खेलों में प्रशिक्षण - महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर 1

CBSE Class -12 शारीरिक शिक्षा
पाठ - 12 खेलों में प्रशिक्षण
Important Questions

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न (अंक-5)
प्रश्न-1. लोच/लचक को विकसित करने की विधियों का वर्णन कीजिए?
अथवा
बैलिस्टिक विधि व पोस्ट आइसोमैट्रिक विधि में अन्तर स्पष्ट कीजिए?
उत्तर- खेल-कूद में लोच/ लचक को बनाए रखने के लिए खिंचाव वाले व्यायाम करने चाहिए। निम्न विधियों के द्वारा लोच को विकसित किया जा सकता है-
  1. खिंचाव और रोकने की विधि- हम अपने जोड़ो को अधिकतम सीमा तक खींचते है तथा पहले की स्थिति में आने से पूर्व कुछ सेंकेड वहीं पर रूकते है। जोड़ी के खिंचाव को रोकने की स्थिति 3 से 8 सेंकड की होनी चाहिए। इस विधि का प्रयोग निष्क्रीय लचक (Passive flexibility) में सुधार के लिए भी किया जाता है।
  2. बैलिस्टिक विधि- इस विधि में खिंचाव वाले व्यायाम घुमाकर (swing) किए जाते है इसलिए इन्हें बैलिस्टिक विधि कहा जाता है। इन व्यायामों को करने से पहले शरीर को गर्माना आवश्यक होता है। इन व्यायामों में स्नायुओं में अत्याधिक खिंचाव होने के कारण चोट लगने की सम्भावना रहती है। इन व्यायामों की लय में किया जाता है।
  3. पोस्ट आइसोमैट्रिक विधि- यह विधि प्रोपीओसेप्टिव नाडी-पेशीय सरलीकरण के सिंद्धात पर आधारित है अर्थात यदि किसी स्नायु का अधिकतम संकुचन कुछ सेकंड के लिए किया जाता है तथा वह उसी स्थिति में 6 से 7 सेकंड तक उस खिंचाव का प्रतिरोध सहता है। उसे पोस्ट आइसोमैट्रिक विधि कहते है किसी स्नायु समूह को 8 से 10 सैकड़ की अवधि तक खिंचाव देना चाहिए तथा इसे 4 से 8 बार दोहराना चाहिए।
प्रश्न-2. शक्ति को विकसित करने की विधियों का विस्तृत उल्लेख कीजिए।
अथवा
आइसोमेट्रिक
, आइसोटोनिक व आइसोकाइनेटिक व्यायामों में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- शक्ति को विकसित करने की विधियाँ निम्न है-
  • आइसोमेट्रिक व्यायाम- आइसोमेट्रिक शब्द दो शब्दो से मिलकर बना है ‘आइसो-समान’ ‘मेट्रिक-लम्बाई’ अर्थात् जब हम इन व्यायामों को करते है तो मांसपेशियों में किसी भी प्रकार का परिवर्तन नहीं होता। इन व्यायामों में किसी भी प्रकार का कार्य होता हुआ दिखाई नहीं पड़ता। जैसे पक्की दीवार को धकेलने की कोशिश करना इन व्यायामों को कहीं पर भी किया जा सकता है एवं इनमें कम उपकरण व समय की आवश्यकता होती है। चोट के दौरान शक्ति को बनाए रखनें में यह व्यायाम सहायक होते है।
        
    उदाहरण- तीरदांजी, भार उठाना, जिम्नास्टिक आदि।
    किया गया कार्य = बल × तय की गई दूरी
    लेकिन तय की गई दूरी के शून्य होने के कारण, किया गया कार्य भी शून्य माना जाता है।
  • आइसोटॉनिक व्यायाम- ‘आइसो-समान (same)’ और ‘टॉनिक-तनाव’ इन प्रकारों के व्यायामों में गतिविधियाँ स्पष्ट रूप से होती हुई दिखाई देती है मांसपेशियों की लम्बाई बढ़ती है और घटती हुई दिखाई देती है जिसे असेन्ट्रीक (Eccentric) संकुचन और (Concentric) संकुचन कहते है जैसे- किसी बॉल को फेंकना, दौड़ना भागना, इत्यादि। इस प्रकार के संकुचन ज्यादातर खेल-कूद में देखे जाते हैं। इन प्रकार के व्यायाम को उपकरण के साथ तथा बिना उपकरण के किया जा सकता है इन व्यायामों से लचक तथा मांसपेशियों की लम्बाई में वृद्धि होती है तथा खेलों में अनुकूलन के लिए सहायक होते हैं।
      
  • आइसोकाइनेटिक व्यायाम- ‘आइसो-समान’ और ‘काइनेटिक-गति’ इन व्यायामों को सन् 1968 में जे. जे. पेरिन ने बनाया था। इन व्यायामों को विशिष्ट निर्मित मशीनों के द्वारा किया जाता है। इन व्यायामों के द्वारा मांसपेशियों की शक्ति विकसित होती है ज्यादातरन खेल-कूद में इन व्यायामों का उपयोग नहीं किया जाता है परंतु जल क्रीडा (खेल) स्केटिंग रस्सी पर चढ़ना, नॉव चलाना आदि में यह व्यायाम दिखाई पड़ते है।
      
प्रश्न-3. खेलो में तालमेल संबंधी योग्यताओं से आप क्या समझते हैं? किन्ही दो योग्यताओं का वर्णन कीजिए?
उत्तर- तालमेल संबंधी योग्यताएँ इन योग्यताओं को कहते है। जिसमें की व्यक्ति अपनी गतिविधियों को व्यापक व संतुलित रूप से नियंत्रित कर सकता है। खिलाड़ी इन योग्यताओं के द्वारा गतिविधियों के समूह को प्रभावशाली व अच्छे ढंग से करने में सक्षम होता है। तालमेल संबंधी योग्यताएं प्राथमिक रूप से केन्द्रिय स्नायु संस्थान (CNS) पर निर्भर करती है।
तालमेल संबंधी योग्यता निम्न प्रकार से है।
  1. अवलोकन योग्यता (Differential Ability)
  2. स्थिति निर्धारण योग्यता (Orientation Ability)
  3. युग्मक योग्यता (Coupling Ability)
  4. प्रतिक्रिया योग्यता (Reaction Ability)
  5. संतुलन योग्यता (Balance Ability)
  6. लय योग्यता (Rhythm Ability)
  7. ढलने की (अनुकूल) योग्यता (Adaptation Ability)
  1. स्थिति निर्धारण योग्यता (Orientation Ability)- यह योग्यता मनुष्य में समय तथा स्थान की स्थिति के अनुसार स्वयं को अनुकूल बनाने की योग्यता है। इस योग्यता का महत्व प्रत्येक खेल में अलग है। उदाहरण- खेल का मैदान।
  2. तालमेल योग्यता (coupling Ability)- तालमेल की योग्यता खिलाड़ी को शारीरिक अंगो की क्रियाओं (Movement) करने की योग्यता है (हाथों और आँखों का तालमेल, पांवो और आँखों का तालमेल इत्यादि।) उदाहरणवालीबॉल में स्मैशर उठी बॉल व ब्लॉकर्स के हिसाब से हाथ, धड़, पैरो की क्रियाओं को तालमेल बिठाकर बॉल को स्मैश करता है।
तालमेल संबंधी योग्यताओं में सुधार करने की विधियां निम्न प्रकार है-
  1. शारीरिक क्रियाओं का अभ्यास।
  2. सम्पूर्ण चेतना से तथा सही गतिविधि करना।
  3. गामक संवेदना में सुधार हेतु अन्य साधनों का उपयोग करना।
  4. व्यायामों की प्रबलता में परिवर्तन करना।
  5. व्यायामों को सरलता से कठिनता की ओर ले जाना।
प्रश्न-4. निरन्तर विधि तथा इन्टरवल (अन्तराल) विधि में अन्तर स्पष्ट कीजिए और इनको लाभ की बताइए।
उत्तर-
  • निरंतर प्रशिक्षण विधि (Continuous Training Method) इस तरह के व्यायामों को लम्बे समय तक बिना रूके किया जाता है। इसलिए इनमें कार्य करने की प्रबलता (intensity) कम होती है। खिलाड़ी की हृदय गति व्यायामों के दौरान 140-160 प्रति मिनट होनी चाहिए। तेज निरन्तर विधि में खिलाड़ी की हृदय गति (175-180 प्रति मिनट) पहुँच जाती है। व्यायाम करने की अवधि 30 मिनट से अधिक होता है। इसमें, दौड़ना, पैदल चलना, साइकिल चलाना और क्रॉस-कंट्री दौड़ शामिल है।

    लाभ-
    1. निरन्तर कार्य करने की वजह से थकावट होने के बावजूद कार्य करने की इच्छा तथा शक्ति में बढ़ोतरी होती है।
    2. इस विधि के अनुसार प्रशिक्षण लेने से मांसपेशियों में लाल रक्त कण (R.B.C.) की मात्रा में वृद्धि होती है।
    3. इसमें हृदय तथा फेफड़ो की कार्यकुशलता सकारात्मक रूप से बढ़ जाती है।
    4. इस व्यायाम से मांसपेशियों तथा लिवर में ग्लाइकोजेन (Glycogen) की मात्रा बढ़ जाती है।
    5. इसमें खिलाड़ियों में आत्म-अनुशासन (Self- discipline) व आत्म-विश्वास बढ़ने लगता है तथा साथ ही उसकी इच्छा शक्ति भी सुदृढ़ हो जाती है।
  • इन्टरवल/ अन्तराल प्रशिक्षण विधि (Interval Training Method)- यह विधि धावकों की सहन क्षमता विकसित करने के लिए बहुत प्रभावशाली है। बार-बार दौड़ के बीच धावकों को अन्तराल दिया जाता है। जिसमें की वह पूरी तरह पुर्नलाभ प्राप्त नहीं करते। इसमें हृदय गति 180 तक पहुँच जाती है तथा जब यह 120 तक वापस आ जाए तो वह दोबारा उस कार्य को करता है। धावको की हृदय गति की जाँचने के बाद ही प्रशिक्षण भार दिया जाना चाहिए। इसमें मध्यम दूरी की दौड़ी, फुटबॉल तथा हॉकी इत्यादि शामिल है।

    लाभ-
    1. इस विधि के अनुरूप व्यायाम करने से खिलाड़ी कम समय में अधिक कार्य करने के योग्य बन जाता है।
    2. यह विधि श्वसन तंत्र ( Respiratory System) तथा रक्त संचार के लिए लाभदायक है।
    3. प्रशिक्षक खिलाड़ी की प्रगति को आसानी से देख सकता है। इस विधि से खिलाड़ी थोड़े समय में अपनी सहन-क्षमता को बढ़ा सकता है।
    4. खिलाड़ी को अपने प्रशिक्षण के प्रभाव की सही जानकारी मिल जाती है।
    5. यदि खिलाड़ी व्यायाम में कोई गलती करता है तो पुनः शक्ति प्राप्ति समय में प्रशिक्षक खिलाड़ी को उचित सुझाव दे सकता है जिससे खिलाड़ी की हिम्मत को बढ़ाया जा सकता है।
प्रश्न-5. (समुद्र से अत्यधिक ऊँचाई पर ट्रेनिंग) हाई एल्टीट्यूड ट्रेनिंग क्या है? एक एथलीट पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है? विवरण दीजिए।
उत्तर- समुद्र तल से अत्यधिक ऊँचाई पर शरीर को ऑक्सीजन की उपलब्धता समुद्र तल की अपेक्षा कम हो जाती है एक एथलीट हाई एल्टीट्यूड ट्रेनिंग के द्वारा यह निर्धारित करता है वह अपने शरीर में अतिरिक्त लाल रक्त कणिकाओं (RBC) का निर्माण कर सके जिससे उसके शरीर में ऑक्सीजन का परिवहन हो और वह ऑक्सीजन की कमी से निपटने का प्रयास कर सके।
एथलीट पर प्रभाव-
  1. समुद्र तल से अधिक ऊँचाई (High Altitude) पर एथलीट्स सनबर्न्स स्नोब्लांइडनेस का अनुभव कर सकते है वास्तव में, समुद्र तल से अत्यधिक ऊँचाई पर अनावरण का खुला सामना करने में कार्य संबधी विकार जैसे-मांउटेन या एलटीट्यूडस सिकनेस, गंभीर सिरदर्द के लक्षण, जी मिचलना और उल्टी, खाँसी तथा हाथ व पैरों में सूजन हो सकते है निर्जलीकरण (Dehydration) भी एक गंभीर समस्या के रूप में समुद्र तल से अत्यधिक ऊँचाई पर हो सकती है।
  2. दूसरी तरफ एथलीट ऊँचाई के लिए अनुकूलित हो जाता है तो ऑक्सीजन परिवहन में सुधार होगा। लाल रक्त कणिकाओं के द्वारा ऑक्सीजन परिवहन का बढ़ा हुआ स्तर बताता है। कि मानव शरीर उपलब्ध ऑक्सीजन की मात्रा को अनुकूलित करता है। RBC की बढ़ी हुई संख्या Vo2Max में सुधार करती है लेकिन हाई एल्टीट्यूट पर Vo2 max का स्तर काफी कम होता है।
हाईएल्टीट्यूट पर एथलीट के लिए युक्तियाँ-
  1. पहले दिन से ही अधिक गंभीर नहीं होना चाहिए।
  2. पूरी कसरत करने से पहले शरीर को समायोजित करना चाहिए।
  3. ऊँचाई बहुत डीहाइट्रेटिग (Dehydrating) है इसलिए पानी और जूस अधिक मात्रा में पीना चाहिए।
  4. मदिरा (alcohol) नहीं लेना चाहिए।
  5. अच्छी नींद के लिए नींद की गोलियों का सहारा नहीं लेना चाहिए।