बिहारी-दोहे - CBSE Test Papers
सीबीएसई कक्षा-10 हिंदी 'ब'
टेस्ट पेपर-01
पाठ-03 दोहे-बिहारी
टेस्ट पेपर-01
पाठ-03 दोहे-बिहारी
निर्देश -
- सभी प्रश्न अनिवार्य है।
- प्रश्न 1 से 3 एक अंक के है।
- प्रश्न 4 से 8 दो अंक के है।
- प्रश्न 9 से 10 पांच अंक के है।
- राम कहाँ बसते हैं ?
- श्रीकृष्ण की तुलना किससे की गई है ?
- ‘देखी दुपहरी’ में कौन –सा अलंकार है ?
- संदेश न भेज पाने वाली नायिका की स्थिति का वर्णन ‘दोहे’के आधार पर कीजिए |
- ‘केशव केसवराई’के दो भिन्न –भिन्न अर्थों को स्पष्ट कीजिए |
- 'गोपियाँ किस प्रकार श्रीकृष्ण को खिझा रही हैं ?
- बिहारी के दोहों में कृष्ण के सौंदर्य का वर्णन किस प्रकार किया गया है ?
- आडम्बर करने वालों के लिए बिहारी क्या कहते हैं ?
- निम्नलिखित दोहे का अर्थ स्पष्ट कीजिए |
कहलाने एकत बसत अहि मयूर, मृग बाघ।
जगतु तपोवन सौ कियौ दीरघ दाघ निदाघ ।। - बिहारी का ऋतु वर्णन अपने शब्दों में कीजिए ।
सीबीएसई कक्षा-10 हिंदी 'ब'
टेस्ट पेपर-01
पाठ-03 दोहे-बिहारी
आदर्श उत्तर
टेस्ट पेपर-01
पाठ-03 दोहे-बिहारी
आदर्श उत्तर
- राम सच्चे ह्रदय में बसते हैं|
- श्रीकृष्ण की तुलना नीलमणि पर्वत से की गई है |
- यहाँ अनुप्रास अलंकार का प्रयोग हुआ है|
- नायिका अत्यंत विरह और लोक-लाज के कारण अपने प्रियतम को संदेश भेजने में लज्जा का अनुभव करती है| वह विरह से व्याकुल होकर नायक से स्वयं अपने मन की स्थिति के अनुरूप उसकी विरह दशा का अनुमान लगाने की बात करती है|
- प्रथम ‘केशव’का अर्थ श्रीकृष्ण है,जो चन्द्र कुल में जन्मे और ब्रज में आकर रहे| द्वितीय ‘केसवराई’का प्रयोग बिहारी ने अपने पिता के लिए किया है, जो द्विज कुल में जन्मे और ब्रज में आकर रहे|
- समस्त गोपियाँ श्रीकृष्ण से बातें करना चाहती हैं,अतः जान-बूझकर उनकी बाँसुरी छिपा देती हैं| जब कृष्ण बाँसुरी के विषय में पूछते हैं तो गोपियाँ साफ़ इंकार कर देती हैं और सौगंध लेते हुए मुकर जाती हैं| इससे कृष्ण खीझते हैं और गोपियाँ प्रसन्न होती हैं|
- बिहारी ने आकर्षक साँवले रंग वाले श्रीकृष्ण के सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहा है कि श्रीकृष्ण अपने सुंदर आकर्षक श्यामल शरीर पर पीले चमकीले रेशमी वस्त्रों को धारणकर नीलमणि के उस पर्वत के समान सुशोभित हो रहे हैं,जिस पर प्रभात के सूर्य की पीली किरणें जगमगा रही हों|
- आडम्बर और ढ़ोंग किसी काम के नहीं होते हैं। मन तो काँच की तरह क्षण भंगुर होता है जो व्यर्थ में ही नाचता रहता है। माला जपने से, माथे पर तिलक लगाने से या हजार बार राम राम लिखने से कुछ नहीं होता है। इन सबके बदले यदि सच्चे मन से प्रभु की आराधना की जाए तो वह ज्यादा सार्थक होता है।
- इस दोहे में कवि ने भरी दोपहरी से बेहाल जंगली जानवरों की हालत का चित्रण किया है। भीषण गर्मी से बेहाल जानवर एक ही स्थान पर बैठे हैं। मोर और सांप एक साथ बैठे हैं। हिरण और बाघ एक साथ बैठे हैं। कवि को लगता है कि गर्मी के कारण जंगल किसी तपोवन की तरह हो गया है। जैसे तपोवन में विभिन्न इंसान आपसी द्वेषों को भुलाकर एक साथ बैठते हैं, उसी तरह गर्मी से बेहाल ये पशु भी आपसी द्वेषों को भुलाकर एक साथ बैठे हैं।
- बिहारी को प्रायः श्रृंगार का कवि कहा जाता है, परन्तु मात्र यह परिचय उनकी लेखनी का पूर्ण परिचायक नहीं है| रीतिकाल के सुप्रसिद्ध कवि बिहारी की प्रतिभा से ऋतु वर्णन भी अछूता नहीं रहा है| बिहारी ने बैठी रही ..... में ज्येष्ठ माह का समस्त आतप, ताप आदि उड़ेल दिया है| ज्येष्ठ माह की तपती दुपहरी इतनी तप्त है कि उसने संसार को ही तपोवन बना डाला है| इन दोहों में ग्रीष्म ऋतु का वर्णन इतना सटीक है कि पाठक को लगता है कि आस-पास का समस्त वातावरण अत्यंत तप्त हो उठा है|