प्रेमचंद के फटे जूते - पुनरावृति नोट्स

CBSE कक्षा 9 क्षितिज हिंदी अ
पुनरावृत्ति नोट्स
पाठ-6 प्रेमचंद के फटे जूते

महत्त्वपूर्ण बिन्दु-
  1. “प्रेमचंद के फटे जूते” निबंध संस्मरण विधा में लिखा गया है,जो प्रेमचंद के व्यक्तित्व की सादगी के साथ एक रचनाकार की अंतर्भेदी सामाजिक दृष्टि का विवेचन करते हुए आज की दिखावे की प्रवृत्ति एवं अवसरवादिता पर व्यंग्य करता है।
  2. लेखक के सामने प्रेमचंद का चित्र है,जिसमें वे अपनी पत्नी के साथ फोटो खिंचा रहे हैं। उनके सिर पर किसी मोटे कपड़े की टोपी,कुर्ता और धोती पहने हैं। कनपटी चिपकी है,गालों की हड्डियाँ उभर आई है,पर घनी मूँछों के कारण उनका चेहरा भरा-भरा सा लगता है।
  3. उनके पाँवों में कैनवस के जूते है जिनके बंद बेतरतीब ढंग से बंधे हैं,लापरवाही से प्रयोग करने के कारण उनकी लोहे की पतरी निकल आई है।दाहिने पाँव का जूता ठीक है लेकिन बाएँ जूते में बड़ा छेद हो जाने से अँगुली बाहर निकल आई है।
  4. लेखक की दृष्टि उन जूतों पर अटक गयी वे सोचने लगे कि फोटो खिंचानें की अगर यह पोशाक है तो पहनने की पोशाक कैसी होगी ? यदि वे चाहते तो धोती को थोड़ा खींच कर अँगुली ढक सकते थे। फोटो पर अंकित उनकी मुस्कान उन लोगों पर व्यंग्य है जो सिर्फ दिखावे के लिए जीते हैं।
  5. लेखक प्रेमचंद के क्लेश को अपने भीतर महसूस करके मानो रोना चाहता है,उसे लगता है कि लोग अकसर फोटो खिंचानें के लिए कोट यहाँ तक की बीवी भी उधार माँग लेते हैं तो प्रेमचंद ने फोटो खिंचानें के लिए जूते क्यों नहीं माँग लिए।
  6. टोपी आठ आने में मिल जाती है और जूता पाँच रुपये में। जूता हमेशा टोपी से कीमती रहा है। निश्चय ही प्रेमचंद जूते और टोपी के आनुपातिक मूल्य के मारे हुए थे। प्रसिद्ध कथाकार होते हुए भी उनका जूता फटा हुआ था जो बहुत बड़ा दुर्भाग्य है।
  7. यद्यपि परसाई जी का स्वयं का जूता भी फटा हुआ था लेकिन ऊपर से अच्छा दिखता है। अँगुली बाहर नहीं निकलती पर अँगूठे के नीचे तला फट जाने वह जमीन पर घिसता है और रगड़ खाकर लहूलुहान हो जाता है जबकि प्रेमचंद की अँगुली दिखती है परंतु पाँव सुरक्षित है। प्रेमचंद पर्दे का महत्त्व नहीं जानते जबकि लेखक उसी पर्दे के लिए कुर्बान हो रहे हैं।
  8. लेखक ने उनकी रचनाओं के गरीब पात्रों का भी उल्लेख किया है जैसे होरी,हलकू माधो आदि उन चरित्रों की भाँति प्रेमचंद भी बनिए के तगादे से बचने के लिये मील दो मील का चक्कर लगाते रहे होंगे जिसकी वजह से उनका जूता फट गया होगा,ऐसा लेखक का विचार है। 
  9. हो सकता है कि किसी सख्त चीज़ पर ठोकर मारते रहने के कारण उनका जूता फट गया होगा,यह भी हो सकता है कि उनके मार्ग में कोई टीला आ गया होगा जिस पर उन्होंने अपना जूता आजमाया हो, वे चाहते तो अपना रास्ता भी बदल सकते थे लेकिन उन्होंने कोई समझौता नहीं किया।
  10. अंत में लेखक महसूस करता है कि प्रेमचंद उन पर या उन लोगों पर हँस रहे हैं जो अँगुली छिपाये और तलुआ घिसाए चल रहे हैं लेकिन जूता ऊपर से ठीक दिख रहा है।
  11. प्रेमचंद की अँगुली जरूर बाहर निकल आई है पर पाँव बचा हुआ है,अगर तलुआ नष्ट हो गया तो लेखक चलेंगे कैसे,परसाई जी इस व्यंग्य और प्रश्न को बखूबी समझ रहें हैं।