विद्युत - पुनरावृति नोट्स
CBSE कक्षा 10 विज्ञान
पाठ-12 विद्युत
पुनरावृति नोट्स
पाठ-12 विद्युत
पुनरावृति नोट्स
जरा सोचिए बिना बिजली के बिना दिल्ली या किसी शहर की जिन्दगी कैसी हो जाएगी। "विद्युत ऊर्जा'" जिससे आज अधिकतर सभी उपकरण जैसे- टीवी, पंखा, फ्रीज, कम्प्यूटर इत्यादि कार्य करते हैं।
क्योंकि हम विज्ञान पढ़ रहे हैं इसलिए हमारे लिए जरूरी है यह जानना कि "विद्युत" क्या है।
क्योंकि हम विज्ञान पढ़ रहे हैं इसलिए हमारे लिए जरूरी है यह जानना कि "विद्युत" क्या है।
- आवेश
यह बहुत छोटा कण है जो परमाणु में पाया जाता है। यह इलैक्ट्रान या प्रोटोन हो सकता है। अगर इलेक्ट्रान है। ऋणात्मक आवेश हैं और अगर प्रोटोन हैं तो धनात्मक आवेश है।
"कूलंब" (C) इसका SI मात्रक है। - नेट आवेश (Q) कुल आवेश
IC कुलंब नेट आवेश, जो लगभग 6 × 1018 इलेक्ट्रानों के आवेश के बराबर है।
[Q= ne] e = 1.6 × 10-19 °C (इलैक्ट्रान पर ऋणात्मक आवेश)
अगर Q = 1C है तो
[n = 6 × 1018 इलैक्ट्रान] - विद्युत धारा (I)
विद्युत आवेश के प्रवाह की दर को विद्युत धारा कहते हैं। जिससे (I) पर द्वारा व्यक्त करते हैं।
t = समय
विद्युतधारा का SI मात्रक को "ऐम्पियर" कहते हैं। जिसे (A) से व्यक्त करते हैं। - ऐम्पियर- जब IC आवेश IS के लिए प्रवाह करते हैं तो विद्युत धारा IA की रचना होती है।
किसी भी विद्युत परिपथ में विद्युत धारा इलैक्ट्रान के प्रवाह की विपरीत दिशा में बहती है। अर्थात सेल या बैटरी के धनात्मक टर्मिनल से ऋणात्मक टर्मिनल की तरफ।
अल्पमात्रा की विद्युत धारा को व्यक्त कर सकते हैं।
(1) mA = 10-3A
या (2) A (माइक्रो ऐम्पियर) = 10-6A - ऐमीटर परिपथों में विद्युत धारा को मापने के लिए जिस यंत्र का प्रयोग किया जाता है उसे ऐमीटर कहते हैं इसे परिपथ में हमेशा श्रेणी क्रम में संयोजित (लगाया जाता है क्योंकि इसका प्रतिरोध कम होता हैं।
इसे द्वारा दर्शाया जाता है। - विद्युत परिपथ- किसी एक बंद पथ को जिसमें विद्युत धारा बहती है उसे विद्युत परिपथ कहते हैं। विद्युत परिपथों को प्रायः सुविधाजनक आरेश अथवा प्रतीकों द्वारा निरूपित किया जाता है।
तीर का निशान विद्युत धारा के प्रवाह की दिशा बताता है।
उदाहरण - विभवांतर-
उदाहरण- अगर आपने नली (पाइप) से जल प्रवाहित करना है तो उसका एक सिरा ऊंचा रखेंगे, तो नली के दोनों सिरों पर दाब का अंतर बन जाएगा और पानी उच्च दाब से निम्न दाब की ओर बहना शुरू कर देगा।
इसी प्रकार अगर हम चाहते हैं कि इलेक्ट्रान एक बिंदु से दूसरे बिंदु की ओर प्रवाह करे तो हमें वैद्युत दाब का निर्माण करना पड़ेगा।
यह दाबांतर एक या अधिक विद्युत सेलों से बनी बैटरी द्वारा उत्पन्न किया जा सकता है। किसी सेल के अंदर होने वाली रसायनिक अभिक्रिया सेल के टर्मिनलों के बीच विभवांतर उत्पन्न कर देती हैं। - विभावांतर- किसी धारावाही विद्युत परिपथ के दो बिंदुओं के बीच विद्युत विभवातर को हम उस कार्य द्वारा परिभाषित करते हैं जो एकांक आवेश को एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक लाने में किया जाता है।
V → विभवांतर
W → कार्य
Q → नेट आवेश
विभवांतर का SI मात्रक "वोल्ट" V हैं। - बोल्ट- यदि किसी विद्युत धारावाही चालक के दो बिंदुओं के बीच 1 कलाय आवेश को एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक ले जाने में 1 जूल कार्य किया जाता हैं तो उन दो बिंदुओं के बीच विभवांतर 1 वोल्ट होता हैं।
- वोल्टमीटर- इस यंत्र द्वारा "विभवांतर" को मापा जाता हैं। यह हमेशा विद्युत परिपथ में पार्श्वक्रम में संयोजित किया जाता है। क्योंकि इसका प्रतिरोध अधिक होता है।
इसे द्वारा दर्शाया जाता है। - विद्युत परिपथों में सामान्यतः उपयोग होने वाले कुछ अवयवों के प्रतीक
1. सेल 2. बैटरी 3. खुली कुंजी 4. बंद कुंजी 5. जुड़ी हुई तारें (संधि) 6. बिना जुड़ी हुई तारें (बिना संधित) 7. बल्ब 8. ऐमीटर 9. वोल्टमीटर - जार्ज साइयन ओम (1787- 1854) - (ने)
किसी धातु के तार में प्रवाहित विद्युत धारा (I) तथा उसके सिरों के बीच विभवांतर (V) में संबंध का पता लगाया।
इन परिपथ में हम दो नये प्रतीक का उपयोग करते हैं।
प्रतिरोध (R)
परिवर्ती प्रतिरोधक अथवा धारा नियंत्रक - ओम का नियम- इस नियम के अनुसार किसी विद्युत सुचालक (धातु के तार) प्रवाहित होने वाली विद्युत धारा (I) उसके सिरों के बीच विभवांतर के अनुक्रमानुपाती होती है।
"R" एक नियतांक है जिसे तार का प्रतिरोध कहते हैं।
V-I माफ हमेशा सरल रेखीय ग्राफ है। - प्रतिरोध- यह तार का वह गुण है जो अपने में प्रवाहित होने वाले आवेश के प्रवाह का विरोध करता हैं। इससे 'R' दर्शाया जाता है।
प्रतिरोध का SI मात्रक ओम हैं।
V = IR - 1 ओम- यदि किसी चालक के दोनों सिरों के बीच विभवांतर 1V हैं तथा उससे 1A विद्युत धारा प्रवाहित होती है, तब उस चालक का प्रतिरोध (R) 1 ओम होता है।
- परिवर्ती प्ररोध (Rheostat)
हमें पता है कि-
V = IR
{ओम का नियम अर्थात विद्युत धारा (I) और प्रतिरोध (R) एक दूसरे के व्युत्क्रमानुपाती}
इसलिए अगर किसी परिपथ में विद्युत धारा (I) को बढ़ाया या घटाया जा सकता है तो हमें एक उपकरणी की आवश्यकता होती हैं जिसे धारा नियंत्रक कहते हैं।
धारा नियंत्रक- एक युक्ति है जो किसी विद्युत परिपथ में परिपथ के प्रतिरोध को बदलने के लिए उपयोग किया जाता है।
विभवांतर को बिना बदले, विद्युत धारा को नियंत्रित करने के लिए उपयोग किए जाने वाले अवयव को परिवर्ती प्रतिरोध कहते हैं। (या धारा नियंत्रक)
इसका चिन्ह है- OR
अगर किसी चालक का प्रतिरोध कम होता हैं तो वह विद्युत का अच्छा चालक है। - वह कारक जिन पर प्रतिरोध निर्भर करता है।
- चालक की लम्बाई (l)
- उसकी अनुप्रस्थ कार के क्षेत्रफल पर (A)
- पदार्थ की प्रकृति पर
प्रतिरोध (लम्बाई के अनुक्रमानुपाती हैं।
(अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल के व्युत्क्रमानुपाती होता है।)
जिसमें (रो) अनुपातिकता स्थिरांक है।
जिसे चालक के पदार्थ की विद्युत प्रतिरोधकता कहते हैं।
- प्रतिरोधकता - किसी दिए हुए पदार्थ की प्रतिरोधकता उस पदार्थ के 1 मी. भुजा वाले धन द्वारा प्रस्तुत प्रतिरोध के बराबर होती है।
प्रतिरोधकता का SI मात्रक m है।
(SI मात्रक)
किसी पदार्थ की प्रतिरोधकता और प्रतिरोध दोनों ही ताप में परिवर्तन के साथ परिवर्तित हो जाते हैं।- मिश्र धातुओं (धातुओं का संभाग मिश्रण) की प्रतिरोधकता अधिकतर अपने अवयवी धातुओं की अपेक्षा अधिक होती हैं।
- मिश्र धातुओं का उच्च पात पर शीघ्र दहन नहीं होता, इसलिए इनका अधिकतर उपयोंग विद्युत इस्तरी, हीटर, टास्टर आदि विद्युत तापन युक्तियों में होता है।
जैसे- बल्ब के तंतु का निर्माण के लिए 'टेगस्टन' का उपयोग होता है।
- प्रतिरोधकों का श्रेणी क्रम संयोजन -(अधिकतम कुल प्रतिरोध)
एक विद्युत परिपथ में ? जिसमें तीन प्रतिरोध R1, R2 और R3 को श्रेणी क्रम में संयोजित किया गया हैं तो विद्युत परिपथ इस प्रकार बनेगा।
V = IR ओम का नियम
जब हम प्रतिरोधकों को श्रेणी क्रम में जोड़ते हैं तो उनमें से प्रवाहित विद्युत धारा (I) समान होगीं परंतु प्रत्येक प्रतिरोध के दोनों सिरों पर विभवांतर (V) अलग होगा।
V = IR
V1 = IR1
V2 = IR2
V3 = IR3
कुल विभवांतर
V = IR1 + IR2 + IR3
IR = I(R1 + R2 + R3)
अर्थात्, जब बहुत से प्रतिरोधक श्रेणीक्रम में संयोजित होते हैं तो संयोजन का कुल प्रतिरोध R1 + R2 + R3 के योग के बराबर होता है। - प्रतिरोधकों का पार्श्वक्रम संयोजन (न्यूनतम कुल प्रतिरोध)
एक विद्युत परिपथ जिसमें तीन प्रतिरोध R1, R2 और R3 को पार्श्वक्रम में संयोजित किया गया है। तो विद्युत परिपथ इस प्रकार बनेगा
जब हम प्रतिरोधकों को पार्श्वक्रम जोड़ते हैं तो प्रत्येक प्रतिरोध में प्रवाहित होने वाली विद्युत धारा (I) अलग होगी परंतु विभवांतर (उनके दोनों सिरों) पर समान होगा।
ओम का नियम
V = IR
कुल विद्युत धारा
I = I1 + I2 + I3
अर्थात, जब बहुत सारे प्रतिरोधक पार्श्व क्रम में संयोजित होते हैं तो पार्श्वक्रम में संयोजित प्रतिरोधों के समूह के तुल्य प्रतिरोध का व्युत्क्रम प्रथम प्रतिरोधों के व्युत्क्रमों के योग के बराबर होता है। - किसी विद्युत परिपथ में श्रेणी क्रम में संयोजित उपकरणों की हानि-
- श्रेणीबद्ध परिपथ से एक प्रमुख हानि यह होती हैं कि जब परिपथ का एक उपकरण कार्य करना बंद कर दें तो परिपथ टूट जाएगा और परिपथ का कोई और उपकरण भी कार्य नहीं कर सकेगा।
- श्रेणीबद्ध परिपथ में शुरू से अंत तक विद्युत धारा एक समान रहती है। इसलिए अगर किसी विद्युत परिपथ में बल्ब और हॉटर को श्रेणीक्रम में संयोजित करें, तो यह संभव हैं क्योंकि दोनों को कार्य करने के लिए अलग-अलग विद्युत धारा की आवश्यकता होती हैं। एक को कम तो दूसरे को अधिक। अर्थात, इस समस्या का समाधान एक ही है कि उपकरणों को विद्युत परिपथ में पार्श्वक्रम में ही जोड़े।
- विद्युत धारा का तापिय प्रभाव-
बैटरी तथा सेल विद्युत ऊर्जा के स्रोत हैं।बैटरी या सेल (सेल के भीतर होने वाली रसायनिक भिक्रिया सेल के दो टर्मिनलों के बीच विभवांतर पैदा करती है। इलैक्ट्रान (यह विभवांतर इलैक्ट्रान की गति प्रदान करते हैं। परिपथ में विद्युत धारा बनाए रखने के लिए स्रोत को अपनी ऊर्जा खर्च करते रहना पड़ता है। इस ऊर्जा का कुछ भाग कार्य करने में (जैसे पंखे की पंखुड़ियाँ घुमाने में) उपयोग हो जाता है। शेष भाग ऊष्मा को उत्पन्न करने में खर्च होता है। जो विद्युत उपकरणों के ताप में वृद्धि करता है। इसे विद्युत धारा का तापीय प्रभाव कहते हैं। इस प्रभाव का उपयोग तापीय युक्त जैसे इस्तरी, हीटर इत्यादि।
तो विभवांतर (V)
नोट- आवेश (Q) को प्रवाहित करने के लिए किया गया कार्य
W = VQ
स्रोत द्वारा परिपथ में निवेशित शक्ति
(कार्य करने की दर)
(समीकरण (1) से)
(विद्युत धारा)
(t) समय में विद्युत धारा (I) द्वारा उत्पन्न ऊष्मीय ऊर्जा
H = VIt ( P = VI)
[H = I2Rt] ( V= IR)
इसे जूल का तापन नियम कहते हैं। - इस नियम के अनुसार-
किसी प्रतिरोधक में उत्पन्न होने वाली ऊष्मा (H)- प्रवाहित होने वाली विद्युत धारा (I) के वर्ग के अनुक्रमानुपाती हैं
- प्रतिरोध (R) के अनुक्रमानुपाती हैं।
- समय (t) के अनुक्रमानुपाती है जिसके लिए दिए गए प्रतिरोध में विद्युत धारा प्रवाहित होती है।
- विद्युत धारा के तापिय प्रभाव के व्यावहारिक अनुप्रयोग-
- विद्युत इस्तरी, टोस्टर, ओवन, हीटर इत्यादि में उपयोग।
- 'बल्ब' में प्रकाश उत्पन्न करने के लिए। बल्ल का तंतु बनाने के लिए हमें एक प्रबल धातु का उपयोग करते हैं जिसका गलनांक बहुत अधिक है। जैसे टंगस्टर जिसका गलनांक 3380°C हैं। यह तंतु उत्पन्न ऊष्मा को जितना हो सके रोक लेता है और अत्यंत तृप्त होकर प्रकाश उत्पन्न करता है।
- यह प्रभाव ‘फ्यूज' में भी उपयोग होता हैं।
फ्युज- यह एक सुरक्षा युक्ति हैं। जो किसी भी विद्युत परिपथ में उच्च विद्युत धारा को प्रवाहित होने नहीं देता।
फ्यूज की तार का टुकड़ा एक ऐसी मिश्र धातु जैसे- AI, Cu, Fe, Pb, आदि) का होता है जिसका गलनांक कम और प्रतिरोधकता अधिक होती है।
फ्यूज हमेश विद्युत परिपथ में श्रेणी क्रम में लगाया जाता है। जैसे ही विद्युत धारा का मान बढ़ जाता है, वैसे हीं फ्यूज तार का तापमान बढ़ जाता है। जिससे वो पिघल कर टूट जाती है। और परिपथ टूट जाता है।
घरों के परिपथ में उपयोग होने वाले फ्यूज अधिकतर 1A, 2A, 3A,5A, 10A आदि के होते, जो कि उपकरणों की शक्ति पर निर्भर करता है।
उदाहरण- हम एक विद्युत इस्तरी ले लेते हैं। जिसकी शक्ति 1KW हैं। 220V पर कार्य कर रहीं है। तो विद्युत धारा चाहिए।
P = VI
[I = 4.54A] इस प्रकरण में हम 5A का फ्यूज उपयोग करेंगे।
- विद्युत शक्ति- कार्य (विद्युत ऊर्जा के उपयुक्त) होने की दर को विद्युत शक्ति कहते हैं। इसे (P) से दर्शाते हैं।
P = VI
or P = I2R ( V = IR ओम का नियम)
इसका SI मात्रक वाट (W) है।
P = VI
1 वाट = 1 वोल्ट × 1 ऐम्पियर
[1 W = 1 VA]
विद्युत ऊर्जा-
विद्युत ऊर्जा
SI unit of विद्युत ऊर्जा = Ws या J (जूल)
विद्युत ऊर्जा का व्यापारिक मात्रक = KWh (किलोवाट ( घण्ट)) था 1 यूनिट
KWh = 1KW × h
= 1000W × 3600s
= 36 × 105Ws
= 3.6 × 106J
[ 1 KWh = 3.6×106J]
One horse power = 746W