CBSE कक्षा - 10 संस्कृत
एनसीईआरटी प्रश्न-उत्तर
पाठः - 12 अन्योक्तयः
अभ्यासः
- अधोलिखितानां प्रश्नानानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत-
- सरसः शोभा केन भवति?
- चातकः किमर्थं मानी कथ्यते?
- मीनः कदा दीनां गतिं प्राप्नोति?
- कानि पूरयित्वा जलदः रिक्तः भवति?
- वृष्टिभिः वसुधां के आर्द्रयन्ति?
उत्तराणि-
- सरसः शोभा एकेन राजहंसेन भवति।
- चातकः धरायाः जलं न पीत्वा पुरन्दरं वर्षाजलं माचते अन्यथा पिपासितः एव म्रियते अतः मानी कथ्यते।
- सरः त्वयि सङ्कोचं अञ्चतिसति मीनः दीनां गतिं प्राप्नोति।
- नानानदीनदशतानि च पूरयित्वा जलदः रिक्तः भवति।
- वृष्टिभिः वसुधां अम्भोदाः आर्द्रयन्ति।
- अधोलिखितवाक्येषु रेखाङ्कितपदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत-
- मालाकारः तोयैः तरोः पुष्टिं करोति।
- भृङ्गाः रसालमुकुलानि समाश्रयन्ते।
- पतङ्गाः अम्बरपथम् आपेदिरे।
- जलदः नानानदीनदशतानि पूरयित्वा रिक्तोऽस्ति।
- चातकः वने वसति।
उत्तराणि-
- मालाकारः कैः तरोः पुष्टिं करोति?
- भृङ्गाः कानि समाश्रयन्ते?
- के अम्बरपथम् आपेदिरे?
- कः नानानदीनदशतानि पूरयित्वा रिक्तोऽस्ति?
- चातकः कुत्र/कस्मिन् वसति?
- अधोलिखितयोः श्लोकयोः भावार्थं स्वीकृतभाषया लिखत-
- तोयैरल्यैरपि ________________ वारिदेन।
- रे रे चातक ________________ दीनं वचः।
उत्तराणि-
- अर्थात् हे मालाकार। त्वम् भीषणतया ग्रीष्ममर्तौ भानौ तपति सति अल्पेन जलेन या सेवा भवता अस्य वृक्षस्य पोषणार्थं कृता किं सा एव सेवा वर्षाकाले परितः धारासु प्रवाहतैः जलैः वारिदेन अपि कर्तुं सक्षमैन भूमते? अर्थात् मानवजीवनं केवलं सुखैरेव प्रवर्धते तदर्थं तु दुःखमपि तथैव अनिवार्यं वर्तते यथा सुखम् अस्ति। सुख दुःखम् तु मानवजीवनस्य द्वौ स्कन्धौ इव वर्तते।
- अस्यभयोऽस्ति यत् हे मित्र चातक! सावधानं भूत्वा मम वचांसि श्रृत्वा अवधीर्यताम् पतः गगने अनेके अनेक बदलाः सन्ति परन्तु तेषु सर्वे स्व वर्षाभिः धरा न तर्पयन्ति अपितु केचिंदेव वर्षस्ति केचितु वृथा एव गर्जन्ति। अतः यं यं बद्दलं त्वं पश्यासे तस्य-तस्य (सर्वस्य) अग्ने स्वदीनं वचः मा ब्रूहि। एवमेव संसारेऽपि अनेक जनाः सन्ति तो सर्व स्वमित्राणां सहाय्यं न कुर्वन्ति अतः सर्वेषाम् अग्ने स्वदुःखानि प्रकानि कुर्यः अनेन आत्मसम्माने समाप्यते जगति हास्यं च भवति।
- अधोलिखितयोः श्लोकयोः अन्वयं लिखत-
- आपेदिरे ________ कतमां गतिमभ्युपैति।
- आश्वास्य _________ सैव तवोत्तमा श्रीः।।
उत्तराणि-
- पतङ्गाः परितः अम्बरपथम् अपोदिरे भृङ्गाः रसालमुकुलानि समात्रयन्ते। सरः त्वमि सङ्कोचम् अञ्चति हन्त दीनदीनः मीनः नु कतमां गतिम् अभ्युपैतु।।
- तपनोष्णतप्तम् पर्वतकुलम् आश्वास्य उद्दामदावविधुराणि काननानि च (आश्वास्य) नानानदीनदशैतानि पूरयित्वा च हे जलद! यत् रिक्तः असि तव सा एव उत्तमा श्रीः।।
- उदाहरणमनुसृत्य सन्धिं/सन्धिविच्छेदं वा कुरुत-
(i) यथा- अन्यः + उक्तयः = अन्योक्तयः
| (क) | _________ | + | _________ | = | निपीतान्यम्बूनि |
| (ख) | _________ | + | उपकारः | = | कृतोपकारः |
| (ग) | तपन | + | _________ | = | तपनोष्णतप्तम् |
| (घ) | तव | + | उत्तमा | = | _________ |
| (ङ) | न | + | एतादृशाः | = | _________ |
उत्तराणि-
| (क) | निपीतानि | + | अम्बुनि | = | निपीतान्यम्बूनि |
| (ख) | कृत | + | उपकारः | = | कृतोपकारः |
| (ग) | तपन | + | उष्णतप्तम् | = | तपनोष्णतप्तम् |
| (घ) | तव | + | उत्तमा | = | तवोत्तमा |
| (ङ) | न | + | एतादृशाः | = | नेतादृशाः |
(ii) यथा- पिपासितः + अपि = पिपासितोऽपि
| (क) | ________ | + | ________ | = | कोऽपि |
| (ख) | ________ | + | ________ | = | रिक्तोऽसि |
| (ग) | मीनः | + | अयम् | = | ________ |
| (घ) | सर्वे | + | अपि | = | ________ |
उत्तराणि-
| (क) | को | + | अपि | = | कोऽपि |
| (ख) | रिक्तो | + | अपि | = | रिक्तोऽसि |
| (ग) | मीनः | + | अयम् | = | मनोऽयम् |
| (घ) | सर्वे | + | अपि | = | सर्वेऽपि |
(iii) यथा- सरसः + भवेत् = सरसों भवेत्
| (क) | खगः | + | मानी | = | _________ |
| (ख) | _________ | + | नु | = | मिनो नु |
| (ग) | पिपासितः | + | वा | = | _________ |
| (घ) | _________ | + | _________ | = | पुरतो मा |
उत्तराणि-
| (क) | खगः | + | मानी | = | खगोमानी |
| (ख) | मीनः | + | नु | = | मिनो नु |
| (ग) | पिपासितः | + | वा | = | पिपासितो वा |
| (घ) | पुरतः | + | मा | = | पुरतो मा |
(iv) यथा- मुनिः + अपि = मुनिरपि
| (क) | तोयैः | + | अल्पैः | = | ________ |
| (ख) | ________ | + | अपि | = | अल्पैरपि |
| (ग) | तरोः | + | अपि | = | ________ |
| (घ) | ________ | + | आर्द्रयन्ति | = | वृष्टिभिराईयन्ति |
उत्तराणि-
| (क) | तोयैः | + | अल्पैः | = | तोयैरल्पैः |
| (ख) | अल्पैः | + | अपि | = | अल्पैरपि |
| (ग) | तरोः | + | अपि | = | तरोरपि |
| (घ) | वृष्टिभिः | + | आर्द्रयन्ति | = | वृष्टिभिराईयन्ति |
- उदाहरणमनुसृत्य अधोलिखितैः विग्रहपदैः समस्तपवानि रचयत-
| | विग्रहपदानि | | समस्तपदानि |
| यथा- | पीतं च तत् पङ्कजम् | = | पीतपङ्कजम् |
| i. | राजा च असौ हंसः | = | __________ |
| ii. | भीमः च असौ भानुः | = | __________ |
| iii. | अम्बरम् एव पन्थाः | = | __________ |
| iv. | उत्तमा च इयम् श्रीः | = | __________ |
| v. | सावधानं च तत् मनः, तेन | = | __________ |
उत्तराणि-
| | विग्रहपदानि | | समस्तपदानि |
| i. | राजा च असौ हंसः | = | राजहंसः |
| ii. | भीमः च असौ भानुः | = | भीमभानुः |
| iii. | अम्बरम् एव पन्थाः | = | अम्बरपन्थाः |
| iv. | उत्तमा च इयम् श्रीः | = | उत्तमश्रीः |
| v. | सावधानं च तत् मनः, तेन | = | सावधानमनसा |
- उदाहरणमनुसृत्य निम्नलिखितैः धातुभिः सह यथानिर्दिष्टान् प्रत्यायान् संयुज्य शब्दरचनां कुरुत-
| | धातुः | क्त्वा | क्तवतु | तव्यत् | अनीयर् |
| i. | पठ् | पठित्वा | पठितवान् | पठितव्यः | पठनीयः |
| ii. | गम् | _____ | _____ | _____ | _____ |
| iii. | लिख् | _____ | _____ | _____ | _____ |
| iv. | कृ | _____ | _____ | _____ | _____ |
| v. | ग्रह् | _____ | _____ | _____ | _____ |
| vi. | नी | _____ | _____ | _____ | _____ |
उत्तराणि-
| | धातुः | क्त्वा | क्तवतु | तव्यत् | अनीयर् |
| i. | पठ् | पठित्वा | पठितवान् | पठितव्यः | पठनीयः |
| ii. | गम् | गत्वा | गतवाम् | गन्तव्यः | गमनीयः |
| iii. | लिख् | लिखित्वा | लिखितवान् | लेखितव्यः | लेखनीयः |
| iv. | कृ | कृत्वा | कृतवान् | कर्तव्यः | करणीयः |
| v. | ग्रह् | ग्रहीत्वा | ग्रहीतवान् | ग्रहितव्यः | ग्रहणीयः |
| vi. | नी | नीत्वा | नीतवान् | नैतव्यः | नयनीयः |