अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले - CBSE Test Papers

सीबीएसई कक्षा-10 हिंदी ब
टेस्ट पेपर-01
पाठ-15 अब कहाँ दूसरे के दुःख से -निदा फ़ाज़ली

निर्देश -
  1. सभी प्रश्न अनिवार्य है।
  2. प्रश्न 1 से 3 एक अंक के है।
  3. प्रश्न 4 से 8 दो अंक के है।
  4. प्रश्न 9 से 10 पांच अंक के है।

  1. बड़े-बड़े बिल्डर समुद्र को पीछे क्यों धकेल रहे थे?
  2. कबूतर परेशानी में इधर-उधर क्यों फड़फड़ा रहे थे?
  3. सुलेमान ने चींटियों से क्या कहा?
  4. अरब में लशकर को नूह के नाम से क्यों याद करते हैं?
  5. लेखक ने ग्वालियर से बंबई तक किन बदलावों को महसूस किया? पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
  6. डेरा डालने से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
  7. शेख अयाज़ के पिता अपने बाजू पर काला च्योंटा रेंगता देख भोजन छोड़ कर क्यों उठ खड़े हुए?
  8. बढ़ती हुई आबादी का पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ा?
  9. दुनिया के वज़ूद तथा प्रकृति के विषय में पाठ में क्या बताया गया है ?
  10. ग्वालियर के मकान में घटी किस घटना से लेखक की माँ को दुःख पहुँचा और लेखक की माँ ने अपनी गलती का किस प्रकार प्रायश्चित किया?
सीबीएसई कक्षा-10 हिंदी ब
टेस्ट पेपर-01
पाठ-15 अब कहाँ दूसरे के दुःख से -निदा फ़ाज़ली
(आदर्श उत्तर)

  1. आबादी बढ़ने के कारण स्थान का अभाव हो रहा था इसलिए बिल्डर नई-नई इमरातें बनाने के लिए बड़े-बड़े बिल्डर समुद्र को पीछे धकेल रहे थे।
  2. कबूतर के घोंसले में दो अंडे थे। एक बिल्ली ने तोड़ दिया था दूसरा बिल्ली से बचाने के चक्कर में लेखक की माँ से टूट गया। कबूतर इससे परेशान होकर इधर-उधर फड़फड़ा रहे थे।
  3. सुलेमान ने चींटियों से कहा कि वे सबके रखवाले हैं। किसी के लिए मुसीबत न होकर सबके लिए मुहब्बत हैं।
  4. अरब में लशकर को नूह के नाम से इसलिए याद करते हैं क्योंकि वे हमेशा दूसरों के दुःख में दुखी रहते थे। नूह को पैगम्बर या ईश्वर का दूत भी कहा गया है। उनके मन में करूणा होती थी।
  5. लेखक पहले ग्वालियर में रहता था। फिर बम्बई के वर्सोवा में रहने लगा। पहले घर बड़े-बड़े होते थे, दालान आँगन होते थे अब डिब्बे जैसे घर होते हैं, पहले सब मिलकर रहते थे अब सब अलग-अलग रहते हैं, इमारतें ही इमारतें हैं पशु-पक्षियों के रहने के लिए स्थान नहीं रहे, पहले अगर वे घोंसले बना लेते थे तो ध्यान रखा जाता था पर अब उनके आने के रास्ते बंद कर दिए जाते हैं।
  6. डेरा डालने का अर्थ है कुछ समय के लिए रहना। बड़ी-बड़ी इमारतें बनने के कारण पक्षियों को घोंसले बनाने की जगह नहीं मिल रही है। वे इमारतों में ही डेरा डालने लगे हैं।जंगल कट गए हैं अब पक्षी इसी तरह अपना ठिकाना ढूढ़ते हैं |
  7. शेख अयाज़ के पिता जब कुँए से नहाकर लौटे तो काला च्योंटा चढ़ कर आ गया। भोजन करते वक्त उन्होंने उसे देखा और भोजन छोड़कर उठ खड़े हुए। वे पहले उसे घर छोड़ना चाहते थे।
  8. बढ़ती हुई आबादी के कारण पर्यावरण असंतुलित हो गया है। आवासीय स्थलों को बढ़ाने के लिए वन, जंगल यहाँ तक कि समुद्रस्थलों को भी छोटा किया जा रहा है। पशुपक्षियों के लिए स्थान नहीं है। इन सब कारणों से प्राकृतिक का सतुंलन बिगड़ गया है और प्राकृतिक आपदाएँ बढ़ती जा रही हैं। कहीं भूकंप, कहीं बाढ़, कहीं तूफान, कभी गर्मी, कभी तेज़ वर्षा इन के कारण कई बिमारियाँ हो रही हैं। इस तरह पर्यावरण के असंतुलन का जन जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा है।
  9. दुनिया कैसे वजूद में आई? पहले क्या थी? किस बिंदु से इसकी यात्रा शुरू हुई? इन प्रश्नों के उत्तर विज्ञान अपनी तरह से देता है, धर्मिक ग्रंथ अपनी-अपनी तरह से। संसार की रचना भले ही कैसे हुई हो लेकिन धरती किसी एक की नहीं है। पंछी, मानव, पशु, नदी, पर्वत, समंदर आदि की इसमें बराबर की हिस्सेदारी है। यह और बात है कि इस हिस्सेदारी में मानव जाति ने अपनी बुद्धि से बड़ी-बड़ी दीवारें खड़ी कर दी हैं। पहले पूरा संसार एक परिवार के समान था अब टुकड़ों में बँटकर एक-दूसरे से दूर हो चुका है। पहले बड़े-बड़े दालानों-आँगनों में सब मिल-जुलकर रहते थे अब छोटे-छोटे डिब्बे जैसे घरों में जीवन सिमटने लगा है। बढ़ती हुई आबादियों ने समंदर को पीछे सरकाना शुरू कर दिया है, पेड़ों को रास्तों से हटाना शुरू कर दिया है, फैलते हुए प्रदूषण ने पंछियों को बस्तियों से भगाना शुरू कर दिया है। बारूदों की विनाशलीलाओं ने वातावरण को सताना शुरू कर दिया। अब गरमी में ज़्यादा गरमी, बेवक्त की बरसातें, ज़लज़ले,सैलाब, तूफ़ान और नित नए रोग, मानव और प्रकृति के इसी असंतुलन के परिणाम हैं। नेचर की सहनशक्ति की एक सीमा होती है।
  10. ग्वालियर में लेखक का एक मकान था, उस मकान के दालान में दो रोशनदान थे। उसमें कबूतर के एक जोड़े ने घोंसला बना लिया था। एक बार बिल्ली ने उचककर दो में से एक अंडा तोड़ दिया। लेखक की माँ ने देखा तो उसे दुख हुआ। उसने स्टूल पर चढ़कर दूसरे अंडे को बचाने की कोशिश की। लेकिन इस कोशिश में दूसरा अंडा उसी के हाथ से गिरकर टूट गया। कबूतर परेशानी में इधर-उधर फड़फड़ा रहे थे। उनकी आँखों में दुख देखकर माँ की आँखों में आँसू आ गए। इस गुनाह को खुदा से मुआफ़ कराने के लिए उसने पूरे दिन रोज़ा रखा। दिन-भर कुछ खाया-पिया नहीं। सिर्फ रोती रही और बार-बार नमाज पढ़-पढ़कर खुदा से इस गलती को मुआफ़ करने की दुआ माँगती रही।