दो बैलों की कथा - Test Papers

CBSE Test Paper 01
Ch-1 दो बैलों की कथा


  1. निम्नलिखित गद्यांशों और उनके नीचे दिए गए प्रश्नोत्तरों को ध्यानपूर्वक पढ़िए-
    दोनों बैलों का ऐसा अपमान कभी न हुआ था। झूरी इन्हें फूल की छड़ी से भी न छूता था। उसकी टिटकार पर दोनों उड़ने लगते थे। यहाँ मार पड़ी। आहत-सम्मान की व्यथा तो थी ही, उस पर मिला सूखा भूसा।
    नाँद की तरफ आँखें तक न उठाईं।
    दूसरे दिन गया ने बैलों को हल में जोता, पर इन दोनों ने जैसे पाँव न उठाने की कसम खा ली थी। वह मारते-मरते थक गया; पर दोनों ने पाँव न उठाया। एक बार जब उस निर्दयी ने हीरा की नाक पर खूब डंडे जमाए, तो मोती का गुस्सा काबू के बाहर हो गया। हल लेकर भागा। हल, रस्सी, जुआ, जोत, सब टूट-टाट कर बराबर हो गया। गले में बड़ी-बड़ी रस्सियाँ न होतीं, तो दोनों पकड़ाई में न आते।
    प्रश्न
    1. दोनों बैलों का किसने और किस तरह अपमान किया? उसने ऐसा क्यों किया?
    2. बैलों के प्रति झूरी और गया के व्यवहार में क्या अंतर था?
    3. मोती को क्रोध क्यों आया? क्रोधावेश में उसने क्या किया?
  2. किसान जीवन वाले समाज में पशु और मनुष्य के आपसी संबंध को कहानी में किस तरह व्यक्त किया गया है?
  3. कांजी हौस में किन्हें कैद किया जाता है तथा उनके साथ कैसा व्यवहार होता है?
  4. कहानी में बैलों के माध्यम से कौन-कौन से नीति-विषयक मूल्य उभरकर आए हैं?
  5. 'दो बैलों की कथा' के आधार पर सिद्ध कीजिए कि एकता में शक्ति होती है।
  6. गया के घर से भागकर आए हीरा-मोती को देख झूरी, बच्चे और उसकी पत्नी ने किस प्रकार प्रतिक्रिया व्यक्त की?
CBSE Test Paper 01
Ch-1 दो बैलों की कथा

Answer
    1. दोनों बैलों (हीरा-मोती) का अपमान गया ने किया था। अपने घर ले जाकर गया ने उन्हें मोटी रस्सियों से बाँध दिया औऱ नांद में सूखा भूसा डाल दिया। अपने बैलों को उसने खली चुनी सब दिया । ऐसा उसने हीरा मोती को सबक़ सिखाने के उद्देश्य से किया था।
    2. झूरी हीरा और मोती को कभी भी मारता न था क्योंकि वह बैलों से प्रेम करता था। बैल भी उसका संकेत पाते ही खुशी-खुशी काम में जुट जाते थे। इसके विपरीत गया ने चारे के नाम पर उन्हें सूखा भूसा दे दिया और हल में जोत दिया। दुखी बैलों ने जब अपने कदम न उठाए तो उसने दोनों की बेरहमी से पिटाई करनी शुरू कर दी। इस प्रकार झूरी और गया के व्यवहार में बहुत अंतर था।
    3. गया ने क्रूरता और निदर्यतापूर्वक हीरा की नाक पर खूब डंडे बरसाए। यह देखकर मोती को क्रोध आ गया। इसी क्रोधावेश में वह हल लेकर भागा जिससे हल, रस्सी, जुआ, जोत सब टूट गए।
  1. किसान का जीवन खेती पर आधारित होता है | खेती पशुओं के बिना असंभव है | पशु आदिकाल से ही मनुष्यों के साथी रहे हैं। मनुष्य ने कभी उन्हें अपनी सुरक्षा के लिए पाला तो कभी आर्थिक लाभ के लिए। किसान-जीवन में किसान हल चलाने, बोझा ढोने, पानी खींचने तथा सवारी करने के लिए मनुष्य पशुओं का प्रयोग करता है। पशु भी अपने चारे के लिए मानव-जाति पर निर्भर रहते हैं। कहानी में झूरी अपने बैलों से प्यार करता है तथा उनके खाने पीने का ध्यान रखता है | हीरा-मोती भी झूरी से बहुत लगाव रखते हैं और हर समय काम करने के लिए तत्पर रहते हैं | अंत में वे हर मुसीबत पर विजय पाते हुए प्रेम न करने वाले गया के घर से भाग जाते हैं और लौटकर झूरी के पास आ जाते हैं।
  2. कांजीहौस में उन लावारिस जानवरों को बंद किया जाता है जो दूसरों की फसलों को चर जाते हैं या अन्य तरीके से नुकसान पहुँचाते हैं। वहाँ बंद जानवरों के साथ अत्यंत ही क्रूर व्यवहार किया जाता है, जो संवेदनाशून्य होता है । उन्हें केवल पानी के सहारे जिंदा रखा जाता है और वह भी इतना ही दिया जाता है कि वे मरे नहीं। भोजन तो बस नाम मात्र का ही दिया जाता है और कभी-कभी नहीं भी दिया जाता है | यदि वे भागने का प्रयास करते हैं तो उन पर डंडे बरसाए जाते हैं। ऐसे कई जानवर जब एकत्र हो जाते हैं तो उन्हें नीलाम कर दिया जाता है।
  3. कहानी में बैलों के माध्यम से निम्नलिखित नीति-विषयक मूल्य उभरकर आए हैं-
    1. सच्ची मित्रता- मुसीबत के समय हीरा-मोती एक-दूसरे का साथ निभाते हैं । एक के मुसीबत में होने पर दूसरा भी साथ नहीं छोड़ता है।
    2. मिल-जुलकर रहने की भावना- हीरा-मोती बलशाली साँड़ को हराकर 'एकता में शक्ति' की कहावत को सच सिद्ध करते हैं |
    3. निःस्वार्थ परोपकार की भावना- हीरा और मोती कांजीहौस की दीवार गिराकर अधमरे जानवरों को भगाकर अपनी निःस्वार्थ परोपकार की भावना का प्रदर्शन करते हैं | ऐसा करने पर वे स्वयं मुसीबत में फंस जाते हैं पर उन्हें इसका कोई डर नहीं होता |
    4. नारी जाति का सम्मान- हीरा और मोती नारी का सम्मान करते हैं। वे स्त्री जाति पर हाथ उठाने का विरोध करते हैं |
    5. स्वतंत्रता प्रिय- हीरा और मोती गया के घर, कांजीहौस तथा बधिक के हाथों में रहते हुए भी अपनी स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करते हैं और अंततः वे इसमें सफल भी होते हैं।
    6. धर्म-परायणता- हीरा-मोती गया द्वारा पीटे जाने पर उसकी जान नहीं लेते। मोती के कहने पर कि 'मुझे मारेगा तो मैं भी एक-दो को गिरा दूँगा' हीरा उसे समझाता है कि नहीं, हमारी जाति का यह धर्म नहीं है।'
  4. 'दो बैलों की कथा' के मुख्य पात्र हीरा-मोती ने पूरे पाठ में अपने साहस और एकता का प्रदर्शन किया है | पकड़े जाने पर वे जोर लगाकर भागते हैं और पकड़ में नहीं आते हैं। अपने से भारी-भरकम और खूँखार साँड़ को वे दोनों मिलकर पराजित करने में सफल होते हैं । दोनों मित्र मिलकर कांजीहौस की दीवार गिराकर जानवरों को आज़ाद कराते हैं | नीलाम होने पर वे दढ़ियल से मुकाबला कर अपनी जान बचा लेते हैं और अपने मालिक के पास पहुँच जाते हैं | इससे सिद्ध होता है कि एकता में शक्ति होती है।
  5. गया के घर से भागकर आए हीरा-मोती को देखकर झूरी स्नेह से गदगद हो गया। वह उन्हें प्यार से गले लगाकर चूमने लगा । गाँव के सभी बच्चों ने तालियाँ बजाकर दोनों बैलों का स्वागत किया। हीरा-मोती उनके लिए किसी विजयी से कम नहीं थे | बच्चों ने उन्हें सम्मानित करने का मन बनाया। ईनाम स्वरुप उनके लिए कोई बच्चा अपने घर से रोटियाँ, कोई गुड़, कोई चोकर और कोई भूसी आदि ले आया। झूरी की पत्नी दोनों बैलों को अपने द्वार पर आया हुआ देखकर जल-भुन गई | वह उन्हें नमकहराम कहने लगी। उसने झूरी से कहा कि ये दोनों काम के डर से वहाँ से भाग आए हैं | उसने नौकर को चेतावनी दे दी कि इन्हें खाने को सूखा भूसा ही दिया जाए।