माटी वाली - पुनरावृति नोट्स

CBSE कक्षा 9 हिंदी-A कृतिका
पाठ-4 माटी वाली
पुनरावृत्ति नोट्स

महत्त्वपूर्ण बिन्दु-
इस कहानी में विद्यासागर जी ने विस्थापन की समस्या को प्रभावित ढंग से उठाया है। गरीब और श्रमिक वर्ग इस समस्या से कैसे जूझ रहा है,लेखक ने इसका बहुत ही संवेदनशील और मार्मिक चित्र खींचा है।
  1. कहानी की मुख्य पात्र नाटे कद की एक हरिजन बुढ़िया माटी वाली है जो घर-घर मिट्टी पहुँचाने का कार्य करती थी। टिहरी शहर में शायद ही ऐसा कोई घर होगा जिसे वह जानती न हो । घर-घर में लाल मिट्टी देते रहने के उस काम को करने वाली वह अकेली थी उसका कोई प्रतिद्वंदी नहीं था,उसके बगैर तो लगता था कि टिहरी शहर के घरों में चूल्हा जलना मुश्किल हो जाए । उसकी लाई मिट्टी वहाँ के निवासियों के बहुत काम आती थी जैसे वे उस मिट्टी से रसोई और भोजन कर लेने के बाद चूल्हे चौके की लिपाई करते थे,साल-दो साल में मकान के कमरों,दीवारों की गोबरी लिपाई करने के लिए उन्हें लाल माटी की जरूरत पड़ती थी।
  2. शहरवासी सिर्फ माटी वाली को ही नहीं उसके कंटर को भी अच्छी तरह पहचानते थे,कंटर को इस्तेमाल में लाने से पहले वह उसके ऊपरी ढक्कन को काट कर फेंक देती थी इससे उसे मिट्टी भरने और खाली करने में आसानी रहती थी। रद्दी कपड़े को मोड़ कर बनाये गए एक गोल डिल्ले पर लाल चिकनी मिट्टी से भरा कनस्तर हमेशा दिखाई पड़ता था जिससे वह मिट्टी घरों तक पहुँचाती थी। यही उसके जीविकोपार्जन का साधन था। उसका पूरा समय माटा खान से मिट्टी लाने और घरों तक मिट्टी पहुँचाने में ही बीत जाता था। शहर की मिट्टी रेतीली होने के कारण उसकी लाई लाल मिट्टी की बहुत पूछ रहती थी।
  3. एक दिन माटी वाली मिट्टी लेकर एक घर में पहुँची वहाँ की मालकिन ने उसे खाने के लिए दो रोटी दी,जब मालकिन चाय लेने अंदर गयी तब माटी वाली ने झट से एक रोटी अपने डिल्ले में छिपा ली और दूसरी रोटी चाय से निगल ली। मालकिन ने उसे पीतल के गिलास में चाय दी थी,पुरानी चीजों को संभाल कर रखने की आदत की प्रशंसा करते हुये बुढ़िया कहती है कि आज कल ये चीजें देखने को भी नहीं मिलती है।मालकिन पुरानी चीजों के प्रति अपना लगाव प्रकट करते हुये कहती है कि इनमें हमारे पूर्वजों की मेहनत की कमाई छिपी है पता नहीं उन्होंने कैसे पेट काट कर ये चीजें जोड़ी होंगी।अन्य घर से भी उसे रोटी मिल जाने से उसके शाम के भोजन का प्रबंध हो जाता है।
  4. शाम को घर लौटते हुये माटी वाली को रात हो जाती थी,घर में उसका बीमार पति था।इसी वजह से मन ही मन हिसाब लगाते हुये वह सोचती है कि आज वह बुड्ढे को खाली रोटियाँ नहीं देगी,वह बीमार है और भूखा  भी होगा,आज की आमदनी से प्याज खरीद कर उसकी सब्जी बनाएगी और मिली हुई तीन रोटियों में से डेढ़ रोटी सब्जी के साथ परोस कर उसे आश्चर्यचकित कर देगी क्योंकि बीमार होने के कारण इससे ज्यादा वह खा नहीं सकता। शेष रोटियों से अपना काम चला लेगी।लेकिन घर पहुँचने पर उसके पैरों की आहट सुन कर बुड्ढा न तो चौंका और न ही उसने नजरें घुमाई ,घबराई हुई माटी वाली ने जब उसे छूकर देखा तो वह अपनी माटी छोड़ कर जा चुका था।
  5. उसके पास न ही अपना कोई खेत था और न ही जमीन का टुकड़ा। उसकी झोपड़ी भी ठाकुर की जमीन पर खड़ी थी जिस पर रहने के बदले उसके घर पर कई तरह की बेगार उसे करनी पड़ती थी। टिहरी शहर में बांध बनने का कार्य चल रहा था टिहरी बांध पुनर्वास के साहब उससे उसके घर का प्रमाण पत्र माँगते है लेकिन वह कहती है कि उसका पूरा जीवन माटा खान में काम करते हुये बीत गया था।बुढ़िया साहब से पूछती है कि बांध बन जाने पर वह कहाँ जायेगी और क्या खायेगी लेकिन उस अधिकारी के पास उसके प्रश्न का कोई जवाब नहीं होता है । टिहरी बांध की दो सुरंगे बंद हो जाने पर शहर में पानी भर जाता है और लोग अपना घर छोड़ कर भागने लगते हैं यहाँ तक श्मशान भी डूब जाते हैं । माटी वाली अपनी झोपड़ी के बाहर बैठी है और हर आने-जाने वाले से एक ही बात कह रही है कि “गरीब आदमी का श्मशान नहीं उजड़ना चाहिए।"