प्रेमचंद के फटे जूते - प्रश्नोत्तर

CBSE class-09 Hindi-A
महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर 
प्रेमचंद के फटे जूते

गद्यांश पर आधारित प्रश्न
1. मैं चेहरे की तरफ देखता हूँ। क्या तुम्हें मालूम है, मेरे साहित्यिक पुरखे कि तुम्हारा जूता फट गया है और अँगुली बाहर दिख रही है? क्या तुम्हें इसका जरा भी अहसास नहीं है? जरा लज्जा, संकोच या झेंप नहीं है? क्या तुम इतना भी नहीं जानते कि धोती को थोड़ा नीचे खींच लेने से अँगुली ढक सकती है? मगर फिर भी तुम्हारे चेहरे पर बड़ी बेपरवाही, बड़ा विश्वास है! फोटोग्राफर ने जब ‘रेडी-प्लीज’ कहा होगा, तब परंपरा के अनुसार तुमने मुसकान लाने की कोशिश की होगी, दर्द के गहरे कुए के तल में कहीं पड़ी मुसकान को धीरे-धीरे खींचकर ऊपर निकाल रहे होंगे कि बीच में ही ‘क्लिक’ करके फोटोग्राफर ने ‘थैंक यू’ कह दिया होगा। विचित्र है यह अधूरी मुसकान। यह मुसकान नहीं, इसमें उपहास है, व्यंग्य है!
1. फोटो में किसका जूता फटा था
क. लेखक का ख. कवि का ग. प्रेमचंद का घ. हरिशंकर परसाई का
उत्तर- ग. प्रेमचंद का
2. साहित्यिक पुरखे किसे संबोधित किया गया है
क. हरिशंकर परसाई को ख. प्रेमचंद को ग. निराला को घ. उपरोक्त सभी को
उत्तर- ख. प्रेमचंद को
3. प्रेमचंद द्वारा फोटो खिचाते समय फटे जूते का ध्यान न रखना क्या साबित करता है
क. वे दिखावा करते थे ख. वे बेपरवाह थे ग. वे सादगीप्रिय थे घ. वे लोकप्रिय थे
उत्तर- ग. वे सादगीप्रिय थे
4. प्रेमचंद की अधूरी मुस्कान में क्या छिपा है?
क. दिखावा ख. बेपरवाही ग. व्यंग्य घ. खुशी का भाव
उत्तर- ग. व्यंग्य
5. इस गद्यांश में किसपर व्यंग्य है?
क. पुराने लेखकों पर ख. सभी लेखकों पर ग. प्रेमचंद पर घ. दिखावे की प्रवृति पर
उत्तर- घ. दिखावे की प्रवृति पर
2. टोपी आठ आने में मिल जाती है और जूते उस जमाने में भी पाँच रुपये से कम में क्या मिलते होंगे। जूता हमेशा टोपी से कीमती रहा है। अब तो जूते की कीमत और बढ़ गई है और एक जूते पर पचीसों टोपियाँ न्योछावर होती हैं। तुम भी जूते और टोपी के आनुपातिक मूल्य के मारे हुए थे। यह विडंबना मुझे इतनी तीव्रता से पहले कभी नहीं चुभी, जितनी आज चुभ रही है, जब मैं तुम्हारा फटा जूता देख रहा हूँ। तुम महान कथाकार, उपन्यास-सम्राट, युग-प्रवर्तक, जाने क्या-क्या कहलाते थे, मगर फोटो में भी तुम्हारा जूता फटा हुआ है!
मेरा जूता भी कोई अच्छा नहीं है। यों ऊपर से अच्छा दिखता है। अँगुली बाहर नहीं निकलती, पर अँगूठे के नीचे तला फट गया है। अँगूठा जमीन से घिसता है और पैनी मिट्टी पर कभी रगड़ खाकर लहूलुहान भी हो जाता है। पूरा तला गिर जाएगा, पूरा पंजा छिल जाएगा, मगर अँगुली बाहर नहीं दिखेगी। तुम्हारी अँगुली दिखती है, पर पाँव सुरक्षित है। मेरी अँगुली ढँकी है, पर पंजा नीचे घिस रहा है। तुम परदे का महत्व ही नहीं जानते, हम परदे पर कुर्बान हो रहे हैं!
1. जूता हमेशा टोपी से क्यों कीमती रहा है?
क. बढती महँगाई ख. वर्तमान कीमत ग. दिखावे की प्रवृति लगातार बढ़ती जा रही है घ. बढ़ता टैक्स
उत्तर- ग. दिखावे की प्रवृति लगातार बढ़ती जा रही है
2. जूते और टोपी के आनुपातिक मूल्य के मारे हुए का आशय है?
क. अधिक मूल्य होने से जूता न खरीद पाना।
ख. जूते की अपेक्षा टोपी को अधिक महत्व देना।
ग. आडंबर की अपेक्षा आत्मसम्मान को अधिक महत्व देना।
घ. टोपी पहनने में अधिक रूचि दिखाना।
उत्तर- ग. आडंबर की अपेक्षा आत्मसम्मान को अधिक महत्व देना।
3. प्रेमचंद क्या-क्या कहलाते थे?
  1. उपन्यास-सम्राट
  2. युग-प्रवर्तक
  3. महान कथाकार
  4. उपरोक्त सभी
उत्तर- घ. उपरोक्त सभी
4. लेखक का जूता कैसा था?
  1. नया
  2. थोड़ा फटा
  3. अँगुली से फटा
  4. तले से फटा
उत्तर- घ. तले से फटा
5. तुम परदे का महत्व ही नहीं जानते, हम परदे पर कुर्बान हो रहे हैं! कहकर लेखक ने किस पर व्यंग्य किया है?
  1. लेखक पर
  2. नयी पीढ़ी पर
  3. राजनेताओ पर
  4. उपरोक्त सब पर
उत्तर- ख. नयी पीढ़ी पर
लघुत्तरीय प्रश्न
1. प्रेमचंद के फटे जूते के आधार पर प्रेमचंद के व्यक्तित्व की विशेषताएँ बताइए?

उत्तर- प्रेमचंद के व्यक्तित्व की निम्नलिखित विशेषताएँ है-
  1. वे सादगी प्रिय थे।
  2. समाज की कुरीतियों व रूढ़ियों का विरोध करते थे।
  3. ऊपरी दिखावा करना उन्हे पसंद नहीं था।
  4. आदर्शवादी और सिद्धांतवादी थे।
3. पंक्तियों में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए-
  1. (क) जूता हमेशा टोपी से कीमती रहा है। अब तो जूते की कीमत और बढ़ गई है और एक जूते पर पचीसों टोपियाँ न्योछावर होती हैं।
  2. (ख) तुम परदे का महत्व ही नहीं जानते,
    हम परदे पर कुर्बान हो रहे हैं।
  3. (ग) जिसे तुम घृणित समझते हो, उसकी तरफ हाथ की नहीं, पाँव की अँगुली से इशारा करते हो?
उत्तर-
  1. जूता यहाँ आडंबर का प्रतीक है तो टोपी आत्मसम्मान का। यहाँ आत्मसम्मान के स्थान पर आडंबर को अधिक महत्व देने की मानसिकता पर चोट की गई है।
  2. यहाँ आज की पीढ़ी की दिखावे की मनोवृति पर व्यंग्य है जो वास्तविकता के स्थान पर ऊपरी दिखावे को ज्यादा पसंद करती है।
  3. प्रेमचंद सदैव सामाजिक रूढ़ियों का विरोध करते रहे। उन्हे पैरों से ठोकर लगाते रहे इसलिए उनके जूते फट गये।उन्होने अपने सिद्धांतो से कभी समझौता नहीं किया।
4. प्रेमचंद के फटे जूते पाठ में मूलतः किस पर व्यंग्य है?
उत्तर- इस पाठ में मूलतः वर्तमान पीढ़ी पर करारा है जो दिखावा और ढोंग पर अवलंलम्बित है। जो आडंबर से लड़ना और आदर्शो पर अडिग रहना नही चाहता है। वह वास्तविकता से मुँह फेरकर दिखावा करते है और उनमें सच को स्वीकारने का साहस है न रूढ़ियों से टकराने का दम।