विद्युत धारा के चुंबकीय प्रभाव - पुनरावृति नोट्स

CBSE कक्षा 10 विज्ञान
पाठ-13 विद्युत धारा के चुंबकीय प्रभाव
पुनरावृति नोट्स

इस अध्याय में हम पढ़ेगे कि विद्युत धारा के अन्य प्रभाव क्या हो सकते है।
  • हैंस क्रिश्चियन आँस्टेंड (1777-1851)
    आँस्टेड ने यह प्रमाणित किया कि विद्युत तथा चुम्बकत्व एक दूसरे से संबंध रखते हैं। उनकी इस खोज का उपयोग अनेक प्रौद्योगिक जैसे रेडियो, टेलीविजन में किया गया।
    उन्ही के सम्मान में चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता का मात्रक आँस्टेंड (Oersted) रखा गया।

    XY ताँबें का सीधा मोटा तार (चालक) है।
    इस ताँबे के तार के निकट एक छोटी दिक्सूचक रखिए। जब परिपक्ष में विद्युत धारा प्रवाहित होती है और जैसे ही विद्युत धारा XY ताँबे की तार में से प्रवाहित होगी वैसे ही पास में रखे दिक्सूचक की सुई विक्षेपित हो जाती है। अगर हम विद्युत धारा की दिशा बदल दे, तो दिक्सूचक की सुई की दिशा भी बदल जाएगी। अगर प्लग में कुंजी हटाकर परिपथ में विद्युत धारा प्रवाहित न की जाए, तो दिक्सूचक की सुई भी विक्षेपित नहीं होगी।
    अर्थात हम यह निष्कर्ष निकालते हैं कि विद्युत तथा चुम्बकत्व एक दूसरे से संबंधित होते है। किसी चालक तार में विद्युत धारा प्रवाहित करने पर, तार के चारों और चुम्बकीय क्षेत्र स्थापित हो जाता है।
  • चुम्बकीय क्षेत्र- किसी चुम्बक के चारो और का वह क्षेत्र जहाँ उसके कारण चुम्बकीय आकर्षण या प्रतिकर्षण होता है उसे चुम्बक का चुम्बकीय क्षेत्र कहते है। यह एक सदिश राशि है। जिसकी दिशा और परिणाम दोनों होता है।
  • दिक्सूचक- यह एक छोटी सी चुम्बकीय छड़ है। जिसकी सूई का उत्तर, पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव और दक्षिण, पृथ्वी के दक्षिणी ध्रुव की और दर्शाता है।
  • चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ:- जब एक छड़ चुम्बक को ड्राइगबोर्ड पर रखेंगे और उसके चारो और लोह-चूर्ण फैलाएगें। तो लौह चूर्ण स्वयं को दर्शाए गए पैटर्न में व्यवस्थित कर लेता हैं।

    वह रेखाएं जिनके अनुदिश लौह चूर्ण स्वयं सरिखित होता है, चुम्बकीय क्षेत्र रेखाओं को दर्शाती हैं। या किसी स्थान पर चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा वह दिशा है जिसमें एक छोटी चुम्बकीय सुई को रखने पर सुई उत्तरी ध्रुव पर निशान लगाएँ, इस प्रकार चुम्बकीय क्षेत्र को रेखाओं में निरूपित किया जा सकता है।
  • चुम्बकीय क्षेत्र रेखाओं के गुण:-
    1. परिपाटी के अनुसार चुम्बक के बाहर चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएं चुम्बक के उत्तर धुव्र से प्रकट होती हैं तथा दक्षिण ध्रुव पर विलीन हो जाती है चुबंक के भीतर ये रेखाएं दक्षिण ध्रुव से उत्तर ध्रुव की और जाती है। अतः चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएं एक बंद वक्र होती है।
    2. चुम्बकीय क्षेत्र की प्रबलता, रेखाओं की निकटता पर निर्भर करता है। जहाँ चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ अधिक निकट होती हैं वहाँ चुम्बकीय क्षेत्र प्रबल होगा और निकटता कम होगी वहाँ चुम्बकीय क्षेत्र दुर्बल होता है।
    3. दो चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ कही भी एक दूसरे को प्रतिच्छेद (काटा) नहीं करती। अगर वे ऐसा करे तो प्रतिच्छेद बिन्दु पर चुम्बकीय क्षेत्र को दो दिशाएँ होगी, जो कि असंभव है।
  • किसी विद्युत धारावाही चालक के कारण चुम्बकीय क्षेत्र
      
    एक सरल विद्युत परिपथ जिसमें किसी लंबे ताँबे के तार को किसी दिक् सूची के ऊपर तथा उसकी सुई के सामांतर रखा गया है।
    हम देखेगे कि जब तार में विद्युत धारा की दिशा उत्क्रमित होती है तो दिसुची सुई का विक्षेपन विपरीत दिशा में होता है।
    अर्थात किसी धातु के चालक में विद्युत धारा प्रवाहित करने पर उसके चारों और एक चुम्बकीय क्षेत्रा उत्पन्न हो जाता
  • दक्षिण हस्त अंगुष्ठ नियम-
    किसी विद्युत धारावाही चालक से सम्बन्ध चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा ज्ञात करने का एक सरल उपाय हैं। अपने दाहिने हाथ का अंगुठा इस प्रकार पकड़े कि वह विद्युत धारा की दिशा दिखाए और अंगुलियां चालक के चारों और चुम्बकीय क्षेत्र की रेखाओं को दर्शाती हैं।

    इसे मैक्सवेल का कॉर्क स्क्रू नियम भी कहते हैं।
  • सीधे चालक से विद्युत धारा प्रवाहित होने के कारण चुम्बकीय क्षेत्र-

    चुम्बकीय क्षेत्र रेखाओं की दिशा दक्षिण दिशा हस्त अगुष्ण नियम से पता लगाई जा सकती है।
  • विद्युत धारावाही वृत्ताकार पाश के कारण चुम्बकीए क्षेत्र

    सीधी रेखा वृताकार पाश का आगे का हिस्सा हैं और ऐसी ................ रेखा पाश का पीछे का हिस्सा दर्शाता हैं।
    विद्युत धारावाही तार के प्रत्येक बिंदु से उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएं पाश के केन्द्र पर सरल रेखा जैसी प्रतीत होती है। दक्षिण हस्त अंगुष्ठ का नियम लगाकर हम तार के प्रत्येक भाग पर चुम्बकीय क्षेत्र रेखाओं की दिशा ज्ञात कर सकते है।
  • परिनालिका :- पास-पास लिपटे विद्युतरोधी तांबे के तार की बेलन की आकृति की अनेक फेरों वाली कुंडली को परिनालिका कहते है।
  • परिनालिका में प्रवाहित विद्युत धारा के कारण चुम्बकीय क्षेत्र
    दक्षिण हस्त अंगुष्ठ नियम के द्वारा हम परिनालिका में प्रवाहित विद्युत धारा के कारण उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र रेखाओं की दिशा ज्ञात कर सकते हैं।
    वास्तव में परितालिका का एक सिरा उत्तर ध्रुव तथा दूसरा सिरा दक्षिण ध्रुव की भाँति व्यवहार करता है।
    परिनालिका के भीतर चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ समांतर सरल रेखाओं की भाँति होती हैं। अर्थात परिनालिका के अंदर एक समान चुम्बकीय क्षेत्र होता है।
  • विद्युत चुम्बक:- परिनालिका के भीतर उत्पन्न प्रबल चुम्बकीय क्षेत्र का उपयोग किसी चुम्बकीय पदार्थ जैसे नर्म लोहे को परिनालिका के भीतर रखकर चुम्बक बनाने में किया जा सकता है। इस प्रकार चुम्बक को विद्युत चुम्बक कहते है।
  • चुम्बकीय क्षेत्र में किसी विद्युत धारावाही चालक पर बल
    आंद्रे मैरी एम्पियर (1775-1836) ने विचार प्रस्तुत किया कि चुम्बक को भी विद्युत धारावाही चालक पर परिमाण में समान परंतु विपरीत दिशा में बल आरोपित करना चाहिए।
    प्रयोग-

    विद्युत धारावाही छड़ AB अपनी लंबाई तथा चुम्बकीय क्षेत्र के लंबवत् एक बल अनुभव करती है। अगर धारावाही छड़ में विद्युत धारा की दिशा बदल दी जाए तो आरोपित बल की दिशा भी बदल जाती है।
    अगर चुम्बकीय क्षेत्र रेखाओं की दिशा उनके ध्रुव बदल कर बदल दी जाए, तो भी आरोपित बल की दिशा बदल जाएगी।
    अर्थात आरोपित बल की दिशा निर्भर करती हैं।
    1. विद्युत धारा की दिशा पर
    2. चुम्बकीय क्षेत्र रेखाओं की दिशा पर
  • फ्लेमिंग का वामहस्त नियम
    अंगूठा (Th)umbतर्जनी उंगली (F)ore Fingerमध्यमा उंगली (M)iddle Finger
    Thrust (बल)Field (चुम्बकीय क्षेत्र)Motion विद्युत धारा
    से तीनों राशि एक दूसरे के लम्बवत् होती हैं।
    इस नियम के अनुसार अपने बांए हाथ की तर्जनी मध्यमा तथा अंगूठे को इस प्रकार फैलाए, कि ये एक-दूसरे के परस्पर लंबवत हो। जिसमें-
    तर्जनी उंगली - चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा बताती है।
    मध्यमा उंगली- चालक में प्रवाहित विद्युत धारा की दिशा बताती है।
    तो अंगूठा - चालक पर आरोपित बल की दिशा बताता है।
    विद्युत मोटर- एक ऐसी घुर्णन युक्ति, जो फ्लेमिंग वाम हस्त नियम के अनुसार कार्य करता है। यह विद्युत ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में परिवर्तित करता है।
    माइकेल फैराडे- ने विद्युत चुंबकीय प्रेरण का नियम दिया
    गैल्वनोमीटर- यह एक ऐसा उपकरण है जो किसी परिपथ में विद्युत धारा की उपस्थिति दर्शाता है। यदि धारा शून्य है तो संकेतन (needle) शून्य पर होती है। यदि धारा प्रवाहित होती है तो संकेतन दांए या बांए दिशा में विक्षेपित हो सकता हैं, धारा की दिशा के अनुसार। इसका चिन्ह

    विद्युत चुम्बकीय प्रेरण- इस नियम को हम दो क्रियाकलापों द्वारा समझा सकते हैं।
    प्रथम क्रियाकलपा-
      
    इस प्रयोग में अगर चुम्बकीय छड़ का उत्तरी ध्रुव कुंडली के पास लाते हैं या दूर ले जाते हैं, तो हमें गैल्वनोमीटर के संकेतन में विक्षेपण दिखाई देगा जो शून्य के इधर-उधर होगा। पहले दाएं तो बाद में बाएं।
    इसी प्रकार, अगर हम छड़ को स्थिर रखें और कुंडली को चुम्बक की तरफ या उसे दूर करें तो भी हमें संकेतन विक्षेपित होता दिखेगा। परन्तु अगर दोनों को न हिलाएं अर्थात स्थिर रखें तो गैल्वैनोमीटर का संकेतन शून्य पर रहेगा।
    यह प्रयोग छड़ चुम्बक के दक्षिणी ध्रुव से भी दोहराया जा सकता है। परन्तु अब संकेतन की दिशा पहले प्रयोग की तुलना में बदल जाएगी।
    इसी प्रयोग से हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि जब चुम्बक को या कुंडली को, किसी एक को दूसरे की तुलना में गति प्रदान की जाए तो चुम्बकीय क्षेत्र रेखाओं की प्रबलता पर प्रभाव पड़ेगा, जिससे चुम्बकीए क्षेत्र परिवर्तित हो रहा हैं। इस परिवर्तन के कारण कुंडली के परिपथ में विद्युत धारा प्रेरित हो जाती है। जिसे गैल्वेनोमीटर की सुई के विक्षेपण द्वारा दर्शाया जाता है। द्वितीय क्रियाकलाप-

    इस प्रयोग में प्राथमिक कुंडली में प्रवाहित विद्युत धारा को परिवर्तित किया जा सकता (कुंजी बंद करके या खोल कर), जिसके कारण चुम्बकीय क्षेत्र में परिवर्तन होता है। इसके कारण द्वितीयक कुंडली के चारों ओर की चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएं भी परिवर्तित होती है। जिसके कारण द्वितीयक कुंडली में विद्युत धारा प्रेरित होती है। इसे विद्युत चुम्बकीय प्रेरण कहते हैं।
  • विद्युत चुम्बकीय प्रेरण- वह प्रक्रम जिसके द्वारा किसी (प्राथमिक) चालक के परिवर्ती चुम्बकीय क्षेत्र के कारण अन्य (द्वितीयक) चालक में विद्युत धारा प्रेरित होती है, विद्युत चुम्बकीय प्रेरण कहलाता है।
    जब कुंडली (चालक) की गति की दिशा चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा के लंबवत् होती है तब कुंडली में उत्पन्न प्रेरित विद्युत धारा अधिकतम होती हैं।
  • विद्युत चुम्बकीय प्रेरण- वह प्रक्रम जिसके द्वारा किसी (प्राथमिक) चालक के परिवर्ती चुम्बकीय क्षेत्र के कारण अन्य (द्वितीयक) चालक में विद्युत धारा प्रेरित होती है, विद्युत चुम्बकीय प्रेरण कहलाता है।
    जब कुंडली (चालक) की गति की दिशा चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा के लंबवत् होती हैं तब कुंडली में उत्पन्न प्रेरित विद्युत धारा अधिकतम होती हैं।
  • फ्लैंमिंग का दक्षिण हस्त नियम-
    अंगूठातर्जनी उंगलीमध्यमा उंगली
    चालक की गतिचुम्बकीय क्षेत्रचालक में प्रेरित विद्युत् धारा
    ये तीनों राशि एक दूसरे के लंबवत् होती है।
  • इस नियम के अनुसार-
    अपने दाहिने हाथ की तर्जनी, मध्यमा तथा अंगुठे को इस प्रकार फैलाइए कि ये तीनों एक-दूसरे के परस्पर लंबवत् हो। यदि
    तर्जनी उंगली- चुंबकीय क्षेत्र की दिशा बताती है तथा अंगुठी- चालक की गति की दिशा की ओर संकेत करता हैं तो मध्यमा उंगली- प्रेरित विद्युत धारा की दिशा बताती हैं।
    विद्युत जनित्र- की कार्य प्रणाली इस नियम पर आधारित है। जनित्र यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करता है।
  • विद्युत धारा
    • प्रत्यावर्ती विद्युत धारा- ऐसी विद्युतधारा जो समान काल अंतरालों के पश्चात् अपनी दिशा बदलती है।
    • दिष्ट विद्युत धारा- यह धारा सदैव एक ही दिशा में बहती है।

      आवर्ती - OHz
      आवर्ती (भारत में) 50Hz, (अमेरिका में) 60Hz
  • दिष्ट धारा की तुलना में प्रत्यवर्ती धारा का लाभ
    विद्युत शक्ति को सुदूर स्थानों पर बिना अधिक ऊर्जा क्षय के प्रेषित किया जा सकता है।
    भारत में AC की आवर्ती 50Hz है यानि हर 1/100s के पश्चात् प्रत्यावर्ती धारा अपनी दिशा बदलती हैं।
    घरेलू विद्युत परिपथ
    हमारे घरों में जो विद्युत शक्ति प्राप्त होती है। उसका विभवांतर 220V है और आवर्ती-50Hz है। विद्युत शक्ति की आपूर्ति के तीन तारों का उपयोग होता है।
    1. विद्युन्मय तार- (जिस पर लाल विद्युतरोधी आवरण होता है) इसका विभव उच्च होता है 220V (धनात्मक तार)
    2. उदासीन तार- (जिस पर काला विद्युतरोधी आवरण होता है, इसका विभव निम्न होता है। 220V (ऋणात्मक तार)
      हमारे देश में इन दोनों तारों के बीच का विभवांतर 220V है।
    3. भूसंपर्क तार- (जिस पर हरा विद्युत रोधी आवरण होता है) यह तार घर के निकट भूमि के भीतर बहुत गहराई पर स्थित तांबे की प्लेट से जुड़ी हुई है।
      इस तार का उपयोग विद्युत इस्त्री, टोस्टर, फ्रिज इत्यादि धातु के आवरण वाले विद्युत साधित्रों में सुरक्षा के उपाय के रूप में किया जाता हैं।
      भूसंपर्क तार विद्युत धारा के लिए अल्प प्रतिरोध का चालन पथ प्रस्तुत करता हैं। अगर किसी विद्युत साधिों की धात्विक आवरण से विद्युत धारा का क्षय होता है तो साधित्र का विभव भूमि के विभव के बराबर हो जाएगा, और इसे उपयोग करने वाला व्यक्ति तीव्र विद्युत आघात से बच जाता है।
  • घरेलू विद्युत परिपथ से सम्बंधित कुछ मुख्य बातें
    • हर साधित्र (उपकरण) के लिए अलग-अलग ON/OFF स्विच होता हैं।
    • सभी साधित्रों को बराबर विभवांतर प्राप्त हो, इसलिए विद्युत परिपथ में उन्हें पार्श्वक्रम में जोड़ना चाहिए। इस प्रकार वे कभी भी प्रयोग में जाए जा सकते हैं या नहीं।
    • हमारे घरेलू विद्युत परिपथ को दो विद्युत परिपथ में बांटा जाता है।
      एक जिसमें 15A की विद्युत धारा प्रवाहित होती है जिसका उपयोग उच्च शक्ति उपकरणों के लिए किया जाता हैं।
      जैसे- फ्रीज, गीजर इत्यादि
      दूसरा परिपथ, जिसमें 5A की विद्युत धारा प्रवाहित होती है। जिसका उपयोग निम्न शक्ति उपकरणों के लिए किया जाता है।
      जैसे- पंखा, बल्व इत्यादि।
  • लघु पथन- यह तब होता है जब विद्युन्मय तार और उदासीन तार, विद्युत साधित्रों में खराबी के कारण या विद्युन्मय तार के विद्युतरोधी आवरण के कटन-फटने के कारण एक दूसरे के संपर्क में आ जाती हैं।
  • लघुपथन कैसे होता है?
    जब तारों का विद्युत रोधन क्षतिग्रस्त हो जाता हैं या साधित्र में कोई दोष होता है तब परिपथ में विद्युत धारा एकदम बहुत अधिक हो जाती है। जूल के तापिय प्रभाव के कारण (Hαl2) जिसकी वजह से विद्युन्मय तार में स्पार्क पैदा हो जाता है और साधित्र खराब हो सकते हैं या तार खराब हो सकती हैं।
  • अतिभारण- एक ही साकेट में कई साधित्र संयोजित करने से या वोल्टता में अधिक वृद्धि होने के कारण अतिभारत हो जाता है।
  • अगर किसी विद्युत साधित्र द्वारा प्राप्त विद्युत धारा उसकी क्षमता से अधिक हो जाती है तो विघुन्मय तार गर्म हो जाती हैं। इसे अतिभारण कहते हैं।
    फ्यूज एक ऐसा सुरक्षा यंत्र है जो लघुपथन और अतिभारत जैसी समस्या से बचाता है।