ऊर्जा के स्रोत - पुनरावृति नोट्स

CBSE कक्षा 10 विज्ञान
पाठ-14 ऊर्जा के स्त्रोत
पुनरावृति नोट्स

  • ऊर्जा के विविध रूप है तथा ऊर्जा के एक रूप को दूसरे रूप में परिवर्तित किया जा सकता है।
    उदाहरण के लिए यदि हम किसी मोमबत्ती को जलाते हैं तो मोम की रसायनिक ऊर्जा, ऊष्मीय ऊर्जा तथा प्रकाश ऊर्जा में परिवर्तित हो जाती है।
  • एक उत्तम ऊर्जा का स्त्रोत वह है, जो-
    1. प्रति एकांक द्रव्यमान, अधिक कार्य करे (उच्च कैलोरीफिक माप)।
    2. सरलता से सुलभ हो सके।
    3. भंडारण तथा परिवहन में आसान हो।
    4. सबसे अधिक महत्वपूर्ण यह है कि वह सस्ता भी हो।
  • ऊर्जा के स्त्रोत
    पारंपरिक स्त्रोतवैकल्पिक/गैर पारंपरिक स्त्रोत
    1. जीवाश्म ईंधन - कोयला व पेट्रोलियम1. सौर ऊर्जा-सौर कुकर, सौर पैनल
    2. तापीय विद्युत संयंत्र2. समुद्रों से ऊर्जा-ज्वारीय ऊर्जा, तरंग ऊर्जा, महासागरीय, तापीय ऊर्जा
    3. जल विद्युत संयंत्र3. भूतापीय ऊर्जा
    4. जैव मात्रा (बायो-मास)4. नाभिकीय ऊर्जा
    5. पवन ऊर्जा 
  • ऊर्जा के पारंपरिक स्त्रोत
  • जीवाश्म ईंधन- जीवाश्म से प्राप्त ईधन उदाहरण- कोयला व पेट्रोलियम
    लाखों वर्षों से उत्पादन, सीमित भंडार, अनवीनीकरणीय ऊर्जा स्रोत
  • भारत वर्ष में विश्व का 6 % कोयला भंडार हैं जो कि वर्तमान दर से खर्च करने पर अधिकतम 250 वर्ष तक बने रहेंगे।
  • हानियां:- जीवाश्म ईधन के जलने से मुक्त कार्बन, नाइट्रोजन एवं सल्फर के ऑक्साइड की वजह से वायुप्रदूषण, अम्ल वर्षा तथा पौधों पर प्रभाव समस्या होती है।
  • जल विद्युत संयंत्र गिरते जल की स्थितिज ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में रूपांतरित कर देते हैं।
  • चूँकि जल प्रपातों की संख्या कम है अतः पिछली शताब्दी में विश्व में बड़ी संख्या में बाँध बनाए गए है।
  • भारत में ऊर्जा की मांग का 25 प्रतिशत की पूर्ति जल विद्युत संयंत्रो से की जाती है।
  • जल विद्युत उत्पन्न करने के लिए नदियों के बहाव को रोककर बड़े जलाशय (कृत्रिम झीलों) में जल एकत्र करने के लिए ऊँचे-ऊँचे बाँध बनाए जाते है। बांधों से जल ऊँचाई से गिरता हुआ, टरबाइनों के ब्लेडों पर दबाव बनाकर उन्हें घूर्णन गति देता हैं जिसके फलस्वरूप जनित्र द्वारा विद्युत उत्पादन की जाती हैं।
  • बांधे का निर्माण निम्न हेतु किया जाता हैं:-
    1. बाढ़ रोकना
    2. सिचाई करना
    3. जलविद्युत निर्माण करना
  • बाँधो के निर्माण से हानियाँ:-
    1. कृषि योग्य भूमि तथा मानव आवास नष्ट होना।
    2. जैव सम्पत्ति का डूबना तथा जिनके सड़ने मेथेन गैस बनना जो कि एक पौधा पर प्रभाव गैस भी है।
  • जैव मात्रा ( बायो मास) कृषि व जन्तु अपशिष्ट जिन्हें ईंधन के रूप में उपयोग किया जाता है। उदाहरण - लकड़ी, गोबर, सूखे पत्ते, तने आदि।
  • हालांकि जैव मात्रा केवल तकनीक की मदद से उत्तम ईंधन बन पाया है जैसे गोबर का उपयोग गोबर - गैस संयंत्र में होने पर वह एक सस्ता व उत्तम ईंधन बन पाया है।
  • बायो गैस (जैव गैस) एक उत्तम ईधन हैं जिसमें 75 प्रतिशत मेथेन होती है। इसकी तापन क्षमता अधिक होती है।
  • जैव गैस का उपयोग ईधन व प्रकाश स्त्रोत के रूप में गांव-देहात में किया जाता है।
  • जैव गैस संयंत्र में शेष बची स्लरी में नाइट्रोजन व फास्फोरस की उपस्थिति की वजह से, वह एक उत्तम खाद के रूप में उपयोग होती है।
  • जैव ऊर्जा का नवीनीकरणीय स्त्रोत हैं।
  • जैव गैस गोबर के अनाक्सी श्वसन ( अपमार्जन द्वारा होता है) द्वारा निर्मित होती हैं।
  • पवन ऊर्जा : सूर्य विकिरणों द्वारा भूखंडो तथा जलाशयों के असमान तप्त होने के कारण वायु में गति उत्पन्न होती है तथा पवनों का प्रवाह होता है। पवनों की गतिज ऊर्जा का उपयोग पवन चक्कियों द्वारा विभिन्न कार्यों में किया जाता है।
  • पवन चक्कियों द्वारा पवन ऊर्जा का उपयोग जल को कुओं से खींचने तथा विद्युत का निर्माण के लिए किया जाता है।
  • सामान्यतः पवन चक्कियों की घूर्णन गति को टरबाईन को घूमाने के लिए किया जाता हैं जिससे जनित्र द्वारा वैद्युत उत्पन्न की जाती हैं।
  • हालांकि एकल पवन चक्की से बहुत कम ही उत्पादन होता है, इसलिए बहुत सारी पवन चक्की को स्थापित एक साथ किया जाता है और वह स्थान पवन ऊर्जा फार्म कहलाता है।
  • पवन ऊर्जा से विद्युत उत्पादन करने में विश्व में पांचवे स्थान पर है और हमारी उत्पादन क्षमता 45000 मेगावाट हैं।
  • पवन चक्की चलाने हेतु पवन गति 15-20 किमी प्रति घंटा होनी आवश्यक है।
  • पवन ऊर्जा के लाभ:-
    1. पर्यावरण हितैषी होना।
    2. नवीनीकरणीय ऊर्जा का उत्तम स्त्रोत
    3. विद्युत ऊर्जा उत्पन्न करने में बार-बार खर्चा/लागत न होना।
  • पवन ऊर्जा की सीमितताएँ:-
    1. पवन ऊर्जा फार्म के लिए अत्याधिक भूमि क्षेत्र की आवश्यकता होना।
    2. लगातार 15-20 किमीप्रति घंटा पवन गति की आपूर्ति करना।
    3. अत्याधिक प्रारम्भिक लागत होना।
    4. पवन चक्की के ब्लेड्स की प्रबंधन लागत का अधिक होना।
  • सौर ऊर्जा
    सौर ऊर्जा:- सूर्य से प्राप्त ऊर्जा को सौर ऊर्जा कहते हैं। ये दृश्य प्रकाश, अवरक्त किरणों, पराबैंगनी किरणों के रूप में होती है।
  • सौर स्थिरांक- 1.4 kJ/sm2
    पृथ्वी के वायुमंडल की परि रेखा पर सूर्य की किरणो के लंबवत स्थित खुले क्षेत्र के प्रति एकाकं क्षेत्रफल पर प्रति सेकेण्ड पहुँचने वाली सौर ऊर्जा को सौर-स्थिरांक कहते हैं।
  • सौर ऊर्जा युक्तियाँ:-
    • सौर कुकर
    • सौर जल तापक
    • सौर जल पम्प
      [सौर ऊर्जा को ऊष्मा के रूप में एकत्रित करके उपयोग किया जाता है।]
    • सौर सैल
      [सौर ऊर्जा को विद्युत में रूपांतरित करके फिर उपयोग में लाया जाता हैं।]
  • सौर कुकर (बॉक्स रूपी)
    बॉक्स रूपी सौर कुकर में ऊष्मारोधी पदार्थ का बक्सा लेते हैं जिसके आंतरिक धरातल तथा दीवारों पर काला पैन्ट करते हैं। बॉक्स को कांच की शीट से ढकते है। कब्जों की सहायता से एक समतल दर्पण को बॉक्स के ऊपर तिरछा करके इस प्रकार से समायोजित करते हैं ताकि दर्पण अधिकतम सूर्य प्रकाश को परावर्तित करके बॉक्स में भेज दे। यदि ऐसे कुकर को 3-4 घंटे तक सूर्य के प्रकाश में रखा जाए तो बक्से के अन्दर का ताप से चावल, दाल सब्जियों को उबाला या पकाया जा सकता है।
  • सौर कुकर के लाभ
    1. सौर ऊर्जा लगभग सभी जगहों पर प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं।
    2. यह पर्यावरण हितैषी हैं।
    3. एक से अधिक खाना एक साथ बनाया जा सकता है।
  • सौर कुकर की हानियाँ
    1. यह सभी प्रकार के भोजन बनाने के लिए उपयुक्त नहीं हैं।
    2. इसे केवल तेज धूप के समय ही प्रयुक्त किया जा सकता है।
    3. जिन क्षेत्रों में सूर्य का प्रकाश बहुत अल्प मात्रा में प्राप्त होता है जैसे ध्रुवीय प्रदेश, उन क्षेत्रों में सौर ऊर्जा की उपयोगिता सीमित है।
  • सौर सेल
    सौर सैल सौर ऊर्जा को सीधे विद्युत में रूपान्तरित करते हैं।
    एक प्ररूपी सौर सेल 0.5 से 1 वोल्टता देता है और लगभग 0.7 विद्युत शक्ति उत्पन्न कर सकता है।
  • सौर सेल के लाभ
    1. सौर सेल के प्रचलन और रखरखाव की लागत अत्यन्त कम।
    2. इनमें कोई भी गतिमान पुरजा नहीं हैं।
    3. ये बिना किसी फोकसन युक्ति के काफी संतोषजनक कार्य करते हैं।
    4. इन्हें सुदूर स्थानों में भी स्थापित किया जा सकता है।
    5. यह पर्यावरण हितैषी है।
  • सौर सेल की हानियाँ:-
    1. सौर सेलो के उत्पादन की समस्त प्रक्रिया बहुत महँगी है।
    2. सौर सेलों को बनाने में उपयोग होने वाले विशिष्ट श्रेणी के सिलिकॉन की उपलब्धता सीमित है।
  • सौर सेल का उपयोग
    1. ट्रैफिक सिग्नलों, परिकलको तथा बहुत से खिलौनों में सौर सेल लगे होते हैं।
    2. मानव-निर्मित उपग्रहों में सौर सेल का उपयोग होता है।
    3. रेडियो तथा बेतार संचार तंत्रों, सुदूर क्षेत्रों के टी. वी. रिले केन्द्रों में सौर सेल पैनल का उपयोग होता है।
  • सौर सेल पैनल
    व्यावहारिक उपयोग के लिए पर्याप्त विद्युत उत्पन्न करने के लिए बहुत अधिक संख्या में सौर सेलों को संयोजित करके सौर पैनल तैयार किए जाते हैं।
  • सौर सैल बनाने के लिए उपयोग में आने वाले पदार्थ
    सौर सेल बनाने के लिए सिलिकॉन का उपयोग किया जाता हैं। सौर सेलों को परस्पर संयोजित करके सौर पैनल बनाने में चाँदी का उपयोग होता है।
  • समुद्रों से ऊर्जा
    ये तीन प्रकार से प्राप्त की जा सकती है:-
    • ज्वारीय ऊर्जा
    • तरंग ऊर्जा
    • महासागरीय तापीय ऊर्जा
  • ज्वारीय ऊर्जा:- ज्वार-भाटे में जल के स्तर के चढ़ने और गिरने से ज्वारीय ऊर्जा प्राप्त होती हैं। ज्वारीय ऊर्जा का दोहन सागर के किसी संकीर्ण क्षेत्र पर बांध का निर्माण करके किया जाता है। बांध के द्वार पर टरबाइन होते हैं जो ज्वारीय ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में रूपातंरित कर देती हैं।
  • तंरग ऊर्जा:- तरंग ऊर्जा का वही पर उपयोग हो सकता है जहाँ तरंगे अत्यन्त प्रबल हो। तरंग ऊर्जा से टरबाइन को घुमाकर विद्युत उत्पन्न करने के लिए उपयोग होता है।
  • महासागरीय तापीय ऊर्जा- ताप में अंतर का उपयोग (पृष्ठ जल तथा गहाराई जल में ताप का अंतर) सागरीय तापीय ऊर्जा रूपांतरण विद्युत संयंत्र (OTEC) में ऊर्जा प्राप्त करने के लिए किया जाता है।
    पृष्ठ के तप्त जल का उपयोग अमोनिया को उबालने में किया जाता है। द्रवों की वाष्प फिर जनित्र के टरबाइन को घुमाती है और विद्युत उत्पन्न की जाती है।
  • भूतापीय ऊर्जा
    जब भूमिगत जल तप्त स्थलों के संपर्क में आता है तो भाप उत्पन्न होती हैं। जब यह भाप चट्टानों के बीच फंस जाती हैं तो इसका दाब बढ़ जाता है। उच्च दाब पर यह भाप पाइपो द्वारा निकाली जाती है, यह भाप विद्युत जनित्र की टरबाइन को घुमाती हैं तथा विद्युत उत्पन्न की जाती हैं।
  • नाभिकीय ऊर्जा
    नाभिकीय विखंडन अभिक्रिया एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें किसी भारी परमाणु जैसे यूरेनियम के नाभिक को निम्न ऊर्जा न्यूट्रॉन से बमवारी कराकर हलके नाभिको में तोड़ा जा सकता हैं, जिससे विशाल मात्रा में ऊर्जा मुक्त होती हैं।
    नाभिकीय संयंत्रों में नाभिकीय विखंडन प्रक्रिया का उपयोग किया जाता है जिनमें नियंत्रित दर पर ऊर्जा मुक्त होती है। इस ऊर्जा का उपयोग भाप बनाकर विद्युत उत्पन्न करने में किया जाता हैं।
    नाभिकीय विद्युत संयंत्र : भारतवर्ष में तारापुर (महाराष्ट्र) राणाप्रताप सागर, कोटा (राजस्थान), नरोरा (उत्तर प्रदेश) कलपक्कम ( तमिलनाडु) में नाभिकीय विद्युत संयंत्र है।
  • नाभिकीय संयंत्रों के मुख्य लाभ
    नाभिकीय संयंत्रों का मुख्य लाभ यह हैं कि नाभिकीय ईधन की अल्प मात्रा के विखंडन से ऊर्जा की अत्याधिक मात्रा मुक्त होती है।
    नाभिकीय संयंत्रों
    1. नाभिकीय ऊर्जा का बड़े पैमाने पर प्रयोग नहीं होता है क्योंकि नाभिकीय विद्युत संयंत्रो की स्थापना की लागत बहुत हैं।
    2. नाभिकीय संयंत्रो से नाभिकीय विकिरण के रिसाव का डर भी बना रहता है।
    3. नाभिकीय अपशिष्टों के समुचित भंडारण तथा निपटारा न होने की अवस्था में पर्यावरण संदूषित हो सकता है।
  • पर्यावरण विषयक सरोकार
    स्वच्छ ईधन वह है जो दहन पर ऊर्जा की अधिक मात्रा उत्पन्न करे जिसे दक्षतापूर्वक उपयोग में लाया जा सके और पर्यावरण को संदूषित न करे। संपीडित प्राकृतिक गैस एक स्वच्छ ईधन गैस है।