सुमित्रानंदन पंत - पर्वत प्रदेश में पावस - महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर 1
CBSE कक्षा 10 हिंदी 'ब' स्पर्श (काव्य खंड)
पाठ - 3 पर्वत प्रदेश मे पावस
महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
पाठ - 3 पर्वत प्रदेश मे पावस
महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
काव्यांश के विषय-बोध और सराहना पर आधारित प्रश्नोत्तर
निम्नलिखित पंक्तियों पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
निम्नलिखित पंक्तियों पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
- पावस ऋतू थी, पर्वत प्रदेश,
पल-पल परिवर्तित प्रकृति-वेश।
मेखलाकार पर्वत अपार
अपने सहस्त्र दृग-सुमन फाड़,
अवलोक रहा है बार-बार
नीचे जल में नज महाकार,
-जिसके चरणों में पला ताल
दर्पण-सा फैला है विशाल !- उपर्युक्त पंक्तियों का भाव सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- उपरोक्त काव्यांश में कवि ने वर्षा ऋतू में पहाड़ों जे मनोरम दृश्य का वर्णन किया है। इसमें कवि ने प्रकृति के प्रतिपल बदलते रूप का मनोरम चित्रण किया है। काव्यांश में मंडलाकार पर्वत जल में अपना प्रतिबिंब देखकर मुग्ध हो जान पड़ता है। उस पर्वत के पाँवों अर्थात् नीचे एक विशाल तालाब था जिसका जल दर्पण के समान स्वच्छ और पारदर्शी थे जिसमें पर्वत अपना प्रतिबिंब निहार रहा था। - उपर्युक्त पंक्तियों का शिल्प सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- प्रश्नोक्त पंक्तियों में प्रकृति का मानवीकरण कर कवि ने प्रकृति के विभिन्न उपालंभों का सजीव चित्र खींचा है। पर्वत का आँखें फाड़कर देखना एक मानवीय क्रिया है। काव्यांश में खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है, भाषा, सरल, सरस एवं बोधगम्य है। कुछ संस्कृतनिष्ठ विभिन्न अलंकारों का प्रयोग अत्यंत चतुराई से किया है। ‘दृग सुमन’ में रूपक, ‘पर्वत प्रदेश’ में अनुप्रास, ‘पल-पल एवं बार-बार’ में पुनरुक्ति प्रकाश तथा ‘दर्पण-सा’ में उपमा अलंकार का प्रयोग दर्शनीय है। - "दर्पण-सा" किसके लिए प्रयोग किया गया है?
उत्तर- काव्यांश में दर्पण-सा अर्थात् दर्पण की उपमा पर्वत के नीचे फैले सरोवर के लिए दिया गया है।
- उपर्युक्त पंक्तियों का भाव सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
गिरी का गौरव गाकर झर-झर
मद में नस-नस उत्तेजित कर
मोती की लड़ियों-से सुंदर
झरते हैं झाग भरे निर्झर।
गिरिवर के उर से उठ-उठ कर
उच्चाकांक्षाओं से तरुवर
हैं झाँक रहे नीरव नभ पर
अनिमेष, अटल, कुछ चिंतापर- झरने कैसे प्रतीत हो रहे थे?
उत्तर- पर्वत से बहते झरने की आवाज ऐसी प्रतीत हो रही थी जैसे वे पर्वतों का गुणगान कर रहे हों। - कवि को वृक्ष कैसा दिख रहा था?
उत्तर- प्रश्नोक्त पंक्तियों में कवि ने पर्वत से बहते झरनों तथा ऊँचे-ऊँचे वृक्षों का वर्णन किया है। कवि लिखता है कि ये झरने मधुर ध्वनि करते हुए पर्वत का गुणगान करते प्रतीत होते हैं। झरने का झागयुक्त पानी मोती की लड़ियों के समान दिख रहा है। इनकी ध्वनि से सहज ही उत्तेजना भर जाती है। पर्वत पर उपस्थित ऊँचे-ऊँचे वृक्ष मानव मन में उठी ऊँची-ऊँची आकांक्षाओं के समान हैं जो अपने लक्ष्य की खोज में मौन, शांत और अटल खड़े हैं। - प्रश्नोक्त पंक्तियों का शिल्प सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- प्रकृति का मानवीकरण कर उसका सुंदर चित्र खींचा गया है। भाषा सरल, सहज, सरस एवं प्रभावकारी है। संयुक्तनिष्ठ शब्दों का कोमल एवं सुमधुर प्रयोग हुआ है। शब्द चयन भावानुकूल है। कवि की कल्पना सजीव एवं बिलकुल नवीन होती है। काव्यांश में मानवीकरण, अनुप्रास, उपमा इत्यादि अलंकारों का अत्यंत सुंदर प्रयोग किया गया है।
- झरने कैसे प्रतीत हो रहे थे?
उड़ गया, अचनाक लो, भूधर
फड़का अपार पारद के पर !
रव-शेष रह गए हैं निर्झर !
है टूट पड़ा भू पर अंबर !
धँस गए धरा में सभय शाल !
उठ रहा धुआँ, जल गया ताल !
-यों जलद-यान में विचर-विचर
था इंद्र खेलता इंद्रजाल।- कवि को बादल छा जाने पर पर्वत कैसा दिखता है?
उत्तर- कवि को बादल छा जाने पर बादल के कारण पर्वत दिखाई नहीं देता। कवि कहता है कि ऐसा प्रतीत होता है कि भूधर अर्थात् पर्वत कहीं उड़ गया है। - उपर्युक्त पंक्तियों के अनुसार शाल के पेड़ कहाँ चले गए?
उत्तर- उपर्युक्त पंक्तियों के अनुसार कवि की रचना में उसे ऐसा प्रतीत हो रहा है कि शाल के वृक्ष भयभीत होकर जमीन के अंदर धँस गए हों। - 'इंद्र खेलता इंद्र जाल' से क्या आशय है?
उत्तर- प्रश्नोक्त पंक्ति का आशय है कि इंद्र अपनी जादूगरी का खेल दिखाता हुआ इधर-उधर घूम रहा है।
- कवि को बादल छा जाने पर पर्वत कैसा दिखता है?