अपठित गद्यांश - CBSE Test Papers
CBSE Test Paper 01
अपठित गद्यांश
अपठित गद्यांश
- निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर सम्बंधित पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
विज्ञान ने मानव जीवन को सुखद व सुगम बना दिया है। पहले लंबी दूरी की यात्रा करना मनुष्य के लिए अत्यंत कष्टदायी होता था। अब विज्ञान ने मनुष्य की हर प्रकार की यात्रा को सुखमय बना दिया है। सड़कों पर दौड़ती मोटरगाड़ियाँ एवं एयरपोर्ट पर लोगों की भीड़ इसका उदाहरण है। पहले मनुष्य के पास मनोरंजन के लिए विशेष साधन उपलब्ध नहीं थे। अब उसके पास मनोरंजन के हर प्रकार के साधन उपलब्ध हैं।
रेडियो, टेपरिकॉर्डर से आगे बढ़कर अब एलइडी, डीवीडी एवं डीटीएच, कंप्यूटर, इंटरनेट, मोबाइल को ज़माना आ गया है। यही नहीं मनुष्य विज्ञान की सहायता से शारीरिक कमज़ोरियों एवं स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से छुटकारा (निजात) पाने में अब पहले से कहीं अधिक सक्षम हो गया है और यह सब संभव हुआ चिकित्सा क्षेत्र में आई वैज्ञानिक प्रगति से।
अब ऐसी असाध्य बीमारियों का इलाज भी संभव है, जिन्हें पहले लाइलाज समझा जाता था। अब टीबी सहित कैंसर जैसी खतरनाक बीमारियों को शुरुआती स्तर पर ही समाप्त करना संभव हो गया है। आज हर हाथ में मोबाइल का दिखना भी विज्ञान के वरदान का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। दुनिया की किसी भी चीज़ का दुरुपयोग बुरा होता है। विज्ञान के मामलों में भी ऐसा ही हैं। विज्ञान का यदि दुरुपयोग किया जाए, तो इसका परिणाम भी बुरा ही होगा।
इस दृष्टिकोण से देखा जाए तो विज्ञान का सहयोग मनुष्य के लिए एक अभिशाप के रूप में सामने आया है। विज्ञान की सहायता से मानव ने घातक हथियारों का आविष्कार किया तथा साथ ही मनुष्य ने अपने सुख-चैन के लिए अनेक प्रकार की मशीनों को भी आविष्कार किया, किंतु अफ़सोस की बात यह है कि मशीन के साथ-साथ वह भी मशीन होता जा रहा है, जिसके कारण उसकी जीवन-शैली भी अत्यंत व्यस्त हो गई है।- विज्ञान ने मनुष्य के जीवन को कैसे सुखद बनाया है? स्पष्ट कीजिए।
- चिकित्सा के क्षेत्र में विज्ञान से क्या लाभ हुए हैं? उदाहरण सहित समझाए।
- प्रस्तुत गद्यांश के आधार पर बताइए कि विज्ञान हमारे लिए 'वरदान' किस प्रकार है? अपने तर्क की पुष्टि कीजिए।
- विज्ञान ने मनुष्य को क्या-क्या सुविधाएँ दी है ? संक्षेप में बताइए।
- प्रस्तुत गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक दीजिए।
- निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर सम्बंधित पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
भारतवर्ष सदा से कानून को धर्म के रूप में देखता आ रहा है। आज एकाएक कानून और धर्म में अंतर कर दिया गया है। धर्म को धोखा नहीं दिया जा सकता है। यही कारण है कि जो लोग धर्मभीरु हैं। वे कानून की त्रुटियों से लाभ उठाने में संकोच नहीं करते। इस बात के पर्याप्त प्रमाण खोजे जा सकते हैं कि समाज के ऊपरी वर्ग में चाहे जो भी होता रहा हो, भीतर-भीतर भारतवर्ष अब भी यह अनुभव कर रहा है कि धर्म कानून से बड़ी चीज़ है। अब भी सेवा, ईमानदारी, सच्चाई और आध्यात्मिकता के मूल्य बने हुए हैं। वे दब अवश्य गए हैं, लेकिन नष्ट नहीं हुए हैं। आज भी वह मनुष्य से प्रेम करता है, महिलाओं का सम्मान करता है, झूठ और चोरी को गलत समझता है, दूसरे को पीड़ा पहुँचाने को पाप समझता है। हर आदमी अपने व्यक्तिगत जीवन में इस बात का अनुभव करता है। समाचार-पत्रों में जो भ्रष्टाचार के प्रति इतना आक्रोश है, वह यही साबित करता है कि हम ऐसी चीज़ों को गलत समझते हैं और समाज में उन तत्त्वों की प्रतिष्ठा कम करना चाहते हैं, जो गलत तरीके से धन और मान संग्रह करते हैं।
दोषों का पर्दाफ़ाश करना बुरी बात नहीं है। बुराई यह मालूम होती है कि किसी के आचरण के गलत पक्ष को उद्घाटित करके उसमें रस लिया जाता है और दोषोद्घाटन को एकमात्र कर्तव्य मान लिया जाता है। बुराई में रस लेना बुरी बात है। अच्छाई में उतना ही रस लेकर उजागर न करना और भी बुरी बात है। सैंकड़ों घटनाएँ ऐसी घटती हैं, जिन्हें उजागर करने से लोक-चित्त में अच्छाई के प्रति अच्छी भावना जागती है।- धर्मभीरु लोग कानून की खामियों का किस रूप में प्रयोग करते हैं तथा उन्हें कानून से ज्यादा भय किससे रहता है?
- भारत में भीतर-भीतर धर्म तथा कानून में किसे अधिक मान्यता प्राप्त है और क्यों?
- समाज में आध्यात्मिक मूल्य किन्हें माना जाता रहा है? वर्तमान समय में उनकी क्या स्थिति है?
- अखबारों में भ्रष्टाचार विषयक आरोपों द्वारा आक्रोश को। प्रकाशित किया जाना किस बात का प्रमाण है? प्रायः लोगों को इस प्रकार का धनोपार्जन कैसा लगता है?
- निम्नलिखित में से संधि-विच्छेद कीजिए।
भ्रष्टाचार, दोषद्घाटित।
CBSE Test Paper 01 अपठित गद्यांश (Answer)
- मानव जीवन को सुखद व सुगम बनाने का श्रेय विज्ञान को ही जाता है। क्योंकि प्राचीन समय में मनुष्य को यात्रा करने में कई दिन, महीने तथा सालों तक का समय लगता था, परंतु अब मोटरगाड़ी और हवाई जहाज़ के आविष्कार से वह मिनटों और सेकंडों में कहीं भी और कभी भी पहुँच सकता है।सड़कों पर दौडती मोटर गाड़ियाँ एवं एरपोर्ट पर लोगों की भीड़ इसका उदहारण है |आज मनुष्य के पास रडियो ,टेपरिकार्ड ,कम्प्यूटर ,मोबाइल जैसे कई मनोरंजन के साधन भी उपलब्ध हैं। इस प्रकार विज्ञान ने मनुष्य के जीवन को सुखद बनाया है।
- विज्ञान ने चिकित्सा के क्षेत्र में भी प्रगति की है। विज्ञान चिकित्सा क्षेत्र में शारीरिक कमज़ोरियों एवं स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से छुटकारा पाने में अब पहले से कहीं अधिक सक्षम हो गया है।असाध्य बीमारियों क इलाज भी आज संभव हो गया है | लाइलाज टीबी सहित कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी का इलाज विज्ञान से ही संभव हो पाया है।
- विज्ञान मनुष्य की सबसे बड़ी उपलब्धि है, जिससे मनुष्य ने अपनी सभी सुख-सुविधाओं का लाभ उठाया है, चाहे वह यातायात के साधन हों या फिर मनोरंजन के साधन, विज्ञान ने इन्हें मनुष्य के लाभ के लिए बनाए हैं।इतना ही नहीं विज्ञान की सहायता से मनुष्य शरीरिक कमजोरियों एवं स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से छुटकारा पा लिया है | विज्ञान ने हमें बहुत-सी सुविधाएँ दी हैं, इसलिए विज्ञान हमारे लिए वरदान है।
- विज्ञान ने मनुष्य को सभी तरह की सुख-सुविधाओं का लाभ दिया है। परिवहन के लिए मोटर, वाहन, मनोरंजन के लिए एलइडी, डीवीडी, डीटीएच, कंप्यूटर, इंटरनेट,मोबाईल आदि साधन विज्ञान ने ही मनुष्य को उपलब्ध कराए हैं।मनुष्य सुख -चैन के लिए विज्ञान के सहारे अनेक प्रकार के मशीनों को भी अविष्कार किया |
- प्रस्तुत गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक है-' विज्ञान : वरदान या अभिशाप।'
- प्रस्तुत गद्यांश का उचित शीर्षक 'परिश्रम ही सफलता की कुंजी है' होना चाहिए। धर्मभीरु लोग कानून की खामियों या त्रुटियों से अपने हित पूर्ति हेतु लाभ उठाने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं, जिसमें उन्हें संकोच भी नहीं होता है। यह भी सत्य है कि धर्मभीरु लोग कानून की अपेक्षा धर्म से अधिक भयभीत रहते हैं, क्योंकि हमारे देश में कानून को धर्म के रूप में देखा जाता।
- हमारे देश में धर्म और कानून के संदर्भ में मत रखने वाले दो वर्ग हैं, जिसमें एक वर्ग वह है जो भीतर-भीतर। आज भी यह अनुभव करता है कि धर्म कानून से श्रेष्ठ है। और उसे कानून की अपेक्षा अधिक मान्यता प्राप्त है. क्योंकि कानून को धोखा दिया जा सकता है, परंतु धर्म को धोखा दिया जाना पाप की श्रेणी में गणनीय है।
- समाज में सेवा, ईमानदारी, सच्चाई आदि को आध्यात्मिक मूल्य माना जाता रहा है। वर्तमान में ये मूल्य दय अवश्य । गए है; परंतु नष्ट नहीं हुए है। आज भी एक मनुष्य दूसरे मनुष्य से प्रेम भाव उद्घाटित करता है, महिलाओं का सम्मान करता है, झूठ और चोरी को गलत मानता है। तथा दूसरों को पीड़ा पहुँचाना पाप समझता है।
- अखबारों में भ्रष्टाचार विषयक आरोपों द्वारा आक्रोश को। प्रकाशित किया जाना इस बात का प्रमाण है कि हम लोग भ्रष्टाचार को गलत व अनैतिक मूल्यों की कसौटी पर रखते हैं और भ्रष्टाचार में लिप्त लोगों की प्रतिष्ठा कम करना । चाहते हैं। प्रायः लोगों को भ्रष्टाचार के माध्यम से कमाया। हुआ धन अनैतिक लगता है, जो मनुष्य की प्रतिष्ठा को कम कर देता है।
- भ्रष्टाचार - भ्रष्ट + आचार, दषोद्घाटित - दोष + उद्घाटित