षण किया जाना चाहिए।
  2. कार्यक्रम विद्यार्थियों की रूचि के अनुसार हो- कार्यक्रम विद्यार्थियों की रूचियों, योग्यताओं व पूर्ण अनुभवों पर आधारित होने चाहिए। अध्यापिको को भी इनकी जानकारी होनी चाहिए। तभी वह एक सफल कार्यक्रम बना सकते है।
  3. उपकरण आवश्यकतानुसार होने चाहिए- विद्यार्थियों की उनकी असमर्थता के अनुसार ही विभिन्न प्रकार के उपकरण प्रदान करने चाहिए। जैसे-दृष्टि संबन्धी क्षतियों वाले विद्यार्थियों को ऐसी गेदें दे जिनमें घंटियाँ बंधी हों ताकि जब बॉल फर्श पर लुढ़के तो आवाज उत्पन्न करे और विद्यार्थी आवाज को सुनकर बॉल की दिशा व दूरी समझ सके।
  4. विशेष पर्यावरण प्रदान करना चाहिए- बच्चों की गति क्षमताएँ सीमित होने पर खेल क्षेत्र के बीच भी सीमित करना चाहिए। भाषा-असक्षम बच्चों को खेल के बीच में आराम भी देना चाहिए क्योंकि वे उच्चारण में अधिक समय लेते हैं। उनका क्षेत्र भी सीमित होना चाहिए।
  5. विद्यार्थियों की आवश्यकतानुसार नियमों का संशोधन किया जाना चाहिए- विद्यार्थियों की आवश्यतानुसार नियमों में बदलाव कर लेना चाहिए किसी कौशल को सीखने के लिए अतिरिक्त समय, प्रयास, अतिरिक्त मैदान तथा एक अंक के स्थान पर दो अंक दिया जा सकता हैं इस प्रकार उन्हें भी संर्वांगीण विकास के अवसर दिए जा सकते हैं।

प्रश्न 2. शिक्षा के समावेशीकरण पर टिप्पणी लिखों।

उत्तर- समावेशी शिक्षा एक शिक्षा प्रणाली है।

शिक्षा का समावेशीकरण यह बताता है कि विशेष शैक्षणिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए एक सामान्य छात्र और एक अशक्त या विकलांग छात्र को समान शिक्षा प्राप्त के अवसर मिलने चाहिए। इसमें एक सामान्य छात्र एक अशक्त या विकलांग छात्र के साथ विद्यालय में अधिकतर समय बिताता है। पहले समावेशी शिक्षा की परिकल्पना सिर्फ विशेष छात्रों के लिए की गई थी लेकिन आधुनिक काल में हर शिक्षक को इस सिद्धांत को विस्तृत दृष्टिकोण में अपनी कक्षा में व्यवहार में लाना चाहिए।
समावेशी शिक्षा या एकीकरण के सिद्धात की जड़ें कनाडा और अमेरिका से जुड़ी हैं। समावेशी शिक्षा विशेष विद्यालय या कक्षा को नहीं स्वीकार करता। अशक्त बच्चों को अब सामान्य बच्चों से अलग करना अब मान्य नहीं है। विकलांग बच्चों को भी सामान्य बच्चों की तरह ही शौक्षिक गतिविधियों में भाग लेने का अधिकार है।
हमारा सविधान जाति, वर्ग, धर्म, आय एवं लैगिक आधार पर किसी भी प्रकार के विभेद का निषेध करता है, और इस प्रकार एक समावेशी समाज की स्थापना का आदर्श प्रस्तुत करता है। जिसके परिपेक्ष्य में बच्चे को सामाजिक, जातिगत, आर्थिक, वर्गीय, लैगिक, शारीरिक एवं मानसिक दृष्टि से भिन्न देखे जाने के बजाय एक स्वतंत्र अधिगमकर्ता के रूप में देखे जाने की आवश्यकता है जिससे लोकतांत्रिक स्कूल में बच्चे के समुचित समावेशन हेतु समावेशी शिक्षा के वातावरण का सृजन किया जा सके।

प्रश्न 3. समावेश के क्रियान्वय के कुछ तरीकों का वर्णन करों।

उत्तर- विद्यालयी शिक्षा और उसके परिसर में समावेशी शिक्षा के कुछ तरीके निम्न हो सकते हैं-

  1. स्कूल के वातावरण में सुधार- स्कूल का वातावरण किसी भी प्रकार की शिक्षा में बड़ा ही योगदान रखता है। यह कई चीजों की शिक्षा बच्चों को बिना सिखाए भी देता है। अतः समावेशी शिक्षा हेतु सर्वप्रथम उचित तथा मनमोहक स्कूल भवन का प्रबन्धन जरूरी हैं इसके अलावा स्कूलों में आवश्यक सांज-सामान तथा शैक्षिक सामग्री का भी समुचित प्रबंध जरूरी है।
  2. दाखिले की नीति में परिवर्तन- जो विद्यार्थी चीजों को स्पष्ट रूप से देख पाने में सक्षम नहीं है, या आंशिक रूप से अपाहिज है। ऐसे विद्यार्थियों को स्कूल में दाखिला देकर हम समावेशन को बढ़ावा दे सकते हैं। जिसके लिए विद्यालय के दाखिला की नीति में परिवर्तन किया जाना चाहिए।
  3. रूचिपूर्ण एवं विभिन्न पाठ्यक्रम का निर्धारण- किसी विद्वान ने सच ही कहा है कि “बच्चों को शिक्षित करने का सबसे असरदार ढ़ंग है कि उन्हें प्यारी चीजों के बीच खेलने दिया जाए।” अतः सभी विद्यालयी बच्चों में समावेशी शिक्षा की ज्योति जलाने हेतु इस बात की भी नितांत आवश्यकता है कि उन्हें रूचियों के अनुसार संगठित किया जाए। और पाठ्यक्रम का निर्माण उनकी अभिवृत्तियों, मनोवृत्तियो, आंकाक्षाओं तथा क्षमताओं के अनुकूल किया जाए।
  4. प्रावैगिक विधियों का प्रयोग- समावेशी शिक्षा हेतु शिक्षको को इसकी नवीन विधियों का ज्ञान करवाया जाए तथा उनके प्रयोग पर बल दिया जाए। समावेशी शिक्षा के लिए विद्यालय के शिक्षकों को समय-समय पर विशेष प्रशिक्षण-विद्यालयों में भेजे जाने की नितांत आवश्यकता है।
  5. स्कूलों को सामुदायिक जीवन का केन्द्र बनाया जाए- समावेशी शिक्षा हेतु यह प्रयास भी किया जाना चाहिए कि स्कूलो को सामुदायिक जीवन का केन्द्र बनाया जाए ताकि वहाँ छात्र की सामुदायिक जीवन की भावना को बल मिले जिससे वे सफल एवं योग्यतम सामाजिक जीवन यापन कर सकें। इस उद्देश्य की प्राप्ति हेतु समय-समय पर विद्यालयों में वाद-विवाद, खेलकूद तथा देशाटन जैसे मनोरंजक कार्यक्रयों का आयोजन किया जाना चाहिए।
  6. विद्यालयी शिक्षा में नई तकनीक का प्रयोग- समावेशी शिक्षा को लागू करने के लिए शिक्षाप्रद फिल्में, टी. वी. कार्यक्रम, व्याख्यान, वी. सी. आर. और कम्प्यूटर जैसे उपकरणों को प्राथमिकता के आधार पर विद्यालय में उपलब्धता और प्रयोग में लाई जाने की क्रांति की आवश्यकता है।
  7. मार्गदर्शन एवं समुपदेशन की व्यवस्था- भारतीय विद्यालयों में समावेशी शिक्षा के पूर्णतया लागू न होने के कई कारणों में से एक कारण विद्यालय में मार्गदर्शन एवं समुपदेशन की व्यवस्था का न होना भी है। इसके अभाव में विद्यालय में समावेशी वातावरण का निर्माण नहीं हो पाता है।

अतः समावेशी शिक्षा देने के तरीको में यह भी होना चाहिए कि विद्यालय में पढ़ने वाले छात्रों और उनके अभिभावकों हेतु आदि से अंत तक सुप्रशिक्षित, योग्य एवं अनुभवी व्यक्तियों द्वारा मार्गदर्शन एवं परामर्श प्रदान करने की व्यवस्था होनी चाहिए।

प्रश्न 4. विशेष आवश्यकताओं वाले बच्चों के विकास में परामर्शदाता का क्या योगदान है?

उत्तर- विशेष आवश्यकताओं वाले बच्चों के विकास में परामर्शदाता का निम्न योगदान है-

  1. परामर्शदाता का कार्य सभी बच्चों की सहायता करना है, जिसमें विशेष आवश्यकता वाले बच्चे भी शामिल है, परामर्शदाता की सहायता एवं सकारात्मक योगदान से इन बच्चों की वृद्धि एवं विकास की दर बढ़ जाती है।
  2. विशेष आवश्यकताओं वाले बच्चों को बचपन से ही व्यक्तिगत शिक्षा कार्यक्रम (Individualised Education Programme IEP) न केवल उनके शैक्षणिक योग्यता बल्कि भावात्मक स्वास्थ्य और सामाजिक तालमेल में सकारात्मक बदलाव लाती है। इस प्रकार विशेष आवश्यकता वाले बच्चे समाज के लिए उपयोगी सिद्ध होते है।
  3. परामर्श दाता, विशेष आवश्यकता वाले बच्चों की उनकी विशिष्टता के अनुसार उनके साथ परामर्श सत्र आयोजित करता है।
  4. परामर्श दाता व्यक्तिगत शिक्षा कार्यक्रम (Individualised Education programme) में बच्चों के अभिभावकों की भागीदारी सुनिश्चित करता है।
  5. विद्यालयों के अन्य शिक्षकों एवं कर्मचारियों से परामर्श और सहयोग कर विशेष बच्चों की आवश्यकताओं के अनुसार वातावरण उपलब्ध कराने में परामर्शदाता सहायता करता है।
  6. अन्य विद्यालयों, समाज के अन्य पेशों के विशेषज्ञ जैसे, व्यवसायिक चिकित्सक, मनोचिकित्सक भौतिक चिकित्सक आदि के सहयोग से विशेष बच्चों की सहायता करना। परामर्शदाता, विद्यालय में जिन बच्चों को विशेष शिक्षा की आवश्यकता होती है, उनकी समय-समय पर पहचान करता है, और उनके लिए विशेष शिक्षा योग्यता का निर्धारण करता है।

प्रश्न 5. विशेष शैक्षणिक आवश्यकताओं वाले बच्चों के लिए व्यवसाहिक चिकित्सक का क्या योगदान है।

उत्तर- विशेष शैक्षणिक आवश्यकताओं वाले बच्चों के लिए व्यवसाहिक चिकित्सक का योगदान निम्नलिखित है-

  1. स्वयं की देखरेखः- व्यावसाहिक चिकित्सक विशेष आवश्यकताओं वाले बच्चों को आत्म-निर्भर बनाने में सहायक सिद्ध होता है। एवं रोजमर्रा (दिनचर्या) के कार्य जैसे-खाना-खाना, कपड़े-पहनना, नहाना आदि क्रियाओं को करने में सहायता करता है।
  2. खेल खेलने में सहायकः- व्यावसाहिक चिकित्सक बच्चों को खेल में भाग लेने के लिए उनकी विशेष आवश्यकताओं के अनुसार खिलोनों के आकार (आकृति) गति और रंग में परिवर्तन कर उनके खेलने में उपयोगी बनाता है।
  3. विद्यालय की क्रियाओं में सहायकः- एक व्यावसाहिक चिकित्सक बच्चे को निरन्तर विद्यालय जाने के लिए प्रेरित करता है। तथा उनकी आवश्यकताओं के अनुसार मेज, कुर्सी, लिखने की सामग्री आदि में उनकी आवश्यकता के अनुसार बदलाव करने का सुझाव देते है।
  4. रहन-सहन के वातावरण में बदलावः- एक व्यावसाहिक चिकित्सक मुख्य रूप से, घर, विद्यालय एवं खेल मैदान की क्रियाओं को करने के लिए वातावरण में आवश्यक सुधार करके विशेष बच्चों के अनुकूल बनाता है।
  5. बच्चे के लेखन एवं सूक्ष्म गामक क्रियाओं में सुधारः- एक व्यावसाहिक चिकित्सक विशेष आवश्यकताओं वाले बच्चों के सूक्षम गामक क्रियाओं एवं लेखन में सुधार करने में सहायता करता है।
  6. विशेष पट्टिया बनाना- एक व्यावसाहिक चिकित्सक विशेष बच्चों को विभिन्न प्रकार की क्रियाओं को करने के लिए विशेष प्रकार की पट्टियाँ भी बनाने का कार्य करता है।

प्रश्न 6. भौतिक चिकित्सक (Physiotheopist) के योगदान द्वारा कैसे विशेष आवश्यकताओं वाले बच्चे लाभान्वित होते है? विवरण दीजिए?

उत्तर-

  1. विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को उनकी शारीरिक अक्षमता के कारण होने वाली कठिनाइयों, शारीरिक बनावट के कारण सन्तुलन में बाधा, साधारण गति में बाधा आदि दोषों के निवारण के लिए भौतिक चिकित्सक उनके लिए व्यक्तिगत व्यायाम (Individual Exercise programme) कार्यक्रम बनाता है, जिससे कि उनकी उपरोक्त समस्याओं का निवारण हो सके उनकी चलने फिरने की क्षमता बढ़ सके। उनके शारीरिक क्षमता एवं गति के लिए भौतिक चिकित्सक विभिन्न प्रकार के उपकरणों एवं सहायक सामग्री का भी प्रयोग करते है।
  2. भौतिक चिकित्सा का प्रयोग उन बच्चों की सहायता के लिए भी बहुत उपयोगी होता है जिन्हें तान्त्रिका तन्त्र (Nourological) सम्बन्धी विकार होते है जैसे कि बहुविध उत्तक दृढ़न (Multiple Sclerosis) आघात (Stroke), प्रभस्तिष्क अंग घात (Ceribral Palsy) आदि।
  3. भौतिक चिकित्सा का प्रयोग बच्चों के शरीर में आयी चोटों अथवा गट्ठिया रोग (Arthritis) आदि के कारण हुई विकृतियों को सुधारने में महत्त्वपूर्ण या प्रभावशाली होता है।
  4. बॉल चिकित्सा के उपचार- बच्चों में होने वाले पेशीय दुर्विकार (Muscular Dystrophy) के उपचार के लिए भी भौतिक चिकित्सक का योगदान महत्त्वपूर्ण है। इसके कारण बच्चों में संतुलन, बल और शारीरिक सामजस्य में व्यापक सुधार किया जा सकता है।

भौतिक चिकित्सा की तकनीके

  1. मालिश (Massage and Manipulation)
  2. गति और व्यायाम (Exercise and Movement)
  3. विधुत चिकित्सा (Electro-Therapy)
  4. जल चिकित्सा (Hydrotherapy)

प्रश्न 7. वाक् चिकित्सक किस प्रकार विशेष आवश्यकता वाले बच्चों की सहायता करते है। वर्णन कीजिए?

उत्तर- वाक् चिकित्सक (Speech Therapist):- एक वाक् चिकित्सक बच्चों में कई प्रकार के विकासात्मक विलम्ब जैसे-स्वलीनता (Austis), श्रवण बाधित, और डाउन-सिन्ड्रोम के कारण होने वाले वाक् सम्बंधी दोषो को दूर करने में सहायता करता है।

  1. भाषण की अभिव्यक्ति (Articulation):- भाषण की अभिव्यक्ति जीभ, होठ, जबड़ा, और तालू (Tongue) के समनव्य की कला है जिससे अलग-अलग प्रकार के शब्दों की ध्वनि निकलती है। वाक् चिकित्सक बच्चों की भाषण की अभिव्यक्ति में सुधार करने के लिए आवश्यक सुझाव देता है।
  2. प्रभावित भाषा कौशल (Espressive Language Skill):- एक वाक् चिकित्सक बच्चों को बोलने के साथ-साथ सांकेतिक भाषा का प्रयोग करने की कला को सिखाता है। जिससे कि भावों को आसानी से समझा जा सकता है।
  3. श्रवण कौशल में सुधार (Listining Skill Improvement):- वाक् चिकित्सक एक बच्चे की सुनने की क्षमता के विकास में सहायता करता है ताकि वह नवीन शब्दावली को विकसित कर सके, और छोटे-छोटे प्रश्नों के आसानी से उत्तर दे सके, व सहपाठियों के साथ उचित वार्तालाप कर सकें।
  4. वाक् पुटता (Stuttering):- एक वाक् चिकित्सक हकलाने सम्बंधी दोषो जैसे-रूक-रूक कर बोलना, शब्दों को दोहराना, शब्दों की ध्वनि को बढ़ा देना और चेहरे की, गले की, कंधो की, त्वचा में खिचाव और तनाव आदि दोषो को दूर करने में सहायता करता है।
  5. आवाज और गूंज (Voice and Resonance):- कभी-कभी बच्चों में खांसी, जुकाम, और अधिक बोलने अथवा अन्य कारणो से बच्चों की आवाज में एक विशेष प्रकार की गूंज (Resonance) आ जाती है जिसे वाक् चिकित्सक ठीक करने में सहायता करता है।

प्रश्न 8. एक शारीरिक शिक्षा शिक्षक की भूमिका विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के लिए क्या है?

उत्तर- शारीरिक शिक्षा के शिक्षक को विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के लिए अधिनियम 2016 के अनुसार उन्हें शारीरिक क्रियाओं को कराने के लिए अपने पाठ्यक्रम में बदलाव किया जाना चाहिए तथा उन्हें सामान्य बच्चों की भाँति गतिविधियों को कराना चाहिए। किसी विशेष आवश्यकता के लिए विशेष उपकरणों की व्यवस्था की जानी चाहिए।
बॉल सम्बंधी खेल- विशेष आवश्यकताओं वाले बच्चों के लिए ऐसे खेल विशेष ढ़ंग से तैयार किए जाते है जिससे कि गामक क्रियाओं में वृद्धि हो, गति, शक्ति, एवं तालमेल सम्बधी क्रियाओं में वृद्धि हो सके। शोध कर्ताओं ने पाया है कि, बॉल, फेकना, पकड़ना, घूर्णन करना आदि क्रियाओं से पेशियों की शक्ति में वृद्धि होती है।
एक शारीरिक शिक्षक बच्चे के अभिभावकों एवं चिकित्सक की मदद से विशेष बच्चे की अक्षमता के आधार पर क्रियाएँ तैयार करता है, एवं चिकित्सक की सलाह से उन्हे क्रिन्यावित करता है।

प्रश्न 9. विशेष शिक्षण शिक्षक के योगदान पर प्रकाश डालिए।

उत्तर- विशेष शिक्षण शिक्षक के योगदान-

  1. विद्यार्थियों के कौशल का आंकलन करना जिससे वे अपनी जरूरतों का निर्धारण कर सकें और अपने शिक्षण नियोजन को विकसित कर सकें।
  2. विद्यार्थियों की आवश्यकतानुसार अनुकूलित पाठो का निर्माण करना है।
  3. प्रत्येक विद्यार्थी के लिए अलग से शिक्षा का कार्यक्रम विकसित करना।
  4. एक विद्यार्थी की क्षमता के अनुसार क्रियाओं की योजना बनाना और उनका आयोजन करना तथा उनको बाटँना।
  5. प्रत्येक विद्यार्थी के लिए व्यक्तिगत शैक्षिक कार्यक्रम को क्रियान्वित करना, विद्यार्थियों के प्रदर्शन का आंकलन करना और उनकी उन्नति का रिकार्ड रखना।
  6. व्यक्तिगत शैक्षणिक कार्यक्रम का पूरे साल नवीनीकरण करना जिससे विद्यार्थियों की उन्नति व लक्ष्य को निर्धारित करने में मदद मिल सके।