मेरे बचपन के दिन - Test Papers

CBSE Test Paper 01
Ch-6 मेरे बचपन के दिन

  1. निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
    वहाँ छात्रावास के हर एक कमरे में हम चार छात्राएँ रहती थीं। उनमें पहली ही साथिन सुभद्रा कुमारी मिलीं। सातवें दर्ज में वे मुझसे दो साल सीनियर थीं। वे कविता लिखती थीं और मैं भी बचपन से तुक मिलाती आई थी। बचपन में माँ लिखती थीं, पद भी गाती थीं। मीरा के पद विशेष रूप से गाती थीं। सवेरे ‘जागिए कृपानिधान पंछी बन बोले’ यही सुना जाता था। प्रभाती गाती थीं। शाम को मीरा का कोई पद गाती थीं । सुन-सुनकर मैंने भी ब्रजभाषा में लिखना आरंभ किया। यहाँ आकर देखा कि सुभद्रा कुमारी जी खड़ी बोली में लिखती थीं। मैं भी वैसा ही लिखने लगी।
    1. लेखिका ने सुभद्रा कुमारी चौहान को किस रूप में जाना पहचाना?
    2. लेखिका को कविताएँ लिखने की प्रेरणा किससे और किस तरह मिली?
    3. गद्यांश में किस छात्रावास का उल्लेख किया गया है?
  2. गाँधी जी ने लेखिका से कौन-सी वस्तु माँग ली और क्यों ? ‘मेरे बचपन के दिन' पाठ के आधार पर लिखिए।
  3. सुभद्रा कुमारी को कैसे पता चला कि महादेवी वर्मा भी कविताएँ लिखती हैं?
  4. ‘मेरे बचपन के दिन' पाठ का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
  5. महादेवी वर्मा तथा उसकी साथिनें स्वतंत्रता आंदोलन में किस प्रकार आर्थिक मदद देती थीं?
  6. मेरे बचपन के दिन पाठ के आधार पर 'मैं उत्पन्न हुई तो मेरी बड़ी खातिर हुई और मुझे वह सब नहीं सहना पड़ा जो अन्य लड़कियों को सहना पड़ता है।' इस कथन के आलोक में आप यह पता लगाएँ कि- उस समय लड़कियों की दशा कैसी थी?
CBSE Test Paper 01
Ch-6 मेरे बचपन के दिन

Answer
    1. महादेवी वर्मा को छात्रावास में रहने के लिए जो कमरा मिला उसमें तीन छात्राएँ और भी रहती थीं। उन्हीं में एक थीं-सुभद्रा कुमारी चौहान। वे लेखिका से दो साल बड़ी थी और सातवें दर्ज में पढ़ती थीं। लेखिका ने उनको एक सफल कवयित्री के रूप में जाना।
    2. लेखिका महादेवी वर्मा को काव्य-लेखन की प्रेरणा दो लोगों से मिली। पहली, उनकी माँ से , जो ब्रजभाषा में तुकबंदी किया करती थीं और मीराबाई के पद गाया करती थीं। महादेवी जी का अधिकतर समय अपनी माँ के साथ सवेरे प्रभाती और शाम को मीरा के पद सुनते हुए बीता था। यही सुनते-सुनते महादेवी जी ने ब्रज भाषा में तुकबंदी करना शुरू कर दिया। उनकी दूसरी प्रेरणास्त्रोत सुभद्रा कुमारी चौहान थीं , जिनकी देखा-देखी में उन्होंने तुकबंदियों को कविताओं का रूप देना शुरू किया और वे भी खड़ी बोली में लिखने लगीं।
    3. गद्यांश में क्रास्थवेट गर्ल्स कॉलेज के छात्रावास का उल्लेख है, जहाँ बालिका महादेवी वर्मा को पाँचवीं कक्षा में भर्ती कराया गया और सुभद्रा कुमारी उसे साथिन के रूप में मिलीं।
  1. लोग आजादी की लड़ाई में अपना योगदान देते थे। एक बार गाँधी जी इलाहाबाद लेखिका के छात्रावास में आए थे । लेखिका ने जब उत्साहपूर्वक गाँधी जी को अपना पुरस्कार में मिला नक्काशीदार चाँदी का कटोरा दिखाया, तो गाँधी जी ने वह कटोरा माँग लिया। वे बच्चों तथा देश के नागरिकों से इस प्रकार प्राप्त वस्तुएँ और धन आदि से, उन स्वतंत्रता सेनानियों की मदद करते थे, जो देश को आजादी दिलाने के लिए संघर्ष कर रहे थे।
  2. महादेवी वर्मा बचपन से ही तुकबंदी किया करती थीं। सुभद्रा कुमारी उससे दो साल बड़ी थीं तथा उस समय तक एक प्रसिद्द कवयित्री बन चुकी थीं। वे लेखिका के साथ छात्रावास के कमरे में रहती थीं। लेखिका उनसे छुप-छुपकर ब्रजभाषा में तुकबन्दियाँ करती रहती थीं । एक दिन महादेवी जी की डेस्क की तलाशी लेने पर उन्हें महादेवी द्वारा लिखी हुई एक कविता मिली, जिसे पढ़कर सुभद्रा को पता चल गया कि महादेवी भी लिखती हैं।
  3. ‘मेरे बचपन के दिन” पाठ में लेखिका वर्मा ने स्मृतियों के सहारे कई रोचक घटनाओं का वर्णन किया है। उन्होंने तत्कालीन परिस्थितियों से आने वाली पीढ़ी को अवगत कराया | लेखिका ने तत्कालीन समाज के साथ-साथ अपने परिवार में स्त्री की स्थिति का चित्रण किया है। उन्होंने अपने शिक्षित परिवार के साथ-साथ घर के धार्मिक और सद्भावनापूर्ण वातावरण का भी चित्रण किया है। उस समय देश में सांप्रदायिकता के लिए कोई स्थान नहीं था | सभी छात्राएँ एक साथ हिंदी-उर्दू पढ़ती थीं तथा एक साथ खाना खातीं और एक ही प्रार्थना करती थीं। वे राष्ट्रीय आंदोलन में भी अपनी सामर्थ्य से अधिक योगदान दिया करती थीं। जवारा के नवाब की पत्नी तथा लेखिका की माँ के सद्भावपूर्ण मेल-जोल आज की सांप्रदायिक भावना पर करारा प्रहार करते हैं |
    अतः इस पाठ का प्रमुख उद्देश्य आज की युवा पीढ़ी के मन में मेलजोल की भावना को मजबूत करना है | साथ ही पाठ हमें सांप्रदायिक सद्भाव से जुड़कर तथा राष्ट्रीय एकता को समृद्ध करने की प्रेरणा देता है | इस प्रकार हम अपनी स्वतंत्रता के प्रति सजग रहकर देश की सुरक्षा के लिए तन-मन-धन से अपने प्राण न्योछावर करने का संकल्प ले सकते हैं |
  4. लेखिका ने 1917 में क्रास्थवेट गर्ल्स कॉलेज में प्रवेश लिया। उन्हीं दिनों (1920 के आसपास) गाँधी जी आनंदभवन में आया करते थे। लेखिका और उसकी साथिने अपनी जेब खर्च के बचाए पैसों को गाँधी जी को देश की स्वतंत्रता के संघर्ष के लिए दे दिया करती थीं। कवि-सम्मेलनों में कविता-पाठ करने से पुरस्कार स्वरूप कुछ राशि मिल जाती थी। एक बार लेखिका को कविता-पाठ करने पर पुरस्कार स्वरूप चाँदी का सुंदर कटोरा मिला था। इसी समय लेखिका ने गाँधी जी को अपना चाँदी का कटोरा दिखाया। गाँधी जी ने देशहित में वह कटोरा माँगा, जिसे लेखिका ने सहर्ष दे दिया। इस प्रकार महादेवी वर्मा और उसकी साथिने अपनी जेब खर्च के पैसे राष्ट्रीय आंदोलन में आर्थिक मदद के रूप में दे दिया करती थीं।
  5. उस समय जब लेखिका पैदा हुई थी अर्थात् सन् 1900 के आसपास स्त्रियों की स्थिति बहुत शोचनीय थी। लोगों का दृष्टिकोण स्त्रियों के प्रति अच्छा नहीं था। लोग पुत्रों को अधिक महत्त्व देते थे। जहाँ पुत्रजन्म पर उत्सव मनाया जाता था वहीं पुत्री के जन्म पर पूरा परिवार शोक में डूब जाता था। लोग लड़कियों को पैदा होते ही मार देते थे। उनकी शिक्षा, पालन-पोषण आदि को महत्त्व नहीं दिया जाता था। उस समय बाल-विवाह, दहेज-प्रथा, सती-प्रथा आदि सामाजिक कुरीतियाँ प्रचलित थीं जो महिलाओं के लिए घातक सिद्ध हो रही थीं।