चंद्र गहना से लौटती बेर - पुनरावृति नोट्स

CBSE कक्षा 9 हिंदी-A क्षितिज
पाठ-14 चंद्र गहना से लौटती बेर
पुनरावृत्ति नोट्स

महत्त्वपूर्ण बिन्दु-
कवि चंद्र गहना नामक स्थान से लौट रहा है। लौटते हुए उसके किसान मन को खेत-खलिहान एवं उनका प्राकृतिक परिवेश सहज आकर्षित कर लेता है। सृजनात्मक कल्पना की अभिव्यक्ति क्षमता के कारण कवि की सूक्ष्म दृष्टि साधारण वस्तुओं में भी असाधारण सौंदर्य देख लेती है। यहाँ प्रकृति और संस्कृति की एकता की एकता व्यक्त हुई है।
  1. चंद्र गहना से लौटते हुए कवि खेत की मेड़ पर अकेला बैठा हुआ प्राकृतिक दृश्य देख रहा है जहाँ उसे बित्ते भर का चने का पौधा दिखाई देता है जो उसे दूल्हे की भाँति लगता है । पौधे पर निकले हुए गुलाबी फूल उसे ऐसे लगते हैं जैसे वह गुलाबी रंग का मुरैठा सिर पर बांधे खड़ा है । उसी के बीच में अलसी हठपूर्वक उग आई है,जिसका शरीर पतला और कमर लचीली है।उसके सिर पर नीले फूल हैं, नायिका की भाँति उसे अपनी सुंदरता पर बड़ा घमंड है । ऐसा प्रतीत होता कि मानों बड़े गर्व से वह कह रही हो कि जो भी उसका स्पर्श करेगा उसे ही अपने हृदय का दान देगी। यहाँ चने और अलसी का मानवीकरण किया गया है।
  2. कवि सरसों के लिए बताता है कि अब वह सयानी हो गयी है अर्थात पक कर तैयार हो गयी है। उस पर आए पीले फूल इस बात का संकेत कर रहे हैं कि वह विवाह के लिए मंडप में पधार चुकी है। फागुन मास गाता हुआ आ गया है। कवि को खेत में स्वयंवर जैसा दृश्य दिखाई पड़ता है । प्रकृति का अनुराग रूपी आंचल हिल रहा है। शहर के कोलाहल से दूर कवि को वहाँ प्रेमयुक्त वातावरण दिखाई दे रहा है। यहाँ सरसों,फागुन का मानवीकरण और रूपक अलंकार है।
  3. कवि के पैरों तले एक पोखर है जिसके तल में उगी घास मानो उसी के साथ लहरें लेती दिखाई देती है। नदी गोल खंभे के समान लेटी हुई है उसकी चमक आँखों को चकमकाती है। नदी के किनारे आधे डूबे हुये पत्थर ऐसे लगते है कि लगातार पानी पीने पर भी उनकी प्यास बुझ नहीं रही है। पानी में आंखे बंद कर के टांग डुबाये खड़ा बगुला जैसे ही किसी मछ्ली को देखता है झट से पकड़ कर निगल लेता है। इस पंक्ति से कवि ने बगुला भगत जैसी प्रवृति वाले लोगों पर व्यंग्य किया है।
  4. काले माथे वाली चतुर चिड़िया जैसे ही किसी मछली को पानी के ऊपर देखती है,झपट्टा मार कर दूर आकाश में उड़ जाती है। कवि जहाँ पर है वहाँ उसे रेल की पटरी दिखाई देती है,किन्तु उसे कहीं जाना नहीं है। वह उस शांत वातावरण में कुछ समय बिताना चाहता है।
  5. यहाँ चित्रकूट की अनगढ़ पहाड़ियाँ हैं,इधर-उधर रींवा के कुरूप पेड़ हैं । कवि को वहाँ तोते का मीठा स्वर सुनाई देता है। उसे सारस का टिरटों -टिरटों का स्वर भी सुनाई देता है जिसे सुन कर कवि का मन होता है कि उसके साथ वह भी उड़ कर वहाँ चला जाए जहाँ चारों ओर सिर्फ प्रेम का वातावरण है ।