वाख - पुनरावृति नोट्स
CBSE कक्षा 9 हिंदी-A क्षितिज
पाठ-10 वाख
पुनरावृत्ति नोट्स
पाठ-10 वाख
पुनरावृत्ति नोट्स
महत्त्वपूर्ण बिन्दु-
- ललदयद की काव्य शैली को वाख कहा जाता है। अपने वाखों के जरिए उन्होंने जाति और धर्म की संकीर्णताओं से ऊपर उठकर भक्ति के ऐसे रास्ते पर चलने पर ज़ोर दिया है जिसका जुड़ाव जीवन से हो।
- पहले वाख में कवयित्री ने ईश्वर प्राप्ति के लिए किए जाने वाले अपने प्रयासों की व्यर्थता की चर्चा की है।कवयित्री के अनुसार वे कच्चे धागे की रस्सी से नाव खींच रही हैं अर्थात वह अपनी जीवन रूपी नाव प्रयास रूपी कच्चे धागे से खींच रही है। पता नहीं ईश्वर कब उनकी पुकार सुनकर इस संसार रूपी भवसागर को पार करने में उनकी सहायता करेंगे। जैसे कच्चे सकोरे में पानी रखने से उसमें से पानी टपकने लगता है उसीप्रकार इस सांसारिक जीवन से मुक्ति के सारे प्रयास व्यर्थ हो रहे हैं। उसके मन में रह-रह कर यह हूक उठती है कि कब वह अपने घर जा पायेगी अर्थात ईश्वर से मिल पायेगी।इस पद में रूपक,दृष्टांत अलंकार का सुंदर प्रयोग है।
- दूसरे पद में बाह्य आडंबरों का विरोध किया गया है। सांसारिक वस्तुओं का उपभोग करके कुछ हासिल नहीं होता और यदि उनका उपभोग नहीं किया जाता तो मन में अहंकार उत्पन्न हो जाता है। कवयित्री जीवन में सम भाव रखने के लिये कहती हैं अर्थात अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण रखना चाहिये तभी बंद द्वार की सांकल खुल पायेगी अर्थात ज्ञान की प्राप्ति के बाद ही मुक्ति का मार्ग मिलेगा।
- तीसरे पद में कवयित्री के आत्मालोचन की अभिव्यक्ति है,वे कहती हैं कि इस संसार में उनका आगमन सीधी राह से हुआ किन्तु यहाँ आकर वह राह भटक गयी अर्थात सांसारिक प्रपंचों में पड़ कर वह हठयोग आदि से ईश्वर प्राप्ति का उपाय करती रही और सुषुम्न नाड़ी रूपी पुल पार खड़ी रह गयी, अंतत: जीवन रूपी दिन बीत गया । अब इस संसार रूपी भवसागर को पार उतारने वाले ईश्वर रूपी मांझी को उतराई स्वरूप देने के लिये उनके पास कुछ भी नहीं हैं अर्थात उन्होंने जीवन में कोई सदकर्म नहीं किया।
- चौथे वाख में ईश्वर की सर्वव्यापकता पर बल दिया गया है,उस कल्याणकारी ईश्वर का निवास हर जगह है । हिन्दू-मुसलमानों को उसमें कोई भेदभाव नहीं करना चाहिये । ज्ञानी वहीं व्यक्ति होता जो स्वयं को जान लेता है और स्वयं को जानने वाला ही ईश्वर से साक्षात्कार कर पाता है।