पुनरावृति नोट्स - मेरे बचपन के दिन

CBSE कक्षा 9 क्षितिज हिंदी अ
पुनरावृत्ति नोट्स
पाठ-7 मेरे बचपन के दिन

महत्त्वपूर्ण बिन्दु –
  1. “मेरे बचपन के दिन” में महादेवी जी ने अपने बचपन के उन दिनों को स्मृति के सहारे लिखा है जब वे विद्यालय में पढ़ रही थीं । इस पाठ के माध्यम से लेखिका ने बालिकाओं की सक्रिय गतिविधियों तथा उनकी सामाजिक स्थिति की ओर संकेत किया है।
  2. महादेवी जी का जन्म उनके परिवार में कई पीढ़ियों के बाद लगभग दो सौ वर्षों के पश्चात हुआ था।फलस्वरूप उनका जोरदार स्वागत हुआ। उन्हें लड़कियों के साथ होने वाले दुर्व्यवहारों का सामना नहीं करना पड़ा। परिवार में सभी सुशिक्षित थे जैसे दादाजी को उर्दू-फारसी का ज्ञान था तो पिताजी को अंग्रेजी का किन्तु हिन्दी का कोई स्थान परिवार में नहीं था।
  3. महादेवी जी के दादाजी उन्हें विदुषी बनाना चाहते थे इसलिये उन्हें उर्दू-फारसी सिखाने के लिए मौलवी साहब की व्यवस्था की गई लेकिन उस भाषा में अरुचि होने के कारण वे उन्हें देखते ही वे चारपाई के नीचे छिप जाती थीं।
  4. हादेवी जी की माताजी धर्मनिष्ठ एवं पढ़ी-लिखी महिला थी,उन्हें हिन्दी और संस्कृत भाषा का भली-भाँति ज्ञान था। गीता में उनकी विशेष रुचि थी,वे रोज़ शाम को नियम से मीरा के पद गाती थीं। उन्होंने ही लेखिका को पंचतंत्र पढ़ने को दी जिसके कारण हिन्दी की ओर उनका मन आकर्षित हुआ।
  5. सबसे पहले उनका दाखिला मिशन स्कूल में हुआ था लेकिन वहाँ मन न लगने के कारण उन्हें पांचवें दर्जे में क्रास्थवेट गर्ल्स कालेज भेजा गया। वहाँ हिन्दू-ईसाई लड़कियाँ मिलजुल कर रहती थीं,उसी कालेज में उनकी मुलाक़ात उनसे दो साल सीनियर सातवें दर्जे की छात्रा सुभद्रकुमारी चौहान से हुई। सुभद्रा जी खड़ी बोली में लिखती थी,महादेवी जी भी चोरी-चोरी लिखती हैं यह बात सुभद्रा जी को पता चल गई और उन्होंने न केवल उनकी प्रशंसा की बल्कि उन्हें प्रोत्साहित भी किया।
  6. स्त्री दर्पण नामक पत्रिका में उनकी कवितायें छपती थी,हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिये प्राय: कवि सम्मेलन होते थे,जिसमें जाने-माने कवि आते थे। अकसर लेखिका को सम्मानित भी किया जाता था। उन्हें लगभग सौ पदक मिले थे।
  7. जब बापूजी आनंद भवन आते थे तब लड़कियाँ उन्हें स्वतन्त्रता संग्राम में सहायता के दृष्टिकोण से जेब-खर्च से बचाये गए एक या दो-दो आने चंदे स्वरूप देती थीं।इसी प्रसंग में एक बार जब गांधीजी आये तब महादेवी जी ने प्रशंसा पाने के लिए कविता सुनाने के ईनाम स्वरूप मिला चाँदी का कटोरा उन्हें दिखाया,बापूजी ने हँसते हुए उसे देश के लिये माँग लिया और लेखिका ने उन्हें दे दिया। बाद में जब सुभद्रा जी को यह घटना पता चली तब उन्होंने उनका उपहास उड़ाते हुए कहा -और जाओ दिखाने।
  8. उस समय सांप्रदायिकता नहीं थी,सब अपनी-अपनी भाषा बोलते थे,एक मेस में खाते ,एक प्रार्थना में बोलते थे। बचपन में सिखाये गए ये संस्कार हमेशा उनके साथ रहे,उनके पड़ोस में जवारा के नवाब रहा करते थे जिनकी पत्नी को वे ताई साहिबा कहा करती थी। दोनों परिवार मिल-जुल कर तीज-त्योहार मनाते थे। राखी के त्योहार में वे तब तक अपने लड़के को पानी नहीं देती थीं जब तक लेखिका उसे राखी न बाँध दे ,यहाँ तक कि लेखिका के भाई का जन्म होने पर उन्होंने ही उसका नाम मनमोहन रखा था। लेखिका के भाई का यह नाम हमेशा चला ,उनके घर में हिन्दी,उर्दू,अवधी भाषा सामान्य रूप से बोली जाती थी।
  9. आज धर्म,भाषा,बोली के आधार पर विभाजित देश को देख कर लेखिका को लगता है कि भारत को एकरूप देखने का उनका सपना कहीं खो गया है।