रविंद्रनाथ ठाकुर - आत्मत्राण - एनसीईआरटी प्रश्न-उत्तर

CBSE Class 10 Hindi Couse B
NCERT Solutios
स्पर्श पाठ-9 रवींद्रनाथ ठाकुर [कविता]

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए -
1. कवि किससे और क्या प्रार्थना कर रहा है?

उत्तर:- 
कवि करुणामय ईश्वर से प्रार्थना कर रहा है कि वह उसे जीवन की विपदाओं से दूर चाहे ना रखे पर इतनी शक्ति दे कि इन मुश्किलों पर विजय पा सके। वह दुख में भी ईश्वर को न भूले,उसका विश्वास अटल रहे। वह वंचना , निराशा और दुखों के बीच प्रभु की कृपा -शक्ति और सत्ता में आत्म - विश्वास का भाव चाहता है।

2. 'विपदाओं से मुझे बचाओं, यह मेरी प्रार्थना नहीं' - कवि इस पंक्ति के द्वारा क्या कहना चाहता है?
उत्तर:- 
कवि का कहना है कि हे ईश्वर ! मैं यह नहीं कहता कि मुझ पर कोई विपदा न आए, मेरे जीवन में कोई दुख न आए बल्कि मैं यह चाहता हूँ कि मैं मुसीबत तथा दुखों से घबराऊँ नहीं,बल्कि मुझमे आत्म-विश्वास के साथ निर्भीक होकर हर परिस्थिति का सामना करने का साहस आ जाए।

3. कवि सहायक के न मिलने पर क्या प्रार्थना करता है?
उत्तर:- 
विपरीत परिस्थितियों के समय सहायक के न मिलने पर कवि ईश्वर से प्रार्थना करता है कि उसका बल- पौरुष न हिले, वह कोई भी कष्ट धैर्य से सह ले।

4. अंत में कवि क्या अनुनय करता है?
उत्तर:- 
इस पूरी कविता में कवि ने ईश्वर से साहस और आत्मबल माँगा है। अंत में कवि ईश्वर से यह अनुनय करता है कि चाहे सब लोग उसे धोखा दे, सब दुख उसे घेर ले पर ईश्वर के प्रति उसकी आस्था कम न हो, उसका विश्वास बना रहे। उसका ईश्वर के प्रति विश्वास कभी न डगमगाए। सुखों के आने पर भी ईश्वर को हर क्षण याद करता रहें।

5. आत्मत्राण शीर्षक की सार्थकता कविता के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:- '
आत्मत्राण' का अर्थ है आत्मा का त्राण अर्थात् आत्मा या मन के भय का निवारण, उससे मुक्ति। 'त्राण' शब्द का प्रयोग इस कविता के संदर्भ में बचाव, आश्रय और भय निवारण के अर्थ में किया जा सकता है। कवि चाहता है कि वह जीवन में आने वाले दुखों को निर्भय होकर सहन करे। दवह ऐसी प्रार्थनानहीं करता कि उसे दुःख न मिले बल्कि वह दुखों को सहने, उसे झेलने की शक्ति के लिए प्रार्थना करता है। कवि ईश्वर से प्रार्थना करता है कि उसका बल- पौरुष न हिले, वह सदा बना रहे और वह कोई भी कष्ट ,धैर्य से सह ले इसलिए यह शीर्षक पूर्णतया सार्थक है।

6. अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए आप प्रार्थना के अतिरिक्त और क्या-क्या प्रयास करते हैं? लिखिए।
उत्तर:- 
अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना के अतिरिक्त हम निम्नलिखित प्रयास करते हैं -
1) कठिन परिश्रम और संघर्ष करते हैं।
2) सफलता प्राप्त होने तक धैर्य धारण रखतेहैं।
3) जीवन में आने वाली कठिनाइयों से घबराते नहीं और न ही पीछे हटते हैं।

7. क्या कवि की यह प्रार्थना आपको अन्य प्रार्थना गीतों से अलग लगती है? यदि हाँ, तो कैसे?
उत्तर:- 
यह प्रार्थना अन्य प्रार्थना गीतों से भिन्न है क्योंकि अन्य प्रार्थना गीतों में दास्य भाव, आत्मसमर्पण, समस्त दुखों को दूर करके सुख-शांति की प्रार्थना, कल्याण, मानवता का विकास,ईश्वर सभी कार्य पूरे करें, ऐसी प्रार्थनाएँ होती हैं परन्तु इस कविता में कष्टों से छुटकारा नहीं बल्कि कष्टों को सहने की शक्ति के लिए प्रार्थना की गई है। कवि ईश्वर से प्रार्थना करता है कि वह उसे दुखों को सहने की शक्ति दे।कवि मुसीबत में भयग्रस्त नहीं होना चाहता है और सुख के दिनों में भी प्रभु का स्मरण बनाए रखना चाहता है। इस कविता में ईश्वर में आस्था रखने , कर्मशील बने रहने की प्रार्थना की गई है। यह प्रार्थना किसी सांसारिक या भौतिक सुख की कामना के लिए नहीं है।

निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए -
8. नत शिर होकर सुख के दिन में
तव मुख पहचानूँ छिन-छिन में।

उत्तर:- 
इन पंक्तियों में कवि कहना चाहता है कि वहसुख के दिनों में भी परमात्मा को हर पल श्रद्धा भाव से याद रखे।वह एक पल भी ईश्वर को भुलाना नहीं चाहता। कवि दुख-सुख दोनों में ही प्रभु को सम भाव से याद करना चाहता है।

9. हानि उठानी पड़े जगत् में लाभ अगर वंचना रही
तो भी मन में ना मानूँ क्षय।

उत्तर:- 
कवि ईश्वर से प्रार्थना करता है कि जीवन में उसे लाभ मिले या हानि ही उठानी पड़े, तब भी वह अपना मनोबल न खोए। वह हर परिस्थिति का सहर्ष सामना कर सके और उसके मन में ईश्वर के प्रति आस्था ,आशा और विश्वास बना रहे।
10. तरने की हो शक्ति अनामय
मेरा भार अगर लघु करके न दो सांत्वना नहीं सही।
उत्तर:- 
कवि इस संसार रूपी भवसागर को स्वयं पार करना चाहते हैं। वह यह नहीं चाहते कि ईश्वर उसकेइस दुख के भार को कम कर दे या सांत्वना दे। वह अपने जीवन की ज़िम्मेदारियों को कम करने के लिए नहीं कहते बल्कि उससे संघर्ष करने, उसे सहने की शक्ति के लिए प्रार्थना करते हैं।