हरिहर काका - महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

CBSE कक्षा 10 हिंदी 'बी' संचयन
पाठ - 1 हरिहर काका
महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

निबंधात्मक प्रश्नोत्तर


  1. कहानी के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि लेखक ने यह क्यों कहा, "अज्ञान की स्थिति में ही मनुष्य मृत्यु से डरते हैं। ज्ञान होने के बाद तो आदमी आवश्यकता पड़ने पर मृत्यु को वरण करने करने के लिए तैयार हो जाता है।"
    उत्तर-
     लेखक ने यह इसलिए कहा क्योंकि हरिहर काका जैसी स्थिति में उलझा प्रत्येक व्यक्ति जानता है कि बार-बार की मौत से बेहतर एक बार की मौत होती है। हरिहर काका के चार भाई थे। तीन भाइयों का भरपूर परिवार था। हरिहर काका ने दो शादियाँ कीं लेकिन उनके संतान नहीं हुई। दोनों पत्नियों के मरने के बाद हरिहर काका ने अपना सारा समय भजन-कीर्तन और भाइयों के परिवार में बिताना आरंभ कर दिया। शुरू-शुरू में उनका अपने भाइयों के परिवार में बहुत आदर सत्कार होता था। लेकिन बाद में उनको रुखा-सुखा खाने को देते थे या फिर वह भी देना भूल जाते थे। जिस दिन हरिहर काका ने अपने खेतों पर अपना अधिकार जमाया उसी दिन से फिर तीनों भाई और महंत जी उनका भरपूर ख्याल रखने लगे थे। हरिहर काका अनपढ़ होते हुए भी समझ गए थे कि यह सारा आदर सत्कार उनके खेतों के कारण है। इसलिए उन्होंने अपने जीवित रहते अपने खेत किसी एक के नाम करने से मना कर दिया। उसी दिन से भाई और महंत जी उनके दुश्मन हो गए थे। हरिहर काका उन लोगों से भय मुक्त हो गए थे क्योंकि वह अपनी कीमत जान चुके थे। इसलिए वह अपने खेतों का उत्तराधिकारी किसी को नहीं बनाना चाहते थे। ‘जब तक खेत उनके पास हैं तब तक सभी उनके इर्द-गिर्द घूम रहे हैं, बाद में उन्हें पूछने वाला कोई नहीं है।’ इस सत्य को उन्होंने जान लिया था। हरिहर काका कि इसी मनः स्थिति के कारण लेखक ने उक्त कथन कहा।
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  3. ‘हरिहर काका’ कहानी का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
    उत्तर-
     घर वह जगह है जो अपनों के सुख-दुख में, आपद-विपद में, हारी-बीमारी में, हर्ष-उल्लास में एक-दूसरे के काम आना सिखाता है। एक-दूसरे की उन्नति का मार्ग प्रशस्त करने की सीख और अवसर देता है। धर्मस्थल इसी अपनेपन को, इसी सहृदयता को, सहयोग की इसी भावना को अपनों से कहीं आगे प्राणीमात्र तक विस्तार देने की समझ और संस्कार देता है। यदि कभी किसी के मामले में घर और धर्मस्थल यानी परिवार और प्रभु दरबार दोनों ही अपनी भूमिका छोड़ अपने मूल स्वभाव की तिलांजलि दे दें तो? तब जो अराजकता और अनाचार, अन्याय और आपाधापी मचेगी, वह वैसी हो होगी जैसी हरिहर काका के संग हुई। सशक्त व्यक्ति-चित्र खींचते हुए कथाकार मिथिलेश्वर ने हरिहर काका कहानी के बहाने ग्रामीण पारिवारिक जीवन में ही नहीं हमारी आस्था के प्रतीक धर्मस्थलों और धर्मध्वजाधारकों में जो स्वार्थ लोलुपता घर करती जा रही है उसे उजागर किया है। हरिहर काका एक वृद्ध और निःसंतान व्यक्ति हैं, वैसे उनका भरा-पूरा संयुक्त परिवार है। गाँव के लोग कुमार्ग पर न चलें यह सीख देने के लिए एक ठाकुराबारी भी है, लेकिन हरिहर काका की विडंबना देखी कि यहीं दोनों उनके लिए काल और विकराल बन जाते हैं। न तो परिवार को हरिहर काका की फिक्र है न मठाधीश को, दोनों उन्हें सुख नहीं देने में, उनका हित नहीं अहित करने में ही मग्न रहते हैं। दोनों का लक्ष्य एक ही है, हरिहर काका की जमीन हथियाना। इसके लिए उन्हें चाहे हरिहर काका के साथ छल, बल, कल का प्रयोग भी क्यों न करना पड़े। पारिवारिक संबंधों में भ्रातृभाव को बेदखल कर पाँव पसारती जा रही स्वार्थ लिप्सा और धर्म की आड़ में फलने-फूलने का अवसर पा रही हिंसावृत्ति को बेनकाब करती यह कहानी आज के ग्रामीण ही नहीं शहरी जीवन का भी यथार्थ उजागर करती है।
  4. लेखक हरिहर काक से कैसे और क्यों जुड़ा है? हरिहर काका की वर्तमान स्थिति के बारे में लेखक का क्या कहना है?
    उत्तर- 
    इस संबंध में लेखक बताता है कि हरिहर काका की जिंदगी से वह बहुत गहरे से जुड़ा है। अपने गाँव में जिन चंद लोगों को वह सम्मान देता है, उनम हरिहर काका भी एक हैं। हरिहर काका के प्रति उसके लगाव के अनेक व्यावहारिक और वैचारिक कारण हैं। उनमें प्रमुख दो हैं। एक तो यह कि हरिहर काका लेखक के पड़ोस में रहते हैं और दूसरा कारण यह है कि लेखक की माँ बताती है, हरिहर काका बचपन में उसे बहुत दुलार करते थे। अपने कंधे पर बैठा कर घुमाया करते थे। एक पिता अपने बच्चे को जितना प्यार करता है, उससे कहीं ज्यादा प्यार हरिहर काका उसे करते थे और जब में बड़ा हुआ तब लेखक की पहली दोस्ती हरिहर काका के साथ ही हुई। हरिहर काका के साथ ही हुई। हरिहर काका ने भी जैसे लेखक से दोस्ती के लिए ही इतनी उम्र तक प्रतीक्षा की थी। माँ बताती है कि लेखक से पहले गाँव में किसी से गहरी दोस्ती नहीं हुई थी। वह लेखक से कुछ भी नहीं छिपाते थे। खूब खुलकर बातें करते थे। लेकिन फिलहाल लेखक से भी कुछ कहना उन्होंने बंद कर दिया है। उनकी इस स्थिति ने लेखक को चिंतित कर दिया है। जैसे कोई नाव बीच मझधार दूर तक फैले सागर के बीच उठती-गिरती लहरों में विलीन हो जाने के अतिरिक्त कर ही क्या सकती है? मौन होकर जल-समाधि लेने के अतिरिक्त कोई दूसरा विकल्प नहीं। लेकिन मन इसे मानने को कतई तैयार नहीं। जीने की ललसा की वजह से बैचेनी और छटपटाहट बढ़ गई हो, कुछ ऐसी ही स्थिति के बीच हरिहर काका घिर गए हैं।
  5. हरिहर काका भोले किसान की अपेक्षा चतुर और ज्ञानी हो गए थे? कैसे?
    उत्तर- हरिहर काका एक सीधे-सादे और भोले किसान की अपेक्षा चतुर और ज्ञानी हो चले थे। वह महसूस करने लगे थे कि उनके भाई अचानक उनको जो आदर-सम्मान और सुरक्षा प्रदान करने लगे हैं, उसकी वजह उन लोगों के साथ उनका सगे भाई का संबंध नहीं, बल्कि उनकी जायदाद है, अन्यथा वे उनको पूछते तक नहीं। इसी गाँव में जयदादहीन भाई को कौन पूछता है? हरिहर काका को अब सब नज़र आने लगा था। महंत की चिकनी-चुपड़ी बातों के भीतर की सच्चाई भी अब वह जान गए थे। ठाकुर जी के नाम पर वह अपना और अपने साधुओं का पेट पालता है। उसे धर्म और परमार्थ से कोई मतलब नहीं। निजी स्वार्थ के लिए साधु होने और पूजा-पाठ करने का ढोंग रचाया है। साधु के बाने में महंत, पुजारी और उनके अन्य सहयोगी लोभी-लालची और कुकर्मी हैं। छल, बल, कल, किसी भी तरह धन अर्जित कर बिना परिश्रम किए आराम से रहना चाहते हैं। अपने घृणित इरादों को छिपाने के लिए ठाकुराबारी को इन्होने माध्यम बनाया है। एक ऐसा माध्यम जिस पर अविश्वास न किया जा सके। इसलिए हरिहर काका ने मन ही मन तय कर लिया कि अब महंत को वे अपने पास फटकने तक भी नहीं देंगे। साथ ही अपनी ज़िंदगी में में अपनी जायदाद भाइयों को भी नहीं लिखेंगे, अन्यथा फिर वह दूध की मक्खी हो जाएँगे। लोग निकालकर फेंक देंगे। कोई उन्हें पूछेगा तक नहीं बुढ़ापे का दुख बिताए नहीं बीतेगा। यह उनके व्यक्तित्व में आया एक बड़ा अंतर था।
  6. "कुमार्ग पर नहीं चलने की सीख देने वाले धर्म स्थानों तथा संयुक्त परिवार से लुप्त हो रहे भ्रातृभाव ने काका का जीना दुश्वार कर दिया।" प्रश्नोक्त पंक्ति किन मूल्यों को इंगित करती हैं?
    उत्तर-
     धर्मभीरु लोगों के चलते वर्तमान में धर्मस्थान अपना लक्ष्य भूलते जा रहे हैं। उनका लक्ष्य समाजसेवी के स्थान पर स्वार्थलोलुपता, धनलिप्सा, भ्रष्टाचार तथा हिंसावृत्ति ने ले लिया है। वहीं परिवारों से भ्रातृभाव का लोप होता जा रहा है। समग्रतः हम कह सकते हैं कि आज का समाज भौतिकवाद की ओर अग्रसर है। आज के रिश्ते स्वार्थ पर आधारित हैं। भाग-दौड़ की वर्तमान जिंदगी में एक-दूसरे का सुख-दुख जानने का समय नहीं रह गया है। समाज में रिश्तों की अहमियत दिन-प्रतिदिन कम होती जा रही है। जिससे हम अपना स्वाभाविक स्वरूप खोते जा रहे हैं। मनुष्य की स्वाभाविकता का नित्य पतन ही ‘हरिहर काका’ जैसे मनुष्यों की परेशानी का मुख्य कारण है। प्रश्नोक्त पंक्ति हमें अपनी स्वाभाविक वृत्ति बनाए रखकर समाज सेवा की प्रेरणा देती है। साथ ही यह हमें धर्म स्थानों पर परिवार से असामाजिक वृत्तियों को दूर करके एक नवीन समाज का निर्माण करने की प्रेरणा भी देती है।