मेरे संग की औरतें - पुनरावृति नोट्स

CBSE कक्षा 9 हिंदी-A कृतिका
पाठ-2 मेरे संग की औरतें
पुनरावृत्ति नोट्स

महत्त्वपूर्ण बिन्दु-
समकालीन हिन्दी कथा साहित्य की महत्त्वपूर्ण हस्ताक्षर मृदुला गर्ग द्वारा लिखित “मेरे संग की औरतें” नए प्रकार की शैली में लिखा संस्मरणात्मक गद्य है। परंपरागत तरीके से जीते हुए भी लीक से हटकर कैसे जिया जा सकता है,यह पाठ ऐसी औरतों पर केन्द्रित है।
  1. खिका की नानी थीं जिन्हें उसने कभी देखा नहीं था फिर भी उनके बारे में उसने बहुत कुछ सुन रखा था उस आधार पर लेखिका की नानी पारंपरिक,अनपढ़,परदानशीं औरत थीं,जिनके पति शादी के तुरंत बाद उन्हें छोड़कर बैरिस्टरी पढ़ने विलायत चले गए थे। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से डिग्री लेकर लौटने के बाद वे विलायती रंग-ढंग से जीवन व्यतीत करने लगे किन्तु उनकी उस दिनचर्या का नानी के ऊपर कोई असर नहीं हुआ, न ही नानी ने कभी अपनी पसंद-नापसंद का पता पति को लगने दिया। कम उम्र में स्वयं को मृत्यु के निकट पाकर नानी को अपनी पंद्रह वर्ष की बेटी(लेखिका की माँ) के विवाह की चिंता हुई और पर्दे का लिहाज छोड़कर उन्होंने नाना से उनके स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मित्र प्यारेलाल शर्मा से मिलने की इच्छा प्रकट की,घर के सभी लोगों को आश्चर्य हुआ कि आजीवन जिसने कभी पराए मर्द से क्या अपने पति से भी मुँह खोल कर बात नहीं की आज अपने अंतिम समय में ऐसा क्यों कह रहीं हैं लेकिन नाना ने भी उनकी इच्छा का सम्मान करते हुए अपने मित्र को तत्काल उनके सामने उपस्थित कर दिया। सबको आश्चर्य में डालते हुए नानी ने उनसे कहा “कि मेरी लड़की के लिए वर आप तय करेंगे,मैं नहीं चाहती कि उसका विवाह साहबों के फरमाबरदार से हो,आप अपनी ही तरह किसी आजादी के सिपाही को ढूंढ कर उसकी शादी करवा दीजिएगा।“इसप्रकार नानी ने अपना जीवन अपनी शर्तों पर अपने हिसाब से जिया। वास्तव में दूसरों की तरह न जीने की आजादी असली आजादी से कुछ ज्यादा ही थी।
  2. लेखिका की माँ की की शादी एक ऐसे होनहार लड़के से हुई जिसे आजादी के आंदोलन में हिस्सा लेने के अपराध में आई॰सी॰एस॰ के इम्तिहान में बैठने से रोक दिया गया था और उसकी कोई पुश्तैनी जमीन-जायदाद भी नहीं थी फलस्वरूप लेखिका की माँ अपनी माँ और गांधी जी के सिद्धांतों के आधार पर सादा जीवन बिताने के लिए मजबूर थीं। लेखिका की माँ इतनी नाजुक मिजाज थीं कि खादी की भारी साड़ी पहनने पर उनकी कमर चनका खा जाती थी फिर भी वे रातभर जग कर साड़ी पहनने का अभ्यास करती थीं ताकि उन्हें दिन में शर्मिंदिगी न उठानी पड़े। ससुराल में माँ का बहुत मान-सम्मान था,सभी उनके साहबी पिता की आन-बान-शान से अभिभूत थे। माँ की शख्सियत का सभी सम्मान करते थे उसका कारण उनकी खूबसूरती,नजाकत,गैर-दुनियादारी के साथ ईमानदारी और निष्पक्षता थी । वे घर-गृहस्थी का कोई काम नहीं करती थीं और न ही उनसे कोई कहता था यहाँ तक की बच्चों की परवरिश की कोई ज़िम्मेदारी उन्होंने कभी भी नहीं उठाई थी। उनका ज़्यादातर वक्त किताबें पढ़ने,संगीत सुनने और साहित्य चर्चा करने में व्यतीत होता था फिर भी घर के हर छोटे-बड़े मामले में उनसे सलाह अवश्य ली जाती थी और उसका सम्मान भी किया जाता था। माँ कभी झूठ नहीं बोलती थीं और एक की गोपनीय बात कभी किसी दूसरे पर जाहिर नहीं करती थी इसलिए घर के लोग उनपर श्रद्धा रखकर अपने मन की बातें भी बता देते थे इसप्रकार छह बच्चों और सास-ससुर के साथ रहते हुए भी एक आम औरत की तरह जीवन न बिता कर उन्होंने अपना जीवन अपने मन-मुताबिक जिया।