प्राकृतिक संसाधनों का संपोषित प्रबंधन - पुनरावृति नोट्स

CBSE कक्षा 10 विज्ञान
पाठ-16 प्राकृतिक संसाधनों का संपोषित प्रबंधन
पुनरावृति नोट्स

  • प्राकृतिक संसाधनः- वे संसाधन जो प्रकृति के द्वारा हमें दिए जाते हैं। मिट्टी, वायु, जल, वन, वन्यजीवन, कोयला और पेट्रोलियम जीवों के द्वारा अपने अस्तित्व को चलाने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं।
  • प्राकृतिक संसाधनों को बचाए रखने के लिए हमें संसाधनों के प्रबंधन की आवश्यकता होती है।
  • पर्यावरण को बचाने के लिए कई राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय अधिनियम है।
  • गंगा कार्य योजना:- यह कार्ययोजना करोड़ों रूपयों  का प्रोजेक्ट है। इसे सन् 1985 में गंगा स्तर सुधारने के लिए बनाया गया।
  • गंगा कार्य योजना के अन्तर्गत एक सर्वे किया गया तथा कोलिफार्म (एक प्रकार का बैक्टीरिया जो मनुष्य की आंत में पाया जाता है) बैक्टीरिया के आँकड़े एकत्रित किए गए जो निम्न थे।
  • 1993-94 (कुल कोलिफार्म) एमपीएन/100 मिली
    • ऋषिकेश में न्यूनतम- 600-650 MPN/100ml
    • न्यूनतम एच्छिक स्तर- 450MPN/100ml
    • कन्नौज में अधिकतम- 1400MPN/100ml
      [MPN - MOST PROBABLE NUMBER]
  • जीव संरक्षण हेतु राष्ट्रीय पुरस्कार- अमृता देवी बिश्नोई जिन्होनें राजस्थान में खेजरी वृक्षों को बचाने के लिए 363 अन्य लोगों के साथ अपना बलिदान दे दिया। उनके सम्मान में यह पुरस्कार दिया जाता है।
  • चिपको आन्दोलन- यह आन्दोलन 1970 के दशक में गढ़वाल जिले में आरम्भ हुआ जो इस बात का प्रतीक था कि स्थानीय लोगों की भागीदारी से निश्चित रूप से वनों के प्रबंधन की दक्षता बढ़ती है। सन् 1972 में पश्चिम बंगाल में साल के वनों का संरक्षण
  • पर्यावरण के सरंक्षण हेतु 3R's
    • रिड्यूस ( उपयोग कम) अर्थात संसाधनों के सीमित प्रयोग करें तथा उन्हें बर्बाद न करें।
    • रिसाइकिल ( पुनः चक्रण) कूड़े से से पुनःचक्रण हो जाने वाले पदार्थों को अलग करके आवश्यकता की वस्तुएं बनाना
    • रियूज (पुनः इस्तेमाल ) चीजों को बार-बार इस्तेमाल करें।
  • पुनः इस्तेमाल पुनः चक्रण की अपेक्षा बेतहर हैं क्योंकि इसमें ऊर्जा की बचत होती है।
  • संसाधनों के प्रबंधन की आवश्यकता हैं ताकि यह अगली कई पीढ़ियों तक उपलब्ध हो सके और कम अवधि के उद्देश्य हेतु उनका दोहन न हों। यह भी देखना कि जब हम इनका दोहन करें तो पर्यावरण को क्षति न पहुँचे।
  • वन एवं वन्य जीवन संरक्षण:- वन जैव विविधता के तप्त स्थल है। अर्थात वहां अनेक प्रकार की संपदा पाई जाती है। जैव विविधता का आधार उस क्षेत्र में पाई जाने वाली विभिन्न स्पीशीज़ जैसे बैक्टीरिया, कवक, पुष्पी पादप, कीट, पक्षी आदि हैं।
  • जैव विविधता का आधार उस क्षेत्र में पाई जाने वाली विभिन्न स्पीशीज जैसे बैक्टीरिया, कवक, पुष्पी पादप, कीट, पक्षी आदि हैं।
  • जैव विविधता के नष्ट होने पर प्राकृतिक सन्तुलन भी प्रभावित होता है।
  • वन के दावेदार (वनों, पर उनकी निर्भरता)
    • स्थानीय लोग (अपनी सभी आवश्यकताओं के लिए वनों पर आश्रित)
    • सरकारी वन विभाग (सरकार जिसके पास वनों का स्वामित्व है। तथा वनों को नियंत्रित करते हैं।)
    • उद्योगपति (जो वनों से प्राप्त उत्पादों का उपयोग करते हैं।)
    • वन्य जीवन एवं प्रकृति प्रेमी (जो प्रकृति को बचाना चाहते हैं।)
  • संदूषित विकास:- पर्यावरण को नुकसान पहुँचाए बिना लम्बे समय तक विकास चालू रखना संदूषित विकास कहलाता है।
  • जल एक संसाधन के रूप में।
  • जल पृथ्वी पर पाए जाने वाले सभी जीवों की मूलभूत आवश्यकता है।
  • जल की कमी वाले क्षेत्रों का सीधा सम्बन्ध उनकी अति गरीबी से संबंधित हैं।
  • भूजल की उपलब्धता में कमी आने का मुख्य कारण है पेड़ों को काटना, फसल के लिए जल की अधिक मात्रा की मांग, उद्योगों में प्रवाहित प्रदूषक एवं नगरों का कूड़ा कचरा। अल्प या अपर्याप्त वर्षा।
  • भारत के कई क्षेत्रों में बाँध तालाब और नहरें सिचाई के लिए उपयोग किए जाते हैं।
  • बांध
  • बांधो के लाभ:-
    • सिंचाई के लिए पर्याप्त जल सुनिश्चित
    • विद्युत उत्पादन
    • क्षेत्रों में जल का लगातार वितरण करना
  • बाँधों से हानियां:-
    • पानी का समान रूप से वितरण न होना।
    • बड़ी संख्या में लोग विस्थापित होते है।
    • जनता का बहुत अधिक धन लगता है और उस अनुपात में लाभ अपेक्षित नहीं हैं।
    • बड़े स्तर पर वनों का विनाश होता है तथा जैव विविधता की हानि होती हैं।
  • जल संग्रहण- इसका मुख्य उद्देश्य भूमि एवं जल के प्राथमिक स्रोतों का विकास करना, द्वितीयक संसाधन पौधे एक जन्तुओं का उत्पादन इस प्रकार करना जिससे पारिस्थितिक असंतुलन पैदा न हो।
  • जल संग्रहण के परम्परागत तरीके-
    तरीके का नामराज्य का नाम
    खादिन, बड़े पात्र, नाड़ीराजस्थान
    बंधारस एवं तालमहाराष्ट्र
    बंधिसमध्य प्रदेश व उत्तर प्रदेश
    आहर तथा पाइनबिहार
    तालाबजम्मू
    एरिसतमिलनाडू
    बावड़ीराजस्थान एवं दिल्ली
  • जल संग्रहण तकनीक स्थानीय होती है तथा इसका लाभ भी स्थानीय सीमित क्षेत्र को होता हैं। स्थानीय तकनीक के कारण इन संसाधनों के अकुशल प्रबंधन एवं अतिशोषण होने से बचाव होता हैं।
  • खादिन तकनीक के लाभ:-
    • पानी का वाष्पीकरण न होना।
    • कुओं को भरता है और पौधों को नमी पहुँचाता है।
    • जल मच्छरों के एवं जन्तुओं के अपशिष्ट से संदूषण से सुरक्षित रहता है।
    • मच्छरों के जनन की समस्या नहीं रहती।
  • कोयला और पेट्रोलियम
    • सामान्यतः इन्हें जीवाश्म ईधन कहते है।
    • ये करोड़ो वर्ष पहले वनस्पति तथा जंतु अवशेषों के अपघटन से बने है।
    • चाहे हम कितनी सावधानीपूर्वक इनका उपभोग करें ये भविष्य में समाप्त हो जाएंगे।
    • पेट्रोलियम के भंडार लगभग 40 वर्षों में समाप्त हो जाएँगे। कोयले के भंडार लगभग 200 वर्षों में समाप्त हो जाएंगे।
    • जीवाश्म ईधनों में हाइड्रोजन, नाइट्रोजन और सल्फर पाया जाता है।
  • जीवाश्म ईंधनों के प्रयोग मितव्ययता क्यों बरतनी चाहिए
    • जीवाश्म ईधनों को दहन करने पर ये कार्बन डाइआक्साइड गैस, जल, नाइट्रोजन आक्साइड तथा सल्फर आक्साइड का निर्माण करते हैं। इनमें से CO2 ग्रीन हाउस गैस है जिससे विश्व उष्णता उत्पन्न होती हैं।
    • जब इनका दहन अपर्याप्त ऑक्सीजन में होता है तो कार्बन मोनोक्साइड गैस उत्पन्न होती हैं जो जहरीली है। सर्दियों में अंगीठी जलाने पर घुटन का अनुभव होता है।
    • दहन होने पर जो आक्साइड पैदा होते हैं वे वायु प्रदूषण उत्पन्न करते हैं।
  • जीवाश्म ईंधन के प्रयोग को सीमित करने के उपाय
    • निजी वाहन की अपेक्षा सार्वजनिक यातायात का प्रयोग करना चाहिए।
    • घरों में फ्लोरोसेन्ट ट्यूब लगायें, लिफ्ट की अपेक्षा सीढ़ी का उपयोग, जहाँ तक सम्भव हो विद्युत का कम से कम उपयोग करें।