कबीर-साखी - CBSE Test Papers
सीबीएसई कक्षा-10 हिंदी ब
टेस्ट पेपर -01
पाठ-01 कबीर की साखियाँ
टेस्ट पेपर -01
पाठ-01 कबीर की साखियाँ
निर्देश -
- सभी प्रश्न अनिवार्य है।
- प्रश्न 1 से 3 एक अंक के है।
- प्रश्न 4 से 8 दो अंक के है।
- प्रश्न 9 से 10 पांच अंक के है।
- कस्तूरी कहाँ होती है और मृग उसे कहाँ तलाशता है?
- कबीर निंदक को कहाँ रखने को कहते हैं?
- व्यक्ति को ईश्वर की प्राप्ति कब तक नहीं होती?
- मीठी वाणी बोलने से क्या लाभ होता है?
- संसार में कौन दुखी है और कौन सुखी है?
- निंदक के समीप रहने से क्या लाभ होता है?
- विरह का सर्प वियोगी की क्या दशा कर देता है?
- "एकै आषिर पीव का पढै सु पंडित होय" से कबीर क्या शिक्षा देना चाहते हैं ?
- कबीर की साखियों से क्या शिक्षा मिलती है ?
- कबीर की भाषा पर प्रकाश डालिए |
सीबीएसई कक्षा-10 हिंदी ब
टेस्ट पेपर -01
पाठ-01 कबीर की साखियाँ
(आदर्श उत्तर)
टेस्ट पेपर -01
पाठ-01 कबीर की साखियाँ
(आदर्श उत्तर)
- कस्तूरी मृग की नाभि में होती है, पर मृग को इस विषय में ज्ञान न होने के कारण वो उसे पूरे वन में तलाशता है |
- कबीर कहते हैं कि निंदक को अपने आँगन में कुटिया बनवाकर रखना चाहिए |
- व्यक्ति के मन में जब तक अहंकार रहता है, तब तक उसे ईश्वर की प्राप्ति नहीं हो सकती |
- अहंकारी व्यक्ति अपनी कड़वी बातों से खुद तो परेशान होता ही है, दूसरों को भी कष्ट पहुँचाता है, वही मीठी वाणी बोलने वाला व्यक्ति स्वयं भी शांत रहता है और अपनी विनम्र बोली से दूसरों के मन को भी ख़ुशी देता है | मीठी वाणी से सुनने वाले तथा बोलने वाले दोनों को ही सुख मिलता है इसलिए सदा मीठी वाणी बोलनी चाहिए |
- संसार के विषय - विकारों में लिप्त मनुष्य ईश्वर को भूल, खाने और सोने में मस्त है, उसके लिए सांसारिक भोग विलास ही सत्य है | वह इसी को सुख मानकर खुश है जबकि कबीर को संसार की असारता का ज्ञान है, जिसकी वजह से वह संसार की दुर्दशा देखकर दुःखी होते हैं और रोते रहते है |
- जिस तरह साबुन व पानी वस्त्र से सारे दाग निकल देते हैं,उसी तरह निंदक भी हमारी कमियों से अवगत करता है और यदि हम उन कमियों को दूर कर लें तो हमारा स्वभाव भी वस्त्र के सामान निर्मल हो जाता है |
- विरह एक ऐसे सर्प के सामान है जो अगर किसी को जकड ले,तो उसे कोई मात्रा भी मुक्ति नहीं दिला सकता | ईश्वर की विरह में भक्त भी या तो प्राण त्याग देता है या विक्षिप्त (पागल) हो जाता है|
- कबीर कहते हैं कि मोटे-मोटे ग्रन्थ और ज्ञान की पुस्तकें पढ़कर भी यदि मनुष्य में जीवों के प्रति दया और प्रेम का भाव नहीं है तो वह ज्ञानी व विद्वान कहलाने योग्य नहीं है, जबकि जो मनुष्य, भले ही अनपढ़ है, पर दया और परोपकार जैसे मानवीय गुणों से युक्त है, वही सच्चा पंडित है|
- कबीर की साखियाँ हमें जहाँ व्यावहारिक ज्ञान देती हैं, वहीं हमें जीवन मूल्यों से भी परिचित करवाती हैं | वे मीठी वाणी को एक मरहम बताते हैं जो बोलने वाले तथा सुनने वाले दोनों को ही शांति का अनुभव कराती है | वे संसार की नश्वरता से पाठक को अवगत कराते हुए समझाती है कि विषय -विकार से मुक्त होकर ईश्वर प्राप्ति का यत्न करना चाहिए | निंदक को साबुन मानकर उसे अपनी बुराइयों को दूर करने का साधन समझकर अपने साथ रखना चाहिए | ईश्वर कहीं और नहीं मनुष्य के ह्रदय तथा संसार के कण-कण में बसता है इसलिए उसकी प्राप्ति के लिए कर्मकांडों,आडम्बरों की नहीं , सच्ची भक्ति की आवश्यकता होती है | ऐसी जीवनोपयोगी शिक्षाएँ हमें कबीर की साखियों से मिलती हैं |
- कबीर की भाषा को 'सधुक्कड़ी भाषा ' अर्थात साधुओं की भाषा कहा जाता है | घुमक्कड़ प्रवृत्ति के कारण साधुओं की भाषा में विभिन्न भाषाओँ के शब्दों का समावेश स्वतः ही हो जाता था | इसे 'खिचड़ी या पंचमेल खिचड़ी' नाम भी दिया जाता है | कबीर की भाषा में भी पंजाबी, ब्रजभाषा, पूर्वी हिंदी, खड़ी बोली, भोजपुरी, राजस्थानी आदि भाषाओं के शब्द मिलते हैं | इसमें जहाँ संस्कृत के तत्सम शब्द मिलते हैं, वहीं अरबी-फारसी, उर्दू के शब्द भी मिल जाते हैं | यही विशिष्टता कबीर की भाषा को सरल, स्वाभाविक, बोधगम्य और लोकप्रिय बनाती है |