अनुच्छेद लेखन - महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

CBSE कक्षा 10 हिंदी 'बी'
अनुच्छेद-लेखन

अनुच्छेद-लेखन के विभिन्न उदाहरण निम्नलिखित हैं:
  1. भारत का विकास
    संकेत-बिंदु: (i) भारत का अतीत (ii) भारत सोने की चिड़िया (iii) विभिन्न उद्योगों का विकासक्रम (iv) परमाणु संपन्न राज्य।
    भारत का अतीत कितना उन्नत था। इस बात का अंदाजा आयुर्वेद, धनुर्वेद, ज्योतिष, गणित, राजनीति, चित्रकला, वस्त्र-निर्माण से लगाया जा सकता है। कभी भारत रत्नों एवं हीरों की खान था। विदेशी इसे सोने की चिड़िया के नाम से संबोधित करते थे। परंतु गुलामी ने हमारी समृद्धि को सोख लिया। आज़ादी के बाद अनेक स्थानों पर तेल, गैस, कोयले, लोहे, ताँबे आदि धातुओं की खानों का पता लगाया गया। युरेनियम के भी भंडार मिले हैं। परमाणु शक्ति का निर्माण किया जा रहा है। अनेक प्रकार के कल-कारखाने उभर रहे हैं। उद्योग-धंधों के जाल बिछ रहे हैं। अनेक औद्योगिक बस्तियां बस रही हैं। वस्त्र उद्योग उन्नति की चरम सीमा की ओर बढ़ रहा है। सिलाई मशीन, साइकिल, पँखे, रेडियो तथा खेलों का सामन दूसरे देशों को निर्यात किए जाते हैं। मेरे देश ने विभिन्न क्षेत्रों; जैसे कृषि, उद्योग, विज्ञान एवं परमाणु शक्ति आदि के क्षेत्रों में आशातीत प्रगति कि है और यह गौरव का विषय है कि आज भारत की गणना परमाणु संपन्न राज्यों में की जाती है।
  2. अनुशासनहीनता देश कि समस्याओं की जड़
    संकेत-बिंदु: (i) अनुशासन विभिन्न समस्याओं की जड़ है (ii) विभिन्न समस्याओं के निराकरण के उपाय (iii) अनुशासन प्रकृति का नियम।
    देश की विभिन्न समस्याओं को गहराई में जाकर देखे तो उसमें कुछ ऐसी बाते मिलती हैं जो देश की विभिन्न समस्याओं को जन्म देती हैं। जिनमें आर्थिक और राजनीतिक महत्त्व के साथ ही साथ देश कि राष्ट्र भाषा, धर्म, संस्कृति और खानपान के आधार पर लोगों में आनुशासन तोड़ने अथवा समस्याएँ खड़ी करने के लिए प्रेरित होने के प्रसंग मिलते हैं। देश में व्याप्त इन समस्याओं के निराकरण के लिए देश के प्रत्येक नागरिक को अनुशासन प्रिय होना चाहिए। अनुशासन प्रिय होने के लिए हमें स्वप्रेरणा के आधार पर कार्य करना होगा। अनुशासन प्रकृति का नियम है। संपूर्ण जगत अनुशासन में बंधा हुआ है। कहावत प्रसिद्ध है कि अनुशासनहीनता अराजकता को जन्म देती है तथा अराजकता दासत्व को। अराजकता देश को अवनित तथा पतन कि ओर धकेलती है।
  3. वृक्षों का महत्त्व
    संकेत-बिंदु : (i) मानव जीवन और वृक्ष (ii) वृक्षों का वैज्ञानिक महत्त्व (iii) वृक्ष का वर्षा कराने एम योगदान।
    मानव सभ्यता ने संस्कृति के विकास की दशा में कदम  बढाती हुए गुफाओं से बाहर निकल और वृक्षों से नीचे उतरकर जब झोपड़ियों का निर्माण आरंभ किया, तब वृक्षों की शाखाएँ-पत्ते सहायक सामग्री बने ही, बाद में मकानों-भवनों की परिकल्पना सकार करने के लिए भी वृक्षों की लकड़ी का भरपूर किया गया। घरों को सजाने का काम तो आज भी वृक्षों की लकड़ी से ही क्या जा रहा है। हमें अनेक प्रकार के फल-फूल और औषधियाँ भी वृक्षों से प्राप्त होती ही हैं, कई तरह की वनस्पतियों का कारण भी वृक्ष ही हैं। इतना ही नहीं, वृक्षों के कारण ही हमें वर्षा-जल एवं पेयजल आदि कि प्राप्ति हो रही है। वृक्षों कि पत्तियाँ धरती के जल का शोषण कर सूर्य-किरणें और प्रकृति बादलों को बनाती है और वर्षा कराया करती हैं। कल्पना कीजिए, निहित स्वार्थी मानव जिस बेहरमी से वनों को काटता जा रहा है, यदि उस क्षति की पूर्ति के लिए साथ-साथ वृक्षारोपण न होता रहे, तब धरती के एकदम वृक्ष शून्य हो जाने कि स्थिति में मानव तो क्या, समूची जीव-सृष्टि की क्या दशा होगी ? निश्चय ही स्वतः ही जलकर राख का ढेर बन और उड़कर अतीत की भूली-बिसरी कहानी बनकर रह जाएगी।
  4. आतंकवाद: एक विश्व्यापी समस्या
    संकेत-बिंदु : (i) आतंकवाद एक विश्वव्यापी समस्या (ii) प्रत्येक राष्ट्र के लिए गंभीर चुनौती (iii) आतंकवाद पर काबू पाना आवश्यक।
    आतंकवाद एक विश्वव्यापी समस्या है। वह सर्वाधिक भयंकर एवं विषाक्त प्रवृत्ति प्रत्येक राष्ट्र के लिए गंभीर चुनौती के रूप में निरंतर उग्र धारण कर रही है। इस समस्या का वास्तविक व अंतिम समाधान अहिंसा द्वारा ही संभव है। आतंकवाद को परिभाषित करना सरल नहीं है क्योंकि यदि कोई पराजित देश स्वतंत्रता के लिए शस्त्र उठाता है तो वह विजेता के लिए आतंकवाद होता है। स्वतंत्रता के लिए भारतीय क्रांतिकारी प्रयास अंग्रेज़ों कि दृष्टि में आतंकवाद था। आतंकवाद एक ऐसी भयंकर प्रवृत्ति है जिसके द्वारा मनुष्य अपनी उचित अथवा अनुचित माँगों को मनवाने के लिए न्यायसंगत अथवा अहिंसात्मक उपायों को छोड़कर आतंक, भय अतवा मारपीट का मार्ग चुनता है। आज समूचा विश्व आतंकवाद की छपत में है। यदि समय रहते अंतर्राष्ट्रीय, समाजिक आड़ विभिन्न स्तरों पर प्रयास करके आतंकवाद पर काबू नहीं पाया गया तो यह समूचे विश्व के लिए घातक सिद्ध हो सकता है।
  5. भारतीय नारी कि महत्ता
    संकेत-बिंदु :
     (i) करुणा, माया और ममता की मूर्ति (ii) अनंत गुणों से परिपूर्ण (iii) ऐतिहासिक संदर्भ (iv) भारतीय और पाश्चात्य नारी में अंतर।
    भारतीय नारी दया, करुणा, ममता और प्रेम की पवित्र मूर्ति है और वक्त पड़ने पर वह प्रचंड चंडी भी बन जाती है। सृष्टि के आरंभ में ही अनंत गुणों का आगार रही है जिसकी गौरवगाथा से भारतीय धार्मिक साहित्य एवं इतिहास के पन्ने भरे हुए हैं। पृथ्वी की-सी क्षमता, सूर्य जैसा तेज, समुद्र की-सी गंभीरता, पर्वतों की-सी मानसिक उच्चता तथा चन्द्रमा की-सी शीतलता हमें एक साथ नारी के हृदय में दृष्टिगोचर होती है। गार्गी, मैत्रीय, अनुसूया, अहिल्या, सीता, द्रौपदी, रुक्मिणी, तारा, मंदोदरी, कुंती, गांधारी आदि अनेक ऐसी नारियाँ हैं जिन पर भारतवासी गर्व करते हैं और उनके पावन चरित्रों को सुनते-सुनते हुए प्रेरणा लेते हैं। स्वतंत्रता संग्राम का श्रीगणेश झाँसी की रानी के कर कमलों से संपन्न हुआ था। राजनीतिक क्षेत्र में भी भारतीय नारी सदा अंग्रिम पंक्ति में रही है। भारतीय नारी आज भी पाश्चात्य नारी की अपेक्षा कहीं अधिक सहनशील तथा संतोषी है। इस वजह से कई ऐसे प्रवासी भारतीय हैं जो भारतीय नारी को अपना जीवन साथी बनाना उचित समझते हैं। इस देश की नारी की लगन और निष्ठा देखकर कहा जा सकता है कि उसका भविष्य उज्ज्वल है।